सारे समुद्र को स्याही बना दिया जाए और सारी धरती को कागज बना दूं, तब भी देश की समस्या लिखी नहीं जा सकती। एक लेखक जिधर चाहे, उधर ही धारा को मोड़ सकता है। खेलों में जो आजकल हालात हैं, उसके लिए नेहरू जी भी जिम्मेदार हो सकते हैं। हमारे जमाने में गिल्ली-डंडा, कंचे जैसे महान खेल हुआ करते थे। ये सब अब न जाने कहां लुप्त हो गए। अगर वे खेल होते तो आज दूसरे देश गोल्ड क्या, कांस्य को भी तरस जाते। जब हम पढ़ते थे तो खेलने की वजह से हमारी पिटाई होती थी। पतंग उड़ाते मिले तो बाप ने कूट दिया। उस समय यह कहा जाता था कि ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब।’ तो हमें नवाब बनाने के लिए हमारी पिटाई की जाती थी और हमारे बड़े, महापुरुषों के उदाहरण दिया करते थे। खेलने वाले बच्चों को कहा जाता था कि तुम समय बर्बाद कर रहे हो। लेकिन अब खेल और राजनीति को सत्ता ने अपने हाथ में ले लिया है। अब खेलों की डोर, खिलाड़ियों के हाथ से निकलकर राजनीति के हाथ में चली गई है। खेलों की इन दिनों जो दुर्गति हुई है, उसका केवल एक कारण है। खेलों के विषय में मेरे जैसे महान चिंतक की बात नहीं मानी गई। मैंने कहा था कि जिस खेल में विश्वकप जीत जाओ, उसे खेलना बंद कर दो, ताकि जिंदगी भर वह कप आपके पास रह सके। दूसरे देशों से कह दो कि इन दिनों हमारा मूड नहीं है खेलने का। बस, फिर कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा। धोनी ने वर्ल्ड कप जीता था, लेकर अपने घर बैठ जाते। खेलों का उद्धार कैसे हो। जिसने बल्ला देखा नहीं हो, जिसने गेंद को छुआ नहीं हो, वह क्रिकेट एसोसिएशन का पदाधिकारी हो जाता है। वही तय करता है कि कौन खिलाड़ी अच्छा है, कौन-सा खराब है। राजनीति के लिए खेल भी किसी खिलवाड़ से ज्यादा कुछ नहीं है। वैसे तो खिलाड़ियों के सम्मान में कसीदे गढ़ेंगे और वही खिलाड़ी कोई शिकायत करें या कोई मांग करें तो उन्हें पुलिस से पिटवाया जाता है। विनेश फोगाट के साथ जो ओलिंपिक में हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। हार-जीत खेल का हिस्सा है। राजनीति खेलों का भला करना चाहे तो केवल इतना एहसान कर दे कि खेलों की नियामक संस्थाओं को राजनीति से मुक्त कर दो। क्रिकेटर का चयन केवल क्रिकेटर करे और मुक्केबाज का चयन केवल मुक्केबाजी के एक्सपर्ट करें। कुश्ती के लिए कौन भारत का प्रतिनिधित्व करेगा, इसका फैसला पहलवानों को करने दो। इतना हो जाए तो खिलाड़ियों के साथ खिलवाड़ होना बंद हो जाएगा। खेलों को जुआ बना दिया गया तो खेल पीछे रह जाएंगे और खिलाड़ियों को दांव पर लगा दिया जाएगा। हमें अपना इतिहास याद करना चाहिए। जुए ने हमारे देश में महाभारत करवाई थी। यदि खेलों में जुए के पासे चलने लगेंगे तो खेलों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस वाले मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे और भाजपा वाले नेहरू को। खिलाड़ी अपना पूरा जीवन खेल के मैदान में झोंककर भी ठगा हुआ सा देखता रह जाएगा और खेलों से प्यार करने वाला देश यह समझ ही नहीं पाएगा कि इस देश में खेल हो रहे हैं या इस देश से खेल किया जा रहा है। सारे समुद्र को स्याही बना दिया जाए और सारी धरती को कागज बना दूं, तब भी देश की समस्या लिखी नहीं जा सकती। एक लेखक जिधर चाहे, उधर ही धारा को मोड़ सकता है। खेलों में जो आजकल हालात हैं, उसके लिए नेहरू जी भी जिम्मेदार हो सकते हैं। हमारे जमाने में गिल्ली-डंडा, कंचे जैसे महान खेल हुआ करते थे। ये सब अब न जाने कहां लुप्त हो गए। अगर वे खेल होते तो आज दूसरे देश गोल्ड क्या, कांस्य को भी तरस जाते। जब हम पढ़ते थे तो खेलने की वजह से हमारी पिटाई होती थी। पतंग उड़ाते मिले तो बाप ने कूट दिया। उस समय यह कहा जाता था कि ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब।’ तो हमें नवाब बनाने के लिए हमारी पिटाई की जाती थी और हमारे बड़े, महापुरुषों के उदाहरण दिया करते थे। खेलने वाले बच्चों को कहा जाता था कि तुम समय बर्बाद कर रहे हो। लेकिन अब खेल और राजनीति को सत्ता ने अपने हाथ में ले लिया है। अब खेलों की डोर, खिलाड़ियों के हाथ से निकलकर राजनीति के हाथ में चली गई है। खेलों की इन दिनों जो दुर्गति हुई है, उसका केवल एक कारण है। खेलों के विषय में मेरे जैसे महान चिंतक की बात नहीं मानी गई। मैंने कहा था कि जिस खेल में विश्वकप जीत जाओ, उसे खेलना बंद कर दो, ताकि जिंदगी भर वह कप आपके पास रह सके। दूसरे देशों से कह दो कि इन दिनों हमारा मूड नहीं है खेलने का। बस, फिर कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा। धोनी ने वर्ल्ड कप जीता था, लेकर अपने घर बैठ जाते। खेलों का उद्धार कैसे हो। जिसने बल्ला देखा नहीं हो, जिसने गेंद को छुआ नहीं हो, वह क्रिकेट एसोसिएशन का पदाधिकारी हो जाता है। वही तय करता है कि कौन खिलाड़ी अच्छा है, कौन-सा खराब है। राजनीति के लिए खेल भी किसी खिलवाड़ से ज्यादा कुछ नहीं है। वैसे तो खिलाड़ियों के सम्मान में कसीदे गढ़ेंगे और वही खिलाड़ी कोई शिकायत करें या कोई मांग करें तो उन्हें पुलिस से पिटवाया जाता है। विनेश फोगाट के साथ जो ओलिंपिक में हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। हार-जीत खेल का हिस्सा है। राजनीति खेलों का भला करना चाहे तो केवल इतना एहसान कर दे कि खेलों की नियामक संस्थाओं को राजनीति से मुक्त कर दो। क्रिकेटर का चयन केवल क्रिकेटर करे और मुक्केबाज का चयन केवल मुक्केबाजी के एक्सपर्ट करें। कुश्ती के लिए कौन भारत का प्रतिनिधित्व करेगा, इसका फैसला पहलवानों को करने दो। इतना हो जाए तो खिलाड़ियों के साथ खिलवाड़ होना बंद हो जाएगा। खेलों को जुआ बना दिया गया तो खेल पीछे रह जाएंगे और खिलाड़ियों को दांव पर लगा दिया जाएगा। हमें अपना इतिहास याद करना चाहिए। जुए ने हमारे देश में महाभारत करवाई थी। यदि खेलों में जुए के पासे चलने लगेंगे तो खेलों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस वाले मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे और भाजपा वाले नेहरू को। खिलाड़ी अपना पूरा जीवन खेल के मैदान में झोंककर भी ठगा हुआ सा देखता रह जाएगा और खेलों से प्यार करने वाला देश यह समझ ही नहीं पाएगा कि इस देश में खेल हो रहे हैं या इस देश से खेल किया जा रहा है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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जालंधर में सेना के ट्रक और कैंटर की टक्कर:डिवाइर फांद दूसरी साइड पहुंचा ट्रक; 5 जवान जख्मी, आर्मी अस्पताल में इलाज जारी पंजाब के जालंधर में सुच्ची पिंड के पास एक सेना ट्रक और ट्राले के बीच भीषण टक्कर हो गई। घटना में करीब पांच सेना के जवान जख्मी हुए हैं, जिन्हें इलाज के लिए आर्मी के अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। फिलहाल हादसा कैसे हुआ, इस पर पुलिस की जांच जारी है। ये हादसा हुआ करीब 6 बजे हुआ था। मिली जानकारी के अनुसार पीएपी चौक की तरफ से लोडेट ट्राला और सेना का ट्रक अमृतसर की ओर जा रहे थे। इतने में पता नहीं चला कि कब और कैसे सेना का ट्रक हाईवे पर बने लोहे की ग्रिल और डवाइडर से टकराने के बाद ट्रक से टकराया और फिर हाईवे पर पलट गया। हालांकि आरोप है कि सेना के ट्रक को पीछे से ट्राले ने टक्कर मारी थी, जिससे सेना का ट्रक बेकाबू हो गया। जिससे ये हादसा हुआ। घटना के वक्त सेना के वाहन में करीब पांच लोग सवार थे। घटना में सभी लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं, जिन्हें तुरंत इलाज के लिए आर्मी अस्पताल जालंधर कैंट में भर्ती करवाया गया था। सभी का इलाज चल रहा है। ड्राइवर और एक कंडक्टर आगे की सीट पर बैठा था। वहीं, तीन जवान पीछे डाले में बैठे थे। देखें हादसे के बाद की क्राइम सीन की तस्वीरें…. सड़क सुरक्षा फोर्स की टीमें मौके पर पहुंची मिली जानकारी के अनुसार घटना की सूचना मिलते ही राज्य की सड़क सुरक्षा फोर्स की टीमें मौके पर पहुंच गई थी और जांच शुरू कर दी थी। तुरंत प्रभाव से सभी जख्मी हुए मुलाजिमों को बाहर निकाला गया और एका एक कर सभी को इलाज के लिए भेजा गया था। घटना के बाद मौके पर मौजूद लोगों ने क्रेन की मदद के किसी तरह सेना का क्षतिग्रस्त हुआ ट्रक साइड पर करवाया और ट्रैफिक खुलवाया। क्योंकि हादसे के बाद हाईवे पर लंबा जाम लग गया था।
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पंजाब में सुखबीर बादल के हमलावर नारायण चौड़ा की पेशी:आज खत्म हो रही रिमांड, पुलिस ने दोनों वकील बेटों से की पूछताछ
पंजाब में सुखबीर बादल के हमलावर नारायण चौड़ा की पेशी:आज खत्म हो रही रिमांड, पुलिस ने दोनों वकील बेटों से की पूछताछ पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल पर हमला करने वाले नारायण सिंह चौड़ा को आज अमृतसर कोर्ट में पेश किया जाएगा। 5 दिसंबर को गिरफ्तारी के बाद चौड़ा को अमृतसर कोर्ट में पेश किया गया था। जहां उन्हें 3 दिन के लिए पुलिस रिमांड पर भेजा गया। ये समय आज खत्म हो रहा है। वहीं, पुलिस ने इस मामले में अपनी जांच को भी तेज कर दिया है। मिली जानकारी के अनुसार पुलिस ने नारायण सिंह चौड़ा के दोनों बेटों जगजीत सिंह बाजवा और बलजिंदर सिंह बाजवा के साथ भी पूछताछ की है। बीते दिन दोनों के बेटों से भी घंटों तक पूछताछ की गई है। गौरतलब है कि नारायण सिंह चौड़ा के दोनों ही बेटे पेशे से वकील हैं और दोनों की तरफ से ही नारायण सिंह चौड़ा के हक में एप्लिकेशन भी मूव की गई थी। सेवादार बने सुखबीर पर करीब आकर चलाई थी गोली, सुरक्षाकर्मी ने बचाया अमृतसर स्थित गोल्डन टेंपल में बीते बुधवार को पंजाब के पूर्व डिप्टी CM सुखबीर सिंह बादल पर खालिस्तानी आतंकी नारायण सिंह चौड़ा ने फायरिंग की थी। सुखबीर गोल्डन टेंपल के गेट पर सेवादार बनकर बैठे थे। डेरा सच्चा सौदा के मुखी राम रहीम को माफी और श्री गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी जैसी गलतियों पर सिखों की सर्वोच्च अदालत अकाल तख्त ने उन्हें यह सजा दी है। वारदात के वक्त हमलावर ने जैसे ही चंद कदमों की दूरी से सुखबीर पर गोली चलाई, उसी समय सिविल वर्दी में तैनात उनके सुरक्षाकर्मियों ने उसका हाथ पकड़कर ऊपर उठा दिया। जिससे गोली गोल्डन टेंपल की दीवार पर जा लगी। इससे सुखबीर बादल बाल-बाल बच गए। इसके बाद हमलावर ने भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उसे पकड़ लिया। सुखबीर बादल को तुरंत सुरक्षा घेरे में ले लिया गया। गोल्डन टेंपल के बाहर भी सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। अब नारायण सिंह चौड़ा के बारे में पढ़िए…. पाकिस्तान से हथियारों की तस्करी करने लगा नारायण सिंह चौड़ा का जन्म 4 अप्रैल 1956 को गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक एरिया के चौड़ा गांव में हुआ। पंजाब में आतंकवाद के दौर से ही नारायण सिंह काफी एक्टिव रहा। वह साल 1984 में पाकिस्तान गया जहां उसकी मुलाकात ऐसे कई संगठनों से हुई जो भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। उसने पाकिस्तान में रहते हुए गुरिल्ला वॉर पर किताब और देशद्रोही साहित्य भी लिखा। पंजाब में आतंकवाद के दौरान आतंकी गुरिल्ला वॉर की तरह ही वारदात किया करते थे। यही नहीं, चौड़ा पंजाब में आतंकवाद के शुरुआती दौर में हथियारों और विस्फोटकों की स्मगलिंग भी करता रहा। उस दौरान पंजाब में हुई कई आतंकी गतिविधियों में उसकी अहम भूमिका रही। तीन जिलों में UAPA के केस नारायण सिंह चौड़ा के खिलाफ 8 मई 2010 को अमृतसर के सिविल लाइन थाने में आर्म्स एक्ट के तहत तकरीबन एक दर्जन मामले दर्ज किए गए। अमृतसर, तरनतारन और रोपड़ जिले में उस पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के केस भी दर्ज हैं। अमृतसर में आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज एक केस में वह कोर्ट से बरी भी हो चुका है। 2013 में गिरफ्तार हुआ पंजाब पुलिस ने नारायण सिंह चौड़ा को 28 फरवरी 2013 को तरनतारन के जलालाबाद गांव से गिरफ्तार किया था। उसके साथ तरनतारन के ही पंडोरी गांव से सुखदेव सिंह और गुरिंदर सिंह भी अरेस्ट किए गए। इन तीनों से पूछताछ के बाद पंजाब पुलिस ने मोहाली के कुराली गांव में रेड करके RDX और हथियारों का जखीरा बरामद किया था। इस केस में नारायण सिंह चौड़ा को जमानत मिली हुई है। बुड़ैल जेलब्रेक का मास्टरमाइंड नारायण सिंह चौड़ा पर आरोप है कि वह 2004 में चंडीगढ़ में हुए बुड़ैल जेल ब्रेक कांड का मास्टरमाइंड है। तब पंजाब के पूर्व CM बेअंत सिंह के हत्यारे जगतार सिंह हवारा, परमजीत सिंह भ्यौरा और जगतार सिंह तारा जेल के अंदर सुरंग खोदकर फरार हो गए थे। आरोप है कि नारायण सिंह चौड़ा जेल में इन लोगों से नियमित रूप से मिलने जाता था। वह इन्हें खाने-पीने के अलावा कपड़े और जरूरत के दूसरे सामान भी उपलब्ध करवाता था। बुड़ैल जेल ब्रेक की इन्वेस्टिगेशन के दौरान पुलिस ने उसे अरेस्ट भी किया था। उस दौरान की गई पूछताछ में खुलासा हुआ कि नारायण सिंह चौड़ा पगड़ी देने के बहाने बेअंत सिंह के हत्यारों से मिलता था। हवारा और उसके साथियों ने जेल में कई महीने तक अपनी बैरक से जेल की बाहरी दीवार तक सुरंग खोदी। 21 और 22 जनवरी 2004 की दरम्यानी रात इस सुरंग से ही वह जेल की बाहरी दीवार तक पहुंचे और फिर पगड़ी वाले कपड़े की मदद से ही जेल की दीवार फांदी थी। आरोप है कि जेल से भागने में उनकी मदद के लिए चौड़ा ने जेल में बिजली सप्लाई करने वाली तारों पर चेन डालकर बत्ती गुल कर दी थी। पुलिस जांच में यह भी पता चला था कि इन लोगों के लिंक पाकिस्तान में बैठे कुछ आतंकियों के साथ भी थे।