कांवड़ यात्रा के बीच यूपी से गुजरने वाली 42 ट्रेनें निरस्त कर दी गई हैं। दिल्ली-लखनऊ और लखनऊ-देहरादून रेल रूट पर सात अगस्त तक यात्रियों को इस ट्रेनों के निरस्त होने से परेशानी उठानी पड़ेगी। कांवड़ यात्रा के दौरान लखनऊ से बरेली होते हुए गुजरने वाली 42 ट्रेनों को निरस्त और 12 ट्रेनों को डायवर्ट किया गया है। इसके साथ ही 10 विशेष ट्रेनों के फेरे बढ़ाए गए हैं। सात अगस्त तक बनी रहेगी समस्या, दिल्ली समेत कई रुट पर असर रोजा यार्ड में रिमॉडलिंग के कारण दिल्ली-लखनऊ और लखनऊ देहरादून रेल रूट पर सात अगस्त तक ब्लॉक रहेगा। इसके कारण 54 ट्रेनों के प्रभावित होने से बरेली से अलग-अलग दिशाओं को जाने वाले रोजाना 25 हजार से अधिक यात्री प्रभावित हो रहे। ब्लॉक के कारण जिन ट्रेनों को निरस्त और डायवर्ट किया गया है उनमें ज्यादातर बरेली होते हुए पूर्वांचल, बिहार, बंगाल, दिल्ली, पंजाब, जम्मू और उत्तराखंड जाने-आने वाली ट्रेनें हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान बरेली-मुरादाबाद-हरिद्वार, बरेली-मुरादाबाद-गढ़मुक्तेश्वर सड़क मार्ग पर भारी वाहनों समेत रोडवेज बसों का भी रूट डायवर्ट किया गया है। चारबाग स्टेशन से चलेगी लखनऊ मेल लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन से दिल्ली तक चलने वाली ट्रेन नंबर 12229/12230 लखनऊ मेल का संचालन अब चारबाग स्टेशन से किया जाएगा। लखनऊ मेल उत्तर रेलवे की ट्रेन है। पहले इसका संचालन चारबाग से ही किया जाता था। कुछ वजहों से इसको लखनऊ जंक्शन पर शिफ्ट कर किया गया था। फिलहाल इस इस मामले में बोर्ड की ओर से आदेश जारी कर दिया गया है। अगस्त के पहले सप्ताह तक निरस्त रहेंगी ये ट्रेन रेलवे की तरफ से 10 विशेष ट्रेनों के बढ़ाए गए चक्कर कांवड़ यात्रा के बीच यूपी से गुजरने वाली 42 ट्रेनें निरस्त कर दी गई हैं। दिल्ली-लखनऊ और लखनऊ-देहरादून रेल रूट पर सात अगस्त तक यात्रियों को इस ट्रेनों के निरस्त होने से परेशानी उठानी पड़ेगी। कांवड़ यात्रा के दौरान लखनऊ से बरेली होते हुए गुजरने वाली 42 ट्रेनों को निरस्त और 12 ट्रेनों को डायवर्ट किया गया है। इसके साथ ही 10 विशेष ट्रेनों के फेरे बढ़ाए गए हैं। सात अगस्त तक बनी रहेगी समस्या, दिल्ली समेत कई रुट पर असर रोजा यार्ड में रिमॉडलिंग के कारण दिल्ली-लखनऊ और लखनऊ देहरादून रेल रूट पर सात अगस्त तक ब्लॉक रहेगा। इसके कारण 54 ट्रेनों के प्रभावित होने से बरेली से अलग-अलग दिशाओं को जाने वाले रोजाना 25 हजार से अधिक यात्री प्रभावित हो रहे। ब्लॉक के कारण जिन ट्रेनों को निरस्त और डायवर्ट किया गया है उनमें ज्यादातर बरेली होते हुए पूर्वांचल, बिहार, बंगाल, दिल्ली, पंजाब, जम्मू और उत्तराखंड जाने-आने वाली ट्रेनें हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान बरेली-मुरादाबाद-हरिद्वार, बरेली-मुरादाबाद-गढ़मुक्तेश्वर सड़क मार्ग पर भारी वाहनों समेत रोडवेज बसों का भी रूट डायवर्ट किया गया है। चारबाग स्टेशन से चलेगी लखनऊ मेल लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन से दिल्ली तक चलने वाली ट्रेन नंबर 12229/12230 लखनऊ मेल का संचालन अब चारबाग स्टेशन से किया जाएगा। लखनऊ मेल उत्तर रेलवे की ट्रेन है। पहले इसका संचालन चारबाग से ही किया जाता था। कुछ वजहों से इसको लखनऊ जंक्शन पर शिफ्ट कर किया गया था। फिलहाल इस इस मामले में बोर्ड की ओर से आदेश जारी कर दिया गया है। अगस्त के पहले सप्ताह तक निरस्त रहेंगी ये ट्रेन रेलवे की तरफ से 10 विशेष ट्रेनों के बढ़ाए गए चक्कर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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राव बीरेंद्र अंग्रेजों की फौज में कैप्टन थे:रातों-रात 12 विधायक तोड़कर CM बने; देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर दोस्ती की
राव बीरेंद्र अंग्रेजों की फौज में कैप्टन थे:रातों-रात 12 विधायक तोड़कर CM बने; देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर दोस्ती की साल 1967, अक्टूबर का महीना, देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी। पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन कांग्रेस छोड़कर उत्तर-पूर्व बंबई सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। हरियाणा के मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह उनके चुनाव प्रचार के लिए बंबई पहुंचे थे। इसी बीच राव के पास खबर आई कि गया लाल उनके गठबंधन से अलग हो गए हैं। इधर, हरियाणा में चर्चा जोर पकड़ रही थी कि राव साहब बहुमत खो चुके हैं। राव प्रचार छोड़कर बंबई से सीधे दिल्ली के लिए निकल गए। उन्होंने गया लाल से भी बोल दिया कि वो भी दिल्ली पहुंचें। दोनों दिल्ली में मिले और एक ही कार से चंडीगढ़ में सीएम हाउस पहुंचे। वहां मीडिया पहले से उनका इंतजार कर रही थी। राव जैसे ही गाड़ी से उतर कर अंदर जाने लगे, पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। गया लाल के पार्टी छोड़ने और सरकार के अल्पमत में होने को लेकर सवाल पूछने लगे। राव हंस पड़े। कुछ पलों बाद गया लाल भी गाड़ी से उतरे। राव ने कहा- गया लाल वापस आ गए हैं। जो लोग सरकार गिराना चाहते थे, उनकी साजिश नाकाम हो गई है। तब राव बीरेंद्र की सरकार तो बच गई, लेकिन गया लाल ने दल बदलना नहीं छोड़ा। उन्होंने 24 घंटे के भीतर तीन बार दल बदला। विधायकों के बार-बार दल बदलने से तंग आकर राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। राव साहब महज 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के दूसरे एपिसोड में राव बीरेंद्र सिंह के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… फरवरी 1967, नए-नवेले राज्य हरियाणा की गलियों में पहले विधानसभा चुनाव की गूंज थी। संयुक्त पंजाब की तरह हरियाणा में भी कांग्रेस का दबदबा था। चुनाव के नतीजे इस तस्वीर को साफ बयां कर रहे थे। कांग्रेस को 81 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत मिली। वहीं, जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2 और स्वतंत्र पार्टी को 3 सीटें मिलीं। जबकि 16 निर्दलीय विधायक भी जीते। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चुनाव से पहले चेहरा मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा थे। नतीजों के बाद शर्मा फिर से सीएम बनने के लिए पूरी जोर-आजमाइश कर रहे थे। वे एक-एक करके अपने विरोधियों को ठिकाने लगा रहे थे। देवीलाल और शेर सिंह जैसे दिग्गजों को तो उन्होंने विधानसभा चुनाव ही नहीं लड़ने दिया। जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह की सीट पर अपने खेमे के निर्दलीय उम्मीदवार से हरवाकर उन्हें भी रास्ते से हटा दिया। हालांकि तमाम हथकंडों के बाद भी एक शख्स ऐसा था, जो भगवत दयाल शर्मा के लिए चुनौती बना हुआ था। वह इंदिरा गांधी की पसंद था और ज्यादातर विधायक भी उसके समर्थन में थे। नाम राव बीरेंद्र सिंह। अहीरवाल राज के वंशज राव बीरेंद्र सिंह राजनीति में आने से पहले अंग्रेजों की फौज में कैप्टन रह चुके थे। दूसरे विश्व युद्ध में शामिल भी रहे थे। इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा से कहा कि वो राव बीरेंद्र को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं, लेकिन भगवत दयाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए सिंडिकेट से पैरवी की। दरअसल, तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी सिंडिकेट के बूते वे दोबारा मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन राव बगावत पर उतर आए। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे भगवत दयाल की सरकार को 13 दिन भी नहीं चलने देंगे। इंदिरा ने भगवत दयाल सरकार गिराने का जिम्मा देवीलाल को दिया भगवत दयाल भांप चुके थे कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है। इसलिए उन्होंने अपने करीबियों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ा। नाराज विधायकों को बगावत का मौका मिल गया। वे राव बीरेंद्र से संपर्क साधने में जुट गए। हरियाणा में जो कुछ हो रहा था, उस पर केंद्र की भी नजर थी। इंदिरा गांधी भी बैक गेट से अपनी ही सरकार गिराने की बिसात बिछा रही थीं। इसका दावा भगवत दयाल शर्मा के निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा रामस्वरूप करते हैं। एक इंटरव्यू में रामस्वरूप बताते हैं- ‘प्रधानमंत्री इंदिरा खुद चाहतीं थीं कि भगवत दयाल की सरकार किसी तरीके से गिर जाए। उन्होंने भगवत दयाल के विरोधी और कांग्रेस के कद्दावर नेता चौधरी देवीलाल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी।’ इंदिरा गांधी के इशारे पर चौधरी देवीलाल, भगवत दयाल सरकार को गिराने में जुट चुके थे, लेकिन इसके लिए जरूरी था कि राव बीरेंद्र सिंह के साथ उनके सियासी मतभेद दूर हों। लेखक के. गोपी यादव लिखते हैं, ‘हरियाणा बनने से पहले देवीलाल और राव के बीच गहरी दोस्ती थी, बाद में दोनों के संबंध बिगड़ गए। दोबारा संबंध ठीक करने के लिए देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव को दिल्ली में अपने बंगले पर डिनर के लिए बुलाया। राव डिनर पर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे मान गए। राव उसके घर जैसे ही पहुंचे, उन्हें वहां देवीलाल मिल गए। राव बिल्डर पर गुस्सा हो गए। बिल्डर ने हिम्मत जुटाते हुए राव साहब से कहा कि देवीलाल चाहते हैं कि आप मुख्यमंत्री बनें और वह तहे दिल से आपका सहयोग करेंगे। इस पर राव ने देवीलाल की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो इन पर भरोसा नहीं कर सकते। राव का लहजा और लफ्ज दोनों ही सख्त थे, लेकिन देवीलाल ने संयम नहीं खोया। उन्होंने राव को मना लिया। उसी रोज डिनर की टेबल पर पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने का प्लान बना।’ अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ लड़ा स्पीकर का चुनाव और जीत भी गए 17 मार्च 1967, भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बने एक हफ्ता बीत चुका था। अब स्पीकर चुनने की बारी थी। भगवत दयाल शर्मा ने जींद से विधायक लाला दयाकिशन का नाम स्पीकर के लिए आगे बढ़ाया। इस बीच उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम स्पीकर पद के लिए प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री भगवत दयाल के खेमे में खलबली मच गई। वोटिंग हुई तो दयाकिशन को 37 वोट मिले, जबकि राव को 28 विपक्षी और कांग्रेस के 12 असंतुष्ट विधायकों को मिलाकर कुल 40 वोट मिले। इसका सीधा मतलब था कि भगवत दयाल शर्मा की सरकार खतरे में है। आखिर बहुमत परीक्षण की बारी भी आई। स्पीकर का चुनाव जीतने के बाद भी बीरेंद्र सिंह का खेमा एक विधायक को लेकर चिंतित था। वो थे चौधरी बंसीलाल, जो पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। राव साहब जानते थे कि अगर बंसीलाल विधानसभा पहुंच गए, तो खेल बिगड़ सकता है। ऐसे में योजना बनाई गई कि बंसीलाल को फ्लोर टेस्ट वाले दिन सदन में आने ही न दिया जाए। पूर्व विधायक और लेखक भीम सिंह दहिया अपनी किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘बंसीलाल को सदन से दूर रखने की जिम्मेदारी एक अफसर को सौंपी गई। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। थोड़ी देर बाद जब वे बाथरूम में गए, तो अफसर ने दरवाजा बंद कर दिया। वे काफी देर तक आवाज लगाते रहे, लेकिन दरवाजा तब तक नहीं खोला गया, जब तक फ्लोर टेस्ट में भगवत दयाल की सरकार गिरा नहीं दी गई।’ भगवत दयाल की सरकार गिराने के बाद कांग्रेस से बागी हुए 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम की नई पार्टी बनाई। 16 निर्दलीय विधायकों ने नवीन हरियाणा पार्टी बनाई। 20 मार्च 1967 को कांग्रेस, इन सभी को मिलाकर हरियाणा संयुक्त विधायक दल पार्टी का गठन किया। चौधरी देवीलाल को इसका संयोजक बनाया गया। चार दिन बाद यानी, 24 मार्च को राव बीरेंद्र सिंह ने 15 मंत्रियों के साथ हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस तरह पहली बार राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर साथ देने की कसम खाई सीएम बनने के बाद भी राव बीरेंद्र के मन में देवीलाल को लेकर संशय बना हुआ था। के. गोपी यादव लिखते हैं- ‘देवीलाल ने संयुक्त विधायक दल की सरकार के सभी समर्थक विधायकों के सामने गंगाजल से भरी हांडी में नमक डालकर कसम खाई कि अगर वे किसान-मजदूर हितैषी राव की सरकार के साथ विश्वासघात करेंगे, तो वे हांडी में डाले गए नमक की तरह घुल जाएंगे। इसके बाद राव ने उनसे पूछा कि मुझे क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। देवीलाल ने कहा कि हमारी कोई शर्त नहीं है, लेकिन राव को अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उनका मन कह रहा था कि जरूर कुछ ऐसा है जिसे छिपाया जा रहा है। तब देवीलाल ने कहा कि राव साहब, अगर आपको उचित लगे तो चांदराम को उद्योग मंत्री बना दीजिए। राव ने चांदराम को मंत्री बनाया, लेकिन उन्हें उद्योग विभाग नहीं दिया।’ देवीलाल ने ढाई महीने में ही तोड़ दी अपनी कसम राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बने अभी कुछ ही महीने हुए थे कि उन्होंने देवीलाल को तवज्जो देना बंद कर दिया। देवीलाल, सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी भी जाहिर करने लगे। 5 जून 1967 को देवीलाल ने लेटर जारी किया, जिस पर 13 विधायकों और मंत्रियों के हस्ताक्षर थे। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच रिश्ते फिर बिगड़ने लगे। 13 जुलाई को देवीलाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा- ‘राव बीरेंद्र सिंह की सरकार जनसंघ से प्रभावित है। इसलिए हरियाणा विरोधी इस सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया है। देवीलाल ने राव पर कांग्रेस से साठगांठ का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि राव इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने का वचन दिया जाए तो वे कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे।’ हालांकि राव ने इस आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि देवीलाल की नाराजगी का असली कारण उन्हें मंत्री न बनाया जाना है। सरकार बनाने पहुंचे देवीलाल तो राज्यपाल ने ठुकराया प्रस्ताव 14 जुलाई को संयुक्त विधायक दल ने 38 विधायकों के साथ बैठक की और देवीलाल को निष्कासित कर दिया। देवीलाल ने तुरंत कांग्रेस से समझौता कर लिया और राव सरकार का तख्तापलट करने में जुट गए। दावा किया जाता है कि कांग्रेस हाईकमान समझौते के तहत देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी तैयार हो गया था। बशर्तें वे संयुक्त मोर्चे के कुछ विधायकों को अपने साथ ले आएं। राव को इसकी भनक लग चुकी थी। 15 जुलाई को अचानक राव बीरेंद्र सिंह ने राज्यपाल को मंत्रिमंडल का त्यागपत्र दे दिया। उनका मकसद देवीलाल समर्थकों को मंत्रिमंडल से हटाकर नया मंत्रिमंडल बनाना था। राव जब तक अपनी योजना को अमलीजामा पहना पाते, उससे पहले ही देवीलाल 51 विधायकों के समर्थन का दावा लेकर राज्यपाल के पास पहुंच गए, लेकिन राज्यपाल ने यह कहते हुए देवीलाल का दावा खारिज कर दिया कि सूची में विधायकों के साइन नहीं हैं। हालांकि कहा जाता है कि उस पत्र में विधायकों के दस्तखत थे। राज्यपाल ने राव बीरेंद्र सिंह को फिर से मंत्रिमंडल बनाने को कहा। उसी दिन 15 जुलाई को राव के नए मंत्रिमंडल ने शपथ ली। इस बार मंत्रिमंडल में देवीलाल के करीबी चांदराम और मनीराम गोदारा को शामिल नहीं किया गया। इससे नाराज देवीलाल समर्थक मुख्य संसदीय सचिव जगन्नाथ ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। अगले चार महीने यानी नवंबर तक दोनों खेमों में सियासी उठापटक चलती रही। कभी देवीलाल के सहयोगी टूटकर संयुक्त मोर्चे में शामिल होते, तो कभी संयुक्त मोर्चे के विधायक को तोड़कर देवीलाल अपने पाले में लाते। 17 नवंबर 1967 को राज्यपाल वीएन चक्रवर्ती ने हरियाणा की राजनीतिक उठापटक को लेकर राष्ट्रपति से विधानसभा भंग करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने 21 नवंबर 1967 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। जबकि देवीलाल कांग्रेस में शामिल हो गए। अप्रैल-मई 1968 में हरियाणा में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। वोटों की गिनती हुई तो कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं। इस बार बंसीलाल को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया। वही बंसीलाल जिन्हें एक साल पहले भगवत दयाल की सरकार गिराने के लिए बाथरूम में बंद कर दिया गया था।
CM योगी के ड्रीम प्रोजेक्ट HURL ने बदल दी गोरखपुर की तस्वीर, शहर में बनाई अलग पहचान
CM योगी के ड्रीम प्रोजेक्ट HURL ने बदल दी गोरखपुर की तस्वीर, शहर में बनाई अलग पहचान <p style=”text-align: justify;”><strong>Gorakhpur HURL:</strong> हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड यानी HURL द्वारा स्थापित खाद कारखाना गोरखपुर के विकास में भरपूर योगदान तो दे ही रहा है, सामाजिक सरोकारों को निभाने में भी आगे हैं. स्थापना के महज तीन साल के भीतर इस खाद कारखाने ने कॉरपोरेट एन्वॉयरमेंट रिस्पांसिबिलिटी (सीईआर) फंड से 70 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि शिक्षा, स्वास्थ्य और नगरीय सुविधाओं के ढांचागत विकास पर खर्च की है. यहां के लोग इस सीएम योगी के संघर्ष के सुखद परिणाम मानते हैं.<br /> <br />मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयास से करीब तीन दशक बाद HURL के खाद कारखाने के नाम यूरिया उत्पादन के साथ सामाजिक दायित्व निर्वहन की सतत उपलब्धियां दर्ज होती जा रही हैं. एचयूआरएल गोरखपुर इकाई के परियोजना प्रमुख दिप्तेन रॉय का कहना है कि ये खाद कारखाना यूरिया के लिए किसानों की दिक्कत को कम करने में मील का पत्थर साबित हुआ है तो साथ ही गोरखपुर के शिक्षा और स्वास्थ्य की आधारभूत संरचना को भी मजबूत बना रहा है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सामाजिक कामों में भी रहा योगदान</strong><br />एचयूआरएल ने अपने सीईआर फंड से गोरखपुर में दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना कराई है, तो 16 स्वास्थ्य केंद्रों पर बच्चों के इलाज के लिए हाईटेक पीडियाट्रिक आईसीयू का निर्माण कराया है. इसके साथ ही उसने मानीराम के समीप स्थित सोनबरसा गांव को मॉडल विलेज के रूप में विकसित किया है, 12 प्राइमरी स्कूलों में आरओ प्लांट लगवाया है, कई सरकारी प्राथमिक विद्यालयों का जीर्णोद्धार कर उन्हें स्मार्ट बनाया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><br /><img src=”https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/07/20/a007b5e8bf988d1f942521d11c5e7fb71721449047900275_original.jpg” /><br /> <br />HURL के महाप्रबंधक संजय चावला और गोरखपुर यूनिट के उप महाप्रबंधक सुबोध दीक्षित ने बताया कि इनमें से कई कार्य पूरे हो गए हैं तो कुछ निर्माणाधीन हैं. ताजा पहल करते हुए HURL अब नगर निगम के माध्यम से शहर में 27 स्थानों पर इंटीग्रेटेड सोलर स्ट्रीट लाइटिंग सिस्टम की स्थापना करने जा रहा है. सीएम योगी खुद कई मंचों से एचयूआरएल की तारीफ करते हुए कह चुके हैं कि ये कारखाना खाद उत्पादन के साथ ही अपनी सामाजिक प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ा रहा है. <br /> <br /><strong>सीएम योगी का ड्रीम प्रोजेक्ट</strong><br />गोरखपुर में HURL की स्थापना का श्रेय सीएम योगी को जाता है. ये उनका ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है. गोरखपुर में पूर्व में स्थापित खाद कारखाना 1990 में एक हादसे के बाद बंद कर दिया गया था. सांसद बनने के बाद 1998 से ही <a title=”योगी आदित्यनाथ” href=”https://www.abplive.com/topic/yogi-adityanath” data-type=”interlinkingkeywords”>योगी आदित्यनाथ</a> ने इसे दोबारा चलाने के लिए संघर्ष किया. उनकी पहल पर 22 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री <a title=”नरेंद्र मोदी” href=”https://www.abplive.com/topic/narendra-modi” data-type=”interlinkingkeywords”>नरेंद्र मोदी</a> ने पुराने खाद कारखाना परिसर में ही नये कारखाने का शिलान्यास किया. 2017 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद इसके निर्माण का रास्ता और प्रशस्त हो गया.<br /> <br />600 एकड़ में 8603 करोड़ रुपये की लागत से बने और प्राकृतिक गैस आधारित इस खाद कारखाने की अधिकतम उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 3850 मिट्रिक टन और प्रतिवर्ष 12.7 लाख मीट्रिक टन यूरिया उत्पादन की है. कमर्शियल उत्पादन शुरू होने के बाद कई दिन ऐसे भी रहे हैं जब खाद कारखाने में सौ प्रतिशत क्षमता से भी अधिक उत्पादन हुआ है. यहां बेस्ट क्वालिटी की नीम कोटेड यूरिया बन रही है. कारण, इस कारखाने की प्रीलिंग टावर की रिकार्ड ऊंचाई. यहां बने प्रिलिंग टॉवर की ऊंचाई 149.2 मीटर है. जो कुतुब मीनार से भी दोगुना ऊंचा है. प्रीलिंग टावर की ऊंचाई जितनी अधिक होती है, यूरिया के दाने उतने छोटे व गुणवत्तायुक्त बनते हैं.<br /> <br /><strong>खाद के साथ इन क्षेत्रों में भी रहा योगदान </strong><br />- 72 लाख की लागत से हरनही और कैम्पियरगंज सीएचसी पर ऑक्सिजन प्लांट की स्थापना <br />- 14 लाख की लागत से 12 प्राथमिक विद्यालयों पर शुद्ध पेयजल के लिए आरओ प्लांट की स्थापना<br />- 3.29 करोड़ की लागत से रामगढ़ताल का सुंदरीकरण<br />- 12.30 करोड़ की लागत से सोनबरसा गांव का मॉडल विलेज के रूप में विकास <br />- 26.43 करोड़ की लगात से 16 सीएचसी पर पीडियाट्रिक आईसीयू की स्थापना <br />- 6.35 करोड़ की लागत से विभिन्न सरकारी विद्यालयों का कायाकल्प, शिक्षा क्षेत्र में आधारभूत ढांचे का विकास <br />- 21 करोड़ की लागत से 27 स्थानों पर इंटीग्रेटेड सोलर स्ट्रीट लाइटिंग सिस्टम की स्थापना</p>
<p style=”text-align: justify;”>गोरखपुर के खाद कारखाने की स्थापना व संचालन करने वाली हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) एक संयुक्त उपक्रम है, जिसमें कोल इंडिया लिमिटेड, एनटीपीसी, इंडियन ऑयल कोर्पोरेशन लीड प्रमोटर्स हैं. जबकि इसमें फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन लिमिटेड भी साझीदार हैं. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/congress-targeted-bjp-by-sharing-pictures-said-people-will-break-pride-in-2027-bjp-mla-see-photo-2741397″>SDM की कुर्सी पर बैठे दिखे BJP विधायक, तस्वीर वायरल, कांग्रेस बोली- ‘इनका बचा हुआ घमंड…’ </a></strong></p>
हिमाचल में पंचायत उप चुनाव का ऐलान:29 सितंबर को 141 सीटों के लिए वोटिंग; सीसू और बगैरा में जिला परिषद का बड़ा इलेक्शन
हिमाचल में पंचायत उप चुनाव का ऐलान:29 सितंबर को 141 सीटों के लिए वोटिंग; सीसू और बगैरा में जिला परिषद का बड़ा इलेक्शन हिमाचल प्रदेश में राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायती राज संस्थाओं के उप चुनाव की घोषणा कर दी है। राज्य चुनाव आयुक्त अनिल खाची ने इसकी अधिसूचना जारी की। इसी के साथ संबंधित क्षेत्रों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। स्टेट इलेक्शन कमीशन की अधिसूचना के मुताबिक, 29 सितंबर को 141 सीटों के लिए उप चुनाव होंगे। इनमें लाहौल स्पीति के सीसू वार्ड और हमीरपुर में सुजानपुर के बगैरा जिला परिषद सदस्य का बड़ा उप चुनाव भी शामिल है। पंचायत उप चुनाव चुनाव का शैड्यूल जिला परिषद चुनाव इस वजह से
सीसू वार्ड से पूर्व जिला परिषद सदस्य अनुराधा राणा विधानसभा उप चुनाव जीतकर विधायक चुनी गई हैं। बगैरा से कैप्टन रणजीत सिंह राणा भी कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा उप चुनाव जीते हैं। इस वजह से जिला परिषद की ये दोनों सीटें खाली है और उप उप चुनाव तय है। 8 प्रधान और 18 उप प्रधान पदों को भी चुनाव
इसी तरह विभिन्न कारणों से खाली पड़े पंचायत प्रधानों के 8 पदों, उप प्रधान के 18 पदों, पंचायत समिति सदस्य (BDC) के 1 तथा पंचायत वार्ड मेंबर के 112 पदों के लिए भी उप चुनाव होना है। इनमें कुछ पद पूर्व पदाधिकारियों की मृत्यु होने, कुछ के नौकरी लगने, कुछ के रिजाइन करने तथा कुछ के भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद सस्पेंड करने जैसे कारणों से खाली पड़े हैं। लिहाजा स्टेट इलेक्शन कमीशन को छह महीने के भीतर उन सीटों पर उप चुनाव कराने होते हैं। संबंधित वार्ड में आचार संहिता
इलेक्शन कमीशन की अधिसूचना के अनुसार, जिस वार्ड में उप चुनाव हो रहे हैं, वहां आदर्श आचार संहिता लागू की गई है। वहां पर ऐसी कोई भी घोषणा नहीं की जा सकेगी, जिससे वोटर प्रभावित हो।