चाहे आप मानो या ना मानो, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यही है कि इमरान ख़ान पाकिस्तानी फ़ौज के गले की हड्डी बन गए हैं। उसने अपनी उंगलियों का इस्तेमाल कर इस ‘हड्डी’ को निकालने की नाकामयाब कोशिश भी की। अब फ़ौज को सर्जरी की दरकार है और वह किसी एक अच्छे डॉक्टर की तलाश में हैं। ख़ान के बारे में उसके सभी अंदाजे ग़लत साबित हुए हैं। यह तीसरी बार है, जब फ़ौज के जनरलों को एक ऐसे सियासत-दां से ख़तरा लग रहा है, जिसे उन्होंने खुद पैदा और पेश किया था।
इनमें सबसे पहले ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो थे। उन्हें पाकिस्तान के पहले फ़ौजी तानाशाह जनरल अयूब ख़ान ने सियासत में पेश किया था। भुट्टो 1963 में इसी फ़ौजी तानाशाह के विदेश मंत्री बने। दूसरे तानाशाह जनरल याहिया ख़ान ने शेख मुजीब उर रहमान के ख़िलाफ़ भुट्टो का इस्तेमाल किया, जिन्होंने 1970 के चुनावों में ज़बरदस्त फ़तह हासिल की थी। जब मुजीब को गद्दी नहीं दी गई, तो उन्होंने ब़गावत कर दी और 1971 में पाकिस्तान टूट गया। भुट्टो जनरलों की मदद से पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म बने, लेकिन कुछ ही सालों में एक और फ़ौजी तानाशाह जनरल जिया ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। पाकिस्तानी फ़ौज की दूसरी पैदावार थे नवाज़ शरीफ़। फ़ौज ने उन्हें बेनजीर भुट्टो से लड़ने के लिए पाला-पोसा। लेकिन नवाज़ शरीफ़ 2017 में जनरलों के ख़िलाफ़ बाग़ी बन गए, जब उन्हें पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य घोषित कर दिया। तब जनरलों ने शरीफ़ को रोकने के लिए इमरान ख़ान का इस्तेमाल किया और जनरलों की मदद से ही वे 2018 में वज़ीर-ए-आज़म बने। साल 2022 में इमरान ख़ान और फ़ौजी जनरलों के बीच तब मतभेद पैदा होने शुरू हुए, जब इमरान ने उनसे हुक्म लेने बंद कर दिए। इस बार शातिर जनरलों ने नवाज़ शरीफ़ के साथ समझौता कर लिया और पार्लियामेंट में अविश्वास प्रस्ताव के जरिए ख़ान को बाहर कर दिया। जनरलों से सोचा कि क्रिकेटर से राजनेता बना यह शख़्स हार मान लेगा और नवाज़ शरीफ़ की तरह ही लंदन भाग जाएगा। लेकिन यहां जनरल ग़लत साबित हुए। ख़ान न केवल मुल्क में रहे, बल्कि उन्होंने पब्लिक मीटिंग्स में जनरलों के नाम लेकर उन्हें आड़े हाथ लेना शुरू कर दिया। नवंबर 2022 में ख़ान एक ख़तरनाक हमले में बाल-बाल बचे। वे गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए। उन्होंने उस हमले के लिए जनरलों पर इल्ज़ाम लगाया। ख़ान को मई 2023 में गिरफ़्तार किया गया। हालांकि जनरलों को लग रहा था कि ख़ान सलाखों के पीछे एक हफ़्ते भी नहीं बिता पाएंगे। वे चाहते थे कि ख़ान जनरलों की बेइज़्ज़ती करने और उन्हें गाली देने के लिए माफ़ी मांगें। ख़ान ने इससे भी इनकार कर दिया। उन पर आतंकवाद और देशद्रोह सहित 195 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए। नाराज़ जनरलों ने उनकी पार्टी को तोड़ दिया और पीटीआई से दो नई पार्टियां बनवा दीं, लेकिन इससे ख़ान और भी मशहूर हो गए। अभी ख़ान पाकिस्तान के सभी सूबों में मशहूर हैं। नवाज़ शरीफ़ केवल पंजाब के कुछ इलाकों तक ही सीमित हैं और बिलावल भुट्टो जरदारी को केवल सिंध सूबे में ही कुछ हिमायत हासिल है। जनरलों ने इमरान ख़ान के साथ कई बार सौदा करने की कोशिश की, लेकिन ख़ान ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। फरवरी 2024 के चुनावों से कुछ दिन पहले ही उन्हें कसूरवार ठहराया गया था, लेकिन अब उन्हें ऊंची अदालतों से राहत मिल रही है। निचली अदालतों द्वारा ख़ान को कसूरवार ठहराने के फ़ैसलों को ऊपरी अदालतें पलट रही हैं। फ़ौज के जनरल कुछ जजों के ‘एंटी स्टेट’ रवैये से बहुत नाराज़ हैं, जो उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक पूरी पीठ ने पार्लियामेंट में पीटीआई को महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटें देने का हुक्म सुनाया था। यह उन सभी के लिए एक बड़ा झटका है, जो इमरान ख़ान का सियासत से ख़ात्मा चाहते हैं। अब शहबाज शरीफ़ की हुकूमत पीटीआई पर पाबंदी लगाने के मंसूबे बना रही है। शरीफ़ लगता है हसीना वाजिद के नक़्शे-क़दम पर चल रहे हैं, जिन्होंने हाल ही में बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन हसीना वाजिद द्वारा उठाया गया यह क़दम उलटा पड़ गया। मुझे लगता है कि अगर पीटीआई पर पाबंदी लगाई गई तो पाकिस्तान में भी यही नतीजे हो सकते हैं। चाहे आप मानो या ना मानो, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यही है कि इमरान ख़ान पाकिस्तानी फ़ौज के गले की हड्डी बन गए हैं। उसने अपनी उंगलियों का इस्तेमाल कर इस ‘हड्डी’ को निकालने की नाकामयाब कोशिश भी की। अब फ़ौज को सर्जरी की दरकार है और वह किसी एक अच्छे डॉक्टर की तलाश में हैं। ख़ान के बारे में उसके सभी अंदाजे ग़लत साबित हुए हैं। यह तीसरी बार है, जब फ़ौज के जनरलों को एक ऐसे सियासत-दां से ख़तरा लग रहा है, जिसे उन्होंने खुद पैदा और पेश किया था।
इनमें सबसे पहले ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो थे। उन्हें पाकिस्तान के पहले फ़ौजी तानाशाह जनरल अयूब ख़ान ने सियासत में पेश किया था। भुट्टो 1963 में इसी फ़ौजी तानाशाह के विदेश मंत्री बने। दूसरे तानाशाह जनरल याहिया ख़ान ने शेख मुजीब उर रहमान के ख़िलाफ़ भुट्टो का इस्तेमाल किया, जिन्होंने 1970 के चुनावों में ज़बरदस्त फ़तह हासिल की थी। जब मुजीब को गद्दी नहीं दी गई, तो उन्होंने ब़गावत कर दी और 1971 में पाकिस्तान टूट गया। भुट्टो जनरलों की मदद से पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म बने, लेकिन कुछ ही सालों में एक और फ़ौजी तानाशाह जनरल जिया ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। पाकिस्तानी फ़ौज की दूसरी पैदावार थे नवाज़ शरीफ़। फ़ौज ने उन्हें बेनजीर भुट्टो से लड़ने के लिए पाला-पोसा। लेकिन नवाज़ शरीफ़ 2017 में जनरलों के ख़िलाफ़ बाग़ी बन गए, जब उन्हें पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य घोषित कर दिया। तब जनरलों ने शरीफ़ को रोकने के लिए इमरान ख़ान का इस्तेमाल किया और जनरलों की मदद से ही वे 2018 में वज़ीर-ए-आज़म बने। साल 2022 में इमरान ख़ान और फ़ौजी जनरलों के बीच तब मतभेद पैदा होने शुरू हुए, जब इमरान ने उनसे हुक्म लेने बंद कर दिए। इस बार शातिर जनरलों ने नवाज़ शरीफ़ के साथ समझौता कर लिया और पार्लियामेंट में अविश्वास प्रस्ताव के जरिए ख़ान को बाहर कर दिया। जनरलों से सोचा कि क्रिकेटर से राजनेता बना यह शख़्स हार मान लेगा और नवाज़ शरीफ़ की तरह ही लंदन भाग जाएगा। लेकिन यहां जनरल ग़लत साबित हुए। ख़ान न केवल मुल्क में रहे, बल्कि उन्होंने पब्लिक मीटिंग्स में जनरलों के नाम लेकर उन्हें आड़े हाथ लेना शुरू कर दिया। नवंबर 2022 में ख़ान एक ख़तरनाक हमले में बाल-बाल बचे। वे गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए। उन्होंने उस हमले के लिए जनरलों पर इल्ज़ाम लगाया। ख़ान को मई 2023 में गिरफ़्तार किया गया। हालांकि जनरलों को लग रहा था कि ख़ान सलाखों के पीछे एक हफ़्ते भी नहीं बिता पाएंगे। वे चाहते थे कि ख़ान जनरलों की बेइज़्ज़ती करने और उन्हें गाली देने के लिए माफ़ी मांगें। ख़ान ने इससे भी इनकार कर दिया। उन पर आतंकवाद और देशद्रोह सहित 195 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए। नाराज़ जनरलों ने उनकी पार्टी को तोड़ दिया और पीटीआई से दो नई पार्टियां बनवा दीं, लेकिन इससे ख़ान और भी मशहूर हो गए। अभी ख़ान पाकिस्तान के सभी सूबों में मशहूर हैं। नवाज़ शरीफ़ केवल पंजाब के कुछ इलाकों तक ही सीमित हैं और बिलावल भुट्टो जरदारी को केवल सिंध सूबे में ही कुछ हिमायत हासिल है। जनरलों ने इमरान ख़ान के साथ कई बार सौदा करने की कोशिश की, लेकिन ख़ान ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। फरवरी 2024 के चुनावों से कुछ दिन पहले ही उन्हें कसूरवार ठहराया गया था, लेकिन अब उन्हें ऊंची अदालतों से राहत मिल रही है। निचली अदालतों द्वारा ख़ान को कसूरवार ठहराने के फ़ैसलों को ऊपरी अदालतें पलट रही हैं। फ़ौज के जनरल कुछ जजों के ‘एंटी स्टेट’ रवैये से बहुत नाराज़ हैं, जो उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक पूरी पीठ ने पार्लियामेंट में पीटीआई को महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटें देने का हुक्म सुनाया था। यह उन सभी के लिए एक बड़ा झटका है, जो इमरान ख़ान का सियासत से ख़ात्मा चाहते हैं। अब शहबाज शरीफ़ की हुकूमत पीटीआई पर पाबंदी लगाने के मंसूबे बना रही है। शरीफ़ लगता है हसीना वाजिद के नक़्शे-क़दम पर चल रहे हैं, जिन्होंने हाल ही में बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन हसीना वाजिद द्वारा उठाया गया यह क़दम उलटा पड़ गया। मुझे लगता है कि अगर पीटीआई पर पाबंदी लगाई गई तो पाकिस्तान में भी यही नतीजे हो सकते हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर