हरियाणा के फरीदाबाद जिले में नेशनल हेल्थ मिशन के कर्मचारियों की हड़ताल आज छठे दिन भी जारी रही। जहां एक तरफ सरकार से कर्मचारियों को कोई आश्वासन नहीं मिल रहा। वहीं कर्मचारी भी दृढ़ता के साथ एकजुट होकर हड़ताल जारी रखे हुए हैं। इन कर्मचारियों की मुख्य मांग उन्हें नियमित करने की है। इसके अलावा वह कोई समझौता नहीं करना चाहते। जिसके चलते आज उन्होंने 2017 सर्विस रूल के आदेशों की प्रतियों को जलाया वहीं उन्होंने सामूहिक रूप से शपथ भी ली। सरकार के विरूद्ध वोट डालने की ली शपथ हड़ताल पर बैठे एनएचएम कर्मचारियों ने कहा यदि सरकार ने उन्हें नियमित नहीं किया तो आने वाले विधानसभा चुनाव में अपने परिवार और रिश्तेदारों समेत 10 लाख का वोट बैंक रखने वाले 18000 कर्मचारी सरकार के विरुद्ध वोट करेंगे। वहीं उन्होंने अपनी शपथ में यह भी कहा कि यदि सरकार उन्हें नियमित करने की मांग मान लेती है तो वह सरकार को तीसरी बार वापस लाने के लिए जी जान से मेहनत करेंगे। सभी NHM पिछले 3 साल से अपनी मांगों को लेकर के सीएमओ दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन उनकी तरफ से कोई संतुष्टि वाला जवाब नहीं मिला। जब तक सरकार हमारी मांगों को लिखित में पूरा करने की बात नही कहती तब तक हड़ताल खत्म नहीं होगा। क्योंकि पिछले 3 साल से NHM कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा था। हरियाणा के फरीदाबाद जिले में नेशनल हेल्थ मिशन के कर्मचारियों की हड़ताल आज छठे दिन भी जारी रही। जहां एक तरफ सरकार से कर्मचारियों को कोई आश्वासन नहीं मिल रहा। वहीं कर्मचारी भी दृढ़ता के साथ एकजुट होकर हड़ताल जारी रखे हुए हैं। इन कर्मचारियों की मुख्य मांग उन्हें नियमित करने की है। इसके अलावा वह कोई समझौता नहीं करना चाहते। जिसके चलते आज उन्होंने 2017 सर्विस रूल के आदेशों की प्रतियों को जलाया वहीं उन्होंने सामूहिक रूप से शपथ भी ली। सरकार के विरूद्ध वोट डालने की ली शपथ हड़ताल पर बैठे एनएचएम कर्मचारियों ने कहा यदि सरकार ने उन्हें नियमित नहीं किया तो आने वाले विधानसभा चुनाव में अपने परिवार और रिश्तेदारों समेत 10 लाख का वोट बैंक रखने वाले 18000 कर्मचारी सरकार के विरुद्ध वोट करेंगे। वहीं उन्होंने अपनी शपथ में यह भी कहा कि यदि सरकार उन्हें नियमित करने की मांग मान लेती है तो वह सरकार को तीसरी बार वापस लाने के लिए जी जान से मेहनत करेंगे। सभी NHM पिछले 3 साल से अपनी मांगों को लेकर के सीएमओ दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन उनकी तरफ से कोई संतुष्टि वाला जवाब नहीं मिला। जब तक सरकार हमारी मांगों को लिखित में पूरा करने की बात नही कहती तब तक हड़ताल खत्म नहीं होगा। क्योंकि पिछले 3 साल से NHM कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा था। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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मूनक में पुल तक अधूरी पड़ी सड़क का निर्माण कार्य शुरू, कई बार लोग कर चुके थे प्रदर्शन भास्कर न्यूज | मूनक मूनक में पुल तक बनाई जा रही सड़क निर्माण का कार्य पिछले कुछ वर्षों से रुका पड़ा था। अब लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की ओर से सोमवार को इसका कार्य शुरू कराया गया है। लोक निर्माण विभाग के एसडीओ संजीव तंवर ने लोगों को आश्वस्त किया कि सड़क निर्माण कार्य करीब एक माह में पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि मूनक से पुल तक 800 मीटर की दूरी में दो पुल बनाए जाने हैं। इस पर करीब 332 लाख रुपए की अनुमानित लागत राशि खर्च होगी। यह सड़क निर्माण पिछले कई वर्षों से इसलिए रुका हुआ था, क्योंकि जिस जगह पर पहले सड़क बनी हुई थी वह जगह निशानदेही में किसानों के खेतों में आ गई और जो जगह सड़क के लिए निर्धारित की गई थी। उस सड़क के किनारे कुछ लोगों ने अवैध कब्जे किए हुए हैं। जिनका मामला कोर्ट में विचाराधीन है। साथ ही सड़क के पास से गुजर रहे रिफाइनरी में जाने वाले माइनर के पानी को बंद करने की भी इजाजत भी नहीं मिल पा रही थी। अब इस माइनर में पाइप लाइन दबाकर उसके ऊपर सड़क निर्माण करवाया जाएगा। इसके लिए उन्हें 12 घंटे की पानी की बंदी की इजाजत सिंचाई विभाग की ओर से दी गई है। लोगों का कहना है कि इस सड़क निर्माण के न होने से मूनक हैड पर आए दिन जाम की स्थिति बनी रहती है। इस सड़क का निर्माण करवाए जाने को लेकर कई बार ग्रामीणों ने धरना प्रदर्शन भी किया।
रेवाड़ी की तीनों सीटें BJP ने जीती:ओवर कॉन्फिडेंस-भीतरघात कांग्रेस को ले डूबा; हार के बावजूद बढ़ा मत प्रतिशत
रेवाड़ी की तीनों सीटें BJP ने जीती:ओवर कॉन्फिडेंस-भीतरघात कांग्रेस को ले डूबा; हार के बावजूद बढ़ा मत प्रतिशत हरियाणा में अहीरवाल बेल्ट की राजधानी कहे जाने वाले रेवाड़ी जिले में भारतीय जनता पार्टी ने तीनों सीटों पर जीत दर्ज की है। जबकि कांग्रेस तीनों ही सीटों पर बुरी तरह हार गई। भाजपा की जीत का अहम कारण संगठन के अलावा RSS का ग्राउंड पर वर्क रहा। जबकि कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण ओवर कॉन्फिडेंस और भीतरघात रहा। भीतरघात करने की कोशिशें तो भाजपा के भी कुछ नेताओं ने की लेकिन रिजल्ट देखकर साफ है कि उनकी तमाम कोशिशें नाकाम ही रही। कांग्रेस ने रेवाड़ी जैसी सीट को गवां दिया। इस सीट पर शुरू से ही जीत को लेकर पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव और उनके बेटे चिरंजीव राव आश्वास्त नजर आ रहे थे। पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस का तीनों ही सीटों पर मत प्रतिशत जरूर बढ़ा लेकिन ये जीत में तब्दील नहीं हो पाया। दरअसल, कांग्रेस ने रेवाड़ी सीट से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के दामाद चिरंजीव राव को उतारा। उनके सामने बीजेपी ने अपने पुराने संगठन के नेता और कोसली से विधायक रहे लक्ष्मण यादव को टिकट दिया। इसी तरह बावल में कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारी लाल की टिकट काटकर बीजेपी ने हेल्थ डिपार्टमेंट में डायरेक्टर पद से नौकरी छोड़ राजनीति में उतरे डॉ. कृष्ण लाल को कांग्रेस के पूर्व मंत्री डॉ. एमएल रंगा के सामने उतारा। वहीं कोसली विधानसभा सीट पर कांग्रेस के हेवीवेट प्रत्याशी पूर्व मंत्री जगदीश यादव के सामने बीजेपी ने एक सामान्य कार्यकर्ता अनिल डहीना को टिकट दिया। चुनाव से पहले तीनों की सीटों पर एंटी इनकंबेंसी दिख रही थी। लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने टिकट काटी उससे माहौल पूरी तरह बदल गया। हालांकि ये इलाका पिछले 2 चुनाव में भी बीजेपी के पक्ष में ही रहा है। लेकिन इस बार जमीनी हालात को भांपते हुए भाजपा ने चुनाव के वक्त बूथ लेवल पर साइलेंट तरीके से काम करते हुए तीनों ही सीटें जीत ली। सीधे मुकाबले में कांग्रेस पर बीजेपी भारी 2019 के चुनाव की बात करें तो रेवाड़ी सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना। यहां बीजेपी से बागी होकर रणधीर कापड़ीवास ने चुनाव लड़ते हुए 35 हजार से ज्यादा वोट लिए। जिसका फायदा कांग्रेस को मिला और चिरंजीव राव जीत गए। जबकि बावल और कोसली में सीधा मुकाबला होने के कारण भाजपा को जीत मिली थी। इस बार रेवाड़ी और कोसली सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद की जा रही थी। रेवाड़ी में सतीश यादव आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। पहले दो चुनाव लड़ चुके सतीश दोनों बार 35 हजार से ज्यादा वोट ले चुके थे। लेकिन इस बार 20 हजार वोट भी उन्हें नहीं मिले। चुनाव के अंतिम वक्त में मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच हो गया। आमने-सामने की टक्कर में बीजेपी कांग्रेस पर भारी पड़ी। यही हाल कोसली विधानसभा सीट पर हुआ। यहां निर्दलीय प्रत्याशी मनोज कोसलिया के चुनाव में आने से त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे थे। लेकिन रिजल्ट पर नजर डाले तो फाइट कांग्रेस के जगदीश यादव और बीजेपी के अनिल डहीना के बीच हुई, जिसका फायदा बीजेपी को मिला और अनिल डहीना जीत गए। चिरंजीव एक बार आगे निकले, रंगा 4 और जगदीश ने 3 बार मंगलवार को हुई मतणना के शुरूआती दौर में ही भाजपा के तीनों प्रत्याशियों ने कांग्रेस पर बढ़त बनानी शुरू कर दी थी। पोस्टल बेलेट खुलने के बाद रूझान में आगे दिखने वाले कांग्रेस प्रत्याशी ईवीएम खुलने के बाद लगातार पिछड़ते चले गए। रेवाड़ी सीट पर 19 राउंड की काउंटिंग में चिरंजीव राव ने पांचवें राउंड में एक बार बीजेपी प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह यादव से ज्यादा वोट लिए। जबकि बावल सीट पर डा. एमएल रंगा ने 14, 17, 18 और 19 राउंड में डॉ. कृष्ण कुमार से ज्यादा वोट लिए। वहीं 20 राउंड की काउंटिंग में कोसली विधानसभा सीट पर जगदीश यादव ने 3, 13 और 16 राउंड में बीजेपी के अनिल डहीना से ज्यादा वोट लिए। हालांकि इन सभी राउंड में बीजेपी के तीनों प्रत्याशी पहले ही बढ़त बना चुके थे। ऐसे में उनके ज्यादा वोट लेने के बाद भी उन्हें कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। सीट वाइज मत प्रतिशत बढ़ा पर जीत नहीं मिली रेवाड़ी सीट: रेवाड़ी विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पर 2019 में चिरंजीव राव ने जीत दर्ज की थी। चिरंजीव को 43 हजार 870 वोट मिले। यह कुल वोटों का 27.82% था। भाजपा प्रत्याशी सुनील मुसेपुर ने 42 हजार 553 यानी 26.99% वोट लिए। जिसकी वजह से 1317 वोट से हार गए। इस बार भाजपा के लक्ष्मण सिंह यादव ने 83 हजार 747 यानी 49.95% वोट लिए। जबकि कांग्रेस के चिरंजीव राव को 54 हजार 978 यानी 32.79% मत मिले और वह 28769 वोटों से हार गए। चिरंजीव की हार का सबसे बड़ा कारण ओवर कॉन्फिडेंस रहा। इसके अलावा ग्रामीण इलाके ही नहीं, बल्कि शहर में भी उनके खिलाफ साइलेंट तरीके से विरोध बना रहा, लेकिन वह इसे भांप नहीं पाए। जिसकी वजह से उन्हें किसी भी इलाके में बढ़ नहीं मिल पाई। कोसली विधानसभा सीट: कोसली विधानसभा सीट पर 2019 के चुनाव में कांग्रेस को यादवेंद्र सिंह 40 हजार 189 यानी 26.73% वोट मिले। जबकि लक्ष्मण सिंह यादव 78 हजार 813 यानी 52% वोट मिले थे। लक्ष्मण सिंह यादव ने उस समय 38 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी। इस बार कांग्रेस के जगदीश यादव ने 74 हजार 976 यानी 42.1% वोट लिए। जबकि भाजपा के अनिल डहीना ने 92 हजार 185 यानी 51.76% वोट लिए। इस तरह अनिल डहीना 17209 वोटों से जीत गए। अनिल की जीत का सबसे बड़ा कारण कोसली सीट रामपुरा हाउस की पैतृक सीट होना रहा। अनिल को टिकट भी केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की सिफारिश पर ही मिली थी। इसलिए इस सीट पर राव इंद्रजीत सिंह ने खूब प्रचार किया। साथ ही लक्ष्मण सिंह यादव के रेवाड़ी शिफ्ट होने से एंटी इनकंबेंसी का खतरा भी कम हो गया। ये दोनों ही फैक्टर बीजेपी के काम आए। वहीं कांग्रेस के जगदीश यादव की हार के पीछे भीतरघात और ओवर कॉन्फिडेंस रहा। यहां टिकट कटने से नाराज यादवेंद्र सिंह पहले ही बगावत के संदेश दे चुके थे। बावल सीट: बावल विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने डॉ. एमएल रंगा को लगातार दूसरे चुनाव में टिकट दी। रंगा इस सीट पर वर्ष 2000 में विधायक रह चुके हैं। 2019 के चुनाव में डॉ. एमएल रंगा को 36 हजार 804 यानी 25.58% वोट मिले। भाजपा के डॉ. बनवारी लाल ने 69 हजार 49 वोट यानी 47.99% मत हासिल करते हुए रंगा को 32 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। इस बार भाजपा प्रत्याशी डॉ. कृष्ण कुमार को 86 हजार 858 यानी 55.28% वोट मिले। जबकि कांग्रेस के डॉ. एमएल रंगा को 66 हजार 228 यानी 42.54% वोट मिले और उन्हें डॉ. कृष्ण कुमार ने 20011 वोट से हरा दिया। इस सीट पर कांग्रेस की हार के पीछे का कारण यहां से एक-दो नहीं, बल्कि 50 से ज्यादा दावेदार होना रहा। कुछ चेहरे टिकट कटने के बाद डॉ. रंगा के साथ चुनाव प्रचार में जरूर दिखाई दिए लेकिन जमीनी स्तर पर वर्क की बजाए कार्यक्रम की स्टेज तक सीमित रहे। यहां भी कांग्रेसियों में जीत का ओवर कॉन्फिडेंस बना हुआ था और अंतिम समय में उन्हें ले डूबा। जबकि भाजपा की जीत का सबसे अहम कारण यहां से डॉ. बनवारी लाल की टिकट काट एंटी इनकंबेंसी को खत्म किया गया। इतना ही नहीं डॉ. कृष्ण कुमार अधिकारी के रूप में जिले में काफी लंबे समय तक काम कर चुके थे। ऐसे में उनकी साफ छवि ने भी इलाके में उनकी पकड़ बनाई। जीत का तीसरा अहम कारण केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह द्वारा लगातार प्रचार करना भी रहा। क्योंकि बावल सीट पर भी रामपुरा हाउस का दबदबा हमेशा रहा है।
सैलजा बोलीं-कांग्रेस में हुड्डा की चलने जैसी कोई बात नहीं:CM का फैसला भी हाईकमान करेगा; BJP में तो मुख्यमंत्री-अध्यक्ष के स्वर ही अलग-अलग
सैलजा बोलीं-कांग्रेस में हुड्डा की चलने जैसी कोई बात नहीं:CM का फैसला भी हाईकमान करेगा; BJP में तो मुख्यमंत्री-अध्यक्ष के स्वर ही अलग-अलग ‘भाजपा ने 400 पार का हव्वा बनाया हुआ था, वह खत्म हो गया। हरियाणा में जो 10 साल में हुआ, इन्हें पता लग गया। इसलिए इन्होंने मुख्यमंत्री बदला। इसके बाद भी पार्टी को मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के अलग-अलग स्वर सुनने को मिल रहे हैं। इन लोगों में तालमेल की कमी है, ये क्या राज देंगे।’ यह बात कांग्रेस महासचिव और सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा ने कही। हरियाणा में कांग्रेस के CM फेस पर कुमारी सैलजा ने कहा कि आखिरी वर्ड हाईकमान का होगा। यही टिकट वितरण में होता है और यही मुख्यमंत्री के नाम पर भी होगा। दैनिक भास्कर से कुमारी सैलजा ने सांसदों के चुनाव लड़ने, हुड्डा पिता-पुत्र की पार्टी में चलने, किरण चौधरी के भाजपा में जाने समेत अन्य चीजों पर खुलकर बातचीत की। पढ़िए पूरा इंटरव्यू… भास्कर : हरियाणा में चुनाव को लेकर तैयारियां कैसी चल रही हैं? सैलजा : तैयारी पूरी है। कांग्रेस की भी तैयारी है और हरियाणावासियों की भी तैयारी पूरी है। भास्कर : क्या यह तय माना जाए कि आप विधानसभा चुनाव लड़ेंगी? सैलजा : नहीं-नहीं, यह तय नहीं होता। मैने इच्छा जाहिर की थी और साथ में ये भी कहा था कि हाईकमान ही इसका फैसला करेगा। वो बताएंगे कि चुनाव लड़ना है या नहीं। भास्कर : हरियाणा में कांग्रेस 10 साल से सत्ता से बाहर है। आपके हिसाब से इसकी वजहें क्या रहीं? सैलजा : 2 बार जैसे केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। लोगों को बरगलाकर सब्जबाग दिखाते थे, जुमलेबाजी करते थे। ये मत भूलिए केंद्र में सरकार होने के बावजूद पहली बार इनकी 46-47 सीटें आई थीं। बहुमत मार्जिन से थोड़ा ऊपर। इसके बाद 75 पार का नारा देने के बावजूद इनकी केवल 40 सीटें आईं और दूसरे के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाई। पिछली बार तो इनको सरकार बनाने का मैंडेट नहीं मिला था। जनता ने 10 साल इनकी कार्यशैली देखी है, जमीन पर कुछ काम नहीं हुए। वैसे भी इनका लोगों के साथ कोई जुड़ाव नहीं है, कोई कनेक्ट नहीं है। जहां भी जाएंगे, स्थानीय बातें भी हैं, राज्य और राष्ट्रीय बातें भी हैं। इन्होंने एक केंद्र का हव्वा बनाया हुआ था 400 पार का, वो खत्म हो गया है। इनकी बातें खोखली साबित रहीं। हरियाणा में खासतौर पर जो 10 साल में हुआ, शायद इन्हें भी इस चीज का पता लगा होगा, जो इन्होंने मुख्यमंत्री बदले। इसके बाद भी इन्होंने देख लिया कि कैसे रोज इनके अलग-अलग से स्वर सुनने में आते हैं। इनके प्रदेश अध्यक्ष कुछ कह रहे हैं और मुख्यमंत्री जी कुछ कह रहे हैं। इसमें तालमेल की भारी कमी दिख रही है, तो ये क्या राज देंगे?। भास्कर : प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया ने पहले कहा कि सांसद चुनाव नहीं लड़ेंगे। फिर कहा कि सीएम चुने गए विधायकों में से होगा। फिर वह बोले कि CM कोई भी हो सकता है। ये इतना सारा कन्फ्यूजन क्यों है? सैलजा : देखो ये बात तो आप उन्हीं से पूछिए, लेकिन ये तो हमारी पार्टी का सिस्टम है कि फाइनल वर्ड तो हाईकमान का ही होता है, चाहे टिकट वितरण की बात हो या मुख्यमंत्री की बात हो। सबसे अहम बात हो जाती है, जब राज्य में सरकार बनने जा रही हो। यह राजनीतिक फैसला होता है और हाईकमान ही सभी पहलुओं को देखते हुए अपना फैसला देता है। भास्कर : विपक्षी कहते हैं कि कांग्रेस में सिर्फ हुड्डा बाप-बेटे की चल रही है। प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष भी उन्हीं के पक्ष वाले हैं। ऐसे में तो टिकट बंटवारे में उन्हीं की चलेगी? जैसी लोकसभा चुनाव में चली। सैलजा : देखिए, ऐसी कोई बात नहीं है। हमारी स्क्रीनिंग कमेटी अपना कार्य कर रही है। हमारी केंद्रीय चुनाव समिति सब बातें देखते हुए काम कर रही है। राज्य में 90 सीट हैं, और 90 पर पूरा गहरा मंथन करते हुए ही फैसला होगा। भास्कर : क्या आप मानती हैं कि अगर लोकसभा चुनाव में टिकट बांटते समय सभी पक्षों को सुना जाता तो कांग्रेस हरियाणा में कुछ और सीटें जीत सकती थी? सैलजा : ये पुरानी बात हो गई। अब हम इस चुनाव में हैं और इस चुनाव की बात कर रहे हैं। भास्कर : किरण चौधरी कांग्रेस में आपकी करीबी थीं। भाजपा ने उन्हें 2 महीने में राज्यसभा भेज दिया। आपको लगता है कि भाजपा में उनका सियासी फ्यूचर अच्छा रहेगा? 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सैलजा : मैंने सवाल नहीं उठाया। मुझसे सवाल पूछा गया तो मैंने कहा कि किसी भी 36 बिरादरी में से कोई भी हो सकता है। चाहे दलित हो या कोई भी हो, वो तो पार्टी हाईकमान फैसला करती है। भास्कर : अंबाला सिटी और कैंट सीट से कांग्रेस में चर्चा है कि अंबाला से निर्मल सिंह और कैंट से उनकी बेटी टिकट की दावेदार हैं। क्या एक ही परिवार में दो टिकट देने चाहिए या ये गलत है। आप क्या कहेंगी? सैलजा : 90 सीटों पर चर्चाएं चल रही है। बाजार गर्म है, लेकिन अभी प्रक्रिया चल रही है। स्क्रीनिंग कमेटी की और जैसा मैंने कहा कि हाईकमान तक बातें जाएंगी और अंतिम फैसला वहां किया जाएगा। 2500 से ज्यादा आवेदन आएं हैं, तो बहुत से दावे चलते हैं। भास्कर : जो नेता 2 या उससे ज्यादा बार चुनाव हार चुके हैं। आपका क्या मानना है, उन्हें टिकट देने चाहिए? या नए चेहरों को मौका मिलना चाहिए? सैलजा : ये पैमाने स्क्रीनिंग कमेटी तय कर रही है। भास्कर : कांग्रेस के टिकट बहुत लेट आते हैं। ऐसे में उम्मीदवारों, न बागियों को मनाने का मौका मिल पाता है और न बाकी तैयारियां कर पाते हैं। आपको नहीं लगता कि कांग्रेस अगर अपने टिकट जल्दी अनाउंस कर दे तो कैंडिडेट्स ज्यादा बेहतर तरीके से चुनाव लड़ पाएंगे? 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