सभी समीकरणों को दरकिनार करते हुए भाजपा ने ब्राह्मण कार्ड खेला और सुरेश अवस्थी को टिकट थमा दिया है। सुरेश अवस्थी वर्ष-2017 में सीसामऊ सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। इस चुनाव में वे इरफान सोलंकी से चुनाव हार गए थे। 2022 में आर्य नगर से चुनाव लड़े और हार गए। भाजपा के स्वर्णिम काल में भी लगातार दो विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखने वाले सुरेश अवस्थी पर आखिर भाजपा ने क्यों दांव खेला? इसके पीछे सुरेश अवस्थी की सीसामऊ सीट पर सक्रियता और भाजपा आलाकमान को वो ये बताने में कामयाब रहे कि उनके चुनाव लड़ने से समीकरण किस करवट बैठेंगे। अब समझते हैं उन 5 कारणों को जो बनाएंगे और बिगाड़ेंगे समीकरण 1. दलितों की नाराजगी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
सुरेश अवस्थी के मैदान में आने से पार्टी नेताओं का मानना है कि राकेश सोनकर ने जिस तरह से नामांकन फार्म खरीदे और उसके बाद भी उन्हें टिकट नहीं मिला, उससे भाजपा दलितों को जोड़ने के जिस तरह के प्रयास कर रही थी, उसे झटका लगने की पूरी आशंका है। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे बड़ा चैलेंज अब दलितों का वोट हासिल करना है। 2. पार्टी से ज्यादा गठबंधन भाजपा के सामने सबसे चुनौती
सपा-कांग्रेस गठबंधन इस सीट पर भाजपा को कड़ी चुनौती देगा। 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो 66,897 वोट मिले। जबकि कांग्रेस से हाजी सुहैल अहमद को 5,616 वोट और इरफान को 79,163 वोट लेकर जीत दर्ज की थी। इस बार चुनाव में सपा के साथ कांग्रेस का वोट भी है और मुस्लिम एकजुट है। ऐसे में भाजपा को तगड़ी चुनौती मिलेगी। 3. मुस्लिम को वोट हासिल करना होगा
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से मुस्लिम पूरी तरह एकजुट हो गया है। दोनों ही पार्टियों में मुस्लिम समर्थक हैं। सपा को हिंदू वोट भी मिलते हैं। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये भी होगी कि वो मुस्लिम वोट भी बड़ी संख्या में हासिल कर सके। हालांकि मौजूदा समय में ये अभी बड़ी चुनौती है। 4. लालइमली सिर्फ बयान बनकर रह गया
सीसामऊ सीट पर आयोजित जनसभा में मुख्यमंत्री योगी ने लालइमली शुरू करने का एलान किया था। लेकिन ये सिर्फ बयान बनकर ही रह गया। माना जा रहा था कि चुनाव से पहले लालइमली का निरीक्षण करने के लिए केंद्रीय कपड़ा मंत्री आएंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वहीं लालइमली कर्मियों ने भाजपा के विरोध में मिल के गेट पर बैनर तक लगा दिया है कि वेतन नहीं तो वोट भी नहीं। लालइमली के करीब 5 से 10 हजार लोग इस सीट पर रहते हैं। 5. अंदरुनी कलह हुई तो भाजपा की हार तय
भाजपा में इस सीट पर टिकट को लेकर करीब 80 आवेदन आए थे। इसमें कई बड़े नाम पूरी ताकत से चर्चाओं में रहे। वहीं इस बार पचौरी परिवार को पूरी तरह भाजपा ने दरकिनार कर दिया, ऐसे में भाजपा में अंदरुनी कलह होना साफ हो गया है। वहीं इस सीट पर महापौर प्रमिला पांडेय ही निकाय चुनाव में जीत का परचम लहरा चुकी हैं। लेकिन उन्होंने अभी तक पूरी तरह दूरी बनाई हुई है। सीसामऊ सीट के इतिहास पर नजर डालते हैं…
सीसामऊ से 1996 में तीसरी बार राकेश सोनकर ही जीते थे। लंबे अंतराल के बाद भाजपा यहां से कमल खिलाने के लिए जीजान से जुट गई है। परिसीमन के बाद सीट मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण इरफान सोलंकी आर्यनगर से शिफ्ट होकर सीसामऊ आ गए थे। इरफान 2012 से 2022 तक वह इसी सीट से तीन चुनाव अब तक जीत चुके हैं। उन्हें सजा होने से उनकी सदन की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। उपचुनाव में पार्टी ने उनकी बेगम नसीम सोलंकी को प्रत्याशी बनाया है। सरकार ने जीतने के लिए प्रतिष्ठा लगाई
सियासी समीकरण के लिहाज से यह सीट समाजवादी पार्टी के लिए मजबूत साबित होती रही है। सीट फतह करने को भाजपा ने सरकार की तरफ से कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना तो संगठन की तरफ से एमएलसी मानवेंद्र सिंह को आगे किया। जीत का ताना-बाना उन्हीं के जिम्मे है। मुस्लिम बाहुल्य है सीसामऊ सीट
सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में करीब 2.70 मतदाता हैं। इनमें मुस्लिम करीब 1 लाख से ऊपर बताए जाते हैं। ब्राह्मण और अनुसूचित जाति (दलित) के क्रमश: लगभग 60-54 हजार मतदाता हैं। इस सीट पर मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित वोटर मुख्य भूमिका निभाते हैं। सहानुभूति हासिल करने के लिए सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी नसीम सोलंकी को मैदान में उतारा है। दूसरी तरफ बसपा ने वीरेंद्र शुक्ला को टिकट दिया है। सभी समीकरणों को दरकिनार करते हुए भाजपा ने ब्राह्मण कार्ड खेला और सुरेश अवस्थी को टिकट थमा दिया है। सुरेश अवस्थी वर्ष-2017 में सीसामऊ सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। इस चुनाव में वे इरफान सोलंकी से चुनाव हार गए थे। 2022 में आर्य नगर से चुनाव लड़े और हार गए। भाजपा के स्वर्णिम काल में भी लगातार दो विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखने वाले सुरेश अवस्थी पर आखिर भाजपा ने क्यों दांव खेला? इसके पीछे सुरेश अवस्थी की सीसामऊ सीट पर सक्रियता और भाजपा आलाकमान को वो ये बताने में कामयाब रहे कि उनके चुनाव लड़ने से समीकरण किस करवट बैठेंगे। अब समझते हैं उन 5 कारणों को जो बनाएंगे और बिगाड़ेंगे समीकरण 1. दलितों की नाराजगी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
सुरेश अवस्थी के मैदान में आने से पार्टी नेताओं का मानना है कि राकेश सोनकर ने जिस तरह से नामांकन फार्म खरीदे और उसके बाद भी उन्हें टिकट नहीं मिला, उससे भाजपा दलितों को जोड़ने के जिस तरह के प्रयास कर रही थी, उसे झटका लगने की पूरी आशंका है। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे बड़ा चैलेंज अब दलितों का वोट हासिल करना है। 2. पार्टी से ज्यादा गठबंधन भाजपा के सामने सबसे चुनौती
सपा-कांग्रेस गठबंधन इस सीट पर भाजपा को कड़ी चुनौती देगा। 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो 66,897 वोट मिले। जबकि कांग्रेस से हाजी सुहैल अहमद को 5,616 वोट और इरफान को 79,163 वोट लेकर जीत दर्ज की थी। इस बार चुनाव में सपा के साथ कांग्रेस का वोट भी है और मुस्लिम एकजुट है। ऐसे में भाजपा को तगड़ी चुनौती मिलेगी। 3. मुस्लिम को वोट हासिल करना होगा
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से मुस्लिम पूरी तरह एकजुट हो गया है। दोनों ही पार्टियों में मुस्लिम समर्थक हैं। सपा को हिंदू वोट भी मिलते हैं। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये भी होगी कि वो मुस्लिम वोट भी बड़ी संख्या में हासिल कर सके। हालांकि मौजूदा समय में ये अभी बड़ी चुनौती है। 4. लालइमली सिर्फ बयान बनकर रह गया
सीसामऊ सीट पर आयोजित जनसभा में मुख्यमंत्री योगी ने लालइमली शुरू करने का एलान किया था। लेकिन ये सिर्फ बयान बनकर ही रह गया। माना जा रहा था कि चुनाव से पहले लालइमली का निरीक्षण करने के लिए केंद्रीय कपड़ा मंत्री आएंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वहीं लालइमली कर्मियों ने भाजपा के विरोध में मिल के गेट पर बैनर तक लगा दिया है कि वेतन नहीं तो वोट भी नहीं। लालइमली के करीब 5 से 10 हजार लोग इस सीट पर रहते हैं। 5. अंदरुनी कलह हुई तो भाजपा की हार तय
भाजपा में इस सीट पर टिकट को लेकर करीब 80 आवेदन आए थे। इसमें कई बड़े नाम पूरी ताकत से चर्चाओं में रहे। वहीं इस बार पचौरी परिवार को पूरी तरह भाजपा ने दरकिनार कर दिया, ऐसे में भाजपा में अंदरुनी कलह होना साफ हो गया है। वहीं इस सीट पर महापौर प्रमिला पांडेय ही निकाय चुनाव में जीत का परचम लहरा चुकी हैं। लेकिन उन्होंने अभी तक पूरी तरह दूरी बनाई हुई है। सीसामऊ सीट के इतिहास पर नजर डालते हैं…
सीसामऊ से 1996 में तीसरी बार राकेश सोनकर ही जीते थे। लंबे अंतराल के बाद भाजपा यहां से कमल खिलाने के लिए जीजान से जुट गई है। परिसीमन के बाद सीट मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण इरफान सोलंकी आर्यनगर से शिफ्ट होकर सीसामऊ आ गए थे। इरफान 2012 से 2022 तक वह इसी सीट से तीन चुनाव अब तक जीत चुके हैं। उन्हें सजा होने से उनकी सदन की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। उपचुनाव में पार्टी ने उनकी बेगम नसीम सोलंकी को प्रत्याशी बनाया है। सरकार ने जीतने के लिए प्रतिष्ठा लगाई
सियासी समीकरण के लिहाज से यह सीट समाजवादी पार्टी के लिए मजबूत साबित होती रही है। सीट फतह करने को भाजपा ने सरकार की तरफ से कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना तो संगठन की तरफ से एमएलसी मानवेंद्र सिंह को आगे किया। जीत का ताना-बाना उन्हीं के जिम्मे है। मुस्लिम बाहुल्य है सीसामऊ सीट
सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में करीब 2.70 मतदाता हैं। इनमें मुस्लिम करीब 1 लाख से ऊपर बताए जाते हैं। ब्राह्मण और अनुसूचित जाति (दलित) के क्रमश: लगभग 60-54 हजार मतदाता हैं। इस सीट पर मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित वोटर मुख्य भूमिका निभाते हैं। सहानुभूति हासिल करने के लिए सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी नसीम सोलंकी को मैदान में उतारा है। दूसरी तरफ बसपा ने वीरेंद्र शुक्ला को टिकट दिया है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर