केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में नेशनल कॉन्फ्रेंस:भारतीय ज्ञान परंपरा पर हो रहा मंथन, एक साल का PG कोर्स शुरू करने पर बनी सहमति

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में नेशनल कॉन्फ्रेंस:भारतीय ज्ञान परंपरा पर हो रहा मंथन, एक साल का PG कोर्स शुरू करने पर बनी सहमति

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में इंडियन नॉलेज सिस्टम पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन हो रहा। इस दौरान देशभर के कई एक्सपर्ट एकेडमिक विषयों पर मंथन कर रहे हैं। इस दौरान सभी कैंपस में 4 ईयर UG और वन ईयर पीजी कोर्स चलाने पर भी सहमति बनी। उद्घाटन सत्र में शामिल होने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण डीन प्रो.रंजन त्रिपाठी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। भारतीय ज्ञान परंपरा आज भी प्रासंगिक प्रो.रंजन त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा न केवल प्राचीन काल में बल्कि आज भी विज्ञान, चिकित्सा, गणित और अन्य क्षेत्रों में अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। भारत के मनीषियों का योगदान आने वाले समय में भी अमूल्य रहेगा। भारतीय ज्ञान की यह परंपरा हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। आधुनिकता और प्राचीनता का होगा समागम वर्कशॉप की अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि आज भारत में है और विश्व के प्रत्येक विषय को देखने के लिए भारतीय दृष्टि आवश्यक है। भारतीय ज्ञान परंपरा एकत्व का भाव समाहित करती है और इसमें समन्वय की शक्ति है। आधुनिकता के साथ समन्वय कर शास्त्रों को समाज में पुनर्स्थापित करना आवश्यक है। भारतीय दर्शन पर भी हो रहा चर्चा कार्यशाला के संयोजक डॉ.डी.दयानाथ ने बताया कि इस राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित विषयों पर गहन विमर्श करना है। भारत सदियों से ज्ञान का पर्याय रहा है, और भारतीय दर्शन, विज्ञान, गणित, साहित्य और अध्यात्म ने विश्व में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया हैं। वेद, वेदांग और वांग्मय पर हो रहा मंथन लखनऊ कैंपस के निदेशक प्रो.सर्व नारायण झा ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा अखंड भारत की अवधारणा को दर्शाती हैं। जिसमें वेद, वेदांग, पुराण, वास्तुशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र अमूल्य ज्ञान के स्रोत हैं। वैदिक काल से ही भारतीय संस्कृति ज्ञान का केंद्र रही है और अपनी संस्कृति का ज्ञान होना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, क्योंकि संस्कृति से ही व्यक्ति की पहचान होती है। कार्यशाला में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों और आदर्श महाविद्यालयों के प्राध्यापक प्रतिभागी के रूप में भाग ले रहे हैं। इस दौरान एक साल का पीजी और 4 साल का यूजी कोर्स शुरू करने पर सहमति बनी। ये रहे शामिल डॉ. नवीन भट्ट (चाणक्य विश्वविद्यालय, बेंगलुरु), डॉ.मुनीत धीमान (बेंगलुरु), डॉ.साई सुसरल (एमआईटी, पुणे), डॉ.गिरीश भट्ट (तिरुपति), डॉ.जे. श्रीनिवास (हैदराबाद), डॉ. केतु रामचंद्रशेखरन, डॉ. शिवकुमार (इंडिका), डॉ. गंटी एस. मूर्ति (आईकेएस डिवीजन, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार), डॉ. वी. आदिनारायण, डॉ. वरलक्ष्मी,तमिलनाडु, डॉ. राघवकृष्ण (वृहत फाउंडेशन), प्रो. सर्व नारायण झा (लखनऊ), प्रो. भागीरथी नंद (दिल्ली) सहित कई विद्वान शामिल है। विश्वविद्यालय के डीन एकेडमिक प्रो. मदनमोहन झा ने अतिथियों का स्वागत किया।धन्यवाद ज्ञापन प्रो. कुलदीप शर्मा ने किया।सत्र का संचालन डॉ. पवन व्यास ने किया। इस अवसर पर प्रो. काशीनाथ न्योपाने (शोध एवं प्रकाशन विभाग के निदेशक), प्रो. मधुकेश्वर भट्ट,डॉ जी सूर्यप्रसाद, डॉ.अमृता कौर, डॉ.यशवंत त्रिवेदी,डॉ. प्रसाद भट्ट डॉ दीपिका, सहित सभी प्रतिभागी और शोध छात्र उपस्थित रहे। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में इंडियन नॉलेज सिस्टम पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन हो रहा। इस दौरान देशभर के कई एक्सपर्ट एकेडमिक विषयों पर मंथन कर रहे हैं। इस दौरान सभी कैंपस में 4 ईयर UG और वन ईयर पीजी कोर्स चलाने पर भी सहमति बनी। उद्घाटन सत्र में शामिल होने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण डीन प्रो.रंजन त्रिपाठी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। भारतीय ज्ञान परंपरा आज भी प्रासंगिक प्रो.रंजन त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा न केवल प्राचीन काल में बल्कि आज भी विज्ञान, चिकित्सा, गणित और अन्य क्षेत्रों में अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। भारत के मनीषियों का योगदान आने वाले समय में भी अमूल्य रहेगा। भारतीय ज्ञान की यह परंपरा हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। आधुनिकता और प्राचीनता का होगा समागम वर्कशॉप की अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि आज भारत में है और विश्व के प्रत्येक विषय को देखने के लिए भारतीय दृष्टि आवश्यक है। भारतीय ज्ञान परंपरा एकत्व का भाव समाहित करती है और इसमें समन्वय की शक्ति है। आधुनिकता के साथ समन्वय कर शास्त्रों को समाज में पुनर्स्थापित करना आवश्यक है। भारतीय दर्शन पर भी हो रहा चर्चा कार्यशाला के संयोजक डॉ.डी.दयानाथ ने बताया कि इस राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित विषयों पर गहन विमर्श करना है। भारत सदियों से ज्ञान का पर्याय रहा है, और भारतीय दर्शन, विज्ञान, गणित, साहित्य और अध्यात्म ने विश्व में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया हैं। वेद, वेदांग और वांग्मय पर हो रहा मंथन लखनऊ कैंपस के निदेशक प्रो.सर्व नारायण झा ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा अखंड भारत की अवधारणा को दर्शाती हैं। जिसमें वेद, वेदांग, पुराण, वास्तुशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र अमूल्य ज्ञान के स्रोत हैं। वैदिक काल से ही भारतीय संस्कृति ज्ञान का केंद्र रही है और अपनी संस्कृति का ज्ञान होना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, क्योंकि संस्कृति से ही व्यक्ति की पहचान होती है। कार्यशाला में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों और आदर्श महाविद्यालयों के प्राध्यापक प्रतिभागी के रूप में भाग ले रहे हैं। इस दौरान एक साल का पीजी और 4 साल का यूजी कोर्स शुरू करने पर सहमति बनी। ये रहे शामिल डॉ. नवीन भट्ट (चाणक्य विश्वविद्यालय, बेंगलुरु), डॉ.मुनीत धीमान (बेंगलुरु), डॉ.साई सुसरल (एमआईटी, पुणे), डॉ.गिरीश भट्ट (तिरुपति), डॉ.जे. श्रीनिवास (हैदराबाद), डॉ. केतु रामचंद्रशेखरन, डॉ. शिवकुमार (इंडिका), डॉ. गंटी एस. मूर्ति (आईकेएस डिवीजन, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार), डॉ. वी. आदिनारायण, डॉ. वरलक्ष्मी,तमिलनाडु, डॉ. राघवकृष्ण (वृहत फाउंडेशन), प्रो. सर्व नारायण झा (लखनऊ), प्रो. भागीरथी नंद (दिल्ली) सहित कई विद्वान शामिल है। विश्वविद्यालय के डीन एकेडमिक प्रो. मदनमोहन झा ने अतिथियों का स्वागत किया।धन्यवाद ज्ञापन प्रो. कुलदीप शर्मा ने किया।सत्र का संचालन डॉ. पवन व्यास ने किया। इस अवसर पर प्रो. काशीनाथ न्योपाने (शोध एवं प्रकाशन विभाग के निदेशक), प्रो. मधुकेश्वर भट्ट,डॉ जी सूर्यप्रसाद, डॉ.अमृता कौर, डॉ.यशवंत त्रिवेदी,डॉ. प्रसाद भट्ट डॉ दीपिका, सहित सभी प्रतिभागी और शोध छात्र उपस्थित रहे।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर