<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi News:</strong> कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां की जमानत पर दिल्ली पुलिस की आपत्ति ने पूरे केस में एक बार फिर सियासी और कानूनी हलचल तेज कर दी है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को इस मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए अधीनस्थ अदालत से डिजिटल प्रारूप में पूरा रिकॉर्ड तलब कर लिया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने साफ कर दिया कि अब यह मामला महज एक जमानत नहीं, बल्कि दंगों की गहराई और साजिश के ताने-बाने की कानूनी पड़ताल बन गया है. 18 जुलाई को इस मामले की अगली सुनवाई तय की गई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या था मामला?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>फरवरी 2020 में सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी. इन दंगों में 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए. दिल्ली पुलिस का दावा है कि यह कोई अचानक हुई घटना नहीं थी, बल्कि पूर्व नियोजित साजिश थी, जिसमें इशरत जहां समेत कई चेहरे शामिल थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जमानत बनी विवाद का केंद्र</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इशरत जहां को 14 मार्च, 2022 को ट्रायल कोर्ट ने जमानत दी थी. कोर्ट ने पाया था कि वह न तो किसी साजिश की मास्टरमाइंड थीं, न किसी हिंसक व्हाट्सएप ग्रुप की सदस्य थीं और न ही दंगे के वक्त मौके पर मौजूद थीं. अदालत ने यह भी माना कि विरोध स्थल खुरेजी, जहां वह सक्रिय थीं, वह दंगों के केंद्र से दूर था. लेकिन दिल्ली पुलिस का कहना है कि निचली अदालत ने अपराध की गंभीरता और उसके असर को नजरअंदाज किया. उनका दावा है कि चक्का-जाम और कथित साजिश एक तरह का आतंकवादी कृत्य था, जिसने न सिर्फ जनजीवन को तहस-नहस किया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी चुनौती दी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बड़ी साजिश या कानून की रक्षा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इस केस में इशरत जहां अकेली नहीं हैं. जेएनयू से जुड़े उमर खालिद, नताशा नरवाल, देवांगना कलिता, सफूरा जरगर, आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और खालिद सैफी जैसे नाम भी आरोपी सूची में शामिल हैं. सभी पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए जैसे कड़े कानूनों के तहत कार्रवाई की जा रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या बदलेगा जमानत का खेल?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>अब सवाल ये है कि क्या हाईकोर्ट में दिल्ली पुलिस की अपील इशरत जहां की जमानत पलट देगी ? या फिर निचली अदालत का निर्णय बरकरार रहेगा ? यह तो 18 जुलाई को ही साफ होगा, लेकिन एक बात तय है दिल्ली दंगों की कानूनी गाथा अभी खत्म नहीं हुई है.</p>
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<p style=”text-align: justify;”> </p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi News:</strong> कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां की जमानत पर दिल्ली पुलिस की आपत्ति ने पूरे केस में एक बार फिर सियासी और कानूनी हलचल तेज कर दी है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को इस मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए अधीनस्थ अदालत से डिजिटल प्रारूप में पूरा रिकॉर्ड तलब कर लिया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने साफ कर दिया कि अब यह मामला महज एक जमानत नहीं, बल्कि दंगों की गहराई और साजिश के ताने-बाने की कानूनी पड़ताल बन गया है. 18 जुलाई को इस मामले की अगली सुनवाई तय की गई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या था मामला?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>फरवरी 2020 में सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी. इन दंगों में 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए. दिल्ली पुलिस का दावा है कि यह कोई अचानक हुई घटना नहीं थी, बल्कि पूर्व नियोजित साजिश थी, जिसमें इशरत जहां समेत कई चेहरे शामिल थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जमानत बनी विवाद का केंद्र</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इशरत जहां को 14 मार्च, 2022 को ट्रायल कोर्ट ने जमानत दी थी. कोर्ट ने पाया था कि वह न तो किसी साजिश की मास्टरमाइंड थीं, न किसी हिंसक व्हाट्सएप ग्रुप की सदस्य थीं और न ही दंगे के वक्त मौके पर मौजूद थीं. अदालत ने यह भी माना कि विरोध स्थल खुरेजी, जहां वह सक्रिय थीं, वह दंगों के केंद्र से दूर था. लेकिन दिल्ली पुलिस का कहना है कि निचली अदालत ने अपराध की गंभीरता और उसके असर को नजरअंदाज किया. उनका दावा है कि चक्का-जाम और कथित साजिश एक तरह का आतंकवादी कृत्य था, जिसने न सिर्फ जनजीवन को तहस-नहस किया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी चुनौती दी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बड़ी साजिश या कानून की रक्षा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इस केस में इशरत जहां अकेली नहीं हैं. जेएनयू से जुड़े उमर खालिद, नताशा नरवाल, देवांगना कलिता, सफूरा जरगर, आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और खालिद सैफी जैसे नाम भी आरोपी सूची में शामिल हैं. सभी पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए जैसे कड़े कानूनों के तहत कार्रवाई की जा रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या बदलेगा जमानत का खेल?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>अब सवाल ये है कि क्या हाईकोर्ट में दिल्ली पुलिस की अपील इशरत जहां की जमानत पलट देगी ? या फिर निचली अदालत का निर्णय बरकरार रहेगा ? यह तो 18 जुलाई को ही साफ होगा, लेकिन एक बात तय है दिल्ली दंगों की कानूनी गाथा अभी खत्म नहीं हुई है.</p>
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<p style=”text-align: justify;”> </p> दिल्ली NCR सपा के पूर्व सांसद की पाकिस्तान को चेतावनी, कहा- ‘हमारे लोगों का खून बहा तो हमने पानी रोका’
क्या हाई कोर्ट में दिल्ली पुलिस की अपील इशरत जहां की जमानत पलट देगी? अगली सुनवाई 18 जुलाई को
