मथुरा में गोपियों ने कृष्ण को मारे लट्‌ठ:साधु-संतों ने 10 क्विंटल फूलों से खेली होली, आज बिरज में…गाने पर थिरके लोग

मथुरा में गोपियों ने कृष्ण को मारे लट्‌ठ:साधु-संतों ने 10 क्विंटल फूलों से खेली होली, आज बिरज में…गाने पर थिरके लोग

मथुरा में सोमवार को श्रीकृष्ण सखियों के साथ होली खेल रहे हैं। राधा रानी और सखियां लट्‌ठ लेकर प्रभु के साथ होली खेलती है, ढाल लेकर कृष्ण खुद को बचाते हैं। यह दृश्य है मथुरा के रमण रेती का। इससे पहले दिन में साधु-संतों ने 10 क्विंटल फूलों से होली खेली। पहले संत गुरु शरणानंद महाराज ने भगवान राधा-कृष्ण के स्वरूप को रंग और गुलाल लगाया। फिर राधा-कृष्ण की पूजा-अर्चना की, आशीर्वाद लिया। इसके बाद फूलों की होली शुरू हुई। थोड़ी देर में ही पूरा आश्रम अबीर और रंगों से सराबोर नजर आया। इस दौरान साधु-संत ‘आज बिरज में होली रे रसिया’ गाने पर सखा-सखियां डांस कर रहे थे, फूल उड़ा रहे थे। शाम को रमण रेती के अंदर ही श्रीकृष्ण–राधा के स्वरुपों ने मोर डांस किया। श्रीकृष्ण सखियों के साथ होली खेलते दिखे। 4 तस्वीर में फूलों की होली और मोर डांस… टेसू के फूलों से खेली होली
यह होली जहां चल रही है, वह आश्रम महावन यमुना किनारे है। संत गुरु शरणानंद के आश्रम में सुबह से भक्तों की भीड़ जमा थी। करीब 10 क्विंटल गेंदा के फूल मंगवाए गए थे। टेसू के फूलों से बने रंग सेवादारों के पास थे। ये रंग खासतौर पर 20 क्विंटल टेसू के फूलों से बनवाए गए। सुबह करीब 11 बजे गुरु शरणानंद महाराज ने भगवान को अबीर और रंग लगाया। भगवान के बाद सेवादारों को रंग लगाया। सेवादारों ने भी उन्हें रंग लगाकर आशीर्वाद लिया। इसके बाद भगवान के स्वरूप के साथ होली खेली गई। इस दौरान भक्त जय राधे कृष्ण के जयकारे लगाते नजर आए। संत खुद को रोक न सके
मंच पर जब भगवान राधा कृष्ण के स्वरूपों ने होली खेली तो वहां मौजूद गुरु शरणानंद महाराज खुद को रोक नहीं सके। उन्होंने भी भगवान के स्वरूपों के साथ होली का आनंद लिया। इसके बाद पूरे आश्रम में हर तरफ रंग और अबीर-गुलाल उड़ता नजर आया। रमणरेती आए श्रद्धालुओं की बात… पूरे साल होली का इंतजार रहता है
दिल्ली से आई सोनिया ने कहा- यहां की होली सबसे पवित्र मानी जाती है। माना जाता है कि यहां होली खेलने का मतलब है, स्वयं श्रीकृष्ण भगवान के साथ होली खेली है। पूरे साल इंतजार रहता है कि कब डोला और होली उत्सव आए और हम अपनी बैट्री चार्ज करने रमणरेती आएं। बहुत आनंदमय उत्सव रहता है। रास बिहारी खुद होली खेल रहे, इससे ज्यादा आनंद नहीं
संत कर्षिणी योगी वशिष्ठ कहते हैं- रास बिहारी खुद होली खेल रहे हैं। बहुत आनंद आ रहा है। पूरे देश से लोग आए हैं, सभी आनंदित हो रहे हैं। एक ही बात कहना चाहूंगा कि जो लोग यहां आए हैं, उन्होंने बहुत पुण्य किया है, जो उन्हें यह कृपा प्राप्त हो रही है। रास बिहारी तो सबके दुलारे हैं। ऐसा दृश्य तीनों लोक में नहीं मिलेगा। रास का आनंद है, लोग दुनियाभर से आते हैं
श्रद्धालु सुषमा कहती हैं- ब्रज में लोग सिर्फ होली खेलने नहीं, देखने भी आते हैं। पूरे देश से लोग जुटते हैं। हम इसलिए सुबह से आ गए कि रास का आनंद ले सके। महाराज जी जब होली खेलें, तब उन्हें देख सकें। ब्रज की पहली होली रमणरेती में खेली
संत कर्षिणी हरदेवानंद ने कहा- ब्रज की पहली होली रमणरेती में खेली गई। यहां से यह संदेश जाता है कि होली में केमिकल का इस्तेमाल न करें। टेसू के रंग, केसर, फूलों से होली खेली गई। रास बिहारी के साथ खेली गई होली का आनंद और अनुभव सबके सामने है। आनंद क्या, ये तो परमानंद है। रमण रेती जाएं, तो रंग न लेकर जाएं
रमणरेती आश्रम में मिलावटी रंगों के इस्तेमाल पर रोक है। यहां पर कोई भी भक्त अपने साथ रंग लेकर नहीं आता। उसे आश्रम से ही होली खेलने के लिए रंग उपलब्ध कराए जाते हैं। रंग भी मंदिर में ही तैयार किए जाते हैं। इस बार 20 क्विंटल टेसू के फूल मंगाए गए हैं। इससे 6 हजार लीटर रंग तैयार किया गया। इनसे शरीर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता। रमणरेती आश्रम में 5 दिवसीय गुरु कार्ष्णि गोपाल जयंती महोत्सव का आयोजन किया जाता है। 94 सेल से चल रहे इस महोत्सव के चौथे दिन होली खेली जाती है। इसमें ब्रज में खेली जाने वाली अलग-अलग होली के रंग देखने को मिलते हैं। यह उत्सव कल (4 मार्च) को समाप्त होगा। 8-9 मार्च को खेली जाएगी लट्ठमार होली
ब्रज की होली सभी जगह से निराली है। लेकिन, सबसे ज्यादा राधा-रानी की नगरी बरसाना की विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली प्रसिद्ध है। यहां नंदगांव से कृष्ण के सखा के रूप में आने वाले हुरियारों के साथ राधा रानी की सखियां रूपी हुरियारिन लट्ठमार होली खेलती हैं। द्वापर युग से चली आ रही यह परंपरा हर साल होली से पहले नवमी को बरसाना में निभाई जाती है। इस बार 8 मार्च को बरसाना और 9 मार्च को नंदगांव में लट्ठमार होली है। लट्ठमार होली के दौरान हुरियारिन नंदगांव से आए हुरियारों पर लाठियों से वार करती हैं। हुरियारे अपने साथ लाई ढाल से खुद की रक्षा करते हैं। परंपरा के मुताबिक, हुरियारिन लाठियों को तेजी से चलाने के लिए ताकत हो। इसलिए दूध, दही, मक्खन और मेवा खा रही हैं। ——————– ये खबर भी पढ़ें- महाकुंभ के बाद कहां जाते हैं अखाड़ों के नागा:रविंद्र पुरी बोले- पुलिस सिस्टम की तरह होती है तैनाती; नए साधु 12 साल तप करेंगे महाकुंभ में 3 अमृत स्नान के बाद सभी 7 शैव अखाड़े काशी में मौजूद हैं। घाट पर बने आश्रम में लोग नागा साधुओं से आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। अखाड़े के महामंडलेश्वर और नागा साधु इन दिनों पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं। पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली के बाद ये अखाड़े काशी से भी कूच कर जाएंगे। सवाल उठता है कि अखाड़े कहां जाते हैं? हजारों नए नागा साधुओं की भूमिका क्या होगी? दोबारा उनके दर्शन कब और कहां होंगे? इनके जवाब के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज से कुछ सवाल किए। पढ़ें पूरी खबर मथुरा में सोमवार को श्रीकृष्ण सखियों के साथ होली खेल रहे हैं। राधा रानी और सखियां लट्‌ठ लेकर प्रभु के साथ होली खेलती है, ढाल लेकर कृष्ण खुद को बचाते हैं। यह दृश्य है मथुरा के रमण रेती का। इससे पहले दिन में साधु-संतों ने 10 क्विंटल फूलों से होली खेली। पहले संत गुरु शरणानंद महाराज ने भगवान राधा-कृष्ण के स्वरूप को रंग और गुलाल लगाया। फिर राधा-कृष्ण की पूजा-अर्चना की, आशीर्वाद लिया। इसके बाद फूलों की होली शुरू हुई। थोड़ी देर में ही पूरा आश्रम अबीर और रंगों से सराबोर नजर आया। इस दौरान साधु-संत ‘आज बिरज में होली रे रसिया’ गाने पर सखा-सखियां डांस कर रहे थे, फूल उड़ा रहे थे। शाम को रमण रेती के अंदर ही श्रीकृष्ण–राधा के स्वरुपों ने मोर डांस किया। श्रीकृष्ण सखियों के साथ होली खेलते दिखे। 4 तस्वीर में फूलों की होली और मोर डांस… टेसू के फूलों से खेली होली
यह होली जहां चल रही है, वह आश्रम महावन यमुना किनारे है। संत गुरु शरणानंद के आश्रम में सुबह से भक्तों की भीड़ जमा थी। करीब 10 क्विंटल गेंदा के फूल मंगवाए गए थे। टेसू के फूलों से बने रंग सेवादारों के पास थे। ये रंग खासतौर पर 20 क्विंटल टेसू के फूलों से बनवाए गए। सुबह करीब 11 बजे गुरु शरणानंद महाराज ने भगवान को अबीर और रंग लगाया। भगवान के बाद सेवादारों को रंग लगाया। सेवादारों ने भी उन्हें रंग लगाकर आशीर्वाद लिया। इसके बाद भगवान के स्वरूप के साथ होली खेली गई। इस दौरान भक्त जय राधे कृष्ण के जयकारे लगाते नजर आए। संत खुद को रोक न सके
मंच पर जब भगवान राधा कृष्ण के स्वरूपों ने होली खेली तो वहां मौजूद गुरु शरणानंद महाराज खुद को रोक नहीं सके। उन्होंने भी भगवान के स्वरूपों के साथ होली का आनंद लिया। इसके बाद पूरे आश्रम में हर तरफ रंग और अबीर-गुलाल उड़ता नजर आया। रमणरेती आए श्रद्धालुओं की बात… पूरे साल होली का इंतजार रहता है
दिल्ली से आई सोनिया ने कहा- यहां की होली सबसे पवित्र मानी जाती है। माना जाता है कि यहां होली खेलने का मतलब है, स्वयं श्रीकृष्ण भगवान के साथ होली खेली है। पूरे साल इंतजार रहता है कि कब डोला और होली उत्सव आए और हम अपनी बैट्री चार्ज करने रमणरेती आएं। बहुत आनंदमय उत्सव रहता है। रास बिहारी खुद होली खेल रहे, इससे ज्यादा आनंद नहीं
संत कर्षिणी योगी वशिष्ठ कहते हैं- रास बिहारी खुद होली खेल रहे हैं। बहुत आनंद आ रहा है। पूरे देश से लोग आए हैं, सभी आनंदित हो रहे हैं। एक ही बात कहना चाहूंगा कि जो लोग यहां आए हैं, उन्होंने बहुत पुण्य किया है, जो उन्हें यह कृपा प्राप्त हो रही है। रास बिहारी तो सबके दुलारे हैं। ऐसा दृश्य तीनों लोक में नहीं मिलेगा। रास का आनंद है, लोग दुनियाभर से आते हैं
श्रद्धालु सुषमा कहती हैं- ब्रज में लोग सिर्फ होली खेलने नहीं, देखने भी आते हैं। पूरे देश से लोग जुटते हैं। हम इसलिए सुबह से आ गए कि रास का आनंद ले सके। महाराज जी जब होली खेलें, तब उन्हें देख सकें। ब्रज की पहली होली रमणरेती में खेली
संत कर्षिणी हरदेवानंद ने कहा- ब्रज की पहली होली रमणरेती में खेली गई। यहां से यह संदेश जाता है कि होली में केमिकल का इस्तेमाल न करें। टेसू के रंग, केसर, फूलों से होली खेली गई। रास बिहारी के साथ खेली गई होली का आनंद और अनुभव सबके सामने है। आनंद क्या, ये तो परमानंद है। रमण रेती जाएं, तो रंग न लेकर जाएं
रमणरेती आश्रम में मिलावटी रंगों के इस्तेमाल पर रोक है। यहां पर कोई भी भक्त अपने साथ रंग लेकर नहीं आता। उसे आश्रम से ही होली खेलने के लिए रंग उपलब्ध कराए जाते हैं। रंग भी मंदिर में ही तैयार किए जाते हैं। इस बार 20 क्विंटल टेसू के फूल मंगाए गए हैं। इससे 6 हजार लीटर रंग तैयार किया गया। इनसे शरीर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता। रमणरेती आश्रम में 5 दिवसीय गुरु कार्ष्णि गोपाल जयंती महोत्सव का आयोजन किया जाता है। 94 सेल से चल रहे इस महोत्सव के चौथे दिन होली खेली जाती है। इसमें ब्रज में खेली जाने वाली अलग-अलग होली के रंग देखने को मिलते हैं। यह उत्सव कल (4 मार्च) को समाप्त होगा। 8-9 मार्च को खेली जाएगी लट्ठमार होली
ब्रज की होली सभी जगह से निराली है। लेकिन, सबसे ज्यादा राधा-रानी की नगरी बरसाना की विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली प्रसिद्ध है। यहां नंदगांव से कृष्ण के सखा के रूप में आने वाले हुरियारों के साथ राधा रानी की सखियां रूपी हुरियारिन लट्ठमार होली खेलती हैं। द्वापर युग से चली आ रही यह परंपरा हर साल होली से पहले नवमी को बरसाना में निभाई जाती है। इस बार 8 मार्च को बरसाना और 9 मार्च को नंदगांव में लट्ठमार होली है। लट्ठमार होली के दौरान हुरियारिन नंदगांव से आए हुरियारों पर लाठियों से वार करती हैं। हुरियारे अपने साथ लाई ढाल से खुद की रक्षा करते हैं। परंपरा के मुताबिक, हुरियारिन लाठियों को तेजी से चलाने के लिए ताकत हो। इसलिए दूध, दही, मक्खन और मेवा खा रही हैं। ——————– ये खबर भी पढ़ें- महाकुंभ के बाद कहां जाते हैं अखाड़ों के नागा:रविंद्र पुरी बोले- पुलिस सिस्टम की तरह होती है तैनाती; नए साधु 12 साल तप करेंगे महाकुंभ में 3 अमृत स्नान के बाद सभी 7 शैव अखाड़े काशी में मौजूद हैं। घाट पर बने आश्रम में लोग नागा साधुओं से आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। अखाड़े के महामंडलेश्वर और नागा साधु इन दिनों पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं। पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली के बाद ये अखाड़े काशी से भी कूच कर जाएंगे। सवाल उठता है कि अखाड़े कहां जाते हैं? हजारों नए नागा साधुओं की भूमिका क्या होगी? दोबारा उनके दर्शन कब और कहां होंगे? इनके जवाब के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज से कुछ सवाल किए। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर