कानपुर के शुभम की पत्नी का पहला इंटरव्यू:पाकिस्तान को खत्म करो, सबकुछ बर्बाद कर दिया, पति को शहीद का दर्जा मिले

कानपुर के शुभम की पत्नी का पहला इंटरव्यू:पाकिस्तान को खत्म करो, सबकुछ बर्बाद कर दिया, पति को शहीद का दर्जा मिले

‘पाकिस्तान को खत्म कर दो…आतंक अपने आप खत्म हो जाएगा। जो नाम-धर्म पूछकर गोली मारता हो, ऐसे हर शख्स को खत्म कर देना चाहिए।’ ये गुस्सा है शुभम की पत्नी ऐशन्या का…। शुभम द्विवेदी उन 26 टूरिस्ट में शामिल थे, जिन्हें कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने पहली गोली मारी थी। शुभम का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ कानपुर में उनके पैतृक गांव में हुआ। इसके बाद दैनिक भास्कर ने ऐशन्या से मुलाकात की। वह कहती हैं- मुझे लगा वह लोग (आतंकी) प्रैंक कर रहे हैं, फिर 1 सेकेंड में गोली चली और मेरा सब कुछ खत्म हो गया। हमने ऐशन्या से शुभम की पहली मुलाकात, उनकी लव स्टोरी और आतंकी हमले पर सवाल पूछे। वह भावुक होकर फफक पड़ीं, परिवार के लोगों ने उन्हें संभाला। जो कुछ ऐशन्या ने हमें बताया, वो पढ़िए… हमारी अरेंज मैरिज, शुभम जैसा इंसान दुनिया में दूसरा नहीं
ऐशन्या ने कहा, हमारी शादी अरेंज मैरिज थी। शुभम से पहली बार 28 सितंबर, 2024 को मेरी बात हुई, तब हमने मिलने का डिसाइड किया। दो दिन बाद 1 अक्टूबर को पहली बार मैं शुभम से मिली थी, हम लोग बाहर डेट पर गए थे। मेरे घर वाले भी चाहते थे कि शादी से पहले हम दोनों मिलें। पहली मुलाकात में ही मैं श्योर हो गई थी कि मुझे इन्हीं के साथ जिंदगी बितानी है। वो भी श्योर थे कि मेरे से ही शादी करनी है। 13 अक्टूबर को हमारा रोका हुआ था, 6 महीने बाद 12 फरवरी को हमारी शादी ओरछा (मध्य प्रदेश) में हुई। शुभम की कौन सी यादें हैं जो बार-बार याद आती हैं? इस पर ऐशन्या ने कहा- कौन सी यादें नहीं होंगी? उसके साथ बिताया हुआ हर एक लम्हा मेरे लिए यादगार है। उससे अच्छा बंदा तो मिल ही नहीं सकता। उससे अच्छा इंसान तो दुनिया में नहीं है। लेकिन, अब वही मेरा अच्छा इंसान इस दुनिया में नहीं है। शुभम से आखिरी बात क्या हुई थी?
22 अप्रैल को हम लोग पहलगाम की बैसारन घाटी पहुंचे थे। शुभम ने मुझे अपनी घड़ी की तरफ इशारा किया। दोपहर के 2 बजकर 25 मिनट हुए थे। उसने कहा, हम ऐसा करते हैं कि 2:45 तक यहीं पर बैठते हैं। तुम थोड़ा घूम लो और कुछ खा लो, फिर हम लोग नीचे चलते हैं। नीचे जाकर सभी लोग एक साथ लंच करेंगे। बस इतनी बात हुई। हमारे हाथ में कॉफी थी। शुभम ने अपनी छोटी बहन शांभवी की तरफ चिढ़ाते हुए कहा- देखो..देखो मैं तुम्हारी कॉफी पीने जा रहा हूं। टेबल पर मैगी और कॉफी रखी हुई थी। शांभवी ने कहा कि नहीं…नहीं जेजे (शुभम) मैं पियूंगी। AK-47 लेकर आए थे आतंकी, देखकर लगा कोई शूटिंग गेम वाला है?
ऐशन्या बताती हैं, मैं और शुभम काफी खुश थे। हम दोनों हाथ पकड़कर बैठे हुए थे। तभी दो लोग पीछे से आए। उनके कंधे पर गन थी। हम समझ ही नहीं पाए कि ये आतंकी हैं। वहां इतने सारे गेम चल रहे थे कि हमें लगा कि कोई शूटिंग गेम वाला है, हमें कुछ बताने आया है। उसने आते ही सबसे पहले पूछा कि हिंदू हो या मुसलमान? मुझे समझ ही नहीं आया कि उस बंदे ने बोला क्या। हम पलटे और कहा कि क्या हुआ भइया, एक ने स्माइल के साथ पूछा था कि हिंदू हो या मुसलमान, मैं तो समझ ही नहीं पाई कि क्यों पूछ रहा है। वहां तो हर इंसान मौज-मस्ती कर रहा था। लेकिन दूसरी बार उसने कड़क आवाज में पूछा कि हिंदू है या मुसलमान, कलमा पढ़…इतने पर भी हमें लगा कि वह प्रैंक यानी मजाक कर रहा है। हमें रत्तीभर भी अंदेशा नहीं था कि आतंकी हमला होने वाला है। हमने जवाब दिया कि हिंदू हैं। मुंह से ये शब्द निकलते ही शुभम के कनपटी पर गोली मार दी। ऐसी जगह गोली मारी कि बचने की कोई उम्मीद ही नहीं हो। अगर कहीं और इंजरी लगी होती तो एक बार बचने की भी संभावना होती। लेकिन आतंकी ने सीधे कनपटी पर गोली मारी। ऐशन्या ने कहा- घाटी में अटैक का ये पहला शॉट था, जो आतंकियों ने शुभम को मारा था। आतंकियों ने सबसे पहले शुभम को गोली मारी। शुभम के चेहरे पर खून ही खून था। मुझे समझ ही नहीं आया कि पल भर में ये क्या हो गया। शुभम कहां है, शुभम कहां है चिल्लाते हुए मैं बेहाल हो गई। मैं शुभम के ऊपर गिर पड़ी और उसे जगाती रही। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। हमें नहीं मालूम था कि वो किसको मारेंगे और किसको छोड़ेंगे। वहां ओपन फायर चल रहा था। मेरे पापा के बगल से तीन गोली निकली थी। ईश्वर ने उन्हें बचा लिया। आतंकियों ने पल भर में लोगों को गोलियों से भून डाला। कैसे लोग मुझे वहां से घसीटकर नीचे लेकर आए मुझे होश नहीं है। क्या वहां सुरक्षा के लिए जवान नहीं थे?
ऐशन्या कहती हैं, वहां पर कोई सिक्योरिटी नहीं थी, न वहां पर पुलिस के बंदे थे, न ही आर्मी के जवान। वहां पर एक सिक्योरिटी गार्ड तक नहीं था। लोग मारे जा रहे थे, मगर बचाने वाला कोई नहीं था। सुरक्षा कैसे होती है, क्या इस तरह से होती है। बहन बोली- हमारे भाई को गोली थी, घोड़े वाले पैसे मांग रहे थे
शुभम की बहन आरती ने बताया- बैसारन घाटी मैं भी जा रही थी। लेकिन आधे रास्ते से लौट आई थी। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैं अपने सास-ससुर के साथ वापस आ गई थी। इसके बाद भैया-भाभी समेत 5 लोग पहाड़ी पर गए थे। मेरे पति के पास कॉल आई कि आतंकियों ने शुभम को गोली मार दी। हमने एक घोड़े वाले से मदद मांगी। लेकिन वह मुझसे पैसा मांग रहा था, जबकि उसे पता था कि हमारे टीम मेंबर को गोली लग गई है। ऐसा लगा कि सब मिले हुए थे। हम लोग मदद मांगते रहे, पुलिस स्टेशन गए, लेकिन कोई मदद करने को तैयार नहीं था। शुभम को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए
शुभम की पत्नी ऐशन्या ने कहा, पहली गोली मेरे पति को लगी थी, ऐसे में बहुत से लोगों को वक्त मिला कि भागकर वह अपनी जिंदगी बचा लें। मुझे सरकार से और कुछ नहीं चाहिए, बस शुभम को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। मुझे भी जिंदगी को जीने का मोटिव मिलेगा। वहां कुछ हिंदुओं ने खुद को मुस्लिम बताया था, लेकिन शुभम ने हिंदू कहकर अपनी जान गवां दी। वो सबके लिए क्या करके गए हैं, वो कितनों को बचाकर गए हैं। पिता बोले- वहां कोई सिक्योरिटी नहीं
शुभम के पिता संजय द्विवेदी ने कहा- वहां पर किसी भी तरह की सुरक्षा नहीं थी। वो स्थान पहलगाम से सात किमी दूर है। पहलगाम में एक-दो सिपाही थे, लेकिन उन्होंने भी हमारी कोई मदद नहीं की है। आतंकी हमले के बाद भी कोई जवान नहीं दिखे थे। करीब 1 घंटे बाद सेना के जवानों ने पूरे एरिया को अपने कब्जे में लिया था। ……………….. ये पढ़े : शुभम को गोली लगते ही बेहोश हो गई ऐशन्या: खाई देखकर परिवार नीचे रुक गया था; आखिरी दिन पहलगाम में क्या-क्या हुआ कश्मीर के पहलगाम हिल स्टेशन घूमने गए शुभम द्विवेदी को 22 अप्रैल को आतंकियों ने गोली मार दी। वह बायसरन घाटी में घुड़सवारी करने गए थे, परिवार के बाकी सदस्य पहलगाम के एक होटल में रुके हुए थे। पहले पूरे परिवार को खूबसूरत बायसरन घाटी घूमने जाना था। मगर गहरी खाई देखकर बहनोई शुभम दुबे बोले- मेरा दिल घबरा रहा। अब ऊपर नहीं जा पाएंगे, एक्सीडेंट हो सकता है। इसके बाद शुभम के पिता, मां और बहन ने भी जाने से मना कर दिया। वे लोग भी आधे रास्ते से लौट आए। पढ़िए पूरी खबर… ‘पाकिस्तान को खत्म कर दो…आतंक अपने आप खत्म हो जाएगा। जो नाम-धर्म पूछकर गोली मारता हो, ऐसे हर शख्स को खत्म कर देना चाहिए।’ ये गुस्सा है शुभम की पत्नी ऐशन्या का…। शुभम द्विवेदी उन 26 टूरिस्ट में शामिल थे, जिन्हें कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने पहली गोली मारी थी। शुभम का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ कानपुर में उनके पैतृक गांव में हुआ। इसके बाद दैनिक भास्कर ने ऐशन्या से मुलाकात की। वह कहती हैं- मुझे लगा वह लोग (आतंकी) प्रैंक कर रहे हैं, फिर 1 सेकेंड में गोली चली और मेरा सब कुछ खत्म हो गया। हमने ऐशन्या से शुभम की पहली मुलाकात, उनकी लव स्टोरी और आतंकी हमले पर सवाल पूछे। वह भावुक होकर फफक पड़ीं, परिवार के लोगों ने उन्हें संभाला। जो कुछ ऐशन्या ने हमें बताया, वो पढ़िए… हमारी अरेंज मैरिज, शुभम जैसा इंसान दुनिया में दूसरा नहीं
ऐशन्या ने कहा, हमारी शादी अरेंज मैरिज थी। शुभम से पहली बार 28 सितंबर, 2024 को मेरी बात हुई, तब हमने मिलने का डिसाइड किया। दो दिन बाद 1 अक्टूबर को पहली बार मैं शुभम से मिली थी, हम लोग बाहर डेट पर गए थे। मेरे घर वाले भी चाहते थे कि शादी से पहले हम दोनों मिलें। पहली मुलाकात में ही मैं श्योर हो गई थी कि मुझे इन्हीं के साथ जिंदगी बितानी है। वो भी श्योर थे कि मेरे से ही शादी करनी है। 13 अक्टूबर को हमारा रोका हुआ था, 6 महीने बाद 12 फरवरी को हमारी शादी ओरछा (मध्य प्रदेश) में हुई। शुभम की कौन सी यादें हैं जो बार-बार याद आती हैं? इस पर ऐशन्या ने कहा- कौन सी यादें नहीं होंगी? उसके साथ बिताया हुआ हर एक लम्हा मेरे लिए यादगार है। उससे अच्छा बंदा तो मिल ही नहीं सकता। उससे अच्छा इंसान तो दुनिया में नहीं है। लेकिन, अब वही मेरा अच्छा इंसान इस दुनिया में नहीं है। शुभम से आखिरी बात क्या हुई थी?
22 अप्रैल को हम लोग पहलगाम की बैसारन घाटी पहुंचे थे। शुभम ने मुझे अपनी घड़ी की तरफ इशारा किया। दोपहर के 2 बजकर 25 मिनट हुए थे। उसने कहा, हम ऐसा करते हैं कि 2:45 तक यहीं पर बैठते हैं। तुम थोड़ा घूम लो और कुछ खा लो, फिर हम लोग नीचे चलते हैं। नीचे जाकर सभी लोग एक साथ लंच करेंगे। बस इतनी बात हुई। हमारे हाथ में कॉफी थी। शुभम ने अपनी छोटी बहन शांभवी की तरफ चिढ़ाते हुए कहा- देखो..देखो मैं तुम्हारी कॉफी पीने जा रहा हूं। टेबल पर मैगी और कॉफी रखी हुई थी। शांभवी ने कहा कि नहीं…नहीं जेजे (शुभम) मैं पियूंगी। AK-47 लेकर आए थे आतंकी, देखकर लगा कोई शूटिंग गेम वाला है?
ऐशन्या बताती हैं, मैं और शुभम काफी खुश थे। हम दोनों हाथ पकड़कर बैठे हुए थे। तभी दो लोग पीछे से आए। उनके कंधे पर गन थी। हम समझ ही नहीं पाए कि ये आतंकी हैं। वहां इतने सारे गेम चल रहे थे कि हमें लगा कि कोई शूटिंग गेम वाला है, हमें कुछ बताने आया है। उसने आते ही सबसे पहले पूछा कि हिंदू हो या मुसलमान? मुझे समझ ही नहीं आया कि उस बंदे ने बोला क्या। हम पलटे और कहा कि क्या हुआ भइया, एक ने स्माइल के साथ पूछा था कि हिंदू हो या मुसलमान, मैं तो समझ ही नहीं पाई कि क्यों पूछ रहा है। वहां तो हर इंसान मौज-मस्ती कर रहा था। लेकिन दूसरी बार उसने कड़क आवाज में पूछा कि हिंदू है या मुसलमान, कलमा पढ़…इतने पर भी हमें लगा कि वह प्रैंक यानी मजाक कर रहा है। हमें रत्तीभर भी अंदेशा नहीं था कि आतंकी हमला होने वाला है। हमने जवाब दिया कि हिंदू हैं। मुंह से ये शब्द निकलते ही शुभम के कनपटी पर गोली मार दी। ऐसी जगह गोली मारी कि बचने की कोई उम्मीद ही नहीं हो। अगर कहीं और इंजरी लगी होती तो एक बार बचने की भी संभावना होती। लेकिन आतंकी ने सीधे कनपटी पर गोली मारी। ऐशन्या ने कहा- घाटी में अटैक का ये पहला शॉट था, जो आतंकियों ने शुभम को मारा था। आतंकियों ने सबसे पहले शुभम को गोली मारी। शुभम के चेहरे पर खून ही खून था। मुझे समझ ही नहीं आया कि पल भर में ये क्या हो गया। शुभम कहां है, शुभम कहां है चिल्लाते हुए मैं बेहाल हो गई। मैं शुभम के ऊपर गिर पड़ी और उसे जगाती रही। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। हमें नहीं मालूम था कि वो किसको मारेंगे और किसको छोड़ेंगे। वहां ओपन फायर चल रहा था। मेरे पापा के बगल से तीन गोली निकली थी। ईश्वर ने उन्हें बचा लिया। आतंकियों ने पल भर में लोगों को गोलियों से भून डाला। कैसे लोग मुझे वहां से घसीटकर नीचे लेकर आए मुझे होश नहीं है। क्या वहां सुरक्षा के लिए जवान नहीं थे?
ऐशन्या कहती हैं, वहां पर कोई सिक्योरिटी नहीं थी, न वहां पर पुलिस के बंदे थे, न ही आर्मी के जवान। वहां पर एक सिक्योरिटी गार्ड तक नहीं था। लोग मारे जा रहे थे, मगर बचाने वाला कोई नहीं था। सुरक्षा कैसे होती है, क्या इस तरह से होती है। बहन बोली- हमारे भाई को गोली थी, घोड़े वाले पैसे मांग रहे थे
शुभम की बहन आरती ने बताया- बैसारन घाटी मैं भी जा रही थी। लेकिन आधे रास्ते से लौट आई थी। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैं अपने सास-ससुर के साथ वापस आ गई थी। इसके बाद भैया-भाभी समेत 5 लोग पहाड़ी पर गए थे। मेरे पति के पास कॉल आई कि आतंकियों ने शुभम को गोली मार दी। हमने एक घोड़े वाले से मदद मांगी। लेकिन वह मुझसे पैसा मांग रहा था, जबकि उसे पता था कि हमारे टीम मेंबर को गोली लग गई है। ऐसा लगा कि सब मिले हुए थे। हम लोग मदद मांगते रहे, पुलिस स्टेशन गए, लेकिन कोई मदद करने को तैयार नहीं था। शुभम को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए
शुभम की पत्नी ऐशन्या ने कहा, पहली गोली मेरे पति को लगी थी, ऐसे में बहुत से लोगों को वक्त मिला कि भागकर वह अपनी जिंदगी बचा लें। मुझे सरकार से और कुछ नहीं चाहिए, बस शुभम को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। मुझे भी जिंदगी को जीने का मोटिव मिलेगा। वहां कुछ हिंदुओं ने खुद को मुस्लिम बताया था, लेकिन शुभम ने हिंदू कहकर अपनी जान गवां दी। वो सबके लिए क्या करके गए हैं, वो कितनों को बचाकर गए हैं। पिता बोले- वहां कोई सिक्योरिटी नहीं
शुभम के पिता संजय द्विवेदी ने कहा- वहां पर किसी भी तरह की सुरक्षा नहीं थी। वो स्थान पहलगाम से सात किमी दूर है। पहलगाम में एक-दो सिपाही थे, लेकिन उन्होंने भी हमारी कोई मदद नहीं की है। आतंकी हमले के बाद भी कोई जवान नहीं दिखे थे। करीब 1 घंटे बाद सेना के जवानों ने पूरे एरिया को अपने कब्जे में लिया था। ……………….. ये पढ़े : शुभम को गोली लगते ही बेहोश हो गई ऐशन्या: खाई देखकर परिवार नीचे रुक गया था; आखिरी दिन पहलगाम में क्या-क्या हुआ कश्मीर के पहलगाम हिल स्टेशन घूमने गए शुभम द्विवेदी को 22 अप्रैल को आतंकियों ने गोली मार दी। वह बायसरन घाटी में घुड़सवारी करने गए थे, परिवार के बाकी सदस्य पहलगाम के एक होटल में रुके हुए थे। पहले पूरे परिवार को खूबसूरत बायसरन घाटी घूमने जाना था। मगर गहरी खाई देखकर बहनोई शुभम दुबे बोले- मेरा दिल घबरा रहा। अब ऊपर नहीं जा पाएंगे, एक्सीडेंट हो सकता है। इसके बाद शुभम के पिता, मां और बहन ने भी जाने से मना कर दिया। वे लोग भी आधे रास्ते से लौट आए। पढ़िए पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर