वाराणसी की काष्ठ कला की पहचान विदेशों तक होने लगी हैं। इसके साथ ही इसको बनाने वाले कारीगरों को भी अब रोजगार तेजी से मिलने लगा है। मौजूदा समय में वाराणसी में कुल 5000 लोग काष्ठ कला के बदौलत अपने परिवार को गुजारा कर रहें। इसमें महिलाओं की संख्या अधिक है। वहीं, दीपावली में लकड़ी के सुदंर स्वरूप में तैयार दीप, लटकन और लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की डिमांड काफी बढ़ गई हैं…इस रोजगार से जुड़े लोगों से दैनिक भास्कर की टीम से बातचीत की है, पेश है एक रिपोर्ट.. 2014 के बाद वाराणसी में विलुप्त हो रही काष्ठ कला को काफी बल मिला। ऐसा कहना है इस रोजगार से जुड़े लोगों का। वर्तमान में काशी में करीब 5 हजार काष्ठ कारीगर हैं। जो लकड़ी के दीप, दिवाली पर ताकि जाने वाले झूमर, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति सहित दर्जनों कलाकृतियों को तैयार कर रहे हैं। इस रोजगार से जुड़ी शुभी ने बताया-हमारे पास दिल्ली, मुंबई, पुणे सहित सिंगापुर से सबसे अधिक ऑर्डर आया हुआ है। हमारे साथ करने वाले करीब 2000 कारीगर ऐसे हैं, जो रात के 10 बजे तक काम कर रहे हैं। सिंगापुर के भारती लोगों ने किया है आर्डर शुभी ने बताया कि इस बार हमें सिंगापुर से सबसे ज्यादा डिमांड आई है। वहां रहने वाले भारतीय लोग धूमधाम से दीपावली मनाएंगे। इसके लिए उन्होंने लकड़ी से जुड़े हुए ही सभी प्रोडक्ट मंगाए हैं। उन्होंने कहा कि हमने वहां पर सभी सामानों को भेज दिया है। इसके अलावा दिल्ली और पुणे से भी हमें अभी भी डिमांड आ रही है। जिसको हम लगातार पूरा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि रोजगार से जुड़ी हुई महिलाओं को प्रतिदिन 300 रुपए दिए जाते हैं। उनका मानना है कि काशी में काष्ठ कला से बनी कलाकृति एक धरोहर है, जो आगे भी संजो कर रखी जाएंगी। गिफ्ट के लिए लोग कर रहे खरीदारी शुभी ने बताया कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने इस कला को बढ़ावा दिया है, तब से लोग गिफ्ट के रूप में भी काफी पसंद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले के समय में लोग ज्यादातर लकड़ी से ही बने प्रोडक्ट को उपहार के रूप में देते थे, लेकिन यह सिलसिला बीच में विलुप्त हुआ था। 2016 के बाद 50 प्रतिशत इस बिजनेस में इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बाहर से भी लोग जब काशी घूमने आते हैं तो इन्हीं प्रोडक्ट को खरीदते हैं। इस समय दीपावली में उपहार के लिए लोग सबसे अधिक राम दरबार, दीप, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति खरीदना पसंद कर रहे हैं। आइए अब बात करते हैं कितने रुपए में बिक रहे ये प्रोडक्ट शुभी ने बताया कि कैंडल 60-250 रुपए, हाथी की डोर हैंगिंग 350-500 रुपए, लक्ष्मी गणेश 700-1000 रुपए, राम दरबार 500-5000 रुपए गिफ्ट आइटम 40-1000 रुपए में उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि बनारस के विभिन्न क्षेत्र में छोटे-छोटे दुकान लगाई गई हैं, जहां पर यह बिक रहे हैं। इसके अलावा जो ऑनलाइन ऑर्डर आता है, उसे माध्यम से भी इसे भेजा जाता है। आइए अब बात करते हैं उन कारीगरों से जो इसे तैयार कर रहे हैं कितनी पुरानी है काशी की काष्ठ कला कारीगर बताते हैं कि यह कला करीब 400 साल पुरानी है। कुछ शिल्पकार मानते हैं कि यह कला भगवान राम के जमाने से चली आ रही है। कहते हैं, डिब्बी (सिंदूरदान), थाली, जांता, ऊखली, मुसल, ग्लास, लोटिया, बेगुना, चूल्हा, चक्की, रोटी, तवा और कलछुल और अन्य सामग्रियां कई दशक से बनारस में बनाई जा रही हैं। बनारस में बनने वाला लकड़ी का प्रोडक्ट बीते कुछ सालों से यह व्यवसाय खराब दौर से गुजर रहा था। मोदी और योगी सरकार ने मिलकर इसे दोबारा से गति प्रदान की है। 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर संयुक्त आयुक्त उद्योग उमेश सिंह ने बताया, ODOP योजना के तहत वाराणसी में 15 हजार से अधिक लोगों ने ट्रेनिंग ले रखी है। जिसमें वाराणसी जनपद में 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर हैं। लोगों को समर्थ अभियान के तहत ट्रेनिंग दी जा रही है। 50 दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम में उन्हें तमाम तकनीकी पहलू से रूबरू कराया जा रहा है। इसको सीखने के साथ-साथ जिले में महिलाएं एवं पुरुष से 8 से 10 हजार रुपये कमा पा रही हैं। कौन सी लकड़ी इस्तेमाल होती है लकड़ी से जुड़ी चीजें बनाने के लिए आम, गौरेया, शीशम की लकड़ी का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इन लकड़ियों पर रंग अच्छे से उभर के आता है और ज्यादा दिन तक चलता है। लकड़ियां ज्यादातर वाराणसी, मिर्जापुर और बिहार से मंगाई जाती हैं। कैसे बनते हैं लकड़ी की वस्तुएं सबसे पहले लकड़ी को काटा जाता है। इसके बाद उसे एक आकृति दी जाती है। फिर उसको रेगमार्क से पॉलिश करके साफ किया जाता है। उसके बाद लकड़ी पर अस्तर लगाया जाता है। फिर उसे सुखाया जाता है। उसके बाद बहुत बारीकी से पर्मानेंट पेंट का प्रयोग करके रंग भरा जाता है। अंत में सूखाने के बाद उसमें फिर से पॉलिश लगाकर मार्केट में भेज दिया जाता है। वाराणसी की काष्ठ कला की पहचान विदेशों तक होने लगी हैं। इसके साथ ही इसको बनाने वाले कारीगरों को भी अब रोजगार तेजी से मिलने लगा है। मौजूदा समय में वाराणसी में कुल 5000 लोग काष्ठ कला के बदौलत अपने परिवार को गुजारा कर रहें। इसमें महिलाओं की संख्या अधिक है। वहीं, दीपावली में लकड़ी के सुदंर स्वरूप में तैयार दीप, लटकन और लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की डिमांड काफी बढ़ गई हैं…इस रोजगार से जुड़े लोगों से दैनिक भास्कर की टीम से बातचीत की है, पेश है एक रिपोर्ट.. 2014 के बाद वाराणसी में विलुप्त हो रही काष्ठ कला को काफी बल मिला। ऐसा कहना है इस रोजगार से जुड़े लोगों का। वर्तमान में काशी में करीब 5 हजार काष्ठ कारीगर हैं। जो लकड़ी के दीप, दिवाली पर ताकि जाने वाले झूमर, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति सहित दर्जनों कलाकृतियों को तैयार कर रहे हैं। इस रोजगार से जुड़ी शुभी ने बताया-हमारे पास दिल्ली, मुंबई, पुणे सहित सिंगापुर से सबसे अधिक ऑर्डर आया हुआ है। हमारे साथ करने वाले करीब 2000 कारीगर ऐसे हैं, जो रात के 10 बजे तक काम कर रहे हैं। सिंगापुर के भारती लोगों ने किया है आर्डर शुभी ने बताया कि इस बार हमें सिंगापुर से सबसे ज्यादा डिमांड आई है। वहां रहने वाले भारतीय लोग धूमधाम से दीपावली मनाएंगे। इसके लिए उन्होंने लकड़ी से जुड़े हुए ही सभी प्रोडक्ट मंगाए हैं। उन्होंने कहा कि हमने वहां पर सभी सामानों को भेज दिया है। इसके अलावा दिल्ली और पुणे से भी हमें अभी भी डिमांड आ रही है। जिसको हम लगातार पूरा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि रोजगार से जुड़ी हुई महिलाओं को प्रतिदिन 300 रुपए दिए जाते हैं। उनका मानना है कि काशी में काष्ठ कला से बनी कलाकृति एक धरोहर है, जो आगे भी संजो कर रखी जाएंगी। गिफ्ट के लिए लोग कर रहे खरीदारी शुभी ने बताया कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने इस कला को बढ़ावा दिया है, तब से लोग गिफ्ट के रूप में भी काफी पसंद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले के समय में लोग ज्यादातर लकड़ी से ही बने प्रोडक्ट को उपहार के रूप में देते थे, लेकिन यह सिलसिला बीच में विलुप्त हुआ था। 2016 के बाद 50 प्रतिशत इस बिजनेस में इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बाहर से भी लोग जब काशी घूमने आते हैं तो इन्हीं प्रोडक्ट को खरीदते हैं। इस समय दीपावली में उपहार के लिए लोग सबसे अधिक राम दरबार, दीप, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति खरीदना पसंद कर रहे हैं। आइए अब बात करते हैं कितने रुपए में बिक रहे ये प्रोडक्ट शुभी ने बताया कि कैंडल 60-250 रुपए, हाथी की डोर हैंगिंग 350-500 रुपए, लक्ष्मी गणेश 700-1000 रुपए, राम दरबार 500-5000 रुपए गिफ्ट आइटम 40-1000 रुपए में उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि बनारस के विभिन्न क्षेत्र में छोटे-छोटे दुकान लगाई गई हैं, जहां पर यह बिक रहे हैं। इसके अलावा जो ऑनलाइन ऑर्डर आता है, उसे माध्यम से भी इसे भेजा जाता है। आइए अब बात करते हैं उन कारीगरों से जो इसे तैयार कर रहे हैं कितनी पुरानी है काशी की काष्ठ कला कारीगर बताते हैं कि यह कला करीब 400 साल पुरानी है। कुछ शिल्पकार मानते हैं कि यह कला भगवान राम के जमाने से चली आ रही है। कहते हैं, डिब्बी (सिंदूरदान), थाली, जांता, ऊखली, मुसल, ग्लास, लोटिया, बेगुना, चूल्हा, चक्की, रोटी, तवा और कलछुल और अन्य सामग्रियां कई दशक से बनारस में बनाई जा रही हैं। बनारस में बनने वाला लकड़ी का प्रोडक्ट बीते कुछ सालों से यह व्यवसाय खराब दौर से गुजर रहा था। मोदी और योगी सरकार ने मिलकर इसे दोबारा से गति प्रदान की है। 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर संयुक्त आयुक्त उद्योग उमेश सिंह ने बताया, ODOP योजना के तहत वाराणसी में 15 हजार से अधिक लोगों ने ट्रेनिंग ले रखी है। जिसमें वाराणसी जनपद में 300 से अधिक रजिस्टर सेंटर हैं। लोगों को समर्थ अभियान के तहत ट्रेनिंग दी जा रही है। 50 दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम में उन्हें तमाम तकनीकी पहलू से रूबरू कराया जा रहा है। इसको सीखने के साथ-साथ जिले में महिलाएं एवं पुरुष से 8 से 10 हजार रुपये कमा पा रही हैं। कौन सी लकड़ी इस्तेमाल होती है लकड़ी से जुड़ी चीजें बनाने के लिए आम, गौरेया, शीशम की लकड़ी का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इन लकड़ियों पर रंग अच्छे से उभर के आता है और ज्यादा दिन तक चलता है। लकड़ियां ज्यादातर वाराणसी, मिर्जापुर और बिहार से मंगाई जाती हैं। कैसे बनते हैं लकड़ी की वस्तुएं सबसे पहले लकड़ी को काटा जाता है। इसके बाद उसे एक आकृति दी जाती है। फिर उसको रेगमार्क से पॉलिश करके साफ किया जाता है। उसके बाद लकड़ी पर अस्तर लगाया जाता है। फिर उसे सुखाया जाता है। उसके बाद बहुत बारीकी से पर्मानेंट पेंट का प्रयोग करके रंग भरा जाता है। अंत में सूखाने के बाद उसमें फिर से पॉलिश लगाकर मार्केट में भेज दिया जाता है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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Delhi: सीएम केजरीवाल की गैरमौजूदगी में मनीष सिसोदिया ने उठाई जिम्मेदारी, चुनाव को लेकर करेंगे ये काम
Delhi: सीएम केजरीवाल की गैरमौजूदगी में मनीष सिसोदिया ने उठाई जिम्मेदारी, चुनाव को लेकर करेंगे ये काम <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi Assembly Election 2025: </strong>दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) रविवार को आम आदमी पार्टी (AAP) के वरिष्ठ नेताओं की होने वाली बैठक की अध्यक्षता करेंगे. सिसोदिया ने जमानत पर जेल से आने के बाद सिसोदिया पॉलिटिक्स में फिर से एक्टिव हो गए हैं. जेल से आने के अगले ही दिन उन्होंने पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था.</p>
<p style=”text-align: justify;”>सीएम केजरीवाल की गैरमौजूदगी में सिसोदिया पार्टी की कमान संभालते नजर आ रहे हैं. उन्होंने कार्यकर्ताओं के संबोधन में कहा था कि मुझसे कहा गया कि 17 महीने के बाद जेल से आए हैं तो कुछ आराम कर लीजिए, लेकिन मैंने कहा कि आराम करने के लिए नहीं बल्कि खून-पसीना बहाना के लिए आया हूं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>2025 की शुरुआत में होना है विधानसभा चुनाव</strong><br />आम आदमी पार्टी की बैठक में विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा की जाएगी. दिल्ली में 2025 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव की तैयारियों में अब बहुत ज्यादा समय नहीं बचा है. चूंकि केजरीवाल अभी जेल में हैं इसलिए पार्टी के वरिष्ठ नेता होने के नाते माना जा रहा है कि सिसोदिया तैयारियों की कमान संभालेंगे और पार्टी कार्य़कर्ताओं को दिशा देंगे. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पुराने प्रदर्शन को दोहराने में लगी आप</strong><br />बीते दो विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहा है और भारी बहुमत के साथ इसने दिल्ली में सरकार बनाई है. आम आदमी पार्टी अपने प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश कर रही है. वहीं, दूसरी तरफ इसका मुकाबला इस बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस से भी होगा. आप और कांग्रेस ने <a title=”लोकसभा चुनाव” href=”https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024″ data-type=”interlinkingkeywords”>लोकसभा चुनाव</a> साथ लड़ा था लेकिन विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सिसोदिया ने बीजेपी को दी यह चुनौती</strong><br />उधर, मनीष सिसोदिया ने जेल से बाहर आते ही बीजेपी पर हमला शुरू कर दिया है. सिसोदिया ने यहां तक दावा किया कि चुनाव में बीजेपी की जमानत जब्त कराई जाएगी. उन्होंने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे अभी से इस दिशा में काम करना शुरू कर दें. </p>
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‘रावण इस गांव का बेटा है, राक्षस नहीं’:नोएडा के बिसरख में नहीं मनाते दशहरा, पुतला दहन से होने लगते हैं हादसे
‘रावण इस गांव का बेटा है, राक्षस नहीं’:नोएडा के बिसरख में नहीं मनाते दशहरा, पुतला दहन से होने लगते हैं हादसे ‘रावण इस गांव का बेटा है, राक्षस नहीं…यहां कभी रामलीला नहीं होती, न ही पुतला जलाया जाता है। जब-जब ऐसा हुआ, कुछ न कुछ अनिष्ट हुआ। दुर्घटनाएं होने लगीं। लोग मरे, बीमारी फैलने लगी।’ ऐसा नोएडा से 17 किमी दूर बिसरख गांव के लोगों का कहना है। इस गांव का नाम लंकापति रावण के पिता विश्रवा के नाम पर रखा गया था। मान्यता है कि यहीं रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा ने जन्म लिया। इनसे पहले कुबेर भी यहां जन्मे, जिन्होंने सोने की लंका बनाई। तब, रावण अपने परिवार के साथ वहां चला गया। रावण के जन्मस्थान होने की वजह से यह गांव बिसरख धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दशहरे से पहले दैनिक भास्कर की टीम बिसरख गांव पहुंची। यहां हमने लोगों से बात की। यहां की मान्यता क्या है? रावण के जन्मस्थान के साक्ष्य क्या हैं? पंडित-पुरोहित क्या बताते हैं? मंदिर का इतिहास क्या है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… दशहरे तक छाया रहता है सन्नाटा
हम सुबह करीब 10 बजे बिसरख गांव पहुंचे। यहां अजीब-सा सन्नाटा पसरा था। घरों के दरवाजे बंद थे। सड़कें सूनी थीं। पेड़ की छांव में कुछ लोग बैठे थे। पूछने पर कहते हैं- भैया, दशहरे तक गांव का माहौल ऐसा ही रहेगा। यहां की हवा ही कुछ ऐसी है। दशहरे के बाद अपने आप ही लोगों का मिलना-जुलना बढ़ जाएगा। ये कोई नई बात नहीं है। हर साल ऐसा ही माहौल रहता है। गांव के लोग बाहर भी मेला या रामलीला देखने नहीं जाते। जिस दिन रावण दहन होता है, गांव में शोक जैसा माहौल रहता है। हमारे यह सवाल पूछने पर कि ऐसा क्यों? जवाब मिलता है- यह रावण का गांव है। उनके पिता विश्रवा यहीं रहते थे। गांव में उनका मंदिर है। यह जानने के बाद हम उस मंदिर की ओर चल पड़े। गांव में ज्यादा घनी आबादी नहीं है। लोग अपना काम करते दिखे। गांव में थोड़ा अंदर चलते ही दूर से ही मंदिर दिखा दिया। मंदिर के पुजारी और महंत ने रावण से जुड़ी कुछ जानकारियां बताईं। यहीं विश्रवा की कैकसी से शादी हुई
मंदिर के बाहर 10 सिर वाला रावण और शिवलिंग पर सिर काटकर चढ़ाते हुए दृश्य अंकित हैं। मंदिर के अंदर शिवलिंग है, जिसको हजारों साल पुराना बताया जाता है। मंदिर के पंडित विनय भारद्वाज बताते हैं- यह अष्टभुजा धारी शिवलिंग रावण के बाबा यानी पुलस्त्य ऋषि ने स्थापित किया था। यही शिवलिंग ही रावण की जन्मभूमि का प्रत्यक्ष प्रमाण है। शिवलिंग की खास बात यह है कि वह जिस पत्थर का है, वो आज कहीं नहीं मिलेगा। इस गांव में रावण के पिता ने राक्षसी राजकुमारी कैकसी से शादी की। यहीं रावण-कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का जन्म हुआ। शिवलिंग कितने साल पुराना है?
पंडित विनय बताते हैं- सन, शताब्दी तो चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शुरू किया था। यह कलयुग की गणना है। इससे पहले माया कैलंडर होता था, जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं पाया। इसलिए असली समय तो बता पाना मुश्किल है। अगर इस मंदिर को देखा जाए, तो पता चलता है कि रावण ने 28 हजार साल तक राज किया। उससे पहले कुबेर ने राज किया। आप अंदाजा लगाइए कि रावण यहां पैदा हुए, कुबेर यहां पैदा हुए, तो यह मंदिर कितने साल पुराना हो सकता है। पंडित ने बताया कि यहां के लोग भगवान राम की पूजा करते हैं और उनके आदर्शों को मानते हैं। लेकिन, रावण को भी गलत नहीं मानते। उसे भी विद्वान पंडित मानते हैं। यही वजह है, गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता। दो बार रामलीला का आयोजन, दोनों बार मौत
बिसरख गांव के लोग रामलीला का आयोजन नहीं करते। इस परंपरा के पीछे गांव का इतिहास जुड़ा है। यहां दो बार रावण दहन किया गया, लेकिन दोनों ही बार रामलीला के दौरान किसी न किसी की मौत हो गई। बिसरख में शिव मंदिर के पुजारी महंत रामदास ने बताया- 60 साल पहले गांव में पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया था। जिस व्यक्ति के घर के सामने यह आयोजन हुआ, उसी का बेटा मर गया। रावण की आत्मा की शांति के लिए होता है यज्ञ
कुछ समय बाद गांव वालों ने फिर से रामलीला रखी। इस बार उसमें हिस्सा लेने वाले एक पात्र की मौत हो गई। इसके बाद से यहां दशहरे पर रावण का पुतला नहीं दहन होता, न ही रामलीला होती है। यहां रावण की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ-हवन किए जाते हैं। साथ ही नवरात्रि के दौरान शिवलिंग पर बलि भी चढ़ाई जाती है। 1984 में की गई खुदाई
1984 में तांत्रिक चंद्रास्वामी ने शिवलिंग की खुदाई कराई थी। 20 फीट खुदाई के बाद भी शिवलिंग का छोर नहीं मिला था। इस दौरान एक गुफा मिली थी। वह पास में बने खंडहरों में जाकर निकली। खुदाई के दौरान एक 24 मुखी शंख भी निकला था। जिसे चंद्रास्वामी अपने साथ ले गए थे। शिवपुराण में भी इस धाम का जिक्र
बिसरख गांव का जिक्र शिव पुराण में भी किया गया है। कहा जाता है, त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रव का जन्म हुआ था। यह शिवलिंग बाहर से देखने में महज 2.5 फीट का है, लेकिन जमीन के नीचे इसकी लंबाई करीब 8 फीट है। इस गांव में अब तक 25 शिवलिंग मिले हैं। मंदिर के महंत रामदास ने बताया- खुदाई के दौरान त्रेता युग के नर कंकाल, बर्तन और मूर्तियों के अलावा कई अवशेष मिले। लेकिन अब वह उनके पास नहीं हैं। रामदास कहते हैं- उस समय टूटी-फूटी मूर्तियां मिली थीं। साथ ही भांग घोंटने वाला बर्तन और भैरो की मूर्ति भी थी। वो सब पुरातत्व विभाग वाले ले गए। लेकिन, आज भी यहां जिस जगह खुदाई होगी, जरूर पुराने अवशेष मिलेंगे। अब तक नहीं बन सकी रावण की प्रतिमा
महंत रामदास ने बताया- मंदिर में 24 भुजा रावण की प्रतिमा थी, जिसे अराजक तत्वों ने खंडित कर दिया। नई मूर्ति राजस्थान में बन रही है, जो करीब 7 फीट की है। उसे यहां स्थापित किया जाएगा। अभी 4 फीट की एक सिर वाली मूर्ति बनी है, जिसे लाया जा रहा है। उसे राम मंदिर के साथ यहां स्थापित किया जाएगा। मंदिर के विकास को लेकर कई बार लिखा गया, लेकिन किसी ने भी सुध नहीं ली। यह खबर भी पढ़ें वेश्यालय से भीख में मांगकर लाई मिट्टी, कानपुर में मां दुर्गा की मूर्ति का किया निर्माण; 82 साल से चली आ रही परंपरा कानपुर में एक अनोखी दुर्गा पूजा आयोजित की जाती है। जहां वेश्यालय से भिक्षा मांगकर पहले मिट्टी लाई जाती है। फिर उसी मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति का निर्माण कराया जाएगा। आज यानी बुधवार से दुर्गा पूजा शुरू हो रही है। कोलकाता की तर्ज पर पारंपरिक रूप से दुर्गा पूजा नारी सशक्तिकरण थीम पर शुरू की जा रही है। पढ़ें पूरी खबर…
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