हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) तीसरी बार सत्ता तक पहुंचना चाहती है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव को 3 महीने का समय बचा है। ऐसे में भाजपा जल्द ही चुनावी शंखनाद फूंकने वाली है। अबकी बार हरियाणा में चुनाव जीतने की रणनीति गृहमंत्री अमित शाह ने अपने हाथों में ले ली है। वह 29 जून को हरियाणा के कुरूक्षेत्र आ रहे हैं। कुरूक्षेत्र में वह भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक लेंगे। इस बैठक में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर सहित प्रदेश भाजपा की कोर टीम के सदस्य ओपी धनखड़, सुधा यादव, कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला और रामबिलास शर्मा मौजूद रहेंगे। इसके साथ-साथ हरियाणा के सभी मंत्री, विधायक और सांसद बैठक में भाग लेंगे। इतना ही नहीं करीब 2500 से ज्यादा भाजपा कार्यकर्ता इस बैठक में हिस्सा लेंगे। हरियाणा में तीसरी बाद सत्ता तक पहुंचना चाहती है भाजपा हरियाणा में 2014 से ही भाजपा की सरकार है। केंद्र में 2014 को नरेंद्र मोदी के सामान्तर ही हरियाणा में खट्टर सरकार बनी थी। 2019 में भी हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और भाजपा जजपा के सहयोग से सत्ता तक पहुंची। मगर अबकी बार खट्टर सांसद का चुनाव जीतकर केंद्र में मंत्री बन गए हैं और उनकी जगह नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री बन गए। ऐसे में यह चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं है। खट्टर के जाने के बाद भाजपा के पास प्रदेश में कोई बड़ा चेहरा नहीं है। इसलिए चुनाव के रण में उतरने से पहले अमित शाह कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे। भाजपा की राह आसान नहीं 2019 में जहां भाजपा ने लोकसभा में हरियाणा की 10 में से 10 सीटें जीती थीं वहीं बार इस बार लोकसभा में भाजपा 5 सीटें कांग्रेस से हार गई। कांग्रेस लोकसभा चुनावों में मजबूत बनकर उभरी है और हरियाणा की 90 विधानसभा में से कांग्रेस ने गठबंधन में रहते हुए 46 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाकर उभरी वहीं भाजपा 42 विधानसभा सीटों पर आगे रही। ऐसे में भाजपा के सामने इस बार मुकाबला टफ है। इन कारणों से भाजपा के सामने कड़ी चुनौती 1. सत्ता विरोधी लहर : भाजपा हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है। हरियाणा की जनता प्रदेश में बदलाव की ओर देख रही है। हालांकि भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला मगर इसका फायदा लोकसभा चुनाव में नहीं मिला। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जरूर मोदी के नाम के वोट मिले मगर अबकी बार विधानसभा चुनाव की राह कठिन है। 2. जाट और एससी समाज की नाराजगी : भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट और एससी समाज को साधने की है। लोकसभा चुनाव में दोनों समाज ने भाजपा के खिलाफ होकर एकजुट होकर वोट किया। इसका परिणाम था कि जिन विधानसभा में जाट समाज या एससी समाज का प्रभाव है उन विधानसभा में भाजपा की हार हुई है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती दोनों वर्गों को साधने की है। 3. किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना : भाजपा के सामने केंद्र सरकार की योजनाओं को लेकर लोगों में नाराजगी है। केंद्र सरकार की ओर से बनाए तीन कृषि कानून को लेकर काफी लंबा आंदोलन हुआ। इसमें हरियाणा के किसानों ने अग्रणी भूमिका निभाई। हरियाणा सरकार ने किसानों के साथ कई मोर्चों पर जबरदस्ती की और साथ नहीं दिया। इस कारण किसान हरियाणा सरकार से नाराज हो गए। वहीं केंद्र की अग्निवीर योजना से हरियाणा के युवा खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले युवा नाराज हैं। हरियाणा में बड़े स्तर पर युवा आर्मी भर्ती की तैयारी करते हैं। अब यहां पढ़िए लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन 11.06% वोट शेयर घटा हरियाणा में इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को 46.06 वोट प्रतिशत मिले हैं। जबकि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा का 58 प्रतिशत वोट शेयर था। 5 सालों में पार्टी का प्रदेश में 11.06 वोट प्रतिशत घटा है। वहीं, कांग्रेस का वोट शेयर देखें तो इस चुनाव में 43.73% वोट शेयर लेकर भाजपा को कड़ी टक्कर दी है। 2019 में कांग्रेस को सिर्फ 28.42% वोट शेयर मिला था। 5 साल में कांग्रेस के वोट शेयर में 15.31% वोट शेयर की बढ़ोतरी हुई है। रिजर्व सीटों पर BJP का बुरा हाल हरियाणा में कुल 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित हैं। इनमें से मात्र 4 सीटों पर ही BJP को जीत मिली है। वहीं, कांग्रेस को 11, आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए भी बेहतर नतीजे आए हैं। AAP ने 2 सीटों पर लीड ली है। ये दोनों आरक्षित सीटें कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट में आती हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 सीटों में से कांग्रेस ने मुलाना, सढौरा, खरखौदा, कलानौर, झज्जर, बवानीखेड़ा, उकलाना, कालांवाली, रतिया, नरवाना और होडल सीटें जीती हैं। AAP ने शाहाबाद और गुहला चीका, जबकि BJP ने नीलोखेड़ी, इसराना, पटौदी और बावल सीटें जीती हैं। इन मंत्रियों के गढ़ में पिछड़ी पार्टी भाजपा विधायकों के अंबाला शहर से असीम गोयल (परिवहन मंत्री), जगाधरी से कंवरपाल गुर्जर (कृषि मंत्री), पिहोवा से संदीप सिंह (पूर्व खेल मंत्री), कलायत से कमलेश ढांडा (पूर्व मंत्री), आदमपुर से भव्य बिश्नोई, नलवा से रणबीर सिंह गंगवा, बवानीखेड़ा से बिशंबर वाल्मीकि (राज्य मंत्री), फतेहाबाद से दूडाराम, रतिया से लक्ष्मण नापा, लोहारू से जेपी दलाल (कृषि मंत्री), कोसली से लक्ष्मण यादव, हथीन से प्रवीण डागर, होडल से जगदीश नागर के विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार की हार हुई। विधानसभा चुनाव में पुराने फॉर्मूले पर लौटेगी BJP… माइक्रो मैनेजमेंट पर करेगी फोकस विधानसभा चुनाव में हरियाणा भाजपा ‘माइक्रो मैनेजमेंट’ के फॉर्मूले पर चलेगी और बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता के घर तक पहुंचेगी। यानी इस बार भाजपा हरियाणा जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। विपक्ष के लिए ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया जाएगा, जिसे भेदना आसान नहीं होगा। भाजपा ने अपने पहले कार्यक्रम में ही संकेत दिए हैं कि इस बार किसी भी दूसरे दल के लिए भाजपा को टक्कर देना इतना आसान नहीं होगा। जिस तरह केंद्रीय नेताओं ने हर कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री कहा है, उससे साफ है कि इस बार विधानसभा चुनाव में हर कार्यकर्ता को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी। कार्यकर्ताओं को मिलेगी तवज्जो रविवार को हरियाणा दौरे के दौरान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि नेता में जो भी कमी हो, वह कमी कार्यकर्ता बताएंगे। कार्यकर्ता के कहने पर फीडबैक लेने के बाद उस कमी को ठीक किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर बड़ा बदलाव करने से भी भाजपा पीछे नही हटेगी। इसका सीधा-सीधा मतलब ये है कि इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा लंगर-लंगोट कसकर मैदान में उतर चुकी है। सियासी जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में मिले फीडबैक के बाद हरियाणा भाजपा में बड़े बदलाव होने तय माने जा रहे हैं। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) तीसरी बार सत्ता तक पहुंचना चाहती है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव को 3 महीने का समय बचा है। ऐसे में भाजपा जल्द ही चुनावी शंखनाद फूंकने वाली है। अबकी बार हरियाणा में चुनाव जीतने की रणनीति गृहमंत्री अमित शाह ने अपने हाथों में ले ली है। वह 29 जून को हरियाणा के कुरूक्षेत्र आ रहे हैं। कुरूक्षेत्र में वह भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक लेंगे। इस बैठक में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर सहित प्रदेश भाजपा की कोर टीम के सदस्य ओपी धनखड़, सुधा यादव, कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला और रामबिलास शर्मा मौजूद रहेंगे। इसके साथ-साथ हरियाणा के सभी मंत्री, विधायक और सांसद बैठक में भाग लेंगे। इतना ही नहीं करीब 2500 से ज्यादा भाजपा कार्यकर्ता इस बैठक में हिस्सा लेंगे। हरियाणा में तीसरी बाद सत्ता तक पहुंचना चाहती है भाजपा हरियाणा में 2014 से ही भाजपा की सरकार है। केंद्र में 2014 को नरेंद्र मोदी के सामान्तर ही हरियाणा में खट्टर सरकार बनी थी। 2019 में भी हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और भाजपा जजपा के सहयोग से सत्ता तक पहुंची। मगर अबकी बार खट्टर सांसद का चुनाव जीतकर केंद्र में मंत्री बन गए हैं और उनकी जगह नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री बन गए। ऐसे में यह चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं है। खट्टर के जाने के बाद भाजपा के पास प्रदेश में कोई बड़ा चेहरा नहीं है। इसलिए चुनाव के रण में उतरने से पहले अमित शाह कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे। भाजपा की राह आसान नहीं 2019 में जहां भाजपा ने लोकसभा में हरियाणा की 10 में से 10 सीटें जीती थीं वहीं बार इस बार लोकसभा में भाजपा 5 सीटें कांग्रेस से हार गई। कांग्रेस लोकसभा चुनावों में मजबूत बनकर उभरी है और हरियाणा की 90 विधानसभा में से कांग्रेस ने गठबंधन में रहते हुए 46 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाकर उभरी वहीं भाजपा 42 विधानसभा सीटों पर आगे रही। ऐसे में भाजपा के सामने इस बार मुकाबला टफ है। इन कारणों से भाजपा के सामने कड़ी चुनौती 1. सत्ता विरोधी लहर : भाजपा हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है। हरियाणा की जनता प्रदेश में बदलाव की ओर देख रही है। हालांकि भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला मगर इसका फायदा लोकसभा चुनाव में नहीं मिला। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जरूर मोदी के नाम के वोट मिले मगर अबकी बार विधानसभा चुनाव की राह कठिन है। 2. जाट और एससी समाज की नाराजगी : भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट और एससी समाज को साधने की है। लोकसभा चुनाव में दोनों समाज ने भाजपा के खिलाफ होकर एकजुट होकर वोट किया। इसका परिणाम था कि जिन विधानसभा में जाट समाज या एससी समाज का प्रभाव है उन विधानसभा में भाजपा की हार हुई है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती दोनों वर्गों को साधने की है। 3. किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना : भाजपा के सामने केंद्र सरकार की योजनाओं को लेकर लोगों में नाराजगी है। केंद्र सरकार की ओर से बनाए तीन कृषि कानून को लेकर काफी लंबा आंदोलन हुआ। इसमें हरियाणा के किसानों ने अग्रणी भूमिका निभाई। हरियाणा सरकार ने किसानों के साथ कई मोर्चों पर जबरदस्ती की और साथ नहीं दिया। इस कारण किसान हरियाणा सरकार से नाराज हो गए। वहीं केंद्र की अग्निवीर योजना से हरियाणा के युवा खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले युवा नाराज हैं। हरियाणा में बड़े स्तर पर युवा आर्मी भर्ती की तैयारी करते हैं। अब यहां पढ़िए लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन 11.06% वोट शेयर घटा हरियाणा में इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को 46.06 वोट प्रतिशत मिले हैं। जबकि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा का 58 प्रतिशत वोट शेयर था। 5 सालों में पार्टी का प्रदेश में 11.06 वोट प्रतिशत घटा है। वहीं, कांग्रेस का वोट शेयर देखें तो इस चुनाव में 43.73% वोट शेयर लेकर भाजपा को कड़ी टक्कर दी है। 2019 में कांग्रेस को सिर्फ 28.42% वोट शेयर मिला था। 5 साल में कांग्रेस के वोट शेयर में 15.31% वोट शेयर की बढ़ोतरी हुई है। रिजर्व सीटों पर BJP का बुरा हाल हरियाणा में कुल 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित हैं। इनमें से मात्र 4 सीटों पर ही BJP को जीत मिली है। वहीं, कांग्रेस को 11, आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए भी बेहतर नतीजे आए हैं। AAP ने 2 सीटों पर लीड ली है। ये दोनों आरक्षित सीटें कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट में आती हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 सीटों में से कांग्रेस ने मुलाना, सढौरा, खरखौदा, कलानौर, झज्जर, बवानीखेड़ा, उकलाना, कालांवाली, रतिया, नरवाना और होडल सीटें जीती हैं। AAP ने शाहाबाद और गुहला चीका, जबकि BJP ने नीलोखेड़ी, इसराना, पटौदी और बावल सीटें जीती हैं। इन मंत्रियों के गढ़ में पिछड़ी पार्टी भाजपा विधायकों के अंबाला शहर से असीम गोयल (परिवहन मंत्री), जगाधरी से कंवरपाल गुर्जर (कृषि मंत्री), पिहोवा से संदीप सिंह (पूर्व खेल मंत्री), कलायत से कमलेश ढांडा (पूर्व मंत्री), आदमपुर से भव्य बिश्नोई, नलवा से रणबीर सिंह गंगवा, बवानीखेड़ा से बिशंबर वाल्मीकि (राज्य मंत्री), फतेहाबाद से दूडाराम, रतिया से लक्ष्मण नापा, लोहारू से जेपी दलाल (कृषि मंत्री), कोसली से लक्ष्मण यादव, हथीन से प्रवीण डागर, होडल से जगदीश नागर के विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार की हार हुई। विधानसभा चुनाव में पुराने फॉर्मूले पर लौटेगी BJP… माइक्रो मैनेजमेंट पर करेगी फोकस विधानसभा चुनाव में हरियाणा भाजपा ‘माइक्रो मैनेजमेंट’ के फॉर्मूले पर चलेगी और बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता के घर तक पहुंचेगी। यानी इस बार भाजपा हरियाणा जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। विपक्ष के लिए ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया जाएगा, जिसे भेदना आसान नहीं होगा। भाजपा ने अपने पहले कार्यक्रम में ही संकेत दिए हैं कि इस बार किसी भी दूसरे दल के लिए भाजपा को टक्कर देना इतना आसान नहीं होगा। जिस तरह केंद्रीय नेताओं ने हर कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री कहा है, उससे साफ है कि इस बार विधानसभा चुनाव में हर कार्यकर्ता को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी। कार्यकर्ताओं को मिलेगी तवज्जो रविवार को हरियाणा दौरे के दौरान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि नेता में जो भी कमी हो, वह कमी 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हरियाणा में परिवारवाद के आगे झुकेगी BJP:3 सांसदों के बेटी-बेटों को टिकट देने की चर्चा; एक साथ कई हलकों को साधने का प्रयास
हरियाणा में परिवारवाद के आगे झुकेगी BJP:3 सांसदों के बेटी-बेटों को टिकट देने की चर्चा; एक साथ कई हलकों को साधने का प्रयास हरियाणा में परिवारवाद के जरिए कांग्रेस को आड़े हाथ लेने वाली बीजेपी (BJP) भी अब उसी राह पर चलने की तैयारी कर रही है। चर्चा है कि भाजपा अपने तीन सांसदों के बेटों व बेटी को विधानसभा चुनाव में टिकट देने की तैयारी में है। इन सांसदों में सबसे ऊपर राव इंद्रजीत का नाम है, वहीं इसके बाद कृष्णपाल गुर्जर व चौ. धर्मबीर सिंह शामिल हैं। सर्वे में भाजपा की हालत पतली होने की रिपोर्ट आने के बाद पार्टी आकाओं के हाथ पैर फूल रहे हैं। इसी के चलते सीएम नायब सैनी काे हर रोज किसी न किसी वर्ग को साधने के लिए लोक लुभावन घोषणाएं करनी पड़ रही है। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए तीन सांसद के बेटे व बेटी को टिकट देने का मन पार्टी हाईकमान ने बना लिया है। भाजपा के फैसले के पीछे ये है रणनीति पार्टी की सोच है कि इससे सांसदों की नाराजगी दूर होगी और वह इन तीन सीट के अलावा आसपास की सीटों पर भी जीत के लिए पसीना बहाएंगे। ये हालात तक हैं जबकि संसद से लेकर सार्वजनिक जगह पर अभी तक बीजेपी नेता खुलकर कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए उसकी घेराबंदी करते आए हैं। अब जब प्रदेश में विधानसभा के तीन माह का समय बचा है और बीजेपी यहां हैट्रिक मारने का सपना संजोए हुए है, तो वह भी अपने मूल सिद्धांतों को त्यागने पर विचार कर रही है। बीजेपी ने प्रदेश में जो सर्व कराया उसकी रिपोर्ट के अनुसार वह दो दर्जन से भी कम सीट पर जीतने की कगार पर है। कार्यकर्ताओं की चल रही मान मनुहार इस रिपोर्ट के बाद चुनाव प्रभारी डॉ. सतीश पूनिया से लेकर पार्टी नेताओं की नींद उड़ गई। अब सभी धरातल पर सक्रिय हो गए हैं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। सर्वे में यह बात भी सामने आई कि कार्यकर्ता भी पार्टी से दूर होते जा रहा है। इसी के चलते अब मान-मनुहार का दौर शुरू हुआ है। इंद्रजीत की बेटी, धर्मबीर के बेटे पर सहमति के आसार
सूत्र बताते हैं कि पार्टी सर्वे से बैचेन बीजेपी के आकाओं ने संघ के बड़े नेताओं से भी विचार-विमर्श किया है। साथ ही उनको प्रदेश में सक्रिय होने की गुहार लगाई है। इसमें इस बात पर भी चर्चा हुई कि जो तीन सांसद अपने बच्चों के लिए टिकट मांग रहे हैं, वह दे दी जाएं। कम से कम यह तीन सीट के चलते सांसद दूसरी सीटों पर भी पसीना बहाएंगे। यदि इनके बच्चों की टिकट काटी गई तो फिर इन तीन के अलावा बाकी सीटों पर भी इसका असर पड़ेगा। इसके चलते राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती एवं सांसद धर्मबीर सिंह के बेटे मोहित के अलावा एक अन्य सांसद के बेटे को भी टिकट देने का मन बीजेपी ने करीब-करीब बना लिया है। केंद्रीय राज्यमंत्री इंद्रजीत खुलकर रहे बैटिंग
केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी आरती को टिकट दिलाने के लिए इस बार आर-पार के मूड में हैं। इसको लेकर वह बीजेपी को भी आंख दिखाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। वहीं आरती ने सार्वजनिक मंच से चुनाव लड़ने का ऐलान ही नहीं बल्कि एक-दो सीट की ओर इशारा भी किया है। यानी बीजेपी पार्टी पर दबाव बनाने के लिए इंद्रजीत व आरती सार्वजनिक मंच पर कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे हैं। उनके आत्मविश्वास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह टिकट के लिए केंद्रीय चुनाव समिति का इंतजार नहीं कर रहे और अटेली, बादशाहपुर से चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोंक रहे हैं।
हरियाणा CMO में दिखेंगे कई नए चेहरे:2 पूर्व मंत्री भी लाइन में; खट्टर के करीबियों से दूरी बनाएंगे सैनी, अफसरों में 2 चेहरे रिपीट होंगे
हरियाणा CMO में दिखेंगे कई नए चेहरे:2 पूर्व मंत्री भी लाइन में; खट्टर के करीबियों से दूरी बनाएंगे सैनी, अफसरों में 2 चेहरे रिपीट होंगे हरियाणा मुख्यमंत्री नायब सैनी के चीफ मिनिस्टर ऑफिस (CMO) में कई नए चेहरे दिखाई देंगे। इस बार CMO में आने के लिए 2 पूर्व राज्यमंत्री भी लाइन में लगे हुए हैं। CMO के गठन में सबसे अहम बात यह होगी कि इस बार सीएमओ में पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के करीबी नहीं दिखाई देंगे। हालांकि पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के करीबी माने जाने वाले 2 सीनियर आईएएस ऑफिसर के रिपीट होने के पूरे आसार बने हुए हैं। सीएमओ का गठन दिल्ली से मंजूरी के बाद ही होगा। सरकार के विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि 13 नवंबर से शुरू होने वाले विधानसभा सेशन से पहले सीएमओ का गठन हो जाएगा। कैसा होगा हरियाणा CMO का स्ट्रक्चर… CPS होता है CMO का बिग बॉस
सीएमओ का बॉस मुख्यमंत्री का मुख्य प्रधान सचिव होता है। वर्तमान में इस पद पर रिटायर्ड आईएएस राजेश खुल्लर कार्यरत हैं। हाल ही में उनकी नियुक्ति को लेकर आदेश जारी हुए हैं। हालांकि उनकी नियुक्ति को लेकर काफी विवाद भी हुआ है। पहले आदेश में उन्हें कैबिनेट रैंक का दर्जा दिया गया था, जिसके बाद विरोध के चलते आदेश रोक दिया गया था। फिर से नए आदेश जारी किए गए। एक पीएस, 2 एपीएस भी टीम का अहम हिस्सा
हरियाणा सीएमओ में एक प्रिंसिपल सेक्रेटरी (पीएस) और दो एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी (APS) भी नियुक्त हैं। सीनियर आईएएस वी उमाशंकर अभी तक पीएस के पद पर कार्यरत थे, अब वे केंद्र में डेपुटेशन पर चले गए हैं। जिसके बाद अब इस पद के लिए तीन सीनियर आईएएस अफसरों के नाम पर विचार किया जा रहा है। इसके बाद अब इस पोस्ट के लिए तीन सीनियर आईएएस ऑफिसर के नाम चल रहे हैं। आईएएस अरूण गुप्ता, विजेंद्ररा कुमार और एके सिंह का नाम इस पोस्ट के लिए चर्चा में है। 2 एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी टू सीएम (APS) भी नियुक्त होंगे। अभी सीनियर आईएएस डॉ. अमित अग्रवाल और आशिमा बराड़ ये जिम्मेदारी देख रहे हैं। हालांकि अभी इनको रिपीट करने की संभावनाएं ज्यादा हैं। नए चेहरों को भी मौका मिल सकता है। 3 OSD बनाए जाएंगे
हरियाणा सीएमओ में 3 से लेकर 4 तक स्पेशल ऑफिसर आन ड्यूटी (OSD) बनाए जाते हैं। इसमें पहला सीएम हाउस (OSD) इसके अलावा ओएसडी ट्रांसफर भी बनाया जाता है। इसके अलावा 2 और ओएसडी भी बनाए जा सकते हैं। हालांकि इस पर अंतिम फैसला मुख्यमंत्री के द्वारा ही किया जाता है। खट्टर के कार्यकाल में हुई सीएम विंडो की शुरुआत
हरियाणा में सीएम विंडो का काम शिकायतों का निवारण और निगरानी करना है। यह एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो 25 दिसंबर, 2014 से लागू है। मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल के दौरान इसकी शुरुआत हुई थी। तब से लेकर अब तक ये कार्यक्रम जारी है। मनोहर लाल खट्टर के बाद नायब सैनी के कार्यकाल में इसका काम भूपेश्वर दयाल देख रहे थे। हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले उनकी इस पद से छुट्टी कर दी गई थी। जिसके बाद से एचसीएस अफसर विवेक कालिया इसकी जिम्मेदारी देख रहे हैं। पॉलिटिकल एडवाइजर के लिए 2 पूर्व मंत्री के नाम
हरियाणा सीएमओ में एक पॉलिटिकल एडवाइजर की नियुक्ति की जाती है। अभी इस पद पर भारत भूषण भारती हैं। हालांकि अब सैनी सरकार के सेकेंड टर्म में दो पूर्व मंत्री लॉबिंग करने में जुटे हुए हैं। इनमें पहला नाम थानेसर से चुनाव हार चुके सुभाष सुधा का है। वहीं दूसरा नाम अंबाला सिटी से विधानसभा चुनाव हारे असीम गोयल का नाम शामिल है। जबकि मीडिया एडवाइजर के लिए चंडीगढ़ के लिए प्रवीण अत्रैय और अशोक छाबड़ा लॉबिंग कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि सीएम सैनी इस पोस्ट के लिए पवन सैनी और तुषार को रखने की वकालत कर रहे हैं। वहीं दिल्ली के लिए अलग से एक मीडिया एडवाइजर रखा जाएगा। ये खबर भी पढ़ें- हरियाणा चुनाव हारे 53 नेता दिल्ली तलब,राहुल गांधी के करीबी बघेल ने मीटिंग बुलाई; हार से जुड़े 4 तरह के सबूत मंगवाए हरियाणा में कांग्रेस हार के मंथन के साथ-साथ हार के सबूत भी तलाश रही है। इसके लिए आज (9 नवंबर) को दिल्ली में कांग्रेस की हार के कारण जानने के लिए बनाई गई 8 मेंबरी कमेटी की मीटिंग होगी। बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष उदयभान और हरियाणा कांग्रेस सह प्रभारी जितेंद्र बघेल करेंगे। पूरी खबर पढ़ें