केजरीवाल की हार से यूपी के गठबंधन में रार:रामगोपाल बोले-कांग्रेस ने AAP को हराया, पलटवार- गांधी और गोडसे के वारिसों को चुनना होगा

केजरीवाल की हार से यूपी के गठबंधन में रार:रामगोपाल बोले-कांग्रेस ने AAP को हराया, पलटवार- गांधी और गोडसे के वारिसों को चुनना होगा

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सत्ता से बेदखल होने के बाद सपा और कांग्रेस के नेता आमने-सामने आ गए। सपा का कहना है कि दिल्ली में कांग्रेस ने भाजपा को जिताने का काम किया है, भाजपा को ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि सपा ने आरक्षण विरोधी केजरीवाल को समर्थन देकर गलत किया। उसे सैद्धांतिक मुद्दों पर असमंजस की रणनीति को छोड़ना होगा। कांग्रेस के कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि यूपी में क्षेत्रीय दल के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। अब पढ़िए दोनों पार्टी के नेताओं ने क्या कुछ कहा… आप की हार पर सपा के प्रमुख महासचिव राम गोपाल यादव ने कहा- दिल्ली में केजरीवाल की हार कांग्रेस के कारण हुई है। कांग्रेस ने भाजपा को जिताने और आम आदमी पार्टी को हराने में मदद की। यहां कम से कम 14 सीटों पर आप के प्रत्याशी की हार का मार्जिन कांग्रेस प्रत्याशी को मिले वोटों से कम रहा। गांधी और गोडसे की वारिस पार्टियों के बीच अपना पक्ष चुनना होगा
कांग्रेस के सचिव शाहनवाज आलम का कहना है कि केजरीवाल की हार के बाद विचारहीन राजनीतिक दलों को सैद्धांतिक मुद्दों पर अपना स्टैंड क्लियर करना होगा। अब उन्हें खुलकर गांधी और गोडसे की वारिस पार्टियों के बीच अपना पक्ष चुनना होगा। इससे कांग्रेस के फिर से सत्ता में आने का रास्ता खुलेगा। एक कार्यक्रम में शहनवाज आलम ने कहा कि आम आदमी पार्टी आरएसएस ने बनवाई थी। इसका मकसद कथित गैरराजनीतिक व्यक्तियों और संगठनों द्वारा कांग्रेस को बदनाम करवाना था। क्योंकि आरएसएस और भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जो खुद मनमोहन सिंह को चुनौती दे सके। सपा पर भी बोला हमला
शाहनवाज आलम ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भी एक विपक्षी पार्टी के वोटर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ थे, जबकि 2017 में अपनी पार्टी के साथ थे। समर्थकों की इसी चारित्रिक समानता के कारण इस क्षेत्रीय दल के नेता इस बार भी केजरीवाल का समर्थन करने दिल्ली तक गए थे। केजरीवाल घोषित तौर पर आरक्षण और जातिगत जनगणना के विरोधी रहे हैं, जबकि उनके समर्थन में खड़ी पार्टी आरक्षण समर्थक होने का दावा करती रही है। यानी वो सिर्फ इसलिए दिल्ली में केजरीवाल के साथ थी कि कांग्रेस को किसी भी तरह उभरने से रोक सके। क्षेत्रीय दलों को साफ रखना होगा अपना स्टैंड
अब आम आदमी पार्टी के पतन के बाद सपा, बसपा, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी को यूनिफॉर्म सिविल कोड, वक्फ, पूजा स्थल अधिनियम जैसे सैद्धांतिक मुद्दों पर अपना स्टैंड साफ रखना होगा। दिल्ली और यूपी की परिस्थितियां अलग
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं कि आम आदमी पार्टी का उदय ही कांग्रेस की खिलाफत करके हुआ था। यही वजह थी कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव 2024 में जब भाजपा के खिलाफ यह दोनों दल साथ आए तो जमीन पर कार्यकर्ता आपस में नहीं जुड़ सके। इसी तरह दूसरे राज्यों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश की। पंजाब की सत्ता कांग्रेस से छीनी। हरियाणा में कांग्रेस की हार की वजह कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी ही रही। 2019 के गुजरात चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। ऐसे में इन दोनों के बीच लोकसभा में गठबंधन हुआ हो, लेकिन इनके गठबंधन के सफल होने की संभावना कम ही होती है। जहां तक यूपी का सवाल है, तो यहां की परिस्थितियां अलग हैं। जब सपा का उदय हुआ उस समय भाजपा सत्ता में थी। सपा का यहां सीधा मुकाबला कांग्रेस से कभी नहीं रहा। केंद्र में भी जब कांग्रेस की सरकार रही उस समय सपा का साफ्ट कार्नर कांग्रेस के साथ रहा। अखिलेश ने दिल्ली में दिया था आम आदमी पार्टी का साथ
अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्षधर हैं। उन्होंने हाल ही में लोकसभा में भी कहा था कि हम कांग्रेस के साथ हैं और अगर जातीय जनगणना का मामला कांग्रेस लेकर आएगी तो हम उससे एक कदम आगे ही रहेंगे पीछे नहीं रहेंगे। वह दिल्ली के चुनाव को लेकर भी कहते रहे हैं कि वह आम आदमी पार्टी का समर्थन जरूर कर रहे हैं लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वे कांग्रेस के विरोध में हैं। वहीं कांग्रेस के एक अन्य नेता इमरान मसूद ने भी सपा के साथ विधानसभा के चुनाव में गठबंधन को लेकर कहा था कि लोकसभा में 80 में 17 वाला फॉर्मूला विधानसभा के चुनाव तक नहीं चलेगा। कांग्रेस को 200 सीटें मिलेंगी तभी समझौता होगा। हालांकि यह कहा जा रहा है कि राहुल और अखिलेश की ट्यूनिंग अच्छी है, इसलिए निचले क्रम के नेताओं के बयानों से कुछ नहीं होगा। होगा वही जो अखिलेश और राहुल चाहेंगे। —————- ये खबर भी पढ़ें… दिल्ली में मायावती की सभी 68 सीटों पर जमानत जब्त:42 पर नोटा से भी कम वोट मिले, चंद्रशेखर भी फेल; ओवैसी ने 2 सीटों पर दी टक्कर हरियाणा चुनाव के बाद अब दिल्ली के चुनाव में बसपा जीरो पर रही। लगातार फ्लॉप हो रही पार्टी का परफार्मेंस इस बार AIMIM से भी नीचे चला गया। बसपा ने यहां 68 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे 0.58% वोट मिले। बसपा के मुकाबले आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लेमीन यानी AIMIM को 0.78% वोट मिले। जबकि ओवैसी ने केवल 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पढ़ें पूरी खबर… दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सत्ता से बेदखल होने के बाद सपा और कांग्रेस के नेता आमने-सामने आ गए। सपा का कहना है कि दिल्ली में कांग्रेस ने भाजपा को जिताने का काम किया है, भाजपा को ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि सपा ने आरक्षण विरोधी केजरीवाल को समर्थन देकर गलत किया। उसे सैद्धांतिक मुद्दों पर असमंजस की रणनीति को छोड़ना होगा। कांग्रेस के कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि यूपी में क्षेत्रीय दल के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। अब पढ़िए दोनों पार्टी के नेताओं ने क्या कुछ कहा… आप की हार पर सपा के प्रमुख महासचिव राम गोपाल यादव ने कहा- दिल्ली में केजरीवाल की हार कांग्रेस के कारण हुई है। कांग्रेस ने भाजपा को जिताने और आम आदमी पार्टी को हराने में मदद की। यहां कम से कम 14 सीटों पर आप के प्रत्याशी की हार का मार्जिन कांग्रेस प्रत्याशी को मिले वोटों से कम रहा। गांधी और गोडसे की वारिस पार्टियों के बीच अपना पक्ष चुनना होगा
कांग्रेस के सचिव शाहनवाज आलम का कहना है कि केजरीवाल की हार के बाद विचारहीन राजनीतिक दलों को सैद्धांतिक मुद्दों पर अपना स्टैंड क्लियर करना होगा। अब उन्हें खुलकर गांधी और गोडसे की वारिस पार्टियों के बीच अपना पक्ष चुनना होगा। इससे कांग्रेस के फिर से सत्ता में आने का रास्ता खुलेगा। एक कार्यक्रम में शहनवाज आलम ने कहा कि आम आदमी पार्टी आरएसएस ने बनवाई थी। इसका मकसद कथित गैरराजनीतिक व्यक्तियों और संगठनों द्वारा कांग्रेस को बदनाम करवाना था। क्योंकि आरएसएस और भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जो खुद मनमोहन सिंह को चुनौती दे सके। सपा पर भी बोला हमला
शाहनवाज आलम ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भी एक विपक्षी पार्टी के वोटर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ थे, जबकि 2017 में अपनी पार्टी के साथ थे। समर्थकों की इसी चारित्रिक समानता के कारण इस क्षेत्रीय दल के नेता इस बार भी केजरीवाल का समर्थन करने दिल्ली तक गए थे। केजरीवाल घोषित तौर पर आरक्षण और जातिगत जनगणना के विरोधी रहे हैं, जबकि उनके समर्थन में खड़ी पार्टी आरक्षण समर्थक होने का दावा करती रही है। यानी वो सिर्फ इसलिए दिल्ली में केजरीवाल के साथ थी कि कांग्रेस को किसी भी तरह उभरने से रोक सके। क्षेत्रीय दलों को साफ रखना होगा अपना स्टैंड
अब आम आदमी पार्टी के पतन के बाद सपा, बसपा, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी को यूनिफॉर्म सिविल कोड, वक्फ, पूजा स्थल अधिनियम जैसे सैद्धांतिक मुद्दों पर अपना स्टैंड साफ रखना होगा। दिल्ली और यूपी की परिस्थितियां अलग
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं कि आम आदमी पार्टी का उदय ही कांग्रेस की खिलाफत करके हुआ था। यही वजह थी कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव 2024 में जब भाजपा के खिलाफ यह दोनों दल साथ आए तो जमीन पर कार्यकर्ता आपस में नहीं जुड़ सके। इसी तरह दूसरे राज्यों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश की। पंजाब की सत्ता कांग्रेस से छीनी। हरियाणा में कांग्रेस की हार की वजह कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी ही रही। 2019 के गुजरात चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। ऐसे में इन दोनों के बीच लोकसभा में गठबंधन हुआ हो, लेकिन इनके गठबंधन के सफल होने की संभावना कम ही होती है। जहां तक यूपी का सवाल है, तो यहां की परिस्थितियां अलग हैं। जब सपा का उदय हुआ उस समय भाजपा सत्ता में थी। सपा का यहां सीधा मुकाबला कांग्रेस से कभी नहीं रहा। केंद्र में भी जब कांग्रेस की सरकार रही उस समय सपा का साफ्ट कार्नर कांग्रेस के साथ रहा। अखिलेश ने दिल्ली में दिया था आम आदमी पार्टी का साथ
अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्षधर हैं। उन्होंने हाल ही में लोकसभा में भी कहा था कि हम कांग्रेस के साथ हैं और अगर जातीय जनगणना का मामला कांग्रेस लेकर आएगी तो हम उससे एक कदम आगे ही रहेंगे पीछे नहीं रहेंगे। वह दिल्ली के चुनाव को लेकर भी कहते रहे हैं कि वह आम आदमी पार्टी का समर्थन जरूर कर रहे हैं लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वे कांग्रेस के विरोध में हैं। वहीं कांग्रेस के एक अन्य नेता इमरान मसूद ने भी सपा के साथ विधानसभा के चुनाव में गठबंधन को लेकर कहा था कि लोकसभा में 80 में 17 वाला फॉर्मूला विधानसभा के चुनाव तक नहीं चलेगा। कांग्रेस को 200 सीटें मिलेंगी तभी समझौता होगा। हालांकि यह कहा जा रहा है कि राहुल और अखिलेश की ट्यूनिंग अच्छी है, इसलिए निचले क्रम के नेताओं के बयानों से कुछ नहीं होगा। होगा वही जो अखिलेश और राहुल चाहेंगे। —————- ये खबर भी पढ़ें… दिल्ली में मायावती की सभी 68 सीटों पर जमानत जब्त:42 पर नोटा से भी कम वोट मिले, चंद्रशेखर भी फेल; ओवैसी ने 2 सीटों पर दी टक्कर हरियाणा चुनाव के बाद अब दिल्ली के चुनाव में बसपा जीरो पर रही। लगातार फ्लॉप हो रही पार्टी का परफार्मेंस इस बार AIMIM से भी नीचे चला गया। बसपा ने यहां 68 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे 0.58% वोट मिले। बसपा के मुकाबले आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लेमीन यानी AIMIM को 0.78% वोट मिले। जबकि ओवैसी ने केवल 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर