काशी के काष्ठ कला की सिंगापुर में धमक:लकड़ी से बने दीप का आया ऑर्डर, 5 हजार परिवार रोजगार से जुड़कर कर रहे काम

काशी के काष्ठ कला की सिंगापुर में धमक:लकड़ी से बने दीप का आया ऑर्डर, 5 हजार परिवार रोजगार से जुड़कर कर रहे काम

वाराणसी की काष्ठ कला की पहचान विदेशों तक होने लगी हैं। इसके साथ ही इसको बनाने वाले कारीगरों को भी अब रोजगार तेजी से मिलने लगा है। मौजूदा समय में वाराणसी में कुल 5000 लोग काष्ठ कला के बदौलत अपने परिवार को गुजारा कर रहें। इसमें महिलाओं की संख्या अधिक है। वहीं, दीपावली में लकड़ी के सुदंर स्वरूप में तैयार दीप, लटकन और लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की डिमांड काफी बढ़ गई हैं‌‌…इस रोजगार से जुड़े लोगों से दैनिक भास्कर की टीम से बातचीत की है, पेश है एक रिपोर्ट.. 2014 के बाद वाराणसी में विलुप्त हो रही काष्ठ कला को काफी बल मिला। ऐसा कहना है इस रोजगार से जुड़े लोगों का। वर्तमान में काशी में करीब 5 हजार काष्ठ कारीगर हैं। जो लकड़ी के दीप, दिवाली पर ताकि जाने वाले झूमर, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति सहित दर्जनों कलाकृतियों को तैयार कर रहे हैं। इस रोजगार से जुड़ी शुभी ने बताया-हमारे पास दिल्ली, मुंबई, पुणे सहित सिंगापुर से सबसे अधिक ऑर्डर आया हुआ है। हमारे साथ करने वाले करीब 2000 कारीगर ऐसे हैं, जो रात के 10 बजे तक काम कर रहे हैं। सिंगापुर के भारती लोगों ने किया है आर्डर शुभी ने बताया कि इस बार हमें सिंगापुर से सबसे ज्यादा डिमांड आई है। वहां रहने वाले भारतीय लोग धूमधाम से दीपावली मनाएंगे। इसके लिए उन्होंने लकड़ी से जुड़े हुए ही सभी प्रोडक्ट मंगाए हैं। उन्होंने कहा कि हमने वहां पर सभी सामानों को भेज दिया है। इसके अलावा दिल्ली और पुणे से भी हमें अभी भी डिमांड आ रही है। जिसको हम लगातार पूरा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि रोजगार से जुड़ी हुई महिलाओं को प्रतिदिन 300 रुपए दिए जाते हैं। उनका मानना है कि काशी में काष्ठ कला से बनी कलाकृति एक धरोहर है, जो आगे भी संजो कर रखी जाएंगी। गिफ्ट के लिए लोग कर रहे खरीदारी शुभी ने बताया कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने इस कला को बढ़ावा दिया है, तब से लोग गिफ्ट के रूप में भी काफी पसंद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले के समय में लोग ज्यादातर लकड़ी से ही बने प्रोडक्ट को उपहार के रूप में देते थे, लेकिन यह सिलसिला बीच में विलुप्त हुआ था। 2016 के बाद 50 प्रतिशत इस बिजनेस में इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बाहर से भी लोग जब काशी घूमने आते हैं तो इन्हीं प्रोडक्ट को खरीदते हैं। इस समय दीपावली में उपहार के लिए लोग सबसे अधिक राम दरबार, दीप, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति खरीदना पसंद कर रहे हैं। आइए अब बात करते हैं कितने रुपए में बिक रहे ये प्रोडक्ट शुभी ने बताया कि कैंडल 60-250 रुपए, हाथी की डोर हैंगिंग 350-500 रुपए, लक्ष्मी गणेश 700-1000 रुपए, राम दरबार 500-5000 रुपए गिफ्ट आइटम 40-1000 रुपए में उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि बनारस के विभिन्न क्षेत्र में छोटे-छोटे दुकान लगाई गई हैं, जहां पर यह बिक रहे हैं। इसके अलावा जो ऑनलाइन ऑर्डर आता है, उसे माध्यम से भी इसे भेजा जाता है। आइए अब बात करते हैं उन कारीगरों से जो इसे तैयार कर रहे हैं कितनी पुरानी है काशी की काष्ठ कला कारीगर बताते हैं कि यह कला करीब 400 साल पुरानी है। कुछ शिल्पकार मानते हैं कि यह कला भगवान राम के जमाने से चली आ रही है। कहते हैं, डिब्बी (सिंदूरदान), थाली, जांता, ऊखली, मुसल, ग्लास, लोटिया, बेगुना, चूल्हा, चक्की, रोटी, तवा और कलछुल और अन्य सामग्रियां कई दशक से बनारस में बनाई जा रही हैं। बनारस में बनने वाला लकड़ी का प्रोडक्ट बीते कुछ सालों से यह व्यवसाय खराब दौर से गुजर रहा था। मोदी और योगी सरकार ने मिलकर इसे दोबारा से गति प्रदान की है। 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर संयुक्त आयुक्त उद्योग उमेश सिंह ने बताया, ODOP योजना के तहत वाराणसी में 15 हजार से अधिक लोगों ने ट्रेनिंग ले रखी है। जिसमें वाराणसी जनपद में 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर हैं। लोगों को समर्थ अभियान के तहत ट्रेनिंग दी जा रही है। 50 दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम में उन्हें तमाम तकनीकी पहलू से रूबरू कराया जा रहा है। इसको सीखने के साथ-साथ जिले में महिलाएं एवं पुरुष से 8 से 10 हजार रुपये कमा पा रही हैं। कौन सी लकड़ी इस्तेमाल होती है लकड़ी से जुड़ी चीजें बनाने के लिए आम, गौरेया, शीशम की लकड़ी का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इन लकड़ियों पर रंग अच्छे से उभर के आता है और ज्यादा दिन तक चलता है। लकड़ियां ज्यादातर वाराणसी, मिर्जापुर और बिहार से मंगाई जाती हैं। कैसे बनते हैं लकड़ी की वस्तुएं सबसे पहले लकड़ी को काटा जाता है। इसके बाद उसे एक आकृति दी जाती है। फिर उसको रेगमार्क से पॉलिश करके साफ किया जाता है। उसके बाद लकड़ी पर अस्तर लगाया जाता है। फिर उसे सुखाया जाता है। उसके बाद बहुत बारीकी से पर्मानेंट पेंट का प्रयोग करके रंग भरा जाता है। अंत में सूखाने के बाद उसमें फिर से पॉलिश लगाकर मार्केट में भेज दिया जाता है। वाराणसी की काष्ठ कला की पहचान विदेशों तक होने लगी हैं। इसके साथ ही इसको बनाने वाले कारीगरों को भी अब रोजगार तेजी से मिलने लगा है। मौजूदा समय में वाराणसी में कुल 5000 लोग काष्ठ कला के बदौलत अपने परिवार को गुजारा कर रहें। इसमें महिलाओं की संख्या अधिक है। वहीं, दीपावली में लकड़ी के सुदंर स्वरूप में तैयार दीप, लटकन और लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की डिमांड काफी बढ़ गई हैं‌‌…इस रोजगार से जुड़े लोगों से दैनिक भास्कर की टीम से बातचीत की है, पेश है एक रिपोर्ट.. 2014 के बाद वाराणसी में विलुप्त हो रही काष्ठ कला को काफी बल मिला। ऐसा कहना है इस रोजगार से जुड़े लोगों का। वर्तमान में काशी में करीब 5 हजार काष्ठ कारीगर हैं। जो लकड़ी के दीप, दिवाली पर ताकि जाने वाले झूमर, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति सहित दर्जनों कलाकृतियों को तैयार कर रहे हैं। इस रोजगार से जुड़ी शुभी ने बताया-हमारे पास दिल्ली, मुंबई, पुणे सहित सिंगापुर से सबसे अधिक ऑर्डर आया हुआ है। हमारे साथ करने वाले करीब 2000 कारीगर ऐसे हैं, जो रात के 10 बजे तक काम कर रहे हैं। सिंगापुर के भारती लोगों ने किया है आर्डर शुभी ने बताया कि इस बार हमें सिंगापुर से सबसे ज्यादा डिमांड आई है। वहां रहने वाले भारतीय लोग धूमधाम से दीपावली मनाएंगे। इसके लिए उन्होंने लकड़ी से जुड़े हुए ही सभी प्रोडक्ट मंगाए हैं। उन्होंने कहा कि हमने वहां पर सभी सामानों को भेज दिया है। इसके अलावा दिल्ली और पुणे से भी हमें अभी भी डिमांड आ रही है। जिसको हम लगातार पूरा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि रोजगार से जुड़ी हुई महिलाओं को प्रतिदिन 300 रुपए दिए जाते हैं। उनका मानना है कि काशी में काष्ठ कला से बनी कलाकृति एक धरोहर है, जो आगे भी संजो कर रखी जाएंगी। गिफ्ट के लिए लोग कर रहे खरीदारी शुभी ने बताया कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने इस कला को बढ़ावा दिया है, तब से लोग गिफ्ट के रूप में भी काफी पसंद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले के समय में लोग ज्यादातर लकड़ी से ही बने प्रोडक्ट को उपहार के रूप में देते थे, लेकिन यह सिलसिला बीच में विलुप्त हुआ था। 2016 के बाद 50 प्रतिशत इस बिजनेस में इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बाहर से भी लोग जब काशी घूमने आते हैं तो इन्हीं प्रोडक्ट को खरीदते हैं। इस समय दीपावली में उपहार के लिए लोग सबसे अधिक राम दरबार, दीप, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति खरीदना पसंद कर रहे हैं। आइए अब बात करते हैं कितने रुपए में बिक रहे ये प्रोडक्ट शुभी ने बताया कि कैंडल 60-250 रुपए, हाथी की डोर हैंगिंग 350-500 रुपए, लक्ष्मी गणेश 700-1000 रुपए, राम दरबार 500-5000 रुपए गिफ्ट आइटम 40-1000 रुपए में उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि बनारस के विभिन्न क्षेत्र में छोटे-छोटे दुकान लगाई गई हैं, जहां पर यह बिक रहे हैं। इसके अलावा जो ऑनलाइन ऑर्डर आता है, उसे माध्यम से भी इसे भेजा जाता है। आइए अब बात करते हैं उन कारीगरों से जो इसे तैयार कर रहे हैं कितनी पुरानी है काशी की काष्ठ कला कारीगर बताते हैं कि यह कला करीब 400 साल पुरानी है। कुछ शिल्पकार मानते हैं कि यह कला भगवान राम के जमाने से चली आ रही है। कहते हैं, डिब्बी (सिंदूरदान), थाली, जांता, ऊखली, मुसल, ग्लास, लोटिया, बेगुना, चूल्हा, चक्की, रोटी, तवा और कलछुल और अन्य सामग्रियां कई दशक से बनारस में बनाई जा रही हैं। बनारस में बनने वाला लकड़ी का प्रोडक्ट बीते कुछ सालों से यह व्यवसाय खराब दौर से गुजर रहा था। मोदी और योगी सरकार ने मिलकर इसे दोबारा से गति प्रदान की है। 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर संयुक्त आयुक्त उद्योग उमेश सिंह ने बताया, ODOP योजना के तहत वाराणसी में 15 हजार से अधिक लोगों ने ट्रेनिंग ले रखी है। जिसमें वाराणसी जनपद में 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर हैं। लोगों को समर्थ अभियान के तहत ट्रेनिंग दी जा रही है। 50 दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम में उन्हें तमाम तकनीकी पहलू से रूबरू कराया जा रहा है। इसको सीखने के साथ-साथ जिले में महिलाएं एवं पुरुष से 8 से 10 हजार रुपये कमा पा रही हैं। कौन सी लकड़ी इस्तेमाल होती है लकड़ी से जुड़ी चीजें बनाने के लिए आम, गौरेया, शीशम की लकड़ी का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इन लकड़ियों पर रंग अच्छे से उभर के आता है और ज्यादा दिन तक चलता है। लकड़ियां ज्यादातर वाराणसी, मिर्जापुर और बिहार से मंगाई जाती हैं। कैसे बनते हैं लकड़ी की वस्तुएं सबसे पहले लकड़ी को काटा जाता है। इसके बाद उसे एक आकृति दी जाती है। फिर उसको रेगमार्क से पॉलिश करके साफ किया जाता है। उसके बाद लकड़ी पर अस्तर लगाया जाता है। फिर उसे सुखाया जाता है। उसके बाद बहुत बारीकी से पर्मानेंट पेंट का प्रयोग करके रंग भरा जाता है। अंत में सूखाने के बाद उसमें फिर से पॉलिश लगाकर मार्केट में भेज दिया जाता है।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर