नैनी जेल के बाद अब अलीगढ़ के कैदियों ने किया संगम के जल से स्नान, जेल प्रशासन की सराहना

नैनी जेल के बाद अब अलीगढ़ के कैदियों ने किया संगम के जल से स्नान, जेल प्रशासन की सराहना

<p style=”text-align: justify;”><strong>Aligarh News:</strong> अलीगढ़ के जिला कारागार में इस बार एक अनोखा दृश्य देखने को मिला. चार दीवारों के भीतर कैदियों ने महाकुंभ का पवित्र स्नान किया है. जेल प्रशासन द्वारा विशेष रूप से एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. जिसमें कैदियों के मन में आस्था और उत्साह का अनोखा संगम देखने को मिला है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>भारत में महाकुंभ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व सर्वविदित है. इसे सनातन धर्म का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर पाप मुक्ति और मोक्ष की कामना करते हैं. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जेल की चार दीवारों के भीतर बंद कैदी भी इस पुण्य अवसर का लाभ उठा सकते हैं?</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जेल अधीक्षक ने क्या बोला?&nbsp;<br /></strong>अलीगढ़ की जेल में यह असंभव-सा लगने वाला कार्य संभव हुआ. उत्तर प्रदेश सरकार के आदेशानुसार, कारागार मंत्री के निर्देश पर यह आयोजन किया गया, ताकि जेल में निरुद्ध बंदियों को भी इस महापर्व का पुण्य लाभ मिल सके. वरिष्ठ जेल अधीक्षक बृजेन्द्र यादव ने बताया, “महाकुंभ के इस पवित्र अवसर पर हमने जेल में बंदियों के लिए स्नान का कार्यक्रम आयोजित किया. संगम का पवित्र जल मंगवाकर सभी कैदियों को उपलब्ध कराया गया, जिससे वे भी इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हो सकें.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस आयोजन की तैयारी बड़े ही सलीके और नियमों के साथ की गई. जेल प्रशासन ने प्रयागराज से संगम का पवित्र जल मंगवाया, जो कि महाकुंभ के स्नान का मुख्य आधार है. यह जल जेल परिसर में स्थापित 12 स्नानघरों में वितरित किया गया. जेल में कुल ढाई हजार कैदी बंद हैं, जिन्हें बारी-बारी से संगम जल से स्नान करने का अवसर दिया गया. यह आयोजन पूरी तरह से धार्मिक भावनाओं और सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए किया गया, ताकि किसी भी जाति, धर्म या समुदाय के व्यक्ति को कोई आपत्ति न हो.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कैदियों में उत्साह और खुशी</strong><br />महाकुंभ केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी है. अलीगढ़ जेल में हुए इस आयोजन में भी यह संदेश बखूबी देखने को मिला. यहां विभिन्न जाति और धर्म के कैदियों ने मिल-जुलकर स्नान किया. वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने बताया, “हमने यह सुनिश्चित किया कि सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को बिना किसी भेदभाव के इस पुण्य अवसर का लाभ मिले. स्नान से पहले और बाद में भजन-कीर्तन और प्रार्थनाओं का आयोजन भी किया गया, जिससे सभी के मन में आस्था और शांति का संचार हुआ.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस आयोजन को लेकर कैदियों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला. एक कैदी ने बताया, “हमने सोचा नहीं था कि जेल में रहकर भी हमें महाकुंभ में स्नान का मौका मिलेगा. यह हमारे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है. हमें ऐसा महसूस हुआ जैसे हम सच में संगम के तट पर हैं.” जेल प्रशासन ने इस आयोजन को अनुशासन और सुरक्षा के सभी मानकों को ध्यान में रखते हुए संपन्न कराया.&nbsp;</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/0WHGwxnMmMk?si=Rv7CjC19GQIztgcO” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये पहल कैदियों के मनोबल को ऊंचा उठाता हैं-जेल प्रशासन<br /></strong>किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या विवाद की स्थिति न हो, इसके लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी. जेल प्रशासन का मानना है कि ऐसे धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम न केवल कैदियों के मनोबल को ऊंचा उठाते हैं, बल्कि उनके मानसिक और आध्यात्मिक पुनर्वास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.&nbsp; जेल अधीक्षक बृजेन्द्र यादव ने कहा, “हमारा उद्देश्य केवल कानून व्यवस्था बनाए रखना नहीं है, बल्कि कैदियों के चरित्र और मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाना भी है. ऐसे आयोजन उन्हें आत्मचिंतन और आत्मसुधार का अवसर देते हैं.”&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लिया गया यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है. कारागार मंत्री के निर्देश पर पूरे प्रदेश में विभिन्न जेलों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि कैदियों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने का प्रयास किया जा सके. इस पहल ने यह सिद्ध कर दिया कि भले ही कोई व्यक्ति जेल की चार दीवारों में कैद हो, लेकिन उसकी आस्था और धार्मिक भावनाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता.</p>
<p style=”text-align: justify;”>यह भी पढ़ें- <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/gorakhpur-devotees-returning-from-maha-kumbh-car-collided-with-tractor-trolley-2889889″>महाकुंभ: लौट रहे श्रद्धालुओं की स्कॉर्पियो और ट्रैक्टर ट्रॉली में घुसी, नेपाल के 3 लोगों की मौत, 7 घायल</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Aligarh News:</strong> अलीगढ़ के जिला कारागार में इस बार एक अनोखा दृश्य देखने को मिला. चार दीवारों के भीतर कैदियों ने महाकुंभ का पवित्र स्नान किया है. जेल प्रशासन द्वारा विशेष रूप से एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. जिसमें कैदियों के मन में आस्था और उत्साह का अनोखा संगम देखने को मिला है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>भारत में महाकुंभ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व सर्वविदित है. इसे सनातन धर्म का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर पाप मुक्ति और मोक्ष की कामना करते हैं. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जेल की चार दीवारों के भीतर बंद कैदी भी इस पुण्य अवसर का लाभ उठा सकते हैं?</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जेल अधीक्षक ने क्या बोला?&nbsp;<br /></strong>अलीगढ़ की जेल में यह असंभव-सा लगने वाला कार्य संभव हुआ. उत्तर प्रदेश सरकार के आदेशानुसार, कारागार मंत्री के निर्देश पर यह आयोजन किया गया, ताकि जेल में निरुद्ध बंदियों को भी इस महापर्व का पुण्य लाभ मिल सके. वरिष्ठ जेल अधीक्षक बृजेन्द्र यादव ने बताया, “महाकुंभ के इस पवित्र अवसर पर हमने जेल में बंदियों के लिए स्नान का कार्यक्रम आयोजित किया. संगम का पवित्र जल मंगवाकर सभी कैदियों को उपलब्ध कराया गया, जिससे वे भी इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हो सकें.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस आयोजन की तैयारी बड़े ही सलीके और नियमों के साथ की गई. जेल प्रशासन ने प्रयागराज से संगम का पवित्र जल मंगवाया, जो कि महाकुंभ के स्नान का मुख्य आधार है. यह जल जेल परिसर में स्थापित 12 स्नानघरों में वितरित किया गया. जेल में कुल ढाई हजार कैदी बंद हैं, जिन्हें बारी-बारी से संगम जल से स्नान करने का अवसर दिया गया. यह आयोजन पूरी तरह से धार्मिक भावनाओं और सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए किया गया, ताकि किसी भी जाति, धर्म या समुदाय के व्यक्ति को कोई आपत्ति न हो.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कैदियों में उत्साह और खुशी</strong><br />महाकुंभ केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी है. अलीगढ़ जेल में हुए इस आयोजन में भी यह संदेश बखूबी देखने को मिला. यहां विभिन्न जाति और धर्म के कैदियों ने मिल-जुलकर स्नान किया. वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने बताया, “हमने यह सुनिश्चित किया कि सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को बिना किसी भेदभाव के इस पुण्य अवसर का लाभ मिले. स्नान से पहले और बाद में भजन-कीर्तन और प्रार्थनाओं का आयोजन भी किया गया, जिससे सभी के मन में आस्था और शांति का संचार हुआ.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस आयोजन को लेकर कैदियों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला. एक कैदी ने बताया, “हमने सोचा नहीं था कि जेल में रहकर भी हमें महाकुंभ में स्नान का मौका मिलेगा. यह हमारे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है. हमें ऐसा महसूस हुआ जैसे हम सच में संगम के तट पर हैं.” जेल प्रशासन ने इस आयोजन को अनुशासन और सुरक्षा के सभी मानकों को ध्यान में रखते हुए संपन्न कराया.&nbsp;</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/0WHGwxnMmMk?si=Rv7CjC19GQIztgcO” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये पहल कैदियों के मनोबल को ऊंचा उठाता हैं-जेल प्रशासन<br /></strong>किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या विवाद की स्थिति न हो, इसके लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी. जेल प्रशासन का मानना है कि ऐसे धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम न केवल कैदियों के मनोबल को ऊंचा उठाते हैं, बल्कि उनके मानसिक और आध्यात्मिक पुनर्वास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.&nbsp; जेल अधीक्षक बृजेन्द्र यादव ने कहा, “हमारा उद्देश्य केवल कानून व्यवस्था बनाए रखना नहीं है, बल्कि कैदियों के चरित्र और मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाना भी है. ऐसे आयोजन उन्हें आत्मचिंतन और आत्मसुधार का अवसर देते हैं.”&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लिया गया यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है. कारागार मंत्री के निर्देश पर पूरे प्रदेश में विभिन्न जेलों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि कैदियों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने का प्रयास किया जा सके. इस पहल ने यह सिद्ध कर दिया कि भले ही कोई व्यक्ति जेल की चार दीवारों में कैद हो, लेकिन उसकी आस्था और धार्मिक भावनाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता.</p>
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