कांग्रेस की चाल में फंस रहे लालू यादव! NDA के दलित चेहरों को भी मिली चुनौती, नए अवतार से सब परेशान

कांग्रेस की चाल में फंस रहे लालू यादव! NDA के दलित चेहरों को भी मिली चुनौती, नए अवतार से सब परेशान

<p style=”text-align: justify;”><strong>Bihar Politics:</strong> बिहार विधानसभा चुनाव में अब करीब छह महीने का वक्त बचा हुआ है. इस चुनाव से पहले बिहार में कांग्रेस के प्रयोग अपने ही गठबंधन के साथियों के लिए अबूझ पहले बनते जा रहे हैं, या कहें कि उनकी ही चुनौतियों को बढ़ाते जा रहे हैं. पहले कांग्रेस ने राज्य में अपना प्रभारी बदला और कृष्णा अल्लावरू को जिम्मेदारी दे दी थी. अब कांग्रेस ने राज्य में दलित चेहरे के तौर पर राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, राजेश राम के पिता भी कांग्रेस की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि उनका परिवार कांग्रेस में लंबे वक्त से है. लेकिन, अगर चुनाव से पहले कांग्रेस के इस फैसले पर नजर डालें तो विरोधियों से ज्यादा ये इंडिया गठबंधन के तमाम दलों के लिए चुनौती है. राजेश राम जिस इलाके से आते हैं बीते तीन विधानसभा चुनावों में इस पूरे इलाके में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को भारी नुकसान होता रहा है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बीते चुनाव में महागठबंधन का गढ़</strong><br />साल 2000 के बाद यह इलाका एनडीए का गढ़ माना जाता था. लेकिन, 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी के नेतृत्व एनडीए को भारी नुकसान होता आया है. इस इलाके में दलित वोटर्स का झुकाव आरजेडी और मायावती की बीएसपी के ओर हमेशा से रहा है. हालांकि इलाके की कुछ सीटों पर कांग्रेस के दलित नेताओं का अभी भी दबदबा है. इसकी गवाही बीते विधानसभा चुनाव के आंकड़े भी देते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अगर बीते 2020 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो बक्सर, रोहतास, कैमुर, भोजपुर, अरवल, औरंगाबाद और गया की करीब 49 विधानसभा सीटों में से 41 सीटों पर आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने कब्जा किया था. इस इलाके की कुटुंबा और राजपुर जैसी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. अब इस लिहाज से देखा जाए तो इसी इलाके को समीकरण को कांग्रेस ने और दुरुस्त करने की कोशिश की है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>बीते कुछ सालों में पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के जरिए इस इलाके के समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने की है. यह कोशिश लोकसभा चुनाव में कुछ हद तक कामयाब जरूर हुई है. लेकिन, विधानसभा चुनाव में ये रणनीति कुछ खास कारगर सिद्ध नहीं हो पाई है. यही वो इलाका है जहां दलितों का एक बड़ा तबका आज भी मायावती के नेतृत्व वाली बीएसपी के साथ भी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/bihar/bihar-congress-chief-rajesh-kumar-before-assembly-election-lalu-yadav-seat-sharing-2906893″>बिहार में कांग्रेस ने बदला अध्यक्ष, लालू यादव से रिश्ते और जाति की राजनीति भी बदलेगी?</a><br /></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सेंधमारी की तैयारी</strong><br />लालू यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी के साथ भी दलित वोटर्स का एक बड़ा तबका है. लेकिन, अब कांग्रेस ने अपने विश्वसनीय और दलित चेहरों के जरिए इन वोटर्स में सेंधमारी की तैयारी शुरू कर दी है. इसकी शुरूआत नेता विपक्ष राहुल गांधी के दलित सम्मेलन के साथ ही हो गई थी. लेकिन, अब राजेश राम के जरिए इस समीकरण को और धार देने की कोशिश की गई है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस इलाके में करीब 25 फीसदी दलित वोटर्स हैं, ऐसे वक्त में जब मायावती का अपने वोटर्स के बीच प्रभाव कम हो रहा है तो कांग्रेस ने चुनाव से ठीक पहले राजेश राम के जरिए इन वोटर्स को साधने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. हालांकि बीएसपी के साथ ही आरजेडी के लिए भी कांग्रेस अब चुनौतियों को बढ़ा रही है. इसके साथ ही इस इलाके में कांग्रेस अपनी पुरानी खोई हुई जमीन भी तलाश रही है.&nbsp;</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Bihar Politics:</strong> बिहार विधानसभा चुनाव में अब करीब छह महीने का वक्त बचा हुआ है. इस चुनाव से पहले बिहार में कांग्रेस के प्रयोग अपने ही गठबंधन के साथियों के लिए अबूझ पहले बनते जा रहे हैं, या कहें कि उनकी ही चुनौतियों को बढ़ाते जा रहे हैं. पहले कांग्रेस ने राज्य में अपना प्रभारी बदला और कृष्णा अल्लावरू को जिम्मेदारी दे दी थी. अब कांग्रेस ने राज्य में दलित चेहरे के तौर पर राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, राजेश राम के पिता भी कांग्रेस की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि उनका परिवार कांग्रेस में लंबे वक्त से है. लेकिन, अगर चुनाव से पहले कांग्रेस के इस फैसले पर नजर डालें तो विरोधियों से ज्यादा ये इंडिया गठबंधन के तमाम दलों के लिए चुनौती है. राजेश राम जिस इलाके से आते हैं बीते तीन विधानसभा चुनावों में इस पूरे इलाके में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को भारी नुकसान होता रहा है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बीते चुनाव में महागठबंधन का गढ़</strong><br />साल 2000 के बाद यह इलाका एनडीए का गढ़ माना जाता था. लेकिन, 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी के नेतृत्व एनडीए को भारी नुकसान होता आया है. इस इलाके में दलित वोटर्स का झुकाव आरजेडी और मायावती की बीएसपी के ओर हमेशा से रहा है. हालांकि इलाके की कुछ सीटों पर कांग्रेस के दलित नेताओं का अभी भी दबदबा है. इसकी गवाही बीते विधानसभा चुनाव के आंकड़े भी देते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अगर बीते 2020 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो बक्सर, रोहतास, कैमुर, भोजपुर, अरवल, औरंगाबाद और गया की करीब 49 विधानसभा सीटों में से 41 सीटों पर आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने कब्जा किया था. इस इलाके की कुटुंबा और राजपुर जैसी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. अब इस लिहाज से देखा जाए तो इसी इलाके को समीकरण को कांग्रेस ने और दुरुस्त करने की कोशिश की है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>बीते कुछ सालों में पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के जरिए इस इलाके के समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने की है. यह कोशिश लोकसभा चुनाव में कुछ हद तक कामयाब जरूर हुई है. लेकिन, विधानसभा चुनाव में ये रणनीति कुछ खास कारगर सिद्ध नहीं हो पाई है. यही वो इलाका है जहां दलितों का एक बड़ा तबका आज भी मायावती के नेतृत्व वाली बीएसपी के साथ भी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/bihar/bihar-congress-chief-rajesh-kumar-before-assembly-election-lalu-yadav-seat-sharing-2906893″>बिहार में कांग्रेस ने बदला अध्यक्ष, लालू यादव से रिश्ते और जाति की राजनीति भी बदलेगी?</a><br /></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सेंधमारी की तैयारी</strong><br />लालू यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी के साथ भी दलित वोटर्स का एक बड़ा तबका है. लेकिन, अब कांग्रेस ने अपने विश्वसनीय और दलित चेहरों के जरिए इन वोटर्स में सेंधमारी की तैयारी शुरू कर दी है. इसकी शुरूआत नेता विपक्ष राहुल गांधी के दलित सम्मेलन के साथ ही हो गई थी. लेकिन, अब राजेश राम के जरिए इस समीकरण को और धार देने की कोशिश की गई है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस इलाके में करीब 25 फीसदी दलित वोटर्स हैं, ऐसे वक्त में जब मायावती का अपने वोटर्स के बीच प्रभाव कम हो रहा है तो कांग्रेस ने चुनाव से ठीक पहले राजेश राम के जरिए इन वोटर्स को साधने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. हालांकि बीएसपी के साथ ही आरजेडी के लिए भी कांग्रेस अब चुनौतियों को बढ़ा रही है. इसके साथ ही इस इलाके में कांग्रेस अपनी पुरानी खोई हुई जमीन भी तलाश रही है.&nbsp;</p>  बिहार Nagpur Violence Live: कई इलाकों में अभी भी कर्फ्यू, पुलिस ने निकाला रूट मार्च, नागपुर में अब कैसे हैं हालात?