28 मई, 2023 की रात आये आंधी-तूफान में उज्जैन के महाकाल लोक (महाकालेश्वर कॉरिडोर) की कई मूर्तियां धाराशाई हो गई थीं। जिसमें सप्तऋषियों की भी मूर्तियां थीं। एमपी सरकार एक बार फिर इस महाकाल कॉरिडोर को नव्य और दिव्य स्वरुप देने की कवायद में लगी हुई है। ऐसे में भगवान श्रीराम की बाल्यावस्था की मूर्ति का रेखांकन करने वाले उत्तर प्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष और काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय, वाराणसी के ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा को 100 से अधिक मूर्तियों के रेखांकन की जिम्मेदारी दी गई। डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने इस पर काम शुरू कर दिया है और अब तक 16 मूर्तियों ड्राइंग बनाकर एमपी भेज चुके हैं। जिसमें सप्तऋषि भी शामिल हैं। साथ ही भगवान शिव और अष्ट भैरव सहित कई मूर्तियों की जिम्मेदारी उन्हें मिली है। ये मूर्तियां कैसे बन रही हैं ? इनकी विशेषता क्या है? कॉरिडोर में मूर्तियां कैसे लगाई जा रही हैं? मूर्तियों को बनाने के लिए किन विशेष बातों का ध्यान रखा जा रहा है और इन्हें किस आधार पर ड्रा किया जा रहा है ? इन सब सवालों पर दैनिक भास्कर ने उत्तर प्रदेश ललित कला विभाग के अध्यक्ष डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा से बात की, पेश है खास रिपोर्ट… सबसे पहले उत्तर प्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष डॉ सुनील वर्मा से उज्जैन के महाकालेश्वर में बनने वाली मूर्तियों की बात… महालोक की मूर्तियां बनाने की मिली है जिम्मेदारी
उत्तर प्रदेश ललित कला अकदामी और काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा के पास हम पहुंचे तो वो मूर्तिकला के छात्रों को टिप्स दे रहे थे। हमें लेकर अपने ऑफिस में पहुंचे। उसके बाद हमसे विस्तार से बात की। उन्होंने बताया ईश्वरीय सौभाग्य है जो मुझे इन सब कामों के लिए चुना गया है। मुझे उज्जैन में जो महाकालेश्वर कॉरिडोर (महाकाल लोक) तैयार हो रहा है। उसके लिए मूर्तियां का ड्राइंग बनाना है। यह काम शुरू हो गया है। 28 मई 2023 को आंधी-तूफान में उड़ गई थीं मूर्तियां
डॉ सुनील विश्वकर्मा ने बताया- फेज वन के कॉरिडोर में फाइबर की मूर्तियां लगाईं गई थीं। जो 28 मई 2023 को आये आंधी तूफान में उड़ गईं थीं। इसमें सप्तऋषियों की मूर्तियां थी। इस समय महाकालेश्वर कॉरिडोर को संवारने का काम चल रहा है। ऐसे में अब वहां पत्थर, मार्बल और सैंड स्टोन के साथ ही साथ तांबे की मूर्तियां बननी हैं। इसमें से 100 मूर्तियों की ड्राइंग बनाने की लिस्ट मेरे पास आ चुकी है। उनपर काम शुरू है। 16 मूर्तियों की ड्राइंग बनाकर भेजी गयी उज्जैन
ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील विश्वकर्मा ने बताया- 100 मूर्तियों में से अभी तक 16 मूर्तियों की ड्राइंग उज्जैन भेजी जा चुकी है और उस पर काम शुरू हो चुका है। इसमें सप्तऋषि, अष्टभैरव और भगवान शिव की प्रतिमा है। भगवान शिव की यह प्रतिमा कॉरिडोर की सबसे ऊंची 38 फीट की प्रतिमा होगी। बाकी पर कार्य चल रहा है। संहारक और अनुग्रह मूर्तियों की भरमार
उन्होंने बताया- उज्जैन के महाकाल लोक में भगवान शिव की प्रतिमा हर स्वरुप में मौजूद रहेगी। इसमें उनका संहारक रूप यानी ताड़कासुर वध, अंधकासुर वध ऐसे जितने भी संहारक रूप हैं। सभी की मूर्तियां बनाई जानी है। उनकी ड्राइंग पर काम चल रहा है। इसके अलावा उनकी अनुग्रह मूर्तियां जैसे रावण अनुग्रह मूर्ति आदि बनाई जाएगी। उसकी भी ड्राइंग पर मंथन चल रहा है। अब जानिए इन मूर्तियों की ड्राइंग की क्या विशेषता है और किन पुराणों के अध्ययन के बाद इनका ड्राइंग बनाया जा रहा है ? ड्राइंग बनाने के लिए करना पड़ रहा है विशेष अध्ययन
डॉ सुनील विश्वकर्मा ने बताया- महाकालेश्वर कॉरिडोर में बनने वाली 100 मूर्तियों की ड्राइंग के लिए विशेष अध्ययन करना पड़ रहा है। अभी तक मैंने शिव जी की एक और सप्तऋषि और अष्ट भैरव की मूर्तियों की ड्राइंग भेजी है। इनकी ड्राइंग के लिए मैंने पुराणों, किताबों और कथावाचकों को सूना और उसी आधार पर इनकी ड्राइंग तैयार की है। सप्तऋषियों के पूरे जीवन का किया अध्ययन
महाकालेश्वर कॉरिडोर में सप्तऋषियों में शामिल ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक की प्रतिमा स्थापित होनी है। इसकी ड्राइंग डॉ सुनील वर्मा ने तैयार कर ली है। उन्होंने बताया- सप्तऋषियों की ड्राइंग के लिए एक महीने से अधिक का अध्ययन करना पड़ा। कई पुराणों और ग्रंथों में सप्तऋषियों के वर्णन को पढ़ा। उसके बाद उनकी बोलती ड्राइंग बनाई। उनकी गुणवत्ता और वो किन विषयों में माहिर थे इस पर भी गहन अध्ययन किया और उनकी मूर्तियों में इस भाव को उकेरा। अष्ट भैरव की मूर्तियों में ही अलग-अलग भाव
डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा ने बताया- अष्ट भैरव की मूर्तियों भी ऐसे ही भाव उकेरे गए हैं। गीता प्रेस की सप्तऋषि और अष्ट भैरव पर छपी किताबें। शिव पुराण और इंटरनेट का भी सहारा लिया जा रहा है। अष्ट भैरव और सप्तऋषियों की मूर्ति में। इसमें इस बात का विशेष ध्यान ये रखा जा रहा है कि जो पुरानी तस्वीरें हमारे दिल में बसी हुई है। उससे अलग होनी चाहिये सभी मूर्तियां ऐसे में अध्ययन किया जा रहा है तब ही उनका ड्राइंग बनाया जा रहा है। इसमें अष्ट भैरव को उनके नाम के स्वरुप आकर और चहेरे पर एक्सप्रेशन दिए गए हैं। जैसे काल भैरव, आस भैरव आदि को उनके स्वरुप के अनुसार ड्राइंग किया गया है। साथ ही उनकी पोशाक और वाहन का भी खास ख्याल रखा गया है ताकि कहीं से भी मूर्ति एक न लगे। साढ़े तीन फीट की मूर्तियां तैयार
उन्होंने बताया- यहां से गए सप्तऋषियों के ड्राइंग के अनुसार पहले साढ़े तीन फीट की मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई गई है। अब इसके हिसाब से पत्थर की 12 से 15 फीट की मूर्तियां बनाई जानी है। यह राउंड स्कल्पचर होंगे जिन्हें चारों तरफ से लोग देख सकेंगे। अष्ट भैरव और भगवान शिव की प्रतिमा पर भी काम शुरू हो गया है। समय कितना लगेगा यह बताना मुश्किल
डॉ सुनील से जब पूछा गया कि का तक 100 मूर्तियों का चित्र बना लिया जाएगा तो उन्होंने कहा काम लंबा है ऐसे में समय लगेगा। 100 मूर्तियां पत्थर से बननी है और उसके लिए सबसे अलग और विशेष ड्राइंग तैयार करनी है तो समय लगेगा। मूर्तियों में भाव लाने में समय लगता है। ऐसे में पहले एक मूर्ति पर अध्ययन करके उसे एक दिन में स्वरुप दे रहा हूं। 16 मूर्तियों को स्वरुप देकर भेजा है। उस पर काम हो रहा है जिसमें तीन महीने का भी समय लग सकता है। ऐसे में जब वो काम पूरा हो जाएगा तब ड्राइंग आगे बनाऊंगा। अभी अध्ययन चल रहा है। अब जानिए अयोध्या श्रीराम मंदिर के लिए कितने दिन में डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा ने तैयार की थी ड्राइंग… 18 दिन के अध्ययन के बाद बनी थी भगवान राम की मूर्ति की ड्राइंग
डॉ सुनील विश्वकर्मा ने ही अयोध्या में बने नव्य और दिव्य राम मंदिर में स्थापित भवान राम मंदिर का ड्राइंग बनाया था। इसमें भगवान राम को बाल्यावस्था में दर्शाया गया है। डॉ सुनील ने बताया- इसमें मुझे अध्ययन करने में 18 दिन लगे हमें सब बता दिया गया था कि भगवान का बाल स्वरूप जनेऊ के पहले का होना चाहिए। चेहरे पर बाल्यावस्था की मंद मुस्कान और हाथ अजान बाहु होने चाहिए। देवत्य भी दिखना चाहिए। वाल्मीकि रामायण और तुलसी के रामचरितमानस से लिया सहारा
डॉ सुनील ने बताया- इस मूर्ति की ड्राइंग बनाने के लिए वाल्मीकि रामायण में मौजूद भगवान श्रीराम का बालकांड पूरा पढ़ा। सतह ही तुलसी दास की रामचरितमानस का भी अध्ययन किया और उसके बाद यह ड्राइंग बनाई और आज उसी स्वरुप में भगवान श्रीराम अयोध्या में विराजमान हैं। 28 मई, 2023 की रात आये आंधी-तूफान में उज्जैन के महाकाल लोक (महाकालेश्वर कॉरिडोर) की कई मूर्तियां धाराशाई हो गई थीं। जिसमें सप्तऋषियों की भी मूर्तियां थीं। एमपी सरकार एक बार फिर इस महाकाल कॉरिडोर को नव्य और दिव्य स्वरुप देने की कवायद में लगी हुई है। ऐसे में भगवान श्रीराम की बाल्यावस्था की मूर्ति का रेखांकन करने वाले उत्तर प्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष और काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय, वाराणसी के ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा को 100 से अधिक मूर्तियों के रेखांकन की जिम्मेदारी दी गई। डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने इस पर काम शुरू कर दिया है और अब तक 16 मूर्तियों ड्राइंग बनाकर एमपी भेज चुके हैं। जिसमें सप्तऋषि भी शामिल हैं। साथ ही भगवान शिव और अष्ट भैरव सहित कई मूर्तियों की जिम्मेदारी उन्हें मिली है। ये मूर्तियां कैसे बन रही हैं ? इनकी विशेषता क्या है? कॉरिडोर में मूर्तियां कैसे लगाई जा रही हैं? मूर्तियों को बनाने के लिए किन विशेष बातों का ध्यान रखा जा रहा है और इन्हें किस आधार पर ड्रा किया जा रहा है ? इन सब सवालों पर दैनिक भास्कर ने उत्तर प्रदेश ललित कला विभाग के अध्यक्ष डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा से बात की, पेश है खास रिपोर्ट… सबसे पहले उत्तर प्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष डॉ सुनील वर्मा से उज्जैन के महाकालेश्वर में बनने वाली मूर्तियों की बात… महालोक की मूर्तियां बनाने की मिली है जिम्मेदारी
उत्तर प्रदेश ललित कला अकदामी और काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा के पास हम पहुंचे तो वो मूर्तिकला के छात्रों को टिप्स दे रहे थे। हमें लेकर अपने ऑफिस में पहुंचे। उसके बाद हमसे विस्तार से बात की। उन्होंने बताया ईश्वरीय सौभाग्य है जो मुझे इन सब कामों के लिए चुना गया है। मुझे उज्जैन में जो महाकालेश्वर कॉरिडोर (महाकाल लोक) तैयार हो रहा है। उसके लिए मूर्तियां का ड्राइंग बनाना है। यह काम शुरू हो गया है। 28 मई 2023 को आंधी-तूफान में उड़ गई थीं मूर्तियां
डॉ सुनील विश्वकर्मा ने बताया- फेज वन के कॉरिडोर में फाइबर की मूर्तियां लगाईं गई थीं। जो 28 मई 2023 को आये आंधी तूफान में उड़ गईं थीं। इसमें सप्तऋषियों की मूर्तियां थी। इस समय महाकालेश्वर कॉरिडोर को संवारने का काम चल रहा है। ऐसे में अब वहां पत्थर, मार्बल और सैंड स्टोन के साथ ही साथ तांबे की मूर्तियां बननी हैं। इसमें से 100 मूर्तियों की ड्राइंग बनाने की लिस्ट मेरे पास आ चुकी है। उनपर काम शुरू है। 16 मूर्तियों की ड्राइंग बनाकर भेजी गयी उज्जैन
ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील विश्वकर्मा ने बताया- 100 मूर्तियों में से अभी तक 16 मूर्तियों की ड्राइंग उज्जैन भेजी जा चुकी है और उस पर काम शुरू हो चुका है। इसमें सप्तऋषि, अष्टभैरव और भगवान शिव की प्रतिमा है। भगवान शिव की यह प्रतिमा कॉरिडोर की सबसे ऊंची 38 फीट की प्रतिमा होगी। बाकी पर कार्य चल रहा है। संहारक और अनुग्रह मूर्तियों की भरमार
उन्होंने बताया- उज्जैन के महाकाल लोक में भगवान शिव की प्रतिमा हर स्वरुप में मौजूद रहेगी। इसमें उनका संहारक रूप यानी ताड़कासुर वध, अंधकासुर वध ऐसे जितने भी संहारक रूप हैं। सभी की मूर्तियां बनाई जानी है। उनकी ड्राइंग पर काम चल रहा है। इसके अलावा उनकी अनुग्रह मूर्तियां जैसे रावण अनुग्रह मूर्ति आदि बनाई जाएगी। उसकी भी ड्राइंग पर मंथन चल रहा है। अब जानिए इन मूर्तियों की ड्राइंग की क्या विशेषता है और किन पुराणों के अध्ययन के बाद इनका ड्राइंग बनाया जा रहा है ? ड्राइंग बनाने के लिए करना पड़ रहा है विशेष अध्ययन
डॉ सुनील विश्वकर्मा ने बताया- महाकालेश्वर कॉरिडोर में बनने वाली 100 मूर्तियों की ड्राइंग के लिए विशेष अध्ययन करना पड़ रहा है। अभी तक मैंने शिव जी की एक और सप्तऋषि और अष्ट भैरव की मूर्तियों की ड्राइंग भेजी है। इनकी ड्राइंग के लिए मैंने पुराणों, किताबों और कथावाचकों को सूना और उसी आधार पर इनकी ड्राइंग तैयार की है। सप्तऋषियों के पूरे जीवन का किया अध्ययन
महाकालेश्वर कॉरिडोर में सप्तऋषियों में शामिल ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक की प्रतिमा स्थापित होनी है। इसकी ड्राइंग डॉ सुनील वर्मा ने तैयार कर ली है। उन्होंने बताया- सप्तऋषियों की ड्राइंग के लिए एक महीने से अधिक का अध्ययन करना पड़ा। कई पुराणों और ग्रंथों में सप्तऋषियों के वर्णन को पढ़ा। उसके बाद उनकी बोलती ड्राइंग बनाई। उनकी गुणवत्ता और वो किन विषयों में माहिर थे इस पर भी गहन अध्ययन किया और उनकी मूर्तियों में इस भाव को उकेरा। अष्ट भैरव की मूर्तियों में ही अलग-अलग भाव
डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा ने बताया- अष्ट भैरव की मूर्तियों भी ऐसे ही भाव उकेरे गए हैं। गीता प्रेस की सप्तऋषि और अष्ट भैरव पर छपी किताबें। शिव पुराण और इंटरनेट का भी सहारा लिया जा रहा है। अष्ट भैरव और सप्तऋषियों की मूर्ति में। इसमें इस बात का विशेष ध्यान ये रखा जा रहा है कि जो पुरानी तस्वीरें हमारे दिल में बसी हुई है। उससे अलग होनी चाहिये सभी मूर्तियां ऐसे में अध्ययन किया जा रहा है तब ही उनका ड्राइंग बनाया जा रहा है। इसमें अष्ट भैरव को उनके नाम के स्वरुप आकर और चहेरे पर एक्सप्रेशन दिए गए हैं। जैसे काल भैरव, आस भैरव आदि को उनके स्वरुप के अनुसार ड्राइंग किया गया है। साथ ही उनकी पोशाक और वाहन का भी खास ख्याल रखा गया है ताकि कहीं से भी मूर्ति एक न लगे। साढ़े तीन फीट की मूर्तियां तैयार
उन्होंने बताया- यहां से गए सप्तऋषियों के ड्राइंग के अनुसार पहले साढ़े तीन फीट की मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई गई है। अब इसके हिसाब से पत्थर की 12 से 15 फीट की मूर्तियां बनाई जानी है। यह राउंड स्कल्पचर होंगे जिन्हें चारों तरफ से लोग देख सकेंगे। अष्ट भैरव और भगवान शिव की प्रतिमा पर भी काम शुरू हो गया है। समय कितना लगेगा यह बताना मुश्किल
डॉ सुनील से जब पूछा गया कि का तक 100 मूर्तियों का चित्र बना लिया जाएगा तो उन्होंने कहा काम लंबा है ऐसे में समय लगेगा। 100 मूर्तियां पत्थर से बननी है और उसके लिए सबसे अलग और विशेष ड्राइंग तैयार करनी है तो समय लगेगा। मूर्तियों में भाव लाने में समय लगता है। ऐसे में पहले एक मूर्ति पर अध्ययन करके उसे एक दिन में स्वरुप दे रहा हूं। 16 मूर्तियों को स्वरुप देकर भेजा है। उस पर काम हो रहा है जिसमें तीन महीने का भी समय लग सकता है। ऐसे में जब वो काम पूरा हो जाएगा तब ड्राइंग आगे बनाऊंगा। अभी अध्ययन चल रहा है। अब जानिए अयोध्या श्रीराम मंदिर के लिए कितने दिन में डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा ने तैयार की थी ड्राइंग… 18 दिन के अध्ययन के बाद बनी थी भगवान राम की मूर्ति की ड्राइंग
डॉ सुनील विश्वकर्मा ने ही अयोध्या में बने नव्य और दिव्य राम मंदिर में स्थापित भवान राम मंदिर का ड्राइंग बनाया था। इसमें भगवान राम को बाल्यावस्था में दर्शाया गया है। डॉ सुनील ने बताया- इसमें मुझे अध्ययन करने में 18 दिन लगे हमें सब बता दिया गया था कि भगवान का बाल स्वरूप जनेऊ के पहले का होना चाहिए। चेहरे पर बाल्यावस्था की मंद मुस्कान और हाथ अजान बाहु होने चाहिए। देवत्य भी दिखना चाहिए। वाल्मीकि रामायण और तुलसी के रामचरितमानस से लिया सहारा
डॉ सुनील ने बताया- इस मूर्ति की ड्राइंग बनाने के लिए वाल्मीकि रामायण में मौजूद भगवान श्रीराम का बालकांड पूरा पढ़ा। सतह ही तुलसी दास की रामचरितमानस का भी अध्ययन किया और उसके बाद यह ड्राइंग बनाई और आज उसी स्वरुप में भगवान श्रीराम अयोध्या में विराजमान हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर