हरियाणा में कांग्रेस ने बहुत ही सधे अंदाज में गुरुग्राम से मोहित ग्रोवर व बादशाहपुर से वर्धन यादव पर दांव लगाकर बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है। कांग्रेस इनके जरिए यूथ वोटर्स में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश में है। इसके चलते गुरुग्राम-बादशाहपुर दोनों ही विधानसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन रही है। हालांकि आप का कांग्रेस से गठबंधन हो गया तो फिर गुरुग्राम में बीजेपी के लिए कुछ राहत की खबर हो सकती है। फिलहाल गुरुग्राम सीट पर बीजेपी से बागी होकर चुनावी रण में उतरे नवीन गोयल ने बीजेपी प्रत्याशी की परेशानी बढ़ा रखी है। पंजाबी वोटर्स को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने एक माह पहले पार्टी में आए मोहित ग्रोवर पर दांव लगाया है। बादशाहपुर में राव नरबीर सिंह के कद के आगे वर्धन यादव उनको कड़ी चुनौती देने में शायद ही सफल होंगे। गुरुग्राम में कड़े मुकाबले की संभावनाएं बन रहीं हैं, तो बादशाहपुर में नरबीर सिंह के सामने भीतरघात से निपटना एक बड़ी चुनौती है। भाजपा ब्राह्मण चेहरे पर दांव सबसे पहले गुरुग्राम सीट की बात करें तो बीजेपी ने शायद पहली बार ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा पर दांव लगाया है। जबकि उसके मूल कैडर वोटर्स पंजाबी व वैश्य हैं। वहीं कांग्रेस ने करीब एक लाख वोटर्स वाले पंजाबी चेहरे मोहित ग्रोवर पर दांव लगाकर बीजेपी को घेरने की कोशिश की है। कांग्रेस की सोच है कि पंजाबी चेहरे के नाम पर पूरा समाज एकजुट होगा और पार्टी सिंबल होने से मोहित आसानी से जीत हासिल कर लेंगे। 2019 में मोहित दे चुके कड़ी चुनौती 2019 के चुनाव में मोहित ने निर्दलीय चुनाव लड़कर करीब 25 प्रतिशत वोट हासिंल कर बीजेपी के सुधीर सिंगला के बाद दूसरा स्थान हासिल किया था। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व खेल मंत्री सुखबीर कटारिया तीसरे नंबर पर रहे थे। इसी के चलते सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने एक माह पहले ही मोहित ग्रोवर को कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कराई और अब टिकट थमा बीजेपी की धड़कने बड़ा दी हैं। हालांकि बीजेपी से बागी होकर निर्दलीय चुनावी रण में नवीन गोयल के कारण यहां पर इस समय त्रिकोणीय मुकाबला बनता नजर आ रहा है। वर्धन यादव के सामने कई चुनौती बादशाहपुर हलका में कांग्रेस ने भले ही यूथ चेहरे वर्धन यादव पर दांव लगाया है, लेकिन वह पूर्व मंत्री व प्रदेश के बड़े नेता राव नरबीर सिंह के कद के सामने कहीं टिकते नजर नहीं आते हैं। वैसे भी वर्धन का यह पहला चुनाव है और चुनाव लड़ने का भी उनको अनुभव नहीं है। साथ ही उनके पास सीमित टीम व वर्कर्स हैं। लोकसभा चुनाव में भी वह टिकट के दावेदार थे, लेकिन राजबब्बर के कारण उनका नाम पीछे रह गया था। हालांकि वह अपनी बादशाहपुर विधानसभा से भी राजबब्बर को नहीं जीता पाए थे और इसी के चलते साफ है कि यहां पर उनको अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए काफी पसीना बहाना पड़ेगा। दीपेंद्र हुड्डा व राहुल गांधी के करीबी होने के साथ ही यूथ चेहरे के कारण उनको कांग्रेस ने टिकट तो दे दिया, लेकिन राव नरबीर को चुनौती देना उनके लिए बड़ा टॉस्क है। नरबीर बादशाहपुर से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और इसके पहले वह अलग-अलग विधानसभाओं से चुनाव लड़ते आए हैं। 2019 में नरबीर की टिकट कटने के बाद भी वह बादशाहपुर में सक्रिय हैं और बीजेपी ही नहीं बल्कि उनकी अपनी खुद की मजबूत टीम क्षेत्र में सक्रिय है। वहीं यहां पर 2019 में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले स्व. राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी जाट चेहरे के रूप में निर्दलीय चुनावी रण में हैं। हालांकि राकेश दौलताबाद वाली बात तो नहीं है लेकिन सहानुभूति के सहारे वह यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला बनाने में जुटी हुईं हैं। गुरुग्राम कांग्रेस के जाट नेता नाराज
पूर्व खेल मंत्री सुखबीर कटारिया पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के करीबी थे और गुरुग्राम से वह प्रबल दावेदार थे। हालांकि 2014 में निर्दलीय व 2019 में कांग्रेस टिकट से हारने के कारण कांग्रेस हाईकमान ने उनके नाम पर विचार नहीं किया। वहीं दीपेंद्र हुड्डा एक महीने पहले मोहित ग्रोवर को कांग्रेस में लाए और टिकट भी दिला दी। अब कांग्रेस के जाट नेता इसको हजम नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि सुखबीर कटारिया खुलकर कुछ नहीं कह रहे और मोहित ग्रोवर की मदद की बात कर रहे हैं, लेकिन टिकट कटने से अंदरखाने तो सब ठीक नहीं चल रहा होगा। वहीं पूर्व चेयरमैन कुलदीप कटारिया जो कि गुरुग्राम गांव से आते हैं वह अपने राजस्थान के माध्यम से टिकट की दावेदारी कर रहे थे लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। वह दीपेंद्र हुड्डा के भी करीबी हैं और अब टिकट कटने पर समर्थकों की बैठक बुलाकर आगे की रणनीति बना रहे हैं। जाट भले ही बीजेपी से नाराज हो लेकिन कांग्रेस में टिकट नहीं मिलने से वह भी व्यथित नजर आ रहा है। बीजेपी की पंजाबी नेताओं पर नजर
गुरुग्राम पंजाबी बाहुल्य सीट है और यहां पर कांग्रेस का एकाधिकार भी रहा है। इस बार कांग्रेस ने पंजाबी चेहरे पर दांव लगाया है लेकिन सभी की नजर बीजेपी पंजाबी नेताओं पर है। बीजेपी से पंजाबी चेहरे में पूर्व सीनियर डिप्टी मेयर यशपाल बत्रा, पूर्व जिलाध्यक्ष गार्गी कक्कड़, स्वामी धर्मदेव, बोधराज सिकरी, सीमा पाहूजा आदि टिकट की रेस में थे। अब यह समाज के साथ जाएंगे या फिर बीजेपी संग खड़े रहेंगे यह देखना दिलचस्प होगा। हालांकि ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा को लेकर पंजाबी नेताओं में खासी नाराजगी है। ओबीसी यादव वोट बंटने पर कुमुदनी देख रहीं अपना फायदा
बादशाहपुर सीट पर बीजेपी-कांग्रेस दोनों ने ही ओबीसी यानि यादव वोट पर विश्वास जताया है। बीजेपी में यादव समाज की ओर से 2019 का चुनाव लड़ने वाले मनीष यादव, पूर्व सीएम के ओएसडी रहे जवाहर यादव भी टिकट रेस में थे। अब यह दोनों नरबीर का कितना साथ देंगे या फिर 2019 की कहानी दोहराई जाएगी इस पर सभी की नजर है। 2019 चुनाव निर्दलीय जीतने वाले स्व. राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी को उम्मीद है कि कांग्रेस-बीजेपी के दोनों प्रत्याशी यादव हैं, तो यह वोट बंटेगा। वहीं जाट के साथ ही 2019 में राकेश दौलताबाद का साथ देने वाला वोटर सहानुभूति के साथ इस बार पहले से भी अधिक साथ देगा। निर्दलीय ही चुनावी रण में कूदेंगे बीर सिंह आप नेता बीर सिंह राणा उर्फ बीरू सरपंच बादशाहपुर सीट पर लगातार सक्रिय हैं। बड़े-बड़े प्रोग्राम के साथ बड़े स्तर पर जनसंपर्क अभियान कर वह लोगों तक अपनी पहुंच बनाने में लगे हैं। हालांकि आप-कांग्रेस का गठबंधन नहीं हुआ है और कांग्रेस ने बादशाहपुर से प्रत्याशी उतार दिया है, तो साफ है कि बीर सिंह यहां से निर्दलीय चुनावी रण में उतरेंगे। बीर सिंह बताते हैं कि क्षेत्र में उनकी अपनी पहचान है और जनहित के मुद्दे उठाने के साथ ही लोगों की समस्याओं को लेकर उनकी संस्था लगातार सक्रिय है। खुद क्षेत्र के लोग उनको निर्दलीय चुनाव लड़ने का प्रेशर बना रहे हैं। इसके चलते वह जनता के निशान पर चुनाव लड़ेंगे। गुरुग्राम में मोहित का मजबूत पक्ष… -कांग्रेस पार्टी का सिंबल और हुड्डा खेमे की मदद
-पंजाबी चेहरा होने से समाज के वोट एकजुट होने की उम्मीद
-यूवा होने के चलते यूथ वोटर्स में मजबूत पकड़
-पिता स्व. मदन लाल ग्रोवर की पंजाबी समाज में पकड़ मोहित के कमजोर पहलू… -कांग्रेस पार्टी की गुटबाजी
-टिकट कटने से नाराज नेताओं की नाराजगी
-जाट समाज को साथ लाना
-2019 के चुनाव के बाद निष्क्रिय
-लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर का साथ नहीं देने के आरोप वर्धन यादव का मजबूत पक्ष… -राहुल गांधी व दीपेंद्र हुड्डा से नजदीकी
-युवा होने के चलते यूथ वोटर्स में पकड़
-एनएसयूआई के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेशाध्यक्ष होने से यूथ टीम मजबूत वर्धन का कमजोर पहलू… -चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं
-लोकसभा चुनाव में टिकट कटने पर प्रचार से दूर रहना
-कांग्रेस के साथ ही खुद की सीमित टीम
-बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्र में मजबूत पकड़ नहीं हरियाणा में कांग्रेस ने बहुत ही सधे अंदाज में गुरुग्राम से मोहित ग्रोवर व बादशाहपुर से वर्धन यादव पर दांव लगाकर बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है। कांग्रेस इनके जरिए यूथ वोटर्स में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश में है। इसके चलते गुरुग्राम-बादशाहपुर दोनों ही विधानसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन रही है। हालांकि आप का कांग्रेस से गठबंधन हो गया तो फिर गुरुग्राम में बीजेपी के लिए कुछ राहत की खबर हो सकती है। फिलहाल गुरुग्राम सीट पर बीजेपी से बागी होकर चुनावी रण में उतरे नवीन गोयल ने बीजेपी प्रत्याशी की परेशानी बढ़ा रखी है। पंजाबी वोटर्स को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने एक माह पहले पार्टी में आए मोहित ग्रोवर पर दांव लगाया है। बादशाहपुर में राव नरबीर सिंह के कद के आगे वर्धन यादव उनको कड़ी चुनौती देने में शायद ही सफल होंगे। गुरुग्राम में कड़े मुकाबले की संभावनाएं बन रहीं हैं, तो बादशाहपुर में नरबीर सिंह के सामने भीतरघात से निपटना एक बड़ी चुनौती है। भाजपा ब्राह्मण चेहरे पर दांव सबसे पहले गुरुग्राम सीट की बात करें तो बीजेपी ने शायद पहली बार ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा पर दांव लगाया है। जबकि उसके मूल कैडर वोटर्स पंजाबी व वैश्य हैं। वहीं कांग्रेस ने करीब एक लाख वोटर्स वाले पंजाबी चेहरे मोहित ग्रोवर पर दांव लगाकर बीजेपी को घेरने की कोशिश की है। कांग्रेस की सोच है कि पंजाबी चेहरे के नाम पर पूरा समाज एकजुट होगा और पार्टी सिंबल होने से मोहित आसानी से जीत हासिल कर लेंगे। 2019 में मोहित दे चुके कड़ी चुनौती 2019 के चुनाव में मोहित ने निर्दलीय चुनाव लड़कर करीब 25 प्रतिशत वोट हासिंल कर बीजेपी के सुधीर सिंगला के बाद दूसरा स्थान हासिल किया था। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व खेल मंत्री सुखबीर कटारिया तीसरे नंबर पर रहे थे। इसी के चलते सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने एक माह पहले ही मोहित ग्रोवर को कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कराई और अब टिकट थमा बीजेपी की धड़कने बड़ा दी हैं। हालांकि बीजेपी से बागी होकर निर्दलीय चुनावी रण में नवीन गोयल के कारण यहां पर इस समय त्रिकोणीय मुकाबला बनता नजर आ रहा है। वर्धन यादव के सामने कई चुनौती बादशाहपुर हलका में कांग्रेस ने भले ही यूथ चेहरे वर्धन यादव पर दांव लगाया है, लेकिन वह पूर्व मंत्री व प्रदेश के बड़े नेता राव नरबीर सिंह के कद के सामने कहीं टिकते नजर नहीं आते हैं। वैसे भी वर्धन का यह पहला चुनाव है और चुनाव लड़ने का भी उनको अनुभव नहीं है। साथ ही उनके पास सीमित टीम व वर्कर्स हैं। लोकसभा चुनाव में भी वह टिकट के दावेदार थे, लेकिन राजबब्बर के कारण उनका नाम पीछे रह गया था। हालांकि वह अपनी बादशाहपुर विधानसभा से भी राजबब्बर को नहीं जीता पाए थे और इसी के चलते साफ है कि यहां पर उनको अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए काफी पसीना बहाना पड़ेगा। दीपेंद्र हुड्डा व राहुल गांधी के करीबी होने के साथ ही यूथ चेहरे के कारण उनको कांग्रेस ने टिकट तो दे दिया, लेकिन राव नरबीर को चुनौती देना उनके लिए बड़ा टॉस्क है। नरबीर बादशाहपुर से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और इसके पहले वह अलग-अलग विधानसभाओं से चुनाव लड़ते आए हैं। 2019 में नरबीर की टिकट कटने के बाद भी वह बादशाहपुर में सक्रिय हैं और बीजेपी ही नहीं बल्कि उनकी अपनी खुद की मजबूत टीम क्षेत्र में सक्रिय है। वहीं यहां पर 2019 में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले स्व. राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी जाट चेहरे के रूप में निर्दलीय चुनावी रण में हैं। हालांकि राकेश दौलताबाद वाली बात तो नहीं है लेकिन सहानुभूति के सहारे वह यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला बनाने में जुटी हुईं हैं। गुरुग्राम कांग्रेस के जाट नेता नाराज
पूर्व खेल मंत्री सुखबीर कटारिया पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के करीबी थे और गुरुग्राम से वह प्रबल दावेदार थे। हालांकि 2014 में निर्दलीय व 2019 में कांग्रेस टिकट से हारने के कारण कांग्रेस हाईकमान ने उनके नाम पर विचार नहीं किया। वहीं दीपेंद्र हुड्डा एक महीने पहले मोहित ग्रोवर को कांग्रेस में लाए और टिकट भी दिला दी। अब कांग्रेस के जाट नेता इसको हजम नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि सुखबीर कटारिया खुलकर कुछ नहीं कह रहे और मोहित ग्रोवर की मदद की बात कर रहे हैं, लेकिन टिकट कटने से अंदरखाने तो सब ठीक नहीं चल रहा होगा। वहीं पूर्व चेयरमैन कुलदीप कटारिया जो कि गुरुग्राम गांव से आते हैं वह अपने राजस्थान के माध्यम से टिकट की दावेदारी कर रहे थे लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। वह दीपेंद्र हुड्डा के भी करीबी हैं और अब टिकट कटने पर समर्थकों की बैठक बुलाकर आगे की रणनीति बना रहे हैं। जाट भले ही बीजेपी से नाराज हो लेकिन कांग्रेस में टिकट नहीं मिलने से वह भी व्यथित नजर आ रहा है। बीजेपी की पंजाबी नेताओं पर नजर
गुरुग्राम पंजाबी बाहुल्य सीट है और यहां पर कांग्रेस का एकाधिकार भी रहा है। इस बार कांग्रेस ने पंजाबी चेहरे पर दांव लगाया है लेकिन सभी की नजर बीजेपी पंजाबी नेताओं पर है। बीजेपी से पंजाबी चेहरे में पूर्व सीनियर डिप्टी मेयर यशपाल बत्रा, पूर्व जिलाध्यक्ष गार्गी कक्कड़, स्वामी धर्मदेव, बोधराज सिकरी, सीमा पाहूजा आदि टिकट की रेस में थे। अब यह समाज के साथ जाएंगे या फिर बीजेपी संग खड़े रहेंगे यह देखना दिलचस्प होगा। हालांकि ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा को लेकर पंजाबी नेताओं में खासी नाराजगी है। ओबीसी यादव वोट बंटने पर कुमुदनी देख रहीं अपना फायदा
बादशाहपुर सीट पर बीजेपी-कांग्रेस दोनों ने ही ओबीसी यानि यादव वोट पर विश्वास जताया है। बीजेपी में यादव समाज की ओर से 2019 का चुनाव लड़ने वाले मनीष यादव, पूर्व सीएम के ओएसडी रहे जवाहर यादव भी टिकट रेस में थे। अब यह दोनों नरबीर का कितना साथ देंगे या फिर 2019 की कहानी दोहराई जाएगी इस पर सभी की नजर है। 2019 चुनाव निर्दलीय जीतने वाले स्व. राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी को उम्मीद है कि कांग्रेस-बीजेपी के दोनों प्रत्याशी यादव हैं, तो यह वोट बंटेगा। वहीं जाट के साथ ही 2019 में राकेश दौलताबाद का साथ देने वाला वोटर सहानुभूति के साथ इस बार पहले से भी अधिक साथ देगा। निर्दलीय ही चुनावी रण में कूदेंगे बीर सिंह आप नेता बीर सिंह राणा उर्फ बीरू सरपंच बादशाहपुर सीट पर लगातार सक्रिय हैं। बड़े-बड़े प्रोग्राम के साथ बड़े स्तर पर जनसंपर्क अभियान कर वह लोगों तक अपनी पहुंच बनाने में लगे हैं। हालांकि आप-कांग्रेस का गठबंधन नहीं हुआ है और कांग्रेस ने बादशाहपुर से प्रत्याशी उतार दिया है, तो साफ है कि बीर सिंह यहां से निर्दलीय चुनावी रण में उतरेंगे। बीर सिंह बताते हैं कि क्षेत्र में उनकी अपनी पहचान है और जनहित के मुद्दे उठाने के साथ ही लोगों की समस्याओं को लेकर उनकी संस्था लगातार सक्रिय है। खुद क्षेत्र के लोग उनको निर्दलीय चुनाव लड़ने का प्रेशर बना रहे हैं। इसके चलते वह जनता के निशान पर चुनाव लड़ेंगे। गुरुग्राम में मोहित का मजबूत पक्ष… -कांग्रेस पार्टी का सिंबल और हुड्डा खेमे की मदद
-पंजाबी चेहरा होने से समाज के वोट एकजुट होने की उम्मीद
-यूवा होने के चलते यूथ वोटर्स में मजबूत पकड़
-पिता स्व. मदन लाल ग्रोवर की पंजाबी समाज में पकड़ मोहित के कमजोर पहलू… -कांग्रेस पार्टी की गुटबाजी
-टिकट कटने से नाराज नेताओं की नाराजगी
-जाट समाज को साथ लाना
-2019 के चुनाव के बाद निष्क्रिय
-लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर का साथ नहीं देने के आरोप वर्धन यादव का मजबूत पक्ष… -राहुल गांधी व दीपेंद्र हुड्डा से नजदीकी
-युवा होने के चलते यूथ वोटर्स में पकड़
-एनएसयूआई के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेशाध्यक्ष होने से यूथ टीम मजबूत वर्धन का कमजोर पहलू… -चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं
-लोकसभा चुनाव में टिकट कटने पर प्रचार से दूर रहना
-कांग्रेस के साथ ही खुद की सीमित टीम
-बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्र में मजबूत पकड़ नहीं हरियाणा | दैनिक भास्कर