क्या छगन भुजबल छोड़ेंगे अजित पवार का साथ? नाराज BJP नेता सुधीर मुनगंटीवार ने नितिन गडकरी से की मुलाकात क्या छगन भुजबल छोड़ेंगे अजित पवार का साथ? नाराज BJP नेता सुधीर मुनगंटीवार ने नितिन गडकरी से की मुलाकात महाराष्ट्र MP विधानसभा में हाथ में कटोरा लेकर पहुंचे कांग्रेस के विधायक, सरकार से मांगा कर्ज का हिसाब
Related Posts
UP का हाशिमपुरा नरसंहार,10 दोषियों को SC से जमानत:PAC जवानों ने 1987 में 38 मुस्लिमों को गोली मारी थी; 31 साल बाद सजा, 6 साल में बेल
UP का हाशिमपुरा नरसंहार,10 दोषियों को SC से जमानत:PAC जवानों ने 1987 में 38 मुस्लिमों को गोली मारी थी; 31 साल बाद सजा, 6 साल में बेल सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 10 दोषियों को जमानत दे दी। मामला साल 1987 का है। UP के प्रॉविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टब्युलरी (PAC) के अफसरों और जवानों ने 42 से 45 लोगों को गोली मारी थी। इसमें 38 लोगों की मौत हुई थी। न्यूज वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने पेश सीनियर एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने दलील दी कि दिल्ली हाईकोर्ट ने गलत तथ्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा था। ट्रायल कोर्ट ने घटना के करीब 28 साल बाद 2015 में फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया था। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में 16 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। एडवोकेट तिवारी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन सभी 2018 से जेल में हैं। इस वजह से उन्हें जमानत दी जाए। क्या है हाशिमपुरा नरसंहार
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार साल 1987 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सांप्रदायिक तनाव चल रहा था। इसे लेकर PAC और सेना ने शहर के हाशिमपुरा इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया। इस दौरान PAC की दो राइफलें लूट ली गईं और एक मेजर के रिश्तेदार की हत्या कर दी गई। इसके बाद PAC ने करीब 42-45 जवान और बूढ़े लोगों को पकड़ा और उन्हें 41वीं बटालियन की सी-कंपनी के पीले रंग के ट्रक में भरकर ले गए। हालांकि, उन्हें थाने ले जाने के बजाय गाजियाबाद के पास एक नहर पर ले जाया गया। वहां PAC जवानों ने उन लोगों को गोली मार दी। कुछ शवों को गंग नहर में और बाकी को हिंडन नदी में फेंक दिया। इसमें 38 लोग मारे गए। ज्यादातर के शव तक नहीं मिले। सिर्फ 11 शवों की पहचान उनके रिश्तेदारों ने की। हालांकि, पांच लोग बच गए। गोलीबारी के दौरान उन्होंने मरने का नाटक किया और पानी से तैरकर निकल गए। मामले को उनकी गवाही को आधार पर बनाया गया। 9 साल बाद चार्जशीट दायर हुई
घटना ने अल्पसंख्यकों को हिलाकर रख दिया। मामले की जांच CB-CID (क्राइम ब्रांच-क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट) को सौंपी गई। इस वीभत्स घटना के करीब 9 साल बाद 1996 में गाजियाबाद की क्रिमिनल कोर्ट में चार्जशीट दायर हुई। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश से पता चलता है कि गाजियाबाद कोर्ट ने तीन साल में 20 से ज्यादा वारंट जारी किए, लेकिन सभी बेनतीजा रहे। कुछ समय बाद पीड़ितों के परिवारों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामला दिल्ली ट्रांसफर कर दिया। सबूतों के चलते ट्रायल कोर्ट से सभी आरोपी बरी
मई, 2006 में दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने हत्या, आपराधिक साजिश, अपहरण, सबूत मिटाने और दंगा करने के अलावा अन्य मामलों में 19 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। हालांकि, लापरवाही यहां खत्म नहीं हुई। आरोपियों के बयान करीब 8 साल बाद मई, 2014 में दर्ज हुए। इस दौरान तीन आरोपियों की मौत भी हो गई। अगले साल, यानी 2015 में बाकी बचे सभी 16 आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हत्या से आरोपियों को जोड़ने के लिए जरूरी सबूत गायब थे। 31 साल बाद मिला इंसाफ, सभी को उम्रकैद
ट्रायल कोर्ट के फैसले को पीड़ितों और उनके परिवारों ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। आगे की जांच के लिए कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को हस्तक्षेप करने की मंजूरी दी। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त सबूत जोड़ने की भी अनुमति दी। हाईकोर्ट ने सभी को IPC की धारा 302 (हत्या), 364 (अपहरण), 201 (सबूत मिटाने), 120-B (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी माना। घटना के करीब 31 साल बाद 31 अक्टूबर, 2018 हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 16 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि, दोषी साबित होने के बाद सभी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जो लंबित है। हाईकोर्ट बोला- अल्पसंख्यकों की टारगेट किलिंग हुई
हाईकोर्ट ने हाशिमपुरा नरसंहार को मर्डर इन कस्टडी (हिरासत में हत्या) माना। कोर्ट ने कहा- यह अल्पसंख्यकों की टारगेट किलिंग थी। यह पीड़ितों के लिए लंबी और कठिन लड़ाई रही। उत्तर प्रदेश की CB-CID ने अपनी रिपोर्ट में PAC के 66 जवानों को दोषी ठहराया था। ——————————————————– ये खबरें भी पढ़ें… नई मस्जिद बनाने के पैसे नहीं; ट्रस्ट बोला- लोग अब मस्जिद भूल गए 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया। हिंदू-मुस्लिम पक्ष को अपने-अपने धार्मिक स्थल बनाने के लिए जमीनें मिलीं। ‘राम मंदिर’ के नाम पर चुनाव लड़े गए। मंदिर बना और इसका भव्य उद्घाटन पूरी दुनिया ने देखा, लेकिन मस्जिद की अब तक नींव भी नहीं खोदी गई है। पूरी खबर पढ़ें… बाबरी विध्वंस देखा सबने लेकिन सजा किसी को नहीं, 32 साल गुजरे 3 दिसंबर, 1992, शाम करीब साढ़े 4 बजे का वक्त था। कुछ पत्रकार अयोध्या में बाबरी मस्जिद के करीब बने मंच के पास पहुंचे। वहां ट्यूबवेल लगा हुआ था। कारसेवक पाइपलाइन बिछाने के लिए गड्ढा खोद रहे थे। जहां कारसेवा होनी थी, वहां तक पानी पहुंचाना था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा रखा था। पूरी खबर पढ़ें…
सोनीपत में बिजली करंट से झुलसा युवक,VIDEO:मीटर से कर रहा था छेड़छाड़; अचानक लगी आग, निगम को खराबी की नहीं थी शिकायत
सोनीपत में बिजली करंट से झुलसा युवक,VIDEO:मीटर से कर रहा था छेड़छाड़; अचानक लगी आग, निगम को खराबी की नहीं थी शिकायत हरियाणा के सोनीपत में शनिवार को एक युवक बिजली करंट की चपेट में आने से बुरी तरह से झुलस गया। हादसा बिजली का मीटर ठीक करते हुए हुआ। इस मीटर में आग लग गई। मौके पर लोगों की भीड़ लग गई और युवक काे नजदीकी अस्पताल पहुंचाया गया। बिजली निगम हादसे को लेकर जांच करेगा। जानकारी के अनुसार सोनीपत में आईटीआई चौक के पास शनिवार को एक युवक बिजली मीटर से छेड़छाड़ कर रहा था। अचानक से कोई तार टच हो गया और उसे करंट का जोरदार झटका लगा। करंट लगने से युवक झुलस गया। मीटर में आग लग गई। धुआं उठता देख लोग भी एकत्रित हो गए। बिजली निगम के एसडीओ विक्की गहलावत ने बताया कि आईटीआई चौक के नजदीक टावर लगा हुआ है। टावर के मीटर में छेड़खानी करते हुए युवक को करंट लगा है। खराब मीटर की कोई भी शिकायत दर्ज नहीं हुई। मीटर में आग लग गई थी, जिससे मीटर चल गया।बिजली निगम हादसे को लेकर छानबीन करेगा।
बहादुरगढ़ में BJP केंडिडेट का विरोध:सगे भाई ने दिनेश को कहा अंहकारी, फूट-फूट कर रोए पूर्व विधायक नरेश कौशिक
बहादुरगढ़ में BJP केंडिडेट का विरोध:सगे भाई ने दिनेश को कहा अंहकारी, फूट-फूट कर रोए पूर्व विधायक नरेश कौशिक हरियाणा की बहादुरगढ़ सीट से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार दिनेश कौशिक का विरोध शुरू हो गया है। कौशिक का विरोध किसी और ने नहीं, बल्कि उनके ही सगे बड़े भाई नरेश कौशिक ने किया है। नरेश का आरोप है कि उनका छोटा भाई अहंकारी है। उन्होंने कहा, ‘टिकट मिले हुए उसे 3 दिन हो गए, लेकिन उसने आज तक मुझे एक कॉल तक करना ठीक नहीं समझा। भले ही हमारे बीच मतभेद रहे हैं, लेकिन मैंने कभी अपने भाई के खिलाफ कुछ नहीं बोला। उल्टा वह मेरे खिलाफ लगातार गलत बयानबाजी करता रहा।’ नरेश ने फूट-फूटकर रोते हुए कहा, ‘मेरे परिवार में बेटी (दिनेश की बेटी) की शादी थी, लेकिन इस आदमी (दिनेश कौशिक) ने मुझे उस शादी तक में शामिल नहीं होने दिया। वह बहुत बड़ा अहंकारी है। मेरे परिवार को साजिश के तहत तोड़ा गया।’ शुक्रवार को नरेश कौशिक ने बहादुरगढ़ शहर में अपने समर्थकों के साथ बैठक की। इस दौरान उन्होंने बगैर नाम लिए ओमप्रकाश धनखड़ पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने उनके परिवार में ही फूट डाल दी। पूर्व विधायक नरेश कौशिक ने कहा इस परिस्थिति में पार्टी के कैंडिडेट का समर्थन कैसे संभव है? जो उनके पास एक कॉल तक नहीं कर सकता। मेरे साथ साजिश रची गई। मेरे घर को लूटने काम किया गया। मेरे परिवार को लूटने का काम किया गया। मेरी राजनीति को खत्म करने की कोशिश की गई। इसलिए मैंने पार्टी को कहा- ये फैसला बदलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हम चुनाव लड़ेंगे तो कमल के फूल पर लड़ेंगे। मैंने हमेशा पार्टी हित के लिए काम किया है। मैंने उन लोगों के खिलाफ आवाज उठाई जो लोग कहते थे वोट डालकर दिखा देना। हमने दो बार दीपेंद्र हुड्डा को यहां से हराने का काम किया। मुझे दुख इस बात का है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मैं बीमार हो गया। अगर मैं बीमार नहीं होता तो अबकी बार भी दीपेंद्र को यहां से हराकर भेजते। जो नेता अपनी सीट नहीं जीत पाए वो पूरे झज्जर जिले की सीट दिलाने का काम करते है और वह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को घुमराह कर मेरे भाई को लेकर गए। उन्हें पता था कि उनका भाई जीत नहीं सकता। क्योंकि नरेश कौशिक के साथ हलके की जनता हैं। इसी साजिश के तहत मेरी टिकट कटवाई गई। नरेश ने कहा कि पार्टी दो दिन में अपना फैसला बदले। वरना उसके बाद कार्यकर्ता जो फिर फैसला लेंगे मुझे मंजूर हैं। हालांकि नरेश कौशिक ने पार्टी नहीं छोड़ी हैं। उन्होंने कहा कि पहले भी वह पार्टी में थे और आज भी बीजेपी में हैं। आगे का निर्णय कार्यकर्ता लेंगे। पिछले चुनाव में मिली थी हार बता दें कि नरेश कौशिक बहादुरगढ़ में बीजेपी का बड़ा चेहरा हैं। 2014 में वह इसी सीट से बीजेपी की टिकट पर जीतकर विधायक चुने गए थे। हालांकि 2019 में पार्टी ने उन्हें दोबारा टिकट दिया, लेकिन वह कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र जून के सामने चुनाव हार गए। इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर उनके छोटे भाई दिनेश कौशिक को दिया। दोनों भाइयों के बीच मतभेद काफी समय से चले आ रहे है। इसी के चलते नरेश कौशिश दिनेश को टिकट दिए जाने से खासे नाराज दिखे। नरेश कौशिक का टिकट कटने की एक वजह उनका आईएनएलडी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नफे सिंह राठी की हत्या में नाम आना भी रहा। हालांकि नफे सिंह राठी हत्याकांड की जांच अभी सीबीआई कर रही हैं। राठी के परिवार ने कौशिक सहित आधा दर्जन से ज्यादा लोगों को नामजद कराया था। सीबीआई की टीम नरेश कौशिक के अलावा अन्य नामजद लोगों से पूछताछ भी कर चुकी है।