दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, ‘बच्चे की परवरिश के लिए नौकरी छोड़ी तो भी पत्नी को…’

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, ‘बच्चे की परवरिश के लिए नौकरी छोड़ी तो भी पत्नी को…’

<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि एक मां को सिर्फ इसलिए भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह पढ़ी-लिखी है और पहले नौकरी कर चुकी है. यदि उसने अपने नाबालिग बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी है, तो यह उसका त्याग माना जाएगा, न कि आलस्य.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस स्वर्णा कांत शर्मा ने यह टिप्पणी उस समय की जब एक पति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था.</p>
<p style=”text-align: justify;”>पति का दावा था कि उसकी पत्नी शिक्षित है, एक स्कूल में पढ़ाती थी और ट्यूशन से भी अच्छी-खासी कमाई करती थी. लेकिन पत्नी ने कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखते हुए कहा कि वह अब अपने बेटे की एकल देखभालकर्ता है और लंबे सफर व आस-पास नौकरी न मिलने के कारण उसे मजबूरी में नौकरी छोड़नी पड़ी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली हाई कोर्ट ने मां की ममता को माना कर्तव्य</strong><br />कोर्ट ने इस दलील को सराहा और कहा नाबालिग बच्चे की देखभाल की ज़िम्मेदारी अक्सर उस माता-पिता पर आती है जिसके पास उसकी कस्टडी होती है. जब कोई माँ अकेले बच्चे की देखभाल कर रही हो और उसे कोई पारिवारिक सहयोग भी न मिल रहा हो, तो उसका नौकरी छोड़ना त्याग है, न कि कामचोरी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले राजनीश बनाम नेहा का हवाला देते हुए कहा कि जब एक महिला बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के लिए अपने करियर से समझौता करती है, तो यह न्यायिक प्रक्रिया में एक अहम बिंदु बनता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>फैसला – जो किया वो मां ने किया उसका सम्मान होना चाहिए</strong><br />दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि पत्नी जिस अवधि में कार्यरत थी, उस दौरान वह भरण-पोषण की हकदार नहीं थी. लेकिन उसके बाद, जब उसने नौकरी छोड़ी, तो उसे भरण-पोषण मिलना चाहिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने यह भी पाया कि पति जो कि एक वकील हैं &nbsp;की आय का सही आकलन नहीं हुआ. उसके बैंक स्टेटमेंट और आय शपथपत्र को नजरअंदाज किया गया. इसलिए पारिवारिक अदालत को अब मामले पर दोबारा विचार करने के निर्देश दिए गए हैं. फिलहाल, पति को तब तक पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देना होगा, जब तक कोर्ट अंतिम फ़ैसला नहीं देती.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि एक मां को सिर्फ इसलिए भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह पढ़ी-लिखी है और पहले नौकरी कर चुकी है. यदि उसने अपने नाबालिग बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी है, तो यह उसका त्याग माना जाएगा, न कि आलस्य.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस स्वर्णा कांत शर्मा ने यह टिप्पणी उस समय की जब एक पति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था.</p>
<p style=”text-align: justify;”>पति का दावा था कि उसकी पत्नी शिक्षित है, एक स्कूल में पढ़ाती थी और ट्यूशन से भी अच्छी-खासी कमाई करती थी. लेकिन पत्नी ने कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखते हुए कहा कि वह अब अपने बेटे की एकल देखभालकर्ता है और लंबे सफर व आस-पास नौकरी न मिलने के कारण उसे मजबूरी में नौकरी छोड़नी पड़ी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली हाई कोर्ट ने मां की ममता को माना कर्तव्य</strong><br />कोर्ट ने इस दलील को सराहा और कहा नाबालिग बच्चे की देखभाल की ज़िम्मेदारी अक्सर उस माता-पिता पर आती है जिसके पास उसकी कस्टडी होती है. जब कोई माँ अकेले बच्चे की देखभाल कर रही हो और उसे कोई पारिवारिक सहयोग भी न मिल रहा हो, तो उसका नौकरी छोड़ना त्याग है, न कि कामचोरी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले राजनीश बनाम नेहा का हवाला देते हुए कहा कि जब एक महिला बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के लिए अपने करियर से समझौता करती है, तो यह न्यायिक प्रक्रिया में एक अहम बिंदु बनता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>फैसला – जो किया वो मां ने किया उसका सम्मान होना चाहिए</strong><br />दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि पत्नी जिस अवधि में कार्यरत थी, उस दौरान वह भरण-पोषण की हकदार नहीं थी. लेकिन उसके बाद, जब उसने नौकरी छोड़ी, तो उसे भरण-पोषण मिलना चाहिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने यह भी पाया कि पति जो कि एक वकील हैं &nbsp;की आय का सही आकलन नहीं हुआ. उसके बैंक स्टेटमेंट और आय शपथपत्र को नजरअंदाज किया गया. इसलिए पारिवारिक अदालत को अब मामले पर दोबारा विचार करने के निर्देश दिए गए हैं. फिलहाल, पति को तब तक पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देना होगा, जब तक कोर्ट अंतिम फ़ैसला नहीं देती.</p>  दिल्ली NCR 6 साल से जेल में बंद ड्राइवर को मिली जमानत, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- ‘संविधान की आजादी MCOCA से…’