‘यूपी सरकार प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारी कर रही। कुंभ में एक दिन में 3 करोड़ श्रद्धालु आएंगे। सरकार पूरी व्यवस्था करेगी, सुरक्षा देगी और श्रद्धालुओं को वापस घर पहुंचाने में भी मदद करेगी। अगर वह 3 करोड़ श्रद्धालुओं की व्यवस्था कर सकते हैं तो फिर पूरे राज्य में एक साथ 10 लाख युवाओं परीक्षा नहीं करवा सकते?’ ये सवाल सिविल परीक्षाओं की तैयारी कर रहे सिद्धांत श्रीवास्तव के हैं…। यूपी सरकार ने पहली बार यूपी पीसीएस और आरओ-एआरओ की परीक्षा को दो दिन में करवाने का फैसला किया और डेट घोषित कर दी। डेट सामने आने के बाद अभ्यर्थियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। नॉर्मलाइजेशन या नॉर्मलाइज्ड स्कोर के नुकसान बताने लगे। फैसले को लेकर आयोग का अपना तर्क है। इन सबके बीच अभ्यर्थी 11 नवंबर को प्रयागराज में बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में है। आखिर नॉर्मलाइजेशन क्या है? विरोध में अभ्यर्थियों के तर्क क्या हैं? कैसे यह पीसीएस और आरओ-एआरओ की परीक्षा को प्रभावित करेगा? कैसे तय होगा कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सरल है? आयोग को दो दिन परीक्षा करवाने की जरूरत क्यों पड़ी? इन सवालों को लेकर हम कंपटीशन की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स और पढ़ाने वाले टीचर्स से बात की। सबसे पहले दोनों परीक्षाओं की बात… 24 जिलों में परीक्षा नहीं होगी: यूपी लोक सेवा आयोग ने 5 नवंबर की शाम यूपी पीसीएस और आरओ-एआरओ परीक्षा की तारीखों की घोषणा कर दी। 220 पदों पर भर्ती होनी है। पीसीएस प्री परीक्षा 7 और 8 दिसंबर को दो शिफ्ट में होगी। आरओ-एआरओ की प्री परीक्षा तीन शिफ्ट में होगी। दो शिफ्ट 22 दिसंबर को और 1 शिफ्ट 23 दिसंबर को होगी। पीसीएस की परीक्षा के लिए 5 लाख 76 हजार 154 अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा है। वहीं, आरओ-एआरओ के लिए 10 लाख 76 हजार 4 अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा है। तारीखों की घोषणा करते वक्त आयोग के बताया- एक साथ परीक्षा करवाने के लिए 1758 सेंटर की जरूरत है। लेकिन, 41 जिलों में 978 ही योग्य मिले। इसमें एक साथ 4 लाख 35 हजार 74 अभ्यर्थी परीक्षा दे सकते हैं। इसलिए परीक्षा दो दिन में करवाने का फैसला किया गया है। किसी भी परीक्षार्थी के साथ कोई दिक्कत न हो, इसके लिए नियम के मुताबिक नॉर्मलाइजेशन होगा। हम युवाओं से बात करने लखनऊ के कपूरथला इलाके में पहुंचे। यहां बड़ी संख्या में युवा सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। हमें मयंक शुक्ला मिले। मयंक यूपीपीसीएस की परीक्षा देते आ रहे हैं। वह कहते हैं, यह आयोग और सरकार की मनमानी है, जो पीसीएस जैसी परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन जैसी व्यवस्था को लेकर आ रहे हैं। आप आसपास के राज्यों को देखिए, कहीं भी इस तरह की व्यवस्था नहीं है। मयंक कहते हैं, नॉर्मलाइजेशन में सबसे बड़ी समस्या यह है कि दो शिफ्ट में पेपर होगा तो कैसे तय करेंगे कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सा सरल होगा। क्या पता जिसे हार्ड बताया जा रहा, वह हमें आसान लगे। सेंटर्स नहीं मिलने के तर्क पर वह कहते हैं, आखिर 41 जिलों में ही परीक्षा क्यों करवाई जा रही, क्या बाकी 34 जिलों में सेंटर नहीं मिले। कई सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं, इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, उन्हें भी तो सेंटर बनाया जा सकता है। रही बात परीक्षा लीक की तो आरओ-एआरओ परीक्षा सेंटर से नहीं, बल्कि प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुई थी। इस बार भी प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेस से पेपर छप रहा है। मयंक कहते हैं, नॉर्मलाइजेशन की वजह से यह भर्ती कोर्ट में जाएगी और फंस जाएगी। सरकार का यही मकसद है। सरकार के सामने पारदर्शी परीक्षा करवाने की चुनौती रेस आईएएस कोचिंग के टीचर नवनाथ मिश्रा कहते हैं, यहां छात्र अपने पक्ष की चुनौती देख रहे, सरकार के पास भी अपनी चुनौती है। फॉर्म की संख्या ज्यादा है, इसलिए ट्रांसपेरैंसी के लिए दो दिन में परीक्षा करवाई जा रही। 2013 के पहले आप चले जाइए, तब लड़के ने दो सब्जेक्ट में ऑप्शनल ले लिया। कोई हिस्ट्री-मैथ तो कोई जियोग्राफी व हिस्ट्री। तब भी कम-ज्यादा नंबर का मामला आता था। उस वक्त स्केलिंग प्रोसेस अपनाया जाता था। नवनाथ कहते हैं, 41 जिलों में परीक्षा करवाने को लेकर छात्र जो कह रहे हैं, वह भी ठीक है, लेकिन सरकार भी गलत नहीं है। उन्हें लग रहा कि इन-इन जिलों में परीक्षा करवाने से हम बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था दे सकते हैं तो यह बेहतर ही है, निश्चित तौर पर वह 75 में 45 जिले कर सकते हैं। चुनाव भी इसी तरह से होता है, कोई कहे कि 7 चरणों में क्यों होता है, एक चरण में करवा दीजिए। अब बात आयोग के तर्क और छात्रों के तर्क को समझते हैं… आयोग का तर्कः प्राइवेट स्कूलों में पेपर लीक की आशंका है। इसलिए सरकारी कॉलेजों को ही सेंटर बनाया जाएगा। ये सभी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर के अंदर होंगे।
छात्रों का जवाबः पिछली बार आरओ-एआरओ पेपर किसी सेंटर से नहीं, बल्कि प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था। जो छात्र दूसरे जिले में परीक्षा देने जा सकता है, वह जिला मुख्यालय से 30-40 किलोमीटर दूर भी जा सकता है। वहां भी तो सरकारी स्कूल हैं। आयोग का तर्कः नॉर्मलाइजेशन को लेकर किसी अभ्यर्थी के साथ गलत नहीं होगा। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व केरल में भी यह है।
छात्रों का जवाबः आखिर कैसे तय होगा कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सा सरल था। हो सकता है कि जो पेपर कठिन लग रहा, वह किसी को सरल लग रहा हो! परीक्षा होने के बाद स्वाभाविक विवाद होगा और भर्ती कोर्ट में फंस जाएगी। आयोग का तर्कः सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए 41 जिलों में ही सेंटर बनाए गए हैं।
छात्रों का जवाबः कुंभ में एक दिन में 3 करोड़ श्रद्धालु आएंगे और स्नान करेंगे, सरकार और प्रशासन उन्हें सुरक्षा मुहैया करवाएगा और आराम से घर भेज देगा। क्या यही शासन-प्रशासन पूरे यूपी में एक साथ 10 लाख अभ्यर्थियों की परीक्षा नहीं करवा सकते? नॉर्मलाइजेशन को लेकर आयोग के सचिव अशोक कुमार कहते हैं, जितने फॉर्म भरे गए हैं, उनका एक दिन में परीक्षा करवा पाना संभव नहीं दिखता। हमने सेंटर बनाते वक्त यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज को भी शामिल किया, लेकिन पर्याप्त संख्या में केंद्र नहीं मिल सके। बाकी इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन की जिस प्रक्रिया को अपनाया गया है, उसे सिविल अपील उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य बनाम अतुल कुमार द्विवेदी व अन्य में 7 जनवरी 2024 को पारित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में ठीक माना गया है। केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में यह प्रक्रिया पहले से चल रही। अब समझते हैं कि नॉर्मलाइजेशन होता क्या है?
जो परीक्षाएं एक दिन में एक शिफ्ट में खत्म हो रही हैं, उसमें नॉर्मलाइजेशन नहीं अपनाया जाता। लेकिन, जो परीक्षा अलग-अलग डेट पर होती है, अलग-अलग प्रश्न पत्र होते हैं, उसमें यह अपनाया जाता है। क्योंकि हर पेपर के डिफिकल्टी लेवल में थोड़ा अंतर हो सकता है। इस कारण सरल आए पेपर के ही शिफ्ट के छात्रों को ही फायदा न हो, इसलिए नॉर्मलाइजेशन प्रोसेस अपनाया जाता है। इसके लिए विभाग एक फॉर्मूले के आधार पर काम करता है। वह फॉर्मूला यह है- इसे उदाहरण से ऐसे समझिए मान लीजिए कोई परीक्षा तीन शिफ्ट में हो रही है। हर शिफ्ट में 5-5 अभ्यर्थी शामिल हुए। प्रश्न पत्र कठिन आया। अभ्यर्थियों को क्रमशः 80, 85, 90, 95,100 नंबर मिला। दूसरी शिफ्ट का पेपर सरल आया। उसमें शामिल 5 अभ्यर्थियों को 110, 115, 120, 125, 130 नंबर मिला। तीसरी शिफ्ट का पेपर नॉर्मल रहा। उसमें शामिल 5 अभ्यर्थियों को 90, 95, 100, 105, 110 नंबर मिला। इसे देखने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूसरी शिफ्ट के अभ्यर्थी ज्यादा सिलेक्ट होंगे। इसलिए यहां नॉर्मलाइजेशन अपनाया जाएगा। उदाहरण में जो तीन शिफ्ट बताया है, उसमें दूसरी शिफ्ट को ऊपर रखा जाएगा। पहली शिफ्ट वालों को 30-30 नंबर एक्स्ट्रा मिलेगा। तीसरी शिफ्ट वालों को 20-20 नंबर एक्स्ट्रा मिलेगा। इस तरह से इस परीक्षा का औसत 120 नंबर होगा। यह समझाने के लिए एक उदाहरण मात्र है। अलग-अलग परीक्षाओं में अलग-अलग मानक होते हैं। जैसे इस साल के शुरुआत में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए ने JEE Main के रिजल्ट में किया था। पहली बार 56 अभ्यर्थियों को 100% नंबर दिया गया था। यह स्कोर अलग-अलग दिन, अलग-अलग शिफ्ट में हुई परीक्षा और उस शिफ्ट में शामिल स्टूडेंट्स की परफॉर्मेंस के आधार पर होती है। —————————————- यह भी पढ़ें:- राजीव ने एक-दिन पहले गर्लफ्रेंड को भेजा RO/ARO का पेपर:दूसरी गर्लफ्रेंड पैसे का हिसाब देखती थी, ज्यादा कमाने के चक्कर में फंसा यूपी RO/ARO पेपर लीक मामले की 2 कड़ियां है। पहली- भोपाल के प्रिंटिंग प्रेस से पेपर पानी की बोतल में छिपाकर बाहर लाया गया और लीक हुआ। दूसरी- प्रयागराज के बिशप जॉनसन स्कूल से आउट हुआ। दोनों कड़ियां एक व्यक्ति मास्टरमाइंड राजीव नयन मिश्रा से जुड़ती हैं। उसने ही भोपाल और प्रयागराज से पेपर लीक कराया। पढ़ें पूरी खबर… ‘यूपी सरकार प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारी कर रही। कुंभ में एक दिन में 3 करोड़ श्रद्धालु आएंगे। सरकार पूरी व्यवस्था करेगी, सुरक्षा देगी और श्रद्धालुओं को वापस घर पहुंचाने में भी मदद करेगी। अगर वह 3 करोड़ श्रद्धालुओं की व्यवस्था कर सकते हैं तो फिर पूरे राज्य में एक साथ 10 लाख युवाओं परीक्षा नहीं करवा सकते?’ ये सवाल सिविल परीक्षाओं की तैयारी कर रहे सिद्धांत श्रीवास्तव के हैं…। यूपी सरकार ने पहली बार यूपी पीसीएस और आरओ-एआरओ की परीक्षा को दो दिन में करवाने का फैसला किया और डेट घोषित कर दी। डेट सामने आने के बाद अभ्यर्थियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। नॉर्मलाइजेशन या नॉर्मलाइज्ड स्कोर के नुकसान बताने लगे। फैसले को लेकर आयोग का अपना तर्क है। इन सबके बीच अभ्यर्थी 11 नवंबर को प्रयागराज में बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में है। आखिर नॉर्मलाइजेशन क्या है? विरोध में अभ्यर्थियों के तर्क क्या हैं? कैसे यह पीसीएस और आरओ-एआरओ की परीक्षा को प्रभावित करेगा? कैसे तय होगा कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सरल है? आयोग को दो दिन परीक्षा करवाने की जरूरत क्यों पड़ी? इन सवालों को लेकर हम कंपटीशन की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स और पढ़ाने वाले टीचर्स से बात की। सबसे पहले दोनों परीक्षाओं की बात… 24 जिलों में परीक्षा नहीं होगी: यूपी लोक सेवा आयोग ने 5 नवंबर की शाम यूपी पीसीएस और आरओ-एआरओ परीक्षा की तारीखों की घोषणा कर दी। 220 पदों पर भर्ती होनी है। पीसीएस प्री परीक्षा 7 और 8 दिसंबर को दो शिफ्ट में होगी। आरओ-एआरओ की प्री परीक्षा तीन शिफ्ट में होगी। दो शिफ्ट 22 दिसंबर को और 1 शिफ्ट 23 दिसंबर को होगी। पीसीएस की परीक्षा के लिए 5 लाख 76 हजार 154 अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा है। वहीं, आरओ-एआरओ के लिए 10 लाख 76 हजार 4 अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा है। तारीखों की घोषणा करते वक्त आयोग के बताया- एक साथ परीक्षा करवाने के लिए 1758 सेंटर की जरूरत है। लेकिन, 41 जिलों में 978 ही योग्य मिले। इसमें एक साथ 4 लाख 35 हजार 74 अभ्यर्थी परीक्षा दे सकते हैं। इसलिए परीक्षा दो दिन में करवाने का फैसला किया गया है। किसी भी परीक्षार्थी के साथ कोई दिक्कत न हो, इसके लिए नियम के मुताबिक नॉर्मलाइजेशन होगा। हम युवाओं से बात करने लखनऊ के कपूरथला इलाके में पहुंचे। यहां बड़ी संख्या में युवा सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। हमें मयंक शुक्ला मिले। मयंक यूपीपीसीएस की परीक्षा देते आ रहे हैं। वह कहते हैं, यह आयोग और सरकार की मनमानी है, जो पीसीएस जैसी परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन जैसी व्यवस्था को लेकर आ रहे हैं। आप आसपास के राज्यों को देखिए, कहीं भी इस तरह की व्यवस्था नहीं है। मयंक कहते हैं, नॉर्मलाइजेशन में सबसे बड़ी समस्या यह है कि दो शिफ्ट में पेपर होगा तो कैसे तय करेंगे कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सा सरल होगा। क्या पता जिसे हार्ड बताया जा रहा, वह हमें आसान लगे। सेंटर्स नहीं मिलने के तर्क पर वह कहते हैं, आखिर 41 जिलों में ही परीक्षा क्यों करवाई जा रही, क्या बाकी 34 जिलों में सेंटर नहीं मिले। कई सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं, इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, उन्हें भी तो सेंटर बनाया जा सकता है। रही बात परीक्षा लीक की तो आरओ-एआरओ परीक्षा सेंटर से नहीं, बल्कि प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुई थी। इस बार भी प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेस से पेपर छप रहा है। मयंक कहते हैं, नॉर्मलाइजेशन की वजह से यह भर्ती कोर्ट में जाएगी और फंस जाएगी। सरकार का यही मकसद है। सरकार के सामने पारदर्शी परीक्षा करवाने की चुनौती रेस आईएएस कोचिंग के टीचर नवनाथ मिश्रा कहते हैं, यहां छात्र अपने पक्ष की चुनौती देख रहे, सरकार के पास भी अपनी चुनौती है। फॉर्म की संख्या ज्यादा है, इसलिए ट्रांसपेरैंसी के लिए दो दिन में परीक्षा करवाई जा रही। 2013 के पहले आप चले जाइए, तब लड़के ने दो सब्जेक्ट में ऑप्शनल ले लिया। कोई हिस्ट्री-मैथ तो कोई जियोग्राफी व हिस्ट्री। तब भी कम-ज्यादा नंबर का मामला आता था। उस वक्त स्केलिंग प्रोसेस अपनाया जाता था। नवनाथ कहते हैं, 41 जिलों में परीक्षा करवाने को लेकर छात्र जो कह रहे हैं, वह भी ठीक है, लेकिन सरकार भी गलत नहीं है। उन्हें लग रहा कि इन-इन जिलों में परीक्षा करवाने से हम बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था दे सकते हैं तो यह बेहतर ही है, निश्चित तौर पर वह 75 में 45 जिले कर सकते हैं। चुनाव भी इसी तरह से होता है, कोई कहे कि 7 चरणों में क्यों होता है, एक चरण में करवा दीजिए। अब बात आयोग के तर्क और छात्रों के तर्क को समझते हैं… आयोग का तर्कः प्राइवेट स्कूलों में पेपर लीक की आशंका है। इसलिए सरकारी कॉलेजों को ही सेंटर बनाया जाएगा। ये सभी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर के अंदर होंगे।
छात्रों का जवाबः पिछली बार आरओ-एआरओ पेपर किसी सेंटर से नहीं, बल्कि प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था। जो छात्र दूसरे जिले में परीक्षा देने जा सकता है, वह जिला मुख्यालय से 30-40 किलोमीटर दूर भी जा सकता है। वहां भी तो सरकारी स्कूल हैं। आयोग का तर्कः नॉर्मलाइजेशन को लेकर किसी अभ्यर्थी के साथ गलत नहीं होगा। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व केरल में भी यह है।
छात्रों का जवाबः आखिर कैसे तय होगा कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सा सरल था। हो सकता है कि जो पेपर कठिन लग रहा, वह किसी को सरल लग रहा हो! परीक्षा होने के बाद स्वाभाविक विवाद होगा और भर्ती कोर्ट में फंस जाएगी। आयोग का तर्कः सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए 41 जिलों में ही सेंटर बनाए गए हैं।
छात्रों का जवाबः कुंभ में एक दिन में 3 करोड़ श्रद्धालु आएंगे और स्नान करेंगे, सरकार और प्रशासन उन्हें सुरक्षा मुहैया करवाएगा और आराम से घर भेज देगा। क्या यही शासन-प्रशासन पूरे यूपी में एक साथ 10 लाख अभ्यर्थियों की परीक्षा नहीं करवा सकते? नॉर्मलाइजेशन को लेकर आयोग के सचिव अशोक कुमार कहते हैं, जितने फॉर्म भरे गए हैं, उनका एक दिन में परीक्षा करवा पाना संभव नहीं दिखता। हमने सेंटर बनाते वक्त यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज को भी शामिल किया, लेकिन पर्याप्त संख्या में केंद्र नहीं मिल सके। बाकी इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन की जिस प्रक्रिया को अपनाया गया है, उसे सिविल अपील उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य बनाम अतुल कुमार द्विवेदी व अन्य में 7 जनवरी 2024 को पारित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में ठीक माना गया है। केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में यह प्रक्रिया पहले से चल रही। अब समझते हैं कि नॉर्मलाइजेशन होता क्या है?
जो परीक्षाएं एक दिन में एक शिफ्ट में खत्म हो रही हैं, उसमें नॉर्मलाइजेशन नहीं अपनाया जाता। लेकिन, जो परीक्षा अलग-अलग डेट पर होती है, अलग-अलग प्रश्न पत्र होते हैं, उसमें यह अपनाया जाता है। क्योंकि हर पेपर के डिफिकल्टी लेवल में थोड़ा अंतर हो सकता है। इस कारण सरल आए पेपर के ही शिफ्ट के छात्रों को ही फायदा न हो, इसलिए नॉर्मलाइजेशन प्रोसेस अपनाया जाता है। इसके लिए विभाग एक फॉर्मूले के आधार पर काम करता है। वह फॉर्मूला यह है- इसे उदाहरण से ऐसे समझिए मान लीजिए कोई परीक्षा तीन शिफ्ट में हो रही है। हर शिफ्ट में 5-5 अभ्यर्थी शामिल हुए। प्रश्न पत्र कठिन आया। अभ्यर्थियों को क्रमशः 80, 85, 90, 95,100 नंबर मिला। दूसरी शिफ्ट का पेपर सरल आया। उसमें शामिल 5 अभ्यर्थियों को 110, 115, 120, 125, 130 नंबर मिला। तीसरी शिफ्ट का पेपर नॉर्मल रहा। उसमें शामिल 5 अभ्यर्थियों को 90, 95, 100, 105, 110 नंबर मिला। इसे देखने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूसरी शिफ्ट के अभ्यर्थी ज्यादा सिलेक्ट होंगे। इसलिए यहां नॉर्मलाइजेशन अपनाया जाएगा। उदाहरण में जो तीन शिफ्ट बताया है, उसमें दूसरी शिफ्ट को ऊपर रखा जाएगा। पहली शिफ्ट वालों को 30-30 नंबर एक्स्ट्रा मिलेगा। तीसरी शिफ्ट वालों को 20-20 नंबर एक्स्ट्रा मिलेगा। इस तरह से इस परीक्षा का औसत 120 नंबर होगा। यह समझाने के लिए एक उदाहरण मात्र है। अलग-अलग परीक्षाओं में अलग-अलग मानक होते हैं। जैसे इस साल के शुरुआत में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए ने JEE Main के रिजल्ट में किया था। पहली बार 56 अभ्यर्थियों को 100% नंबर दिया गया था। यह स्कोर अलग-अलग दिन, अलग-अलग शिफ्ट में हुई परीक्षा और उस शिफ्ट में शामिल स्टूडेंट्स की परफॉर्मेंस के आधार पर होती है। —————————————- यह भी पढ़ें:- राजीव ने एक-दिन पहले गर्लफ्रेंड को भेजा RO/ARO का पेपर:दूसरी गर्लफ्रेंड पैसे का हिसाब देखती थी, ज्यादा कमाने के चक्कर में फंसा यूपी RO/ARO पेपर लीक मामले की 2 कड़ियां है। पहली- भोपाल के प्रिंटिंग प्रेस से पेपर पानी की बोतल में छिपाकर बाहर लाया गया और लीक हुआ। दूसरी- प्रयागराज के बिशप जॉनसन स्कूल से आउट हुआ। दोनों कड़ियां एक व्यक्ति मास्टरमाइंड राजीव नयन मिश्रा से जुड़ती हैं। उसने ही भोपाल और प्रयागराज से पेपर लीक कराया। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर