वह 3 मार्च 2009 का दिन था, जब लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हमला हुआ था। खिलाड़ी होटल से स्टेडियम की ओर जा रहे थे। इस हमले में सात श्रीलंकाई खिलाड़ियों को मामूली चोटें आई थीं, लेकिन बस चालक मेहर मोहम्मद खलील ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार बस चलाते हुए सभी खिलाड़ियों को स्टेडियम तक पहुंचाकर ही दम लिया। इस दौरान पुलिसकर्मियों ने एक दर्जन से अधिक आतंकवादियों को रोके रखा, जो न केवल गोलियां चला रहे थे बल्कि रॉकेट भी दाग रहे थे। इस हमले में छह पुलिसकर्मी और दो आम नागरिक मारे गए। हमले में अंपायर अहसान रजा गंभीर रूप से घायल हो गए। तीन गोलियां उनके फेफड़ों, लिवर और पैरों में लगीं। कोमा से बाहर आने के बाद उन्हें दोबारा चलने में लगभग एक साल लग गया। उनके घावों पर 88 टांके लगे। उन्हें कई चिकित्सीय जटिलताओं का सामना करना पड़ा। साल 2019 में एक और ऑपरेशन हुआ, जिसमें उनके पेट पर 40 से अधिक टांके आए। इतनी तकलीफों और दर्द के बावजूद अहसान रजा ने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट अंपायर के रूप में अपने कॅरियर को जारी रखा। आज अहसान रजा उन 12 अंपायर्स में शामिल हैं, जो आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी 2025 का हिस्सा हैं। यह दास्तान सिर्फ अहसान रजा की नहीं है, बल्कि यह उस बड़ी कहानी का हिस्सा है जो बताती है कि पाकिस्तान क्रिकेट ने पिछले 16 वर्षों में एक आतंकवादी हमले के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रखा। पाकिस्तान ने आखिरी बार 1996 में भारत के साथ मिलकर आईसीसी वर्ल्ड कप की मेजबानी की थी। अब 29 साल बाद पाकिस्तान एक बार फिर आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी की मेजबानी कर रहा है। यह टूर्नामेंट पाकिस्तान के लिए भारतीय क्रिकेट टीम को हराने से भी बड़ी उपलब्धि है। 2009 में लाहौर हमले के बाद क्रिकेट खेलने वाले लगभग सभी देशों ने पाकिस्तान का दौरा करने से इनकार कर दिया था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पाकिस्तान में लगभग समाप्त हो चुका था। फिर 2015 में आईपीएल की तर्ज पर पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल) की शुरुआत की गई, ताकि देश में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को बचाया जा सके। पीएसएल 2025 जो इस साल अप्रैल में शुरू हो रहा है, में एक दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भाग लेंगे। भले ही पाकिस्तान क्रिकेट ने आतंकवादी हमले से बचकर अपनी पहचान फिर से बनाई है, लेकिन पाकिस्तान अब भी आतंकवाद से लड़ रहा है। वर्ष 2024 में पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में 2,500 से अधिक लोगों की जानें गईं, जिनमें 700 से अधिक सुरक्षाकर्मी शामिल थे। पाकिस्तान का आधा हिस्सा अब भी आतंकवाद की चपेट में है और चैम्पियंस ट्रॉफी के मैच केवल पाकिस्तान के सुरक्षित हिस्से में आयोजित किए जा रहे हैं। पाकिस्तानी प्रशंसक अनेक शानदार भारतीय क्रिकेटरों को देखने से वंचित रहेंगे, क्योंकि टीम के सभी मैच यूएई में खेले जाएंगे। पाकिस्तान में भारत के न खेलने के फैसले ने निश्चित रूप से पाकिस्तानी क्रिकेट प्रशंसकों को निराश किया है, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। पाकिस्तान इस भारतीय बहिष्कार को अलग नजरिए से देख रहा है। पाकिस्तानी फौज सभी क्रिकेट टीमों और मैचों की सुरक्षा को सीधे तौर पर संभाल रही है। यह चैम्पियंस ट्रॉफी न केवल पाकिस्तान की राजनीतिक सरकार, बल्कि पूरे देश के लिए भी बहुत मायने रखती है। इस टूर्नामेंट की सफलता को पाकिस्तान में आतंकवाद की हार के रूप में देखा जाएगा। इस सफलता से पाकिस्तान के प्रति अंतरराष्ट्रीय फोकस बढ़ेगा और संभवतः कुछ विदेशी निवेश भी मिल सकता है। पाकिस्तान ने अतीत में भारत के साथ संबंध सामान्य करने के लिए क्रिकेट को कूटनीति के रूप में इस्तेमाल किया था। लेकिन इस बार पाकिस्तान इस अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट आयोजन का उपयोग अपनी वैश्विक छवि को सुधारने के लिए कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत और पाकिस्तान में क्रिकेटर नेताओं से भी बड़े सितारे होते हैं, लेकिन अंपायरों का महत्व भी कम नहीं है। क्रिकेट का मैच एक शांतिपूर्ण खेल आयोजन होता है, जिसमें 22 खिलाड़ी भाग लेते हैं। इनके अलावा तीन अंपायर भी हिस्सा लेते हैं (दो ऑन-फील्ड अंपायर और एक थर्ड अंपायर)। इन अंपायरों के बगैर कोई भी क्रिकेट मैच संभव नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अहसान रजा जैसे अंपायर ही आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी 2025 के असली नायक हैं। उन्होंने 2023 विश्व कप और 2024 पुरुष टी20 विश्व कप सहित कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में अंपायरिंग की है। वे 70 से अधिक अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय मैचों और 100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय टी20 मैचों में अंपायरिंग कर चुके हैं। उनके अंपायरिंग के आंकड़े जल्द ही उन्हें डिकी बर्ड, स्टीव बकनर, बिली बोडेन, श्रीनिवास वेंकटराघवन और अलीम डार जैसे बड़े अंपायरों की सूची में शामिल कर देंगे। अलीम डार ने 2000 से 2023 के बीच 231 अंतरराष्ट्रीय मैचों में अंपायरिंग की थी। 51 वर्षीय अहसान रजा के पास एक और पाकिस्तानी अंपायर का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए पर्याप्त समय है। ————– ये कॉलम भी पढ़ें… पाकिस्तान को भी है सोनम वांगचुक की दरकार!:कुर्सी बचाने के बजाय हवा और पानी को बचाने पर ध्यान दें वह 3 मार्च 2009 का दिन था, जब लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हमला हुआ था। खिलाड़ी होटल से स्टेडियम की ओर जा रहे थे। इस हमले में सात श्रीलंकाई खिलाड़ियों को मामूली चोटें आई थीं, लेकिन बस चालक मेहर मोहम्मद खलील ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार बस चलाते हुए सभी खिलाड़ियों को स्टेडियम तक पहुंचाकर ही दम लिया। इस दौरान पुलिसकर्मियों ने एक दर्जन से अधिक आतंकवादियों को रोके रखा, जो न केवल गोलियां चला रहे थे बल्कि रॉकेट भी दाग रहे थे। इस हमले में छह पुलिसकर्मी और दो आम नागरिक मारे गए। हमले में अंपायर अहसान रजा गंभीर रूप से घायल हो गए। तीन गोलियां उनके फेफड़ों, लिवर और पैरों में लगीं। कोमा से बाहर आने के बाद उन्हें दोबारा चलने में लगभग एक साल लग गया। उनके घावों पर 88 टांके लगे। उन्हें कई चिकित्सीय जटिलताओं का सामना करना पड़ा। साल 2019 में एक और ऑपरेशन हुआ, जिसमें उनके पेट पर 40 से अधिक टांके आए। इतनी तकलीफों और दर्द के बावजूद अहसान रजा ने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट अंपायर के रूप में अपने कॅरियर को जारी रखा। आज अहसान रजा उन 12 अंपायर्स में शामिल हैं, जो आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी 2025 का हिस्सा हैं। यह दास्तान सिर्फ अहसान रजा की नहीं है, बल्कि यह उस बड़ी कहानी का हिस्सा है जो बताती है कि पाकिस्तान क्रिकेट ने पिछले 16 वर्षों में एक आतंकवादी हमले के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रखा। पाकिस्तान ने आखिरी बार 1996 में भारत के साथ मिलकर आईसीसी वर्ल्ड कप की मेजबानी की थी। अब 29 साल बाद पाकिस्तान एक बार फिर आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी की मेजबानी कर रहा है। यह टूर्नामेंट पाकिस्तान के लिए भारतीय क्रिकेट टीम को हराने से भी बड़ी उपलब्धि है। 2009 में लाहौर हमले के बाद क्रिकेट खेलने वाले लगभग सभी देशों ने पाकिस्तान का दौरा करने से इनकार कर दिया था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पाकिस्तान में लगभग समाप्त हो चुका था। फिर 2015 में आईपीएल की तर्ज पर पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल) की शुरुआत की गई, ताकि देश में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को बचाया जा सके। पीएसएल 2025 जो इस साल अप्रैल में शुरू हो रहा है, में एक दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भाग लेंगे। भले ही पाकिस्तान क्रिकेट ने आतंकवादी हमले से बचकर अपनी पहचान फिर से बनाई है, लेकिन पाकिस्तान अब भी आतंकवाद से लड़ रहा है। वर्ष 2024 में पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में 2,500 से अधिक लोगों की जानें गईं, जिनमें 700 से अधिक सुरक्षाकर्मी शामिल थे। पाकिस्तान का आधा हिस्सा अब भी आतंकवाद की चपेट में है और चैम्पियंस ट्रॉफी के मैच केवल पाकिस्तान के सुरक्षित हिस्से में आयोजित किए जा रहे हैं। पाकिस्तानी प्रशंसक अनेक शानदार भारतीय क्रिकेटरों को देखने से वंचित रहेंगे, क्योंकि टीम के सभी मैच यूएई में खेले जाएंगे। पाकिस्तान में भारत के न खेलने के फैसले ने निश्चित रूप से पाकिस्तानी क्रिकेट प्रशंसकों को निराश किया है, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। पाकिस्तान इस भारतीय बहिष्कार को अलग नजरिए से देख रहा है। पाकिस्तानी फौज सभी क्रिकेट टीमों और मैचों की सुरक्षा को सीधे तौर पर संभाल रही है। यह चैम्पियंस ट्रॉफी न केवल पाकिस्तान की राजनीतिक सरकार, बल्कि पूरे देश के लिए भी बहुत मायने रखती है। इस टूर्नामेंट की सफलता को पाकिस्तान में आतंकवाद की हार के रूप में देखा जाएगा। इस सफलता से पाकिस्तान के प्रति अंतरराष्ट्रीय फोकस बढ़ेगा और संभवतः कुछ विदेशी निवेश भी मिल सकता है। पाकिस्तान ने अतीत में भारत के साथ संबंध सामान्य करने के लिए क्रिकेट को कूटनीति के रूप में इस्तेमाल किया था। लेकिन इस बार पाकिस्तान इस अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट आयोजन का उपयोग अपनी वैश्विक छवि को सुधारने के लिए कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत और पाकिस्तान में क्रिकेटर नेताओं से भी बड़े सितारे होते हैं, लेकिन अंपायरों का महत्व भी कम नहीं है। क्रिकेट का मैच एक शांतिपूर्ण खेल आयोजन होता है, जिसमें 22 खिलाड़ी भाग लेते हैं। इनके अलावा तीन अंपायर भी हिस्सा लेते हैं (दो ऑन-फील्ड अंपायर और एक थर्ड अंपायर)। इन अंपायरों के बगैर कोई भी क्रिकेट मैच संभव नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अहसान रजा जैसे अंपायर ही आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी 2025 के असली नायक हैं। उन्होंने 2023 विश्व कप और 2024 पुरुष टी20 विश्व कप सहित कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में अंपायरिंग की है। वे 70 से अधिक अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय मैचों और 100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय टी20 मैचों में अंपायरिंग कर चुके हैं। उनके अंपायरिंग के आंकड़े जल्द ही उन्हें डिकी बर्ड, स्टीव बकनर, बिली बोडेन, श्रीनिवास वेंकटराघवन और अलीम डार जैसे बड़े अंपायरों की सूची में शामिल कर देंगे। अलीम डार ने 2000 से 2023 के बीच 231 अंतरराष्ट्रीय मैचों में अंपायरिंग की थी। 51 वर्षीय अहसान रजा के पास एक और पाकिस्तानी अंपायर का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए पर्याप्त समय है। ————– ये कॉलम भी पढ़ें… पाकिस्तान को भी है सोनम वांगचुक की दरकार!:कुर्सी बचाने के बजाय हवा और पानी को बचाने पर ध्यान दें उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
चैम्पियंस ट्रॉफी के इस असल हीरो को नहीं भूलें!:पाकिस्तान इस भारतीय बहिष्कार को अलग नजरिए से देख रहा
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