शिरोमणि अकाली दल (SAD) को छोड़ने वाले गिद्दड़बाहा के सीनियर नेता, हलका प्रभारी और सुखबीर बादल के करीब रहे हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों आज (सोमवार) अपनी अगली रणनीति का ऐलान कर सकते हैं। उन्होंने सुबह 11 बजे अपने समर्थकों की मीटिंग बुलाई है। दूसरी तरफ डिंपी के पार्टी छोड़ने से बने हालातों के बीच SAD प्रधान सुखबीर बादल ने मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने आज गिद्दड़बाहा के अकाली नेताओं की मीटिंग अपने निवास स्थान पर बुलाई है। वहीं, डिंपी का कहना है कि मनप्रीत बादल के चलते उनकी बलि दी गई है। हमारे जैसे तो केवल इस्तेमाल के लिए होते हैं। वहीं, चर्चा यह है कि वह आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। मनप्रीत बादल ने नहीं जॉइन की पार्टी दूसरी तरफ SAD के नेताओं ने डिंपी ढिल्लों को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा है। वहीं, इस मामले में अकाली नेता मनतार सिंह बराड़ ने बताया कि उनकी ड्यूटी भी गिद्दड़बाहा हलके में उपचुनाव के लिए लगी हुई। वह जैसे ही वहां पहुंचे तो पता चला कि डिंपी ढिल्लों पार्टी छोड़ने वाले है। डिंपी ने इसकी वजह मनप्रीत सिंह बादल को बताया था। मनतार सिंह बराड़ ने कहा कि जब मनप्रीत सिंह बादल ने SAD जॉइन नहीं की तो उन्हें पार्टी की टिकट कैसे दी जा सकती है। उन्होंने पार्टी के समर्थकों को साथ देने की अपील की है। बादल ने कहा था डिंपी ही लड़ेगा चुनाव मनतार सिंह बराड़ ने बताया कि वह कोर कमेटी के मेंबर है। कोर कमेटी की मीटिंग में महेश इंद्र सिंह गरेवाल ने जरूर कहा था कि बादल साहब आप गिद्दड़बाहा से चुनाव लडे़। लेकिन उस समय सुखबीर बादल ने कहा था कि डिंपी वहां से चुनाव लडे़गा। वह पिछले चुनाव में कम मतों से हारे थे। ऐसे में वह उसका हक मारना नहीं चाहते हैं। वहीं, सुखबीर डिंपी के साथ हलके में लगातार मीटिंग कर रहे थे। 15 मिनट लाइव होकर डिंपी ने रखा पक्ष डिंपी ढिल्लों ने पार्टी छोड़ने से पहले फेसबुक पर लाइव होकर पंद्रह मिनट में अपने सफर के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि वह पार्टी 38 -39 साल से जुडे़ हुए थे। कई बार पार्टी पर भी मुश्किल भी आई, लेकिन वह हमेशा पार्टी व बादल परिवार के साथ खड़ रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय परेशान थे। क्योंकि हलके में मनप्रीत सिंह बादल सक्रिय थे। वह बीजेपी में थे, लेकिन वह किसी को बीजेपी में शामिल नहीं करवाते थे। गांवों में जाकर कहते थे कि सुखबीर बादल और उनके रिश्ते घी और खिचड़ी जैसे है। वह सुखबीर बादल को भी इस बारे स्थिति साफ करने के बारे में कह रहे थे, लेकिन वह भी कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे। ऐसे में समर्थक भी आफत में थे। न तो सुखबीर बादल खुद को उम्मीदवार ऐलान कर रहे थे, जबकि वह नहीं कर रहे थे। उनकी सुखबीर बादल से 37 साल की दोस्ती परिवारवाद की बलि चढ़ गई। उन्होंने कहा कि दोनों परिवार मिल गए है। यह खुशी की बात है। 2022 में मात्र 1349 वोटों से हारे थे डिंपो ढिल्लों की गिदड़बाहा सीट पर अच्छी पकड़ है। दो बार चुनावों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। साल 2012 से यहां से लगातार कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह राजा वरिंग चुनाव जीतने आ रहे है। 2017 में उन्होंने हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों को राजा वड़िंग ने हराया था। चुनाव में डिंपी को 47288 को वोट मिले थे, जबकि वड़िंग को 63500 मत मिले थे। जबकि 2022 में जब पूरे राज्य में आम आदमी पार्टी की हवा थी। लेकिन इस सीट पर शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के बीच में ही मुकाबला था। इस दौरान राजा वड़िंग के वोट कम होकर 50998 रह गए। जबकि डिंपी को 49649 वोट मिले। दोनों में जीत का अंतर 1349 वोट का था। ऐसे में डिंपी ढिल्लों खुद को काफी मजबूत दावेदर इस सीट से मानते हैं। गिद्दड़बाहा सीट SAD का गढ़ गिद्दड़बाहा सीट 1967 में बनी थी। पहला चुनाव यहां से कांग्रेस नेता हरचरण सिंह बराड़ जीते थे। इसके बाद लगातार पांच बार 1969, 72, 77, 80 और 85 में इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जीते। 1992 में कांग्रेस नेता रघुबीर सिंह जीते। इसके बाद 1995, 97, 2002 और 2007 में सीट से शिरोमणि अकाली दल की टिकट पर मनप्रीत बादल जीतते रहे। जबकि 2012, 2017 और 2022 में इस सीट से कांग्रेस प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग जीते हैं। लेकिन अब वह लुधियाना से लोकसभा सांसद हैं। उन्होंने इस सीट के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। इस वजह से यह सीट खाली हुई है। शिरोमणि अकाली दल (SAD) को छोड़ने वाले गिद्दड़बाहा के सीनियर नेता, हलका प्रभारी और सुखबीर बादल के करीब रहे हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों आज (सोमवार) अपनी अगली रणनीति का ऐलान कर सकते हैं। उन्होंने सुबह 11 बजे अपने समर्थकों की मीटिंग बुलाई है। दूसरी तरफ डिंपी के पार्टी छोड़ने से बने हालातों के बीच SAD प्रधान सुखबीर बादल ने मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने आज गिद्दड़बाहा के अकाली नेताओं की मीटिंग अपने निवास स्थान पर बुलाई है। वहीं, डिंपी का कहना है कि मनप्रीत बादल के चलते उनकी बलि दी गई है। हमारे जैसे तो केवल इस्तेमाल के लिए होते हैं। वहीं, चर्चा यह है कि वह आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। मनप्रीत बादल ने नहीं जॉइन की पार्टी दूसरी तरफ SAD के नेताओं ने डिंपी ढिल्लों को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा है। वहीं, इस मामले में अकाली नेता मनतार सिंह बराड़ ने बताया कि उनकी ड्यूटी भी गिद्दड़बाहा हलके में उपचुनाव के लिए लगी हुई। वह जैसे ही वहां पहुंचे तो पता चला कि डिंपी ढिल्लों पार्टी छोड़ने वाले है। डिंपी ने इसकी वजह मनप्रीत सिंह बादल को बताया था। मनतार सिंह बराड़ ने कहा कि जब मनप्रीत सिंह बादल ने SAD जॉइन नहीं की तो उन्हें पार्टी की टिकट कैसे दी जा सकती है। उन्होंने पार्टी के समर्थकों को साथ देने की अपील की है। बादल ने कहा था डिंपी ही लड़ेगा चुनाव मनतार सिंह बराड़ ने बताया कि वह कोर कमेटी के मेंबर है। कोर कमेटी की मीटिंग में महेश इंद्र सिंह गरेवाल ने जरूर कहा था कि बादल साहब आप गिद्दड़बाहा से चुनाव लडे़। लेकिन उस समय सुखबीर बादल ने कहा था कि डिंपी वहां से चुनाव लडे़गा। वह पिछले चुनाव में कम मतों से हारे थे। ऐसे में वह उसका हक मारना नहीं चाहते हैं। वहीं, सुखबीर डिंपी के साथ हलके में लगातार मीटिंग कर रहे थे। 15 मिनट लाइव होकर डिंपी ने रखा पक्ष डिंपी ढिल्लों ने पार्टी छोड़ने से पहले फेसबुक पर लाइव होकर पंद्रह मिनट में अपने सफर के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि वह पार्टी 38 -39 साल से जुडे़ हुए थे। कई बार पार्टी पर भी मुश्किल भी आई, लेकिन वह हमेशा पार्टी व बादल परिवार के साथ खड़ रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय परेशान थे। क्योंकि हलके में मनप्रीत सिंह बादल सक्रिय थे। वह बीजेपी में थे, लेकिन वह किसी को बीजेपी में शामिल नहीं करवाते थे। गांवों में जाकर कहते थे कि सुखबीर बादल और उनके रिश्ते घी और खिचड़ी जैसे है। वह सुखबीर बादल को भी इस बारे स्थिति साफ करने के बारे में कह रहे थे, लेकिन वह भी कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे। ऐसे में समर्थक भी आफत में थे। न तो सुखबीर बादल खुद को उम्मीदवार ऐलान कर रहे थे, जबकि वह नहीं कर रहे थे। उनकी सुखबीर बादल से 37 साल की दोस्ती परिवारवाद की बलि चढ़ गई। उन्होंने कहा कि दोनों परिवार मिल गए है। यह खुशी की बात है। 2022 में मात्र 1349 वोटों से हारे थे डिंपो ढिल्लों की गिदड़बाहा सीट पर अच्छी पकड़ है। दो बार चुनावों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। साल 2012 से यहां से लगातार कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह राजा वरिंग चुनाव जीतने आ रहे है। 2017 में उन्होंने हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों को राजा वड़िंग ने हराया था। चुनाव में डिंपी को 47288 को वोट मिले थे, जबकि वड़िंग को 63500 मत मिले थे। जबकि 2022 में जब पूरे राज्य में आम आदमी पार्टी की हवा थी। लेकिन इस सीट पर शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के बीच में ही मुकाबला था। इस दौरान राजा वड़िंग के वोट कम होकर 50998 रह गए। जबकि डिंपी को 49649 वोट मिले। दोनों में जीत का अंतर 1349 वोट का था। ऐसे में डिंपी ढिल्लों खुद को काफी मजबूत दावेदर इस सीट से मानते हैं। गिद्दड़बाहा सीट SAD का गढ़ गिद्दड़बाहा सीट 1967 में बनी थी। पहला चुनाव यहां से कांग्रेस नेता हरचरण सिंह बराड़ जीते थे। इसके बाद लगातार पांच बार 1969, 72, 77, 80 और 85 में इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जीते। 1992 में कांग्रेस नेता रघुबीर सिंह जीते। इसके बाद 1995, 97, 2002 और 2007 में सीट से शिरोमणि अकाली दल की टिकट पर मनप्रीत बादल जीतते रहे। जबकि 2012, 2017 और 2022 में इस सीट से कांग्रेस प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग जीते हैं। लेकिन अब वह लुधियाना से लोकसभा सांसद हैं। उन्होंने इस सीट के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। इस वजह से यह सीट खाली हुई है। पंजाब | दैनिक भास्कर
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