गोरखपुर में खून से मां दुर्गा का अभिषेक:श्रीनेत वंश के लोग 300 साल से नवमी को चढ़ाते हैं अपना रक्त, बच्चे भी होते हैं शामिल

गोरखपुर में खून से मां दुर्गा का अभिषेक:श्रीनेत वंश के लोग 300 साल से नवमी को चढ़ाते हैं अपना रक्त, बच्चे भी होते हैं शामिल

गोरखपुर के बांसगांव में श्रीनेत वंश के लोगों ने नवमी पर मां दुर्गा के चरणों में अपना रक्‍त अर्पित किया। ये अनोखी पंरपरा पिछले 300 साल से चली आ रही है। शुक्रवार को सुबह से ही इस मंदिर पर मां दुर्गा को रक्त चढ़ाने के लिए भक्त पहुंच रहे हैं। देश-विदेश में रहने वाले लोग यहां नवमी के दिन मां दुर्गा को अपना रक्त चढ़ाते हैं। खास बात यह है कि यहां नवजात के जन्म लेने के 12 दिन (बरही का कार्यक्रम समाप्त होने के बाद) बाद से ही उनका रक्त मां के चरणों में चढ़ाया जाता है। श्रद्धालु इन नवजातों को मां के दरबार में लेकर पहुंचते हैं। उसके मां-बाप इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। शरीर में 9 जगह से निकाला जाता है रक्त
मां को अपना रक्त अर्पित करने का भी पूरा विधान है। नाई उस्‍तरे से विवाहित पुरुषों के शरीर के नौ जगहों पर और बच्‍चों के माथे पर एक जगह चीरा लगाता है। फिर इसके बाद सभी जगहों के रक्त को बेलपत्र में रक्त लेकर इसे मां के चरणों में चढ़ाया किया जाता है। पशु बलि रोककर खुद का चढ़ाते हैं खून
मां को अपना रक्त अर्पित करने के बाद धूप, अगरबत्‍ती और हवनकुंड से निकलने वाली राख को कटी हुई जगह पर लगा लिया जाता है। पहले यहां पर जानवरों की बलि दी जाती थी, पर अब मंदिर परिसर में पशु बलि को रोककर रक्‍त चढ़ाई जाती है। रक्त चढ़ाने से नहीं होती कोई बीमारी
पुजारी श्रवण पाण्डेय ने बताया, लोगों का मानना है कि ये मां का आशीर्वाद ही है कि आज तक इतने सालों में न तो किसी को टिटनेस ही हुआ न ही घाव भरने के बाद कहीं कटे का निशान ही पड़ा। यहां के लोग मानते हैं कि मां को रक्‍त चढ़ाने से मां खुश होती है। श्रद्धालु का परिवार स्वस्थ और सम्पन्न दोनों रहता है। बांसगांव में इस परंपरा का निर्वाह ठीक उसी तरह कि‍या जा रहा है, जैसा उनके पुरखे किया करते थे। सभी का मानना है कि क्षत्रियों द्वारा लहू चढ़ाने पर मां का आशीर्वाद उन पर बना रहता है। गोरखपुर के बांसगांव में श्रीनेत वंश के लोगों ने नवमी पर मां दुर्गा के चरणों में अपना रक्‍त अर्पित किया। ये अनोखी पंरपरा पिछले 300 साल से चली आ रही है। शुक्रवार को सुबह से ही इस मंदिर पर मां दुर्गा को रक्त चढ़ाने के लिए भक्त पहुंच रहे हैं। देश-विदेश में रहने वाले लोग यहां नवमी के दिन मां दुर्गा को अपना रक्त चढ़ाते हैं। खास बात यह है कि यहां नवजात के जन्म लेने के 12 दिन (बरही का कार्यक्रम समाप्त होने के बाद) बाद से ही उनका रक्त मां के चरणों में चढ़ाया जाता है। श्रद्धालु इन नवजातों को मां के दरबार में लेकर पहुंचते हैं। उसके मां-बाप इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। शरीर में 9 जगह से निकाला जाता है रक्त
मां को अपना रक्त अर्पित करने का भी पूरा विधान है। नाई उस्‍तरे से विवाहित पुरुषों के शरीर के नौ जगहों पर और बच्‍चों के माथे पर एक जगह चीरा लगाता है। फिर इसके बाद सभी जगहों के रक्त को बेलपत्र में रक्त लेकर इसे मां के चरणों में चढ़ाया किया जाता है। पशु बलि रोककर खुद का चढ़ाते हैं खून
मां को अपना रक्त अर्पित करने के बाद धूप, अगरबत्‍ती और हवनकुंड से निकलने वाली राख को कटी हुई जगह पर लगा लिया जाता है। पहले यहां पर जानवरों की बलि दी जाती थी, पर अब मंदिर परिसर में पशु बलि को रोककर रक्‍त चढ़ाई जाती है। रक्त चढ़ाने से नहीं होती कोई बीमारी
पुजारी श्रवण पाण्डेय ने बताया, लोगों का मानना है कि ये मां का आशीर्वाद ही है कि आज तक इतने सालों में न तो किसी को टिटनेस ही हुआ न ही घाव भरने के बाद कहीं कटे का निशान ही पड़ा। यहां के लोग मानते हैं कि मां को रक्‍त चढ़ाने से मां खुश होती है। श्रद्धालु का परिवार स्वस्थ और सम्पन्न दोनों रहता है। बांसगांव में इस परंपरा का निर्वाह ठीक उसी तरह कि‍या जा रहा है, जैसा उनके पुरखे किया करते थे। सभी का मानना है कि क्षत्रियों द्वारा लहू चढ़ाने पर मां का आशीर्वाद उन पर बना रहता है।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर