कुरुक्षेत्र के पिहोवा में 27 मार्च से सरस्वती तीर्थ पर लगने वाले 3 दिवसीय चैत्र चौदस मेला लगेगा। मेले में परंपरा और कारोबार का अनूठा संगम दिखेगा। इस ऐतिहासिक मेले से धार्मिक नगरी पिहोवा की इकोनॉमी भी बूस्ट होगी, क्योंकि इस मेले से जुड़ा कारोबार करोड़ों रुपए तक पहुंचता है। 27 मार्च से शुरू होने वाले इस मेले में 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान, गति कर्म व तर्पण करने के लिए आएंगे। श्रद्धालुओं के लिए प्रशासन व्यवस्था करने में जुटा है। तीर्थ पुरोहितों की भूमिका विशेष
तीर्थ पुरोहितों की भूमिका मेले को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। पुरोहित अपने यजमानों की वंशावली को पीढ़ी दर पीढ़ी बही-खातों में संजोकर रखते हैं। देश-विदेश से लोग अपने पितरों के लिए पूजा करने आते हैं, तो पुरोहित उनके पूर्वजों की वंशावली की जानकारी देते हैं। इस सेवा के बदले में यजमान दान-दक्षिणा अर्पित करते हैं। यह दक्षिणा 1 रुपए से लेकर लाखों रुपए तक हो सकती है। हालांकि पुरोहित अपने यजमान से कोई मांग नहीं करते। अलग-अलग नाम से गद्दी
इस तीर्थ पर पुरोहितों को गद्दी के नाम से जाना जाता है। इन गद्दी का नाम लेते हुए यजमान अपने पुरोहित तक पहुंचते हैं। यहां बड़ वाले, डफां वाले, फुलकारी वाले, सालग्राम गद्दी, बंसरी वाले, छतरी वाले व राजपुरोहित (धौली हवेली) प्रमुख गद्दिया है। इसके अलावा यजमान अपने पुरोहितों को हरी पगड़ी वाले, नंबरदार जी, घड़ी वाले, पचौली और अन्य नाम से भी पुकारते हैं। व्हाट्सएप से हो रहा मेल
अब टाइम बदल चुका है। अब व्हाट्सएप यजमानों का मेल पुरोहितों से करवा रहा है। दरअसल, यहां पुरोहितों के राम-राम पर्ची ग्रुप, तीर्थ पुरोहित ग्रुप और अन्य कई व्हाट्सएप ग्रुप बने हुए हैं। जैसे ही यजमान तीर्थ पर आएंगे उनके नाम, गौत्र, पैतृक गांव और दादा-पड़दादा की जानकारी इन ग्रुप में भेजी जाती है। पुरोहित अपने इंडैक्स में जानकारी का मिलान कर यजमान को अपनी गद्दी पर बुला लेते हैं। बॉलीवुड की हस्तियां भी यजमान
तीर्थ पर 200 से ज्यादा पुरोहित अपनी-अपनी गद्दी पर विराजमान हैं। कई श्रद्धालु, जो सालों बाद या पहली बार यहां आते हैं, उनके लिए अपनी वंशावली देखना एक भावनात्मक अनुभव होता है। बड़े व्यापारी, राजपरिवार, राजनैतिक और बॉलीवुड हस्तियों की वंशावली भी यहां दर्ज है। ये अपने पुरोहित को दान स्वरूप बड़ी धनराशि भी अर्पित करते हैं। मेले में सरस्वती तीर्थ पर स्नान और प्रेत-पीपल पर जल अर्पित करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। यह माना जाता है कि यहां पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। श्रद्धालु विधिपूर्वक कर्मकांड संपन्न कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। हर रोज तीर्थ पर हजारों श्रद्धालु स्नान, दान और पूजा करने के लिए आते हैं। कमाई नहीं सेवा और श्रद्धा का काम
तीर्थ पुरोहित प्रवेश कौशिक के मुताबिक, पुरोहित का मतलब ही अपने यजमान का हित करना है। यह कमाई का साधन नहीं है, बल्कि सेवा और श्रद्धा का काम है। यजमानों से पुरोहितों का संबंध पीढ़ियों से चला आ रहा धार्मिक और भावनात्मक रिश्ता है। यजमान प्रत्येक शुभ कार्य में उनको आमंत्रित करते हैं। तीर्थ पर पंजाब, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के यजमान मेले में पहुंचते हैं। परंपरा और कारोबार का अनूठा संगम
मेले में होने वाला आर्थिक लेनदेन करोड़ों में रुपए में पहुंच जाता है। यजमान के लिए धार्मिक अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मण को जहां दक्षिणा मिलती है, वहीं धार्मिक कर्म में लगने वाली सामग्री से दुकानदारों की जीविका चलती है। पूजा के बाद बीज वाला फल ले जाने की परंपरा है ताकि धन-धान्य व परिवार में वृद्धि हो। इसलिए तीर्थ पर फल बेचने वाले बैठे रहते हैं। इसके अलावा मेले में बर्तन, कपड़े, चारपाई, आटा, सूत, तेल, तिल, प्रसाद, दूध सहित अन्य सामग्री के लिए स्टॉल भी लगते हैं। कुरुक्षेत्र के पिहोवा में 27 मार्च से सरस्वती तीर्थ पर लगने वाले 3 दिवसीय चैत्र चौदस मेला लगेगा। मेले में परंपरा और कारोबार का अनूठा संगम दिखेगा। इस ऐतिहासिक मेले से धार्मिक नगरी पिहोवा की इकोनॉमी भी बूस्ट होगी, क्योंकि इस मेले से जुड़ा कारोबार करोड़ों रुपए तक पहुंचता है। 27 मार्च से शुरू होने वाले इस मेले में 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान, गति कर्म व तर्पण करने के लिए आएंगे। श्रद्धालुओं के लिए प्रशासन व्यवस्था करने में जुटा है। तीर्थ पुरोहितों की भूमिका विशेष
तीर्थ पुरोहितों की भूमिका मेले को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। पुरोहित अपने यजमानों की वंशावली को पीढ़ी दर पीढ़ी बही-खातों में संजोकर रखते हैं। देश-विदेश से लोग अपने पितरों के लिए पूजा करने आते हैं, तो पुरोहित उनके पूर्वजों की वंशावली की जानकारी देते हैं। इस सेवा के बदले में यजमान दान-दक्षिणा अर्पित करते हैं। यह दक्षिणा 1 रुपए से लेकर लाखों रुपए तक हो सकती है। हालांकि पुरोहित अपने यजमान से कोई मांग नहीं करते। अलग-अलग नाम से गद्दी
इस तीर्थ पर पुरोहितों को गद्दी के नाम से जाना जाता है। इन गद्दी का नाम लेते हुए यजमान अपने पुरोहित तक पहुंचते हैं। यहां बड़ वाले, डफां वाले, फुलकारी वाले, सालग्राम गद्दी, बंसरी वाले, छतरी वाले व राजपुरोहित (धौली हवेली) प्रमुख गद्दिया है। इसके अलावा यजमान अपने पुरोहितों को हरी पगड़ी वाले, नंबरदार जी, घड़ी वाले, पचौली और अन्य नाम से भी पुकारते हैं। व्हाट्सएप से हो रहा मेल
अब टाइम बदल चुका है। अब व्हाट्सएप यजमानों का मेल पुरोहितों से करवा रहा है। दरअसल, यहां पुरोहितों के राम-राम पर्ची ग्रुप, तीर्थ पुरोहित ग्रुप और अन्य कई व्हाट्सएप ग्रुप बने हुए हैं। जैसे ही यजमान तीर्थ पर आएंगे उनके नाम, गौत्र, पैतृक गांव और दादा-पड़दादा की जानकारी इन ग्रुप में भेजी जाती है। पुरोहित अपने इंडैक्स में जानकारी का मिलान कर यजमान को अपनी गद्दी पर बुला लेते हैं। बॉलीवुड की हस्तियां भी यजमान
तीर्थ पर 200 से ज्यादा पुरोहित अपनी-अपनी गद्दी पर विराजमान हैं। कई श्रद्धालु, जो सालों बाद या पहली बार यहां आते हैं, उनके लिए अपनी वंशावली देखना एक भावनात्मक अनुभव होता है। बड़े व्यापारी, राजपरिवार, राजनैतिक और बॉलीवुड हस्तियों की वंशावली भी यहां दर्ज है। ये अपने पुरोहित को दान स्वरूप बड़ी धनराशि भी अर्पित करते हैं। मेले में सरस्वती तीर्थ पर स्नान और प्रेत-पीपल पर जल अर्पित करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। यह माना जाता है कि यहां पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। श्रद्धालु विधिपूर्वक कर्मकांड संपन्न कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। हर रोज तीर्थ पर हजारों श्रद्धालु स्नान, दान और पूजा करने के लिए आते हैं। कमाई नहीं सेवा और श्रद्धा का काम
तीर्थ पुरोहित प्रवेश कौशिक के मुताबिक, पुरोहित का मतलब ही अपने यजमान का हित करना है। यह कमाई का साधन नहीं है, बल्कि सेवा और श्रद्धा का काम है। यजमानों से पुरोहितों का संबंध पीढ़ियों से चला आ रहा धार्मिक और भावनात्मक रिश्ता है। यजमान प्रत्येक शुभ कार्य में उनको आमंत्रित करते हैं। तीर्थ पर पंजाब, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के यजमान मेले में पहुंचते हैं। परंपरा और कारोबार का अनूठा संगम
मेले में होने वाला आर्थिक लेनदेन करोड़ों में रुपए में पहुंच जाता है। यजमान के लिए धार्मिक अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मण को जहां दक्षिणा मिलती है, वहीं धार्मिक कर्म में लगने वाली सामग्री से दुकानदारों की जीविका चलती है। पूजा के बाद बीज वाला फल ले जाने की परंपरा है ताकि धन-धान्य व परिवार में वृद्धि हो। इसलिए तीर्थ पर फल बेचने वाले बैठे रहते हैं। इसके अलावा मेले में बर्तन, कपड़े, चारपाई, आटा, सूत, तेल, तिल, प्रसाद, दूध सहित अन्य सामग्री के लिए स्टॉल भी लगते हैं। पंजाब | दैनिक भास्कर
