सारे समुद्र को स्याही बना दिया जाए और सारी धरती को कागज बना दूं, तब भी देश की समस्या लिखी नहीं जा सकती। एक लेखक जिधर चाहे, उधर ही धारा को मोड़ सकता है। खेलों में जो आजकल हालात हैं, उसके लिए नेहरू जी भी जिम्मेदार हो सकते हैं। हमारे जमाने में गिल्ली-डंडा, कंचे जैसे महान खेल हुआ करते थे। ये सब अब न जाने कहां लुप्त हो गए। अगर वे खेल होते तो आज दूसरे देश गोल्ड क्या, कांस्य को भी तरस जाते। जब हम पढ़ते थे तो खेलने की वजह से हमारी पिटाई होती थी। पतंग उड़ाते मिले तो बाप ने कूट दिया। उस समय यह कहा जाता था कि ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब।’ तो हमें नवाब बनाने के लिए हमारी पिटाई की जाती थी और हमारे बड़े, महापुरुषों के उदाहरण दिया करते थे। खेलने वाले बच्चों को कहा जाता था कि तुम समय बर्बाद कर रहे हो। लेकिन अब खेल और राजनीति को सत्ता ने अपने हाथ में ले लिया है। अब खेलों की डोर, खिलाड़ियों के हाथ से निकलकर राजनीति के हाथ में चली गई है। खेलों की इन दिनों जो दुर्गति हुई है, उसका केवल एक कारण है। खेलों के विषय में मेरे जैसे महान चिंतक की बात नहीं मानी गई। मैंने कहा था कि जिस खेल में विश्वकप जीत जाओ, उसे खेलना बंद कर दो, ताकि जिंदगी भर वह कप आपके पास रह सके। दूसरे देशों से कह दो कि इन दिनों हमारा मूड नहीं है खेलने का। बस, फिर कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा। धोनी ने वर्ल्ड कप जीता था, लेकर अपने घर बैठ जाते। खेलों का उद्धार कैसे हो। जिसने बल्ला देखा नहीं हो, जिसने गेंद को छुआ नहीं हो, वह क्रिकेट एसोसिएशन का पदाधिकारी हो जाता है। वही तय करता है कि कौन खिलाड़ी अच्छा है, कौन-सा खराब है। राजनीति के लिए खेल भी किसी खिलवाड़ से ज्यादा कुछ नहीं है। वैसे तो खिलाड़ियों के सम्मान में कसीदे गढ़ेंगे और वही खिलाड़ी कोई शिकायत करें या कोई मांग करें तो उन्हें पुलिस से पिटवाया जाता है। विनेश फोगाट के साथ जो ओलिंपिक में हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। हार-जीत खेल का हिस्सा है। राजनीति खेलों का भला करना चाहे तो केवल इतना एहसान कर दे कि खेलों की नियामक संस्थाओं को राजनीति से मुक्त कर दो। क्रिकेटर का चयन केवल क्रिकेटर करे और मुक्केबाज का चयन केवल मुक्केबाजी के एक्सपर्ट करें। कुश्ती के लिए कौन भारत का प्रतिनिधित्व करेगा, इसका फैसला पहलवानों को करने दो। इतना हो जाए तो खिलाड़ियों के साथ खिलवाड़ होना बंद हो जाएगा। खेलों को जुआ बना दिया गया तो खेल पीछे रह जाएंगे और खिलाड़ियों को दांव पर लगा दिया जाएगा। हमें अपना इतिहास याद करना चाहिए। जुए ने हमारे देश में महाभारत करवाई थी। यदि खेलों में जुए के पासे चलने लगेंगे तो खेलों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस वाले मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे और भाजपा वाले नेहरू को। खिलाड़ी अपना पूरा जीवन खेल के मैदान में झोंककर भी ठगा हुआ सा देखता रह जाएगा और खेलों से प्यार करने वाला देश यह समझ ही नहीं पाएगा कि इस देश में खेल हो रहे हैं या इस देश से खेल किया जा रहा है। सारे समुद्र को स्याही बना दिया जाए और सारी धरती को कागज बना दूं, तब भी देश की समस्या लिखी नहीं जा सकती। एक लेखक जिधर चाहे, उधर ही धारा को मोड़ सकता है। खेलों में जो आजकल हालात हैं, उसके लिए नेहरू जी भी जिम्मेदार हो सकते हैं। हमारे जमाने में गिल्ली-डंडा, कंचे जैसे महान खेल हुआ करते थे। ये सब अब न जाने कहां लुप्त हो गए। अगर वे खेल होते तो आज दूसरे देश गोल्ड क्या, कांस्य को भी तरस जाते। जब हम पढ़ते थे तो खेलने की वजह से हमारी पिटाई होती थी। पतंग उड़ाते मिले तो बाप ने कूट दिया। उस समय यह कहा जाता था कि ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब।’ तो हमें नवाब बनाने के लिए हमारी पिटाई की जाती थी और हमारे बड़े, महापुरुषों के उदाहरण दिया करते थे। खेलने वाले बच्चों को कहा जाता था कि तुम समय बर्बाद कर रहे हो। लेकिन अब खेल और राजनीति को सत्ता ने अपने हाथ में ले लिया है। अब खेलों की डोर, खिलाड़ियों के हाथ से निकलकर राजनीति के हाथ में चली गई है। खेलों की इन दिनों जो दुर्गति हुई है, उसका केवल एक कारण है। खेलों के विषय में मेरे जैसे महान चिंतक की बात नहीं मानी गई। मैंने कहा था कि जिस खेल में विश्वकप जीत जाओ, उसे खेलना बंद कर दो, ताकि जिंदगी भर वह कप आपके पास रह सके। दूसरे देशों से कह दो कि इन दिनों हमारा मूड नहीं है खेलने का। बस, फिर कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा। धोनी ने वर्ल्ड कप जीता था, लेकर अपने घर बैठ जाते। खेलों का उद्धार कैसे हो। जिसने बल्ला देखा नहीं हो, जिसने गेंद को छुआ नहीं हो, वह क्रिकेट एसोसिएशन का पदाधिकारी हो जाता है। वही तय करता है कि कौन खिलाड़ी अच्छा है, कौन-सा खराब है। राजनीति के लिए खेल भी किसी खिलवाड़ से ज्यादा कुछ नहीं है। वैसे तो खिलाड़ियों के सम्मान में कसीदे गढ़ेंगे और वही खिलाड़ी कोई शिकायत करें या कोई मांग करें तो उन्हें पुलिस से पिटवाया जाता है। विनेश फोगाट के साथ जो ओलिंपिक में हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। हार-जीत खेल का हिस्सा है। राजनीति खेलों का भला करना चाहे तो केवल इतना एहसान कर दे कि खेलों की नियामक संस्थाओं को राजनीति से मुक्त कर दो। क्रिकेटर का चयन केवल क्रिकेटर करे और मुक्केबाज का चयन केवल मुक्केबाजी के एक्सपर्ट करें। कुश्ती के लिए कौन भारत का प्रतिनिधित्व करेगा, इसका फैसला पहलवानों को करने दो। इतना हो जाए तो खिलाड़ियों के साथ खिलवाड़ होना बंद हो जाएगा। खेलों को जुआ बना दिया गया तो खेल पीछे रह जाएंगे और खिलाड़ियों को दांव पर लगा दिया जाएगा। हमें अपना इतिहास याद करना चाहिए। जुए ने हमारे देश में महाभारत करवाई थी। यदि खेलों में जुए के पासे चलने लगेंगे तो खेलों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस वाले मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे और भाजपा वाले नेहरू को। खिलाड़ी अपना पूरा जीवन खेल के मैदान में झोंककर भी ठगा हुआ सा देखता रह जाएगा और खेलों से प्यार करने वाला देश यह समझ ही नहीं पाएगा कि इस देश में खेल हो रहे हैं या इस देश से खेल किया जा रहा है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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हिमाचल में तीन दिन भारी बारिश का अलर्ट:रेमल चक्रवात, कमज़ोर अल नीनो, हवा का दबाव नहीं बन पाने से देरी से मानसून की एंट्री हिमाचल में अगले दो-तीन दिन के भीतर मानसून प्रवेश कर सकता है। इस बार प्रदेश में मानसून तीन से चार दिन देरी से पहुंचेगा। मानसून के देरी से प्रवेश करने के तीन कारण हैं। पहला, मई माह में आया चक्रवात ‘रेमल’, दूसरा कारण महासागरों से चलने वाली हवाओं का कम दबाव और तीसरा कारण अल नीनो की स्थिति कमजोर होना। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के निदेशक डॉ. सुरेंद्र पाल ने बताया कि आमतौर पर प्रदेश में मानसून 22 से 25 जून के बीच पहुंचता है। इस बार मई माह में ‘रेमल’ चक्रवात के कारण थोड़ी देरी हुई है। उन्होंने बताया कि हिंद महासागर और अरब सागर से चलने वाली हवाओं का दबाव भी नहीं बन पा रहा है। इस कारण मानसून बीच में ही रुक गया था। लेकिन अगले दो से तीन दिन में प्रवेश के साथ ही अच्छी बारिश होगी। 3 दिन भारी बारिश होगी: डॉ. पाल डॉ. पाल ने बताया कि मानसून की एंट्री भी अच्छी होगी और जुलाई में भी अच्छी बारिश होने का पूर्वानुमान है। मानसून की एंट्री के बाद 28 से 30 जून तक शिमला, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा, कुल्लू, चंबा, हमीरपुर, बिलासपुर और मंडी में भारी बारिश हो सकती है। इसे देखते हुए येलो अलर्ट जारी किया गया है। साल 2002 में 4 जुलाई को पहुंचा मानसून प्रदेश में पहले बी कई बार मानसून देरी से आया है। साल 2002 में चार जुलाई को सबसे देरी से मानसून हिमाचल आया था। बीते साल की बात करें तो 24 जून को मानसून हिमाचल पहुंचा है। साल 2019, 2017 में भी जुलाई महीने में मानसून ने दस्तक दी है। सबसे पहले समझते हैं कि मॉनसून क्या है? मानसून महासागरों की ओर से चलने वाली तेज हवाओं की दिशा में बदलाव को कहा जाता है। मानसून की ये हवाएं देश सहित हिमाचल में भारी बारिश कराती है। ऊना अभी भी 41.4 डिग्री पर तप रहा हिमाचल में मानसून की एंट्री से पहले बीते दो दिन से प्री-मानसून की बारिश कुछेक स्थानों पर हो रही है। मगर आज ज्यादातर इलाकों में मौसम साफ रहने का पूर्वानुमान है। इससे मैदानी इलाकों में आज भी गर्मी महसूस होगी। फिलहाल अभी ऊना का तापमान 41.4 डिग्री सेल्सियस चल रहा है। प्रदेश के प्रमुख शहरों का तापमान
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यूपी उपचुनाव में 7 सीटों पर भाजपा मजबूत:अखिलेश और इरफान की सीट पर कांटे की टक्कर, कटेहरी-कुंदरकी में बदल रहे समीकरण यूपी में 9 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इन सीटों पर चुनावी तस्वीर हर दिन बदल रही है। भाजपा-सपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है। उपचुनाव को 2027 का टेस्ट माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद सपा अपना मोमेंटम बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रही है। हालांकि प्रत्याशियों के ऐलान और नामांकन के बाद इन सीटों पर स्थितियां बदली हैं। पहले जिन सीटों पर सपा का कब्जा था, भाजपा ने पुराने आंकड़ों-जातीय समीकरणों को बैठाया है। बीते 6 दिनों में भाजपा सभी सीटों पर रिकवरी मोड में नजर आई है। बसपा पहली बार उपचुनाव लड़ रही है। चुनावी मैदान में असदुद्दीन ओवैसी और चंद्रशेखर की पार्टी के प्रत्याशी भी हैं। 13 नवंबर को इन 9 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। यहां हवा का रुख समझने के लिए दैनिक भास्कर ने इन विधानसभा सीटों के अलग-अलग इलाकों में आम लोगों और एक्सपर्ट्स से बात की। पोलिंग के 13 दिन पहले इन सीटों में 7 पर NDA यानी भाजपा और रालोद मजबूत दिख रहे हैं। दो सीटों पर सपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। हालांकि, संभावना है कि चुनाव के नजदीक आते-आते इन स्थितियों में बदलाव भी हो सकता है। जिन सीटों पर भाजपा मजबूत दिख रही है, उनमें 3 सीटें ऐसी हैं, जहां माहौल बदल सकता है। जिन दो सीटों पर सपा का पलड़ा भारी है, उनमें एक सीट पर मुकाबला कांटे का हो सकता है। तीन सीटें ऐसी हैं, जहां बसपा-आजाद सामाज पार्टी और AIMIM भाजपा-सपा का गणित बिगाड़ते हुए दिख रही हैं। चलिए एक-एक कर सभी सीटों पर हवा के रुख को जानते हैं… 1. प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा मजबूत फूलपुर में जातीय फैक्टर हावी है। सपा ने लोकसभा चुनाव में अमरनाथ मौर्य को उतारा था। तब उसे फूलपुर विधानसभा में लीड मिली। लेकिन, मुस्लिम कैंडिडेट उतारने के बाद स्थिति बदल गई है। हमने यहां करीब 100 लोगों से बात की। मौजूदा समय में भाजपा मजबूत दिखाई दे रही है। यहां तहसील पर हमारी मुलाकात राजकुमार कश्यप से हुई। वह कहते हैं- जनता जानती है कि उपचुनाव से सरकार बदलने वाली नहीं है। न ही चुनाव से सरकार को कोई फर्क पड़ेगा। अभी यहां माहौल भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है। पटेल-मौर्य बिरादरी के लोग यहां ज्यादा हैं। उनका वोट भाजपा की तरफ ही जाएगा। मुद्दे यहां काम नहीं कर रहे हैं। भाजपा में भी दीपक पटेल को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटर्स में थोड़ी नाराजगी है। लेकिन, कोई विकल्प न होने की वजह से वह भाजपा में जा सकते हैं। बसपा ने जितेंद्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। लेकिन, वह पहली बार चुनावी मैदान में हैं। फूलपुर में एससी-ओबीसी वोट बैंक जिसके फेवर में होता है, यहां जीत उसी की होती है। ओबीसी वोटर्स में सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर पर पटेल-मौर्य हैं। सपा यादव-मुस्लिम वोट बैंक को अपना मानती है। वहीं, भाजपा पटेल वोटर्स को साधने की कोशिश करती है। यहीं से जीत-हार का अंतर बनता है। सपा की तरफ से अमरनाथ मौर्य का नाम पहले रेस में था। लेकिन, पार्टी ने मुस्तफा सिद्दीकी को टिकट दे दिया। यहां उनका विरोध भी देखने को मिला। भाजपा ने यहां कैंपेनिंग की। पूर्व सांसद केशरी देवी पटेल के बेटे को टिकट दिया। केशव मौर्य को यहां का प्रभारी बनाया। कांग्रेस का फूलपुर में अच्छा वोट बैंक है। यही वजह थी कि इस पर पार्टी अपना दावा पेश कर रही थी। सीट खाली होने के बाद से लगातार सम्मेलन किए गए। चुनाव प्रभारी नियुक्त किए गए। राहुल गांधी भी प्रयागराज आए। लेकिन, सीट खाते में नहीं आई। इसलिए कांग्रेसियों में नाराजगी है, जिसका नुकसान सपा को हो सकता है। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट फूलपुर की राजनीति को करीब से जानने वाले आशीष गुप्ता कहते हैं- यहां लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है। यहां यादव और मुस्लिम अगर सपा को वोट देते हैं, तब भी भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। वजह उनका प्रत्याशी है। यहां मुख्यमंत्री का ‘बंटोगे तो कटोगे’ वाला बयान चर्चा में है। भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल बना लिया है। 2. कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा मजबूत मौजूदा सियासी समीकरण के मुताबिक, कानपुर की सीसामऊ में संवेदना और जातीय समीकरण के बीच मुकाबला दिख रहा है। फिलहाल, संवेदनाओं के सहारे नसीम सोलंकी मजबूत दिख रही हैं। इस मुस्लिम बहुल सीट पर उनके आंसू वोटर को कनेक्ट कर रहे हैं। हालांकि, भाजपा ने अगर अपना भितरघात रोक लिया। तो जातीय समीकरण पार्टी के पक्ष में माहौल बना सकते हैं। दरअसल, भाजपा में टिकट के लिए कई दावेदार थे। इसके चलते ही भाजपा ने सबसे इस सीट पर प्रत्याशी के ऐलान के लिए सबसे ज्यादा टाइम लिया। कहा जा रहा है कि जो रेस में थे, वो और उनके समर्थक नाराज हैं। सीसामऊ में सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूती से एकजुट है। नसीम सोलंकी को टिकट दिए जाने पर किसी ने कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई। दोनों ही पार्टी के नेता, कार्यकर्ता नसीम के लिए कैंपेनिंग कर रहे हैं। हमने यहां करीब 100 लोगों से बात की। हिंदू आबादी वाले इलाकों में भाजपा और सपा के पक्ष में माहौल दिखा। मुस्लिम इलाकों में सपा के पक्ष में। इस सीट पर 22 साल से सोलंकी परिवार का कब्जा है। नसीम सोलंकी खुद को हिम्मती बताते हुए सहानुभूति बटोर रही हैं। वह लोगों को यही मैसेज दे रही हैं कि यह चुनाव आखिरी सीढ़ी है। आप मेरा परिवार हैं। भाजपा में दिख रहा भितरघात भाजपा ने सबसे ज्यादा प्रचार दलित आबादी वाले क्षेत्रों में किया। पूर्व विधायक राकेश सोनकर ने दावेदारी पेश की और नामांकन पत्र भी खरीदा। वह सीएम योगी से भी मिले। लेकिन भाजपा ने सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। ऐसे में भाजपा के अंदर ही मनमुटाव यानी भितरघात की संभावना दिखाई दे रही है। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट सीसामऊ को करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक राजेश द्विवेदी ने कहा- राकेश सोनकर को टिकट न देने से दलितों में नाराजगी हो सकती है। यहां आखिर में चुनाव हिंदू-मुस्लिम ही हो जाता है। अगर मुस्लिम की वोटिंग 65% से ज्यादा होती है, तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी होना तय है। ये भी तय है कि उप चुनाव में अगर हिंदू जमकर वोट करता है, तभी भाजपा को फायदा होगा। 3. मुरादाबाद की कुंदरकी में भाजपा मजबूत कुंदरकी में भाजपा ने रामवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है, जबकि सपा ने तीन बार के विधायक रह चुके हाजी रिजवान को। लेकिन, यहां बसपा और AIMIM प्रत्याशी सपा का समीकरण बिगाड़ रहे हैं। माहौल भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है। यहां हमने करीब 100 लोगों से बात की। मुस्लिम बहुल इलाकों में भी रामवीर सिंह का समर्थन दिखाई दे रहा है। हसनगंज के याकूब कुरैशी ने कहा- यह सपा का गढ़ रहा है। लेकिन, अब स्थिति बदल सकती है। मूंढापांडे में शिवप्रसाद सैनी ने कहा- सपा-भाजपा में कांटे की टक्कर है। लड़ाई रिजवान और रामवीर की नहीं, बल्कि योगी और अखिलेश की है। लेकिन, सपा इस सीट को तभी बचा पाएगी, जब अखिलेश यादव इसे दिल पर लेकर यहां चुनाव मैदान में खुद उतरेंगे। लोगों का मानना है कि कुंदरकी सीट पर 60% मुस्लिम और 40% हिंदू वोटर हैं। रामवीर जब चुनाव हारे, तब सत्ता सपा-बसपा की थी। पहला मौका है, जब भाजपा सरकार के रहते, वो चुनावी मैदान में हैं। इसलिए भी वह चुनाव में मजबूत नजर आ रहे हैं। कुंदरकी विधानसभा ग्रामीण क्षेत्र है। यह एरिया पशुओं के अवैध कटान का हब रहा है। सपा सरकार में गांवों में किसानों काे गोलियां मारकर पशु लूटने की तमाम घटनाएं हुईं। अब लोग बेहतर कानून व्यवस्था से खुश हैं। सपा प्रत्याशी हाजी रिजवान का अपने बेटे हाजी कल्लन की दबंगई की वजह से मुस्लिमों में विरोध भी है। इसका फायदा रामवीर को मिल सकता है। कुंदरकी सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी मजबूती से मैदान में है। ओवैसी का इस बेल्ट में ठीक-ठाक असर है। 2022 में उनके कैंडिडेट को 14 हजार से अधिक वोट मिले थे। नगर पंचायत का चुनाव भी ओवैसी की पार्टी ने जीता था। ऐसे में ये दोनों नेता इस सीट के नतीजों में उलट-फेर कर सकते हैं। ओवैसी ने यहां तुर्क प्रत्याशी हाफिज मोहम्मद वारिस को मैदान में उतारा है। बसपा से भी तुर्क प्रत्याशी रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा मैदान में हैं। चंद्रशेखर ने भी मुस्लिम प्रत्याशी हाजी चांद बाबू को मैदान में उतारा है। 80 हजार तुर्क वोट वाली सीट पर तुर्कों का बंटवारा निर्णायक हो सकता है। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट कुंदरकी की राजनीति को करीब से समझने वाले पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुनील सिंह ने कहा- भाजपा की सरकार है, अभी माहौल भाजपा के पक्ष में नजर आ रहा है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे। माहौल चुनावी होगा और बदल भी सकता है। 4. मुजफ्फरनगर की मीरापुर में रालोद मजबूत मीरापुर में भाजपा और सपा दोनों से महिला कैंडिडेट चुनावी मैदान में हैं। रालोद ने नॉन मुस्लिम कैंडिडेट मिथिलेश पाल को उतारा है। सपा ने सुम्बुल राणा को टिकट दिया है। यहां बसपा और AIMIM के अलावा चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी चुनावी मैदान में है। इन तीनों ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारकर सपा का गणित बिगाड़ा है। ऐसे में रालोद का पलड़ा भारी दिख रहा है। मीरापुर मेन मार्केट में व्यापारी अमित डागा ने कहा- आज के माहौल के हिसाब से मिथलेश पाल मजबूत दिख रही हैं। व्यापारी वर्ग भाजपा का पुराना हितैषी है। इसके अलावा यहां रालोद भाजपा गठबंधन को लोग पसंद कर रहे हैं। भाजपा-रालोद ने 2009 का फॉर्मूला अपनाया है। तब दोनों गठबंधन में थे। तब यहां उपचुनाव हुए, रालोद ने मिथलेश पाल को कैंडिडेट बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की। सपा-बसपा-एआईएमआईएम और आजाद समाज पार्टी ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं। यहां मुस्लिम वोट बैंक बंटा, तो इसका फायदा रालोद को मिलेगा। यह सीट रालोद के पास थी। लोगों का मानना है कि जिसकी सरकार होती है, उपचुनाव वही जीतता है। जयंत चौधरी खुद इस सीट की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। मीरापुर में मिथलेश पाल एक्टिव लीडर हैं। 2009 के बाद वह 2012 में भी चुनावी मैदान में उतरीं और दूसरे नंबर पर रहीं। ऐसे में वह यह जानती हैं कि कौन सा इलाका उनका है और किस इलाके में सबसे ज्यादा कैंपेनिंग करनी होगी। बसपा ने 2012 में मुस्लिम कैंडिडेट उतार चुनाव जीता। बसपा का कोर वोटर अभी भी उसके साथ दिखाई दे रहा है। ऐसे में सपा के लिए लड़ाई मुश्किल दिखाई दे रही है। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट क्षेत्र की राजनीति को जानने वाले पॉलिटिकल एक्सपर्ट एम रहमान ने कहा- चुनाव काफी दिलचस्प होगा। इसकी शुरुआत कई मुद्दों से हुई है। लेकिन, अंत सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से ही होगा। यदि ध्रुवीकरण हुआ तो रालोद को लाभ मिलेगा। क्योंकि प्रमुख राजनीतिक दलों से केवल एक हिंदू प्रत्याशी मैदान में है, जबकि चार दलों से मुस्लिम प्रत्याशी होने के कारण इस वर्ग के मतदाताओं में विभाजन की आशंका है। 5. अंबेडकरनगर की कटेहरी में भाजपा मजबूत कटेहरी में भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए धर्मराज निषाद को टिकट दिया, जबकि सपा ने सांसद लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा। मौजूदा समीकरण के मुताबिक- यहां भाजपा मजबूत दिखाई दे रही है। अवधेश द्विवेदी की नाराजगी दूर नहीं हुई, तो समीकरण बदल सकते हैं। चुनावी माहौल समझने के लिए भास्कर की टीम कटेहरी बाजार पहुंची। यहां राम अक्षयवर यादव मिले। खुद को सपा का समर्थक बताया। लेकिन, उपचुनाव के बारे में पूछने पर कहते हैं- यहां भाजपा प्रत्याशी धर्मराज निषाद बढ़त पर हैं। कोई ब्राह्मण-ठाकुर प्रत्याशी आया होता, तो सपा फिर से जीत जाती। लेकिन, अबकी बार ऐसा नहीं लग रहा है। 2022 और 2017 का विधानसभा चुनाव ओबीसी बनाम ब्राह्मण हो गया था। अबकी बार ओबीसी बनाम ओबीसी है। ऐसे में स्थिति बदली हुई है। भाजपा ने खुद के सिंबल पर धर्मराज निषाद को टिकट दिया है। लोग मानते हैं, जो प्रत्याशी को नहीं पसंद कर रहे, वह पार्टी और योगी-मोदी के नाम पर वोट देंगे। सपा ने सांसद लालजी वर्मा की पत्नी को टिकट दिया। ऐसे में उनके ऊपर परिवारवाद का आरोप लग रहा है। पार्टी के ही पहाड़ी यादव, शंखलाल यादव जैसे नेता नाराज हो गए। बीजेपी इसे भुनाने की कोशिश कर रही है। यहां पीडीए फॉर्मूला भी ज्यादा प्रभावी नहीं दिख रहा है। बसपा ने यहां अमित वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में वर्मा वोट सपा और बसपा में बंट सकता है। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है। पिछले दो चुनाव में ब्राह्मण-ठाकुर के बीच वोट बंट गया था। भाजपा में भी नेता-कार्यकर्ता नाराज हैं। इसका लाभ सपा को मिल सकता है। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट अंबेडकरनगर के वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी मिश्र कहते हैं- अगर सवर्ण जातियां एकजुट होकर किसी पाले में जाती हैं, तो इस चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण फैक्टर होगा। बाकी सपा में जो नाराजगी टिकट घोषित होने के बाद थी, उसे काफी हद तक मैनेज कर लिया गया है। खिलाफ में चुनाव लड़ने वाले पहाड़ी यादव, अब मान गए हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा अपने नाराज नेताओं को कैसे मनाती है। 6. मिर्जापुर की मझवां सीट पर भाजपा मजबूत मझवां में भाजपा और सपा दोनों ने महिला कैंडिडेट उतारे हैं। सुचिस्मिता मौर्य पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्या की बहू हैं, जबकि डॉ. ज्योति बिंद पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी हैं। यहां की हवा भाजपा के पक्ष में बह रही है। पर संजय निषाद पर टिकट के लिए पैसे लेने की कंट्रोवर्सी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। कछवा बाजार में इलाके के समाजसेवी लल्लन केसरी ने कहा- मझवां ब्लॉक में तहसील, डिग्री कालेज जैसी सुविधाएं मिलना जरूरी है। हमें तो उसकी जीत चाहिए, जो हमें मूलभूत सुविधाएं और परियोजनाएं दे, सरकार जिस पार्टी की है, उसको जिताने से यह संभव होगा। विपक्ष का विधायक जीत गया, तो जनता को लाभ नहीं मिलेगा। सुचिस्मिता मौर्य 2017 में मझवां से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। कालीन के कारोबार से जुड़ी सुचिस्मिता मौर्य टिकट कटने के बाद भी लगातार भाजपा नेता के रूप में एक्टिव रहीं। पूर्व सांसद-विधायक रमेश बिंद ओबीसी खेमे में एकतरफा मजबूती दिखा रहे थे। लेकिन, भाजपा ने अपने सिंबल पर सुचिस्मिता की घोषणा कर सभी को चौंका दिया। पार्टी ने शुरूआती और पुराने समीकरणों को मजबूत कर लिया। बसपा ने ब्राह्मण चेहरे दीपक तिवारी को उतारा है। वह पार्टी के पारंपरिक वोटों को मजबूत करने में जुटे हैं। सवर्ण वोटर पर अभी इस बात का ज्यादा प्रभाव नहीं दिख रहा है। लेकिन, निषाद पार्टी के हरिशंकर बिंद ने बड़ा आरोप लगाया है। उनका आरोप है कि संजय निषाद ने टिकट दिलाने का आश्वासन दिया था। 10 लाख रुपए भी लिए। क्षेत्र में इस बात की चर्चा है। निषाद वोटर एनडीए से आक्रोशित दिख रहे हैं। सपा अगर इसे मुद्दा बनाती है, तो उसे फायदा मिलेगा। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट मझवां की राजनीति को करीब से जानने वाले प्रोफेसर मारकण्डेय सिंह ने कहा- अभी चुनाव की हवा भाजपा की तरफ दिखाई दे रही है। लड़ाई सिर्फ भाजपा-सपा के बीच है। बसपा के ब्राह्मण प्रत्याशी की चर्चा नहीं है। लेकिन मायावती का कोर वोटर, उन्हीं को वोट करेगा। 7. मैनपुरी की करहल सीट पर सपा मजबूत मैनपुरी की करहल सीट को सपा अपना मजबूत गढ़ मानती है। पहले इस सीट पर एकतरफा चुनाव दिखाई दे रहा था, लेकिन भाजपा ने यहां ‘यादव कार्ड’ खेलकर खुद को मजबूत मुकाबले में खड़ा कर दिया है। भाजपा प्रत्याशी अनुजेश यादव सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के बहनोई हैं। करहल में अब सपा बनाम भाजपा नहीं, बल्कि यादव बनाम यादव की लड़ाई होगी। लेकिन, वोटर्स का इमोशनल कनेक्शन अभी भी सपा के साथ है। भाजपा ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है। अखिलेश यादव ने खुद कमान संभाल रखी है। भतीजे तेज प्रताप यादव के नामांकन के दौरान वह मौजूद रहे। इसके बाद चुनावी जनसभा करने पहुंचे। मैनपुरी सांसद डिंपल यादव भी तेज प्रताप यादव के लिए लगातार कैंपेनिंग कर रही हैं। साफ मैसेज दिया जा रहा है- हमारी सीट थी, हमारा परिवार है, और हमें ही जीतना है। यह सीट मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही है। सैफई परिवार के प्रति लोगों की सहानुभूति भी है। करहल बाजार में किसान अनिल कुमार ने कहा- यहां सपा मजबूत है। अनुजेश के भाजपा में आने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यादव समाज अखिलेश यादव के साथ है। करहल में विकास केवल सपा ने कराया है। भाजपा ने 2002 का फॉर्मूला चला है। अगर यह हिट हुआ तो रिजल्ट बदल सकते हैं। दरअसल, 22 साल पहले विधानसभा चुनाव भी ‘यादव बनाम यादव’ में हुआ। तब सपा के टिकट पर अनिल यादव और भाजपा के टिकट पर सोबरन सिंह यादव चुनावी मैदान में थे। सोबरन सिंह यादव सपा छोड़कर भाजपा में आए थे। वह इस सीट पर सपा की कमजोरी और ताकत दोनों से ही वाकिफ थे। मुलायम सिंह यादव से लेकर शिवपाल यादव तक ने अनिल यादव को जिताने के लिए करहल में दिन रात एक कर दिया, लेकिन यादव वोट बैंक भाजपा के सोबरन यादव की तरफ शिफ्ट हो गया और भाजपा को यहां से जीत मिली। हालांकि, जीत का मार्जिन 952 वोट था। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट राजनीतिक विश्लेषक हिमांशु त्रिपाठी ने कहा- भाजपा ने यादव बेल्ट में अनुजेश को टिकट देकर मास्टर स्ट्रोक खेला है। पहले ये माना जा रहा था कि सपा एक तरफा लीड ले लेगी, लेकिन अब मुकाबला रोचक होगा। 8. अलीगढ़ की खैर में भाजपा मजबूत जाट लैंड कही जाने वाली खैर सीट पर 6 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। यहां भाजपा ने पूर्व सांसद राजवीर सिंह दिलेर के बेटे सुरेंद्र दिलेर को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने बसपा और कांग्रेस में रह चुकीं डॉक्टर चारू कैन को टिकट दिया है। बसपा से पहल सिंह और आजाद समाज पार्टी से नितिन कुमार चोटेल मैदान में हैं। मौजूदा स्थिति में यहां भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। खैर विधानसभा सीट से सपा कभी नहीं जीती है, जबकि बसपा ने एक बार ही जीत दर्ज की है। खैर में जनरल कैटेगरी में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज के वोट 29% हैं। जिन्हें भाजपा अपना वोटर मानती है। खैर में दलित वोटर 27% है। बसपा इन्हें अपना कोर वोटर मानती है। दलित वोटर में चंद्रशेखर का भी प्रभाव है। ऐसे में इसका सीधा नुकसान सपा को पहुंच सकता है और फायदा भाजपा को। खैर में ओबीसी वर्ग में जाट, लोधी राजपूत और यादव आते हैं, जो 36% हैं, जबकि 27% एससी में जाटव और वाल्मीकि हैं। ओबीसी वोट- भाजपा-बसपा और आजाद समाज पार्टी में बंट रहा है। यही सपा के लिए चुनौती है। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट खैर की राजनीति को करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक चौधरी सुनील रोरिया ने कहा- अभी खैर में भाजपा मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है। उपचुनाव सरकार का चुनाव होता है। इस बार तो उसे रालोद का भी साथ मिल रहा है। यह भाजपा के लिए प्लस पॉइंट है। 9. गाजियाबाद की सदर सीट पर भाजपा मजबूत गाजियाबाद की सदर सीट पर भाजपा ने संजीव शर्मा को कैंडिडेट बनाया है। सपा की ओर से सिंह राज चुनावी मैदान में है। बसपा-आजाद समाज पार्टी और एआईएमआईएम ने भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं। यहां चुनावी हवा अभी भाजपा के पक्ष में चल रही है। गाजियाबाद के गोविंदपुरम इलाके का व्यापारी वर्ग भाजपा के पक्ष में है। कारोबारी प्रदीप राघव ने कहा- भाजपा प्रत्याशी संजीव शर्मा कम से कम एक लाख वोटों से जीतेंगे। क्योंकि वो लोकप्रिय हैं। संजीव शर्मा ब्राह्मण हैं, संगठन में रहते हुए उन्होंने कई चुनाव लड़ाए हैं। इसलिए अच्छा अनुभव है। संगठन अध्यक्ष होने की वजह से संजीव शर्मा, सांसद और सभी विधायकों के खास हैं। भाजपा यहां सिर्फ योगी-मोदी के फेस पर इलेक्शन लड़ रही है। इस सीट पर प्रमुख रूप से दो दलित प्रत्याशी सपा और एआईएमआईएम के हैं। भाजपा मान रही है कि सामान्य वोटर तो मिलेगा ही। इसके अलावा दलित वोटर आपस में बंट सकते हैं। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है। सदर सीट पर 2022 चुनाव में सपा को दलित-मुस्लिम वोटर का पूरा समर्थन मिला। पार्टी दूसरे नंबर पर रही। इस बार अगर बसपा जनरल वोट काटती है, तब सपा को फायदा पहुंच सकता है। क्या बोले पॉलिटिकल एक्सपर्ट गाजियाबाद का चुनावी माहौल समझने के लिए हमने सीनियर जर्नलिस्ट अशोक ओझा से बात की। उन्होंने कहा- गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट पर 14 प्रत्याशी मैदान में हैं। जो वर्तमान के हालात हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा के संजीव शर्मा, बसपा के पीएन गर्ग और सपा के सिंह राज जाटव के बीच मुकाबला होगा। हालांकि, आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी सत्यपाल चौधरी इस मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। 10 में 10 सीट जीत पाना मुमकिन नहीं राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं- उपचुनाव मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा का चुनाव है। इसमें विपक्ष हारे या जीते, मायने नहीं रखेगा। अगर योगी इस चुनाव में हार जाते हैं, तो यह उनके लिए बड़ा झटका होगा। आमतौर पर उपचुनाव सरकार का चुनाव होता है। घोसी चुनाव में भाजपा की हार के बाद यह मिथक भी टूट गया है। ऐसे में सरकार की पूरी कोशिश होगी 10 की 10 सीट वह जीते, लेकिन यह मुमकिन नहीं लगता। कम से कम तीन सीटें ( करहल, कुंदरकी और सीसामऊ) ऐसी हैं, जहां सपा को हरा पाना भाजपा के लिए आसान नहीं है। 2 सीट गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर सीट पर भाजपा को हरा पाना आसान नहीं है। ……………………… डिटेल में पढ़िए, सभी 9 सीटों की ग्राउंड रिपोर्ट फूलपुर में BJP मजबूत, सीसामऊ में नसीम के साथ संवेदनाएं: इरफान की सीट पर दलित पलटे तभी खिलेगा कमल कुंदरकी में भाजपा, मीरापुर में रालोद मजबूत: मायावती, चंद्रशेखर और ओवैसी की पार्टी बिगाड़ रहीं सपा के समीकरण, ध्रुवीकरण से बदलेगा माहौल अखिलेश की करहल सीट पर ‘भतीजा’ मजबूत: 2002 के यादव फॉर्मूले से BJP को जीत की उम्मीद; अनुजेश को उतार मुकाबले में आई गाजियाबाद और खैर सीट पर भाजपा मजबूत: सपा को जाट दिला सकते हैं बढ़त, मायावती-चंद्रशेखर बिगाड़ रहे समीकरण कटेहरी और मझवां में भाजपा मजबूत: अंबेडकरनगर में अवधेश की नाराजगी, मिर्जापुर में संजय निषाद की कंट्रोवर्सी बदल सकती है समीकरण