<p style=”text-align: justify;”><strong>Bastar Red Ants Business:</strong> छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपने प्राकृतिक सौंदर्य और यहां के आदिवासियों के रहन-सहन और खान-पान के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. कुदरत ने बस्तर को नेचुरल खूबसूरती से तराशा है. यहां के घने जंगल, वादियां और यहां के वाटरफॉल्स सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. वैसे तो बस्तर के आदिवासियों के खानपान में काफी चीजें हैं, लेकिन इनमें कुछ ऐसी डिश है, जो बस्तर को अलग पहचान दिलाती है. जिसे चापड़ा की चटनी यानी चींटी से बनी चटनी कहते हैं. </p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, चींटी से बनी चटनी छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में लंबे समय से काफी लोकप्रिय है. आदिवासी समाज के लोग सामान्य सर्दी, बुखार, पीलिया और आंत की समस्याओं और खांसी को ठीक करने और भूख बढ़ाने के लिए चापड़ा चटनी खाते हैं. मलेरिया समेत कई रोगों के इलाज में तो यह रामबाण माना जाता है. बस्तर की चटपटी चापड़ा चटनी एक ऐसी डिश है जो उड़ीसा और झारखंड में भी खूब लोकप्रिय है और छत्तीसगढ़ की यह डिश विश्वभर में प्रसिद्ध है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जानकारों ने क्या कहा?</strong><br />चापड़ा चटनी छत्तीसगढ़ के सैंकड़ों बस्तरवासियों के लिए आय का स्रोत बन गया है. ऐसे में अब बस्तर में चापड़ा चींटी को बेचकर हर साल लगभग 15 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है. जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि बस्तर की लाल चींटी या चापड़ा चींटी यहां के लोगों की पसंदीदा चटनी ही नहीं बल्कि हर रोज सैंकड़ों ग्रामीणों को रोजगार देने का साधन भी है. एक अनुमान के मुताबिक बस्तर में हर रोज कम से कम 15 साप्ताहिक बाजार लगते हैं और यहां लगभग पांच हजार तक की चापड़ा चींटी बिकती है. इस हिसाब से एक साल में लगभग 15 करोड़ रुपये की चापड़ा चींटी का कारोबार हो जाता है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>पड़ोसी राज्य उड़ीसा ने भले ही चापड़ा चटनी को अपना बताकर इसे पेटेंट करवा लिया है, लेकिन बस्तर में यहां के आदिवासी ग्रामीण पुरातन काल से ही चापड़ा चटनी का उपयोग चटनी बनाकर खाने में करते आ रहे हैं. यहां के साल वनों में चापड़ा आज भी पनप रही है और रोजगार का साधन बनी हुई हैं. वहीं हेमंत कश्यप का कहना है कि आमतौर पर साल के पेड़ों पर घोंसला बना कर रहने वाली चापड़ा चींटी बस्तर में सैंकड़ों ग्रामीण के रोजगार का सशक्त साधन हैं. गांव के हाट बाजार से लेकर शहर के बड़े बाजारों में भी चापड़ा चींटी को बेचा जाता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>इस बीमारी में खाते हैं आदिवासी</strong><br />इस चींटी के शरीर में विशेष प्रकार का एसिड पाया जाता है, जिसे औषधि माना जाता है. इसलिए लोग इसे खाना पसंद करते हैं. इधर शोध में पता चलता है कि आदिवासी लोग सामान्य सर्दी, बुखार, पीलिया की समस्याओं खांसी को ठीक करने और भूख बढ़ाने के लिए चापड़ा चटनी खाते हैं. हेमंत कश्यप बताते हैं कि साल और आम के पेड़ों पर पनपने वाली लाल चींटी को चापड़ा चींटी कहा जाता है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>इसकी डिमांड अधिक होने के कारण इसके घोंसलों को तोड़कर इन्हें इकट्ठा किया जाता है. जिस टहनी पर घोंसला होता है उस पूरी टहनी को तोड़कर गर्म पानी में डाल दिया जाता है, ताकि चीटियां मर जाएं. बस्तर के साल वनों में सैंकड़ों ग्रामीण सुबह-सुबह पहुंच जाते हैं और साल के ऊंचे पेड़ों से चापड़ा चींटी के घोंसले तोड़ कर इसे बर्तन में इकट्ठा करते हैं फिर इन्हें बेचने बाजार पहुंचते हैं.</p>
<div id=”article-hstick-inner” class=”abp-story-detail “>
<p><strong><a title=”छत्तीसगढ़ के इन जिलों की बदलेगी तकदीर? पूर्व पश्चिम एक्सप्रेस-वे केसरिया कॉरिडोर से विकास में आएगी तेजी” href=”https://www.abplive.com/states/chhattisgarh/kesariya-corridor-chhattisgarh-will-benefit-construction-of-east-west-express-ann-2717876″ target=”_self”>छत्तीसगढ़ के इन जिलों की बदलेगी तकदीर? पूर्व पश्चिम एक्सप्रेस-वे केसरिया कॉरिडोर से विकास में आएगी तेजी</a></strong></p>
</div> <p style=”text-align: justify;”><strong>Bastar Red Ants Business:</strong> छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपने प्राकृतिक सौंदर्य और यहां के आदिवासियों के रहन-सहन और खान-पान के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. कुदरत ने बस्तर को नेचुरल खूबसूरती से तराशा है. यहां के घने जंगल, वादियां और यहां के वाटरफॉल्स सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. वैसे तो बस्तर के आदिवासियों के खानपान में काफी चीजें हैं, लेकिन इनमें कुछ ऐसी डिश है, जो बस्तर को अलग पहचान दिलाती है. जिसे चापड़ा की चटनी यानी चींटी से बनी चटनी कहते हैं. </p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, चींटी से बनी चटनी छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में लंबे समय से काफी लोकप्रिय है. आदिवासी समाज के लोग सामान्य सर्दी, बुखार, पीलिया और आंत की समस्याओं और खांसी को ठीक करने और भूख बढ़ाने के लिए चापड़ा चटनी खाते हैं. मलेरिया समेत कई रोगों के इलाज में तो यह रामबाण माना जाता है. बस्तर की चटपटी चापड़ा चटनी एक ऐसी डिश है जो उड़ीसा और झारखंड में भी खूब लोकप्रिय है और छत्तीसगढ़ की यह डिश विश्वभर में प्रसिद्ध है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जानकारों ने क्या कहा?</strong><br />चापड़ा चटनी छत्तीसगढ़ के सैंकड़ों बस्तरवासियों के लिए आय का स्रोत बन गया है. ऐसे में अब बस्तर में चापड़ा चींटी को बेचकर हर साल लगभग 15 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है. जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि बस्तर की लाल चींटी या चापड़ा चींटी यहां के लोगों की पसंदीदा चटनी ही नहीं बल्कि हर रोज सैंकड़ों ग्रामीणों को रोजगार देने का साधन भी है. एक अनुमान के मुताबिक बस्तर में हर रोज कम से कम 15 साप्ताहिक बाजार लगते हैं और यहां लगभग पांच हजार तक की चापड़ा चींटी बिकती है. इस हिसाब से एक साल में लगभग 15 करोड़ रुपये की चापड़ा चींटी का कारोबार हो जाता है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>पड़ोसी राज्य उड़ीसा ने भले ही चापड़ा चटनी को अपना बताकर इसे पेटेंट करवा लिया है, लेकिन बस्तर में यहां के आदिवासी ग्रामीण पुरातन काल से ही चापड़ा चटनी का उपयोग चटनी बनाकर खाने में करते आ रहे हैं. यहां के साल वनों में चापड़ा आज भी पनप रही है और रोजगार का साधन बनी हुई हैं. वहीं हेमंत कश्यप का कहना है कि आमतौर पर साल के पेड़ों पर घोंसला बना कर रहने वाली चापड़ा चींटी बस्तर में सैंकड़ों ग्रामीण के रोजगार का सशक्त साधन हैं. गांव के हाट बाजार से लेकर शहर के बड़े बाजारों में भी चापड़ा चींटी को बेचा जाता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>इस बीमारी में खाते हैं आदिवासी</strong><br />इस चींटी के शरीर में विशेष प्रकार का एसिड पाया जाता है, जिसे औषधि माना जाता है. इसलिए लोग इसे खाना पसंद करते हैं. इधर शोध में पता चलता है कि आदिवासी लोग सामान्य सर्दी, बुखार, पीलिया की समस्याओं खांसी को ठीक करने और भूख बढ़ाने के लिए चापड़ा चटनी खाते हैं. हेमंत कश्यप बताते हैं कि साल और आम के पेड़ों पर पनपने वाली लाल चींटी को चापड़ा चींटी कहा जाता है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>इसकी डिमांड अधिक होने के कारण इसके घोंसलों को तोड़कर इन्हें इकट्ठा किया जाता है. जिस टहनी पर घोंसला होता है उस पूरी टहनी को तोड़कर गर्म पानी में डाल दिया जाता है, ताकि चीटियां मर जाएं. बस्तर के साल वनों में सैंकड़ों ग्रामीण सुबह-सुबह पहुंच जाते हैं और साल के ऊंचे पेड़ों से चापड़ा चींटी के घोंसले तोड़ कर इसे बर्तन में इकट्ठा करते हैं फिर इन्हें बेचने बाजार पहुंचते हैं.</p>
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<p><strong><a title=”छत्तीसगढ़ के इन जिलों की बदलेगी तकदीर? पूर्व पश्चिम एक्सप्रेस-वे केसरिया कॉरिडोर से विकास में आएगी तेजी” href=”https://www.abplive.com/states/chhattisgarh/kesariya-corridor-chhattisgarh-will-benefit-construction-of-east-west-express-ann-2717876″ target=”_self”>छत्तीसगढ़ के इन जिलों की बदलेगी तकदीर? पूर्व पश्चिम एक्सप्रेस-वे केसरिया कॉरिडोर से विकास में आएगी तेजी</a></strong></p>
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बस्तर की ‘लाल चींटियों’ की बढ़ी डिमांड, सैकड़ो लोग हर साल इसे बेचकर करते हैं 15 करोड़ का कारोबार
