बिहार और यूपी के 7 लोग मोटरबोट से पानी के रास्ते 275 किलोमीटर सफर करके महाकुंभ में पहुंचे। संगम में डुबकी लगाई और वापस उसी रास्ते बिहार में अपने गांव पहुंच गए। प्रयागराज में 8 और 9 फरवरी को प्रयागराज आने वाले हर रास्ते पर भीषण जाम के हालात थे। ट्रेनों में सीटें फुल थीं। लोग दो-दो दिन का सफर करके भी महाकुंभ नहीं पहुंच पा रहे थे। महाजाम में श्रद्धालु 5 से 6 घंटे तक गाड़ियों में ‘रोड अरेस्ट’ हो गए। इससे बचने के लिए पानी के रास्ते संगम पहुंचने का प्लान बनाया। मोटरबोट पर गैस सिलेंडर, चूल्हा समेत खाने-पीने के पूरे इंतजाम थे। दो लोग नाव चलाते और बाकी 5 लोग आराम करते थे। करीब 550 किलोमीटर का बक्सर-टू-प्रयागराज का ये 84 घंटे का सफर एकदम अनूठा और रोमांचकारी रहा। पढ़िए ये खास रिपोर्ट… रोड जाम होने की खबरें देखकर आया नाव से जाने का आइडिया
7 लोगों के इस ग्रुप में सुमन चौधरी, संदीप, मुन्नू चौधरी, सुखदेव चौधरी, आदू चौधरी, रविंद्र और रमेश चौधरी शामिल रहे। इसमें मुन्नू यूपी में बलिया जिले के गांव कुटबा नारायणपुर के रहने वाले हैं। बाकी 6 लोग बिहार में बक्सर जिले के कमहरिया गांव के निवासी हैं। ये सभी पेशेवर मल्लाह हैं और अपने-अपने जिलों में नाव चलाकर परिवार पालते हैं। मुन्नू बताते हैं- 9 फरवरी के आसपास मीडिया में लगातार जाम की खबरें आ रही थीं। कई ऐसे वीडियो भी वायरल हुए, जिसमें मध्यप्रदेश से प्रयागराज तक रोड जाम होना बताया गया। उस वक्त हम सभी लोग महाकुंभ जाने का प्लान बना रहे थे। अचानक मन में आइडिया आया कि क्यों न नाव से ही प्रयागराज पहुंचा जाए? नाव में लगाए दो इंजन, खाने-पीने और सोने का था पूरा इंतजाम
मुन्नू चौधरी ने बताया- हमने नाव में दो इंजन लगाए, ताकि एक में खराबी आए तो दूसरे इंजन से नाव चल सकें। नाव पर ही 5 किलो गैस वाला सिलेंडर, चूल्हा, 20 लीटर पेट्रोल, सब्जी, चावल, आटा और रजाई-गद्दे रख लिए। 11 फरवरी की सुबह 10 बजे बिहार के बक्सर जिले में कमहरिया गांव से ये मोटरबोट यात्रा शुरू हुई। कमहरिया से जमनिया, यूपी के गाजीपुर, वाराणसी होते हुए हम 12 फरवरी की रात करीब 1 बजे प्रयागराज पहुंच गए। हमारी नाव को प्रयागराज में संगम पहुंचने से 5 किलोमीटर पहले रोक लिया गया। बताया गया कि आगे पीपा (पांटून) पुल हैं, इसलिए मोटरबोट नहीं जा सकती। हमें करीब 275 किलोमीटर के इस सफर में यूपी के गाजीपुर जिले में गहमर गांव के पास सिर्फ एक पांटून पुल मिला, जिसे बेहद आसानी से पार कर लिया। प्रयागराज से पांच KM पहले रोक दी थी नाव
मुन्नू ने आगे बताया- नाव रुकने के बाद हमने उसको साइड में खड़ा किया। फिर वहां से करीब 5-6 किलोमीटर पैदल चलकर संगम पर पहुंच गए। 13 फरवरी की तड़के संगम में डुबकी लगाई, पूजा-अर्चना की। फिर उसी रात मोटरबोट से वापस रवाना हो गए। 14 फरवरी की रात एक बजे तक हम सभी लोग बिहार के बक्सर सकुशल पहुंच गए। दो लोग नाव चलाते, बाकी लोग करते थे आराम
सुमन चौधरी बताते हैं- इस पूरी यात्रा में हमारे करीब 20 हजार रुपए खर्च हुए। इसमें मोटरबोट का पेट्रोल खर्च भी शामिल है। रास्ते में कई बार पेट्रोल खरीदकर हम एक प्लास्टिक कैन में स्टोर कर लेते थे। इससे रास्ते में तेल की कोई दिक्कत नहीं होती थी। हर वक्त दो लोग नाव चलाते थे और बाकी 5 लोग आराम करते थे। इस तरह ये रोस्टर चलता रहता था। हमारी इस तरह की ये इतनी लंबी पहली यात्रा थी। ————————-
ये खबर भी पढ़ें… संगम स्नान से पहले पति की बाहों में तोड़ा दम, सांस लेने में तकलीफ थी, जाम की वजह अस्पताल ले जाने में दो-तीन घंटे लग गए ‘सारे तीर्थ हमने साथ किए, लेकिन संगम स्नान से पहले ही यह मेरा साथ छोड़कर चली गई। अब किसके लिए जियूंगा।’ यह सिर्फ शब्द नहीं हैं बल्कि जज्बात हैं महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के नारायण प्रसाद तिवारी के, जिन्होंने शनिवार को अपनी 35 साल से साथ रही जीवन संगिनी रेखा को खो दिया है। पूरी खबर पढ़ें… बिहार और यूपी के 7 लोग मोटरबोट से पानी के रास्ते 275 किलोमीटर सफर करके महाकुंभ में पहुंचे। संगम में डुबकी लगाई और वापस उसी रास्ते बिहार में अपने गांव पहुंच गए। प्रयागराज में 8 और 9 फरवरी को प्रयागराज आने वाले हर रास्ते पर भीषण जाम के हालात थे। ट्रेनों में सीटें फुल थीं। लोग दो-दो दिन का सफर करके भी महाकुंभ नहीं पहुंच पा रहे थे। महाजाम में श्रद्धालु 5 से 6 घंटे तक गाड़ियों में ‘रोड अरेस्ट’ हो गए। इससे बचने के लिए पानी के रास्ते संगम पहुंचने का प्लान बनाया। मोटरबोट पर गैस सिलेंडर, चूल्हा समेत खाने-पीने के पूरे इंतजाम थे। दो लोग नाव चलाते और बाकी 5 लोग आराम करते थे। करीब 550 किलोमीटर का बक्सर-टू-प्रयागराज का ये 84 घंटे का सफर एकदम अनूठा और रोमांचकारी रहा। पढ़िए ये खास रिपोर्ट… रोड जाम होने की खबरें देखकर आया नाव से जाने का आइडिया
7 लोगों के इस ग्रुप में सुमन चौधरी, संदीप, मुन्नू चौधरी, सुखदेव चौधरी, आदू चौधरी, रविंद्र और रमेश चौधरी शामिल रहे। इसमें मुन्नू यूपी में बलिया जिले के गांव कुटबा नारायणपुर के रहने वाले हैं। बाकी 6 लोग बिहार में बक्सर जिले के कमहरिया गांव के निवासी हैं। ये सभी पेशेवर मल्लाह हैं और अपने-अपने जिलों में नाव चलाकर परिवार पालते हैं। मुन्नू बताते हैं- 9 फरवरी के आसपास मीडिया में लगातार जाम की खबरें आ रही थीं। कई ऐसे वीडियो भी वायरल हुए, जिसमें मध्यप्रदेश से प्रयागराज तक रोड जाम होना बताया गया। उस वक्त हम सभी लोग महाकुंभ जाने का प्लान बना रहे थे। अचानक मन में आइडिया आया कि क्यों न नाव से ही प्रयागराज पहुंचा जाए? नाव में लगाए दो इंजन, खाने-पीने और सोने का था पूरा इंतजाम
मुन्नू चौधरी ने बताया- हमने नाव में दो इंजन लगाए, ताकि एक में खराबी आए तो दूसरे इंजन से नाव चल सकें। नाव पर ही 5 किलो गैस वाला सिलेंडर, चूल्हा, 20 लीटर पेट्रोल, सब्जी, चावल, आटा और रजाई-गद्दे रख लिए। 11 फरवरी की सुबह 10 बजे बिहार के बक्सर जिले में कमहरिया गांव से ये मोटरबोट यात्रा शुरू हुई। कमहरिया से जमनिया, यूपी के गाजीपुर, वाराणसी होते हुए हम 12 फरवरी की रात करीब 1 बजे प्रयागराज पहुंच गए। हमारी नाव को प्रयागराज में संगम पहुंचने से 5 किलोमीटर पहले रोक लिया गया। बताया गया कि आगे पीपा (पांटून) पुल हैं, इसलिए मोटरबोट नहीं जा सकती। हमें करीब 275 किलोमीटर के इस सफर में यूपी के गाजीपुर जिले में गहमर गांव के पास सिर्फ एक पांटून पुल मिला, जिसे बेहद आसानी से पार कर लिया। प्रयागराज से पांच KM पहले रोक दी थी नाव
मुन्नू ने आगे बताया- नाव रुकने के बाद हमने उसको साइड में खड़ा किया। फिर वहां से करीब 5-6 किलोमीटर पैदल चलकर संगम पर पहुंच गए। 13 फरवरी की तड़के संगम में डुबकी लगाई, पूजा-अर्चना की। फिर उसी रात मोटरबोट से वापस रवाना हो गए। 14 फरवरी की रात एक बजे तक हम सभी लोग बिहार के बक्सर सकुशल पहुंच गए। दो लोग नाव चलाते, बाकी लोग करते थे आराम
सुमन चौधरी बताते हैं- इस पूरी यात्रा में हमारे करीब 20 हजार रुपए खर्च हुए। इसमें मोटरबोट का पेट्रोल खर्च भी शामिल है। रास्ते में कई बार पेट्रोल खरीदकर हम एक प्लास्टिक कैन में स्टोर कर लेते थे। इससे रास्ते में तेल की कोई दिक्कत नहीं होती थी। हर वक्त दो लोग नाव चलाते थे और बाकी 5 लोग आराम करते थे। इस तरह ये रोस्टर चलता रहता था। हमारी इस तरह की ये इतनी लंबी पहली यात्रा थी। ————————-
ये खबर भी पढ़ें… संगम स्नान से पहले पति की बाहों में तोड़ा दम, सांस लेने में तकलीफ थी, जाम की वजह अस्पताल ले जाने में दो-तीन घंटे लग गए ‘सारे तीर्थ हमने साथ किए, लेकिन संगम स्नान से पहले ही यह मेरा साथ छोड़कर चली गई। अब किसके लिए जियूंगा।’ यह सिर्फ शब्द नहीं हैं बल्कि जज्बात हैं महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के नारायण प्रसाद तिवारी के, जिन्होंने शनिवार को अपनी 35 साल से साथ रही जीवन संगिनी रेखा को खो दिया है। पूरी खबर पढ़ें… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
नाव से 550 KM की महाकुंभ जलयात्रा:सड़कें हुईं जाम, ट्रेनें फुल तो 7 लोगों ने बनाई जुगाड़ की नाव; 84 घंटे लगे
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