महाकुंभ में पहली बार अखाड़ों के स्नान पर विवाद खड़ा हो गया है। राजसी स्नान पहले कौन करेगा? दूसरे नंबर पर किस अखाड़े के साधु आएंगे? इसको लेकर 2 अखाड़े अपने-अपने दावे कर रहे हैं। स्नान का यह मुद्दा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में उठा। जहां जूना अखाड़ा ने कहा- हमारे साथ सबसे ज्यादा साधु-संत हैं। हम पहले स्नान करेंगे? इस दावे को श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी से चुनौती है, क्योंकि सदियों से चली आ रही परंपरा में यही अखाड़ा पहले स्नान करता आया है। इस अखाड़े के सचिव महंत ने साफ कर दिया है कि हमारे अखाड़े के साधु ही सबसे पहले राजसी स्नान करेंगे। अब नवंबर में होने वाली अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में संत इस विवाद पर दोबारा मंथन करेंगे, इसी के बाद तय होगा कि पहले राजसी स्नान कौन करेगा। दैनिक भास्कर ने दोनों अखाड़ों से बात की, पढ़िए रिपोर्ट… जूना अखाड़े के पीछे रहने से आगे वाले साधुओं पर दबाव
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने कहा- जूना अखाड़ा के पदाधिकारियों ने सबसे पहले स्नान करने की मांग की है। दरअसल, शैव परंपरा के अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है, इसलिए उसे सबसे आगे स्नान करने का मौका देना चाहिए। अखाड़ों की रजामंदी से वो इस प्रस्ताव को अगली बैठक में सभी दूसरे अखाड़ों से पास भी करवा लेंगे। जूना अखाड़े में ज्यादा साधु-संत जुड़े हैं। अगर वह स्नान में पीछे रहते हैं, तो आगे रहने वाले साधु-संतों पर दबाव पड़ता और धक्का लगता है। इससे किसी तरह का हादसा होने का खतरा रहता है। अब श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी का दावा जानिए… राजसी स्नान संख्या से नहीं, परंपरा से तय होता है
दैनिक भास्कर ने श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुना पुरी से मुलाकात की। उनसे स्नान के दावे पर सवाल पूछा। उन्होंने कहा- सदियों पुरानी परंपरा चल आ रही है कि कुंभ-महाकुंभ में पहले पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा ही स्नान करता है। फिर इसमें फेरबदल क्यों किया जा रहा है। यह गलत है। अखाड़ों के राजसी स्नान का क्रम संख्या बल से नहीं बल्कि परंपरा के आधार पर तय होता आया है, आगे भी ऐसा ही होता रहेगा। दरअसल, संगम की रेती पर 13 जनवरी, 2025 को दुनिया का सबसे बड़ा मेला यानी महाकुंभ शुरू हो रहा है। साधु-संतों की व्यवस्थाओं को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद लगातार मंथन कर रहा है। इसमें तय हुए अहम फैसले पढ़िए…. अब स्नान की परंपरा को समझते हैं। कुल 13 अखाड़े हैं, इनके स्नान का एक क्रम तय होता है। अखाड़े के प्रमुख महंत पहले अपने ईष्ट देव को स्नान कराते हैं। फिर साधु-संत करते हैं। सभी अखाड़े अपना-अपना नंबर आने पर स्नान के लिए पहुंचते रहते हैं। अखाड़ों के स्नान का क्रम समझने के लिए जनवरी, 2019 के कुंभ का संदर्भ लेते हैं… सबसे पहले श्रीपंचायती अखाड़ा, आखिर में उदासीन अखाड़ा करता है स्नान
प्रयागराज में जनवरी, 2019 के कुंभ में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने सबसे पहले राजसी स्नान किया था। उसके साथ श्री पंचायती अटल अखाड़ा भी मौजूद था। दूसरे क्रम में श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा और तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़े ने शाही स्नान किया था। इसके बाद श्री पंचदश नाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदश नाम आह्वान अखाड़ा और श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़े ने एक साथ स्नान किया था। इसके बाद बैरागी अखाड़ों के शाही स्नान का क्रम शुरू हुआ था। जिसमें सबसे पहले अखिल भारतीय श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा ने स्नान किया था। उसके बाद अखिल भारतीय श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा और अखिल भारतीय पंच निर्मोही अनी अखाड़े ने स्नान किया था। सबसे अंत में उदासीन अखाड़े ने स्नान किया था। इसमें पहले श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, उसके बाद श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन और श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल ने स्नान किया था। हरिद्वार में निरंजनी अखाड़ा करता है पहले स्नान
पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत यमुना पुरी बताते हैं कि सभी अखाड़ों के अपने-अपने ईष्टदेव होते हैं। सभी अखाड़े पहले अपने-अपने देवताओं को स्नान कराते हैं। सभी देवताओं को सम्मान दिया जाता है। प्रयागराज कुंभ और महाकुंभ में सबसे पहले महानिर्वाणी अखाड़े के शाही स्नान की परंपरा है। हरिद्वार में निरंजनी अखाड़ा सबसे पहले स्नान करता है। उज्जैन और नासिक में जूना अखाड़ा सबसे पहले शाही स्नान करता है। अखाड़े तीन स्नान पर्वों पर राजसी स्नान करते हैं। मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी पर अखाड़ों का राजसी स्नान होता है। अब पढ़िए कैसे शाही स्नान का नाम बदलकर राजसी स्नान किया गया… प्रयागराज महाकुंभ में ‘शाही स्नान’ और ‘पेशवाई’ नहीं:700 साल बाद संत करेंगे राजसी स्नान; नाम बदलने के पीछे के तर्क की पूरी कहानी प्रयागराज में कुंभ 2025 की तैयारियां अब आखिरी चरण में हैं। तमाम अखाड़े भी अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगे हैं। उनकी इन्हीं तैयारियों में इस बार एक काम और शामिल है, वह है- कुछ नामों को बदलना। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सर्वसम्मति से निर्णय ले रहे हैं। पढ़िए पूरी खबर… महाकुंभ में पहली बार अखाड़ों के स्नान पर विवाद खड़ा हो गया है। राजसी स्नान पहले कौन करेगा? दूसरे नंबर पर किस अखाड़े के साधु आएंगे? इसको लेकर 2 अखाड़े अपने-अपने दावे कर रहे हैं। स्नान का यह मुद्दा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में उठा। जहां जूना अखाड़ा ने कहा- हमारे साथ सबसे ज्यादा साधु-संत हैं। हम पहले स्नान करेंगे? इस दावे को श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी से चुनौती है, क्योंकि सदियों से चली आ रही परंपरा में यही अखाड़ा पहले स्नान करता आया है। इस अखाड़े के सचिव महंत ने साफ कर दिया है कि हमारे अखाड़े के साधु ही सबसे पहले राजसी स्नान करेंगे। अब नवंबर में होने वाली अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में संत इस विवाद पर दोबारा मंथन करेंगे, इसी के बाद तय होगा कि पहले राजसी स्नान कौन करेगा। दैनिक भास्कर ने दोनों अखाड़ों से बात की, पढ़िए रिपोर्ट… जूना अखाड़े के पीछे रहने से आगे वाले साधुओं पर दबाव
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने कहा- जूना अखाड़ा के पदाधिकारियों ने सबसे पहले स्नान करने की मांग की है। दरअसल, शैव परंपरा के अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है, इसलिए उसे सबसे आगे स्नान करने का मौका देना चाहिए। अखाड़ों की रजामंदी से वो इस प्रस्ताव को अगली बैठक में सभी दूसरे अखाड़ों से पास भी करवा लेंगे। जूना अखाड़े में ज्यादा साधु-संत जुड़े हैं। अगर वह स्नान में पीछे रहते हैं, तो आगे रहने वाले साधु-संतों पर दबाव पड़ता और धक्का लगता है। इससे किसी तरह का हादसा होने का खतरा रहता है। अब श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी का दावा जानिए… राजसी स्नान संख्या से नहीं, परंपरा से तय होता है
दैनिक भास्कर ने श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुना पुरी से मुलाकात की। उनसे स्नान के दावे पर सवाल पूछा। उन्होंने कहा- सदियों पुरानी परंपरा चल आ रही है कि कुंभ-महाकुंभ में पहले पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा ही स्नान करता है। फिर इसमें फेरबदल क्यों किया जा रहा है। यह गलत है। अखाड़ों के राजसी स्नान का क्रम संख्या बल से नहीं बल्कि परंपरा के आधार पर तय होता आया है, आगे भी ऐसा ही होता रहेगा। दरअसल, संगम की रेती पर 13 जनवरी, 2025 को दुनिया का सबसे बड़ा मेला यानी महाकुंभ शुरू हो रहा है। साधु-संतों की व्यवस्थाओं को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद लगातार मंथन कर रहा है। इसमें तय हुए अहम फैसले पढ़िए…. अब स्नान की परंपरा को समझते हैं। कुल 13 अखाड़े हैं, इनके स्नान का एक क्रम तय होता है। अखाड़े के प्रमुख महंत पहले अपने ईष्ट देव को स्नान कराते हैं। फिर साधु-संत करते हैं। सभी अखाड़े अपना-अपना नंबर आने पर स्नान के लिए पहुंचते रहते हैं। अखाड़ों के स्नान का क्रम समझने के लिए जनवरी, 2019 के कुंभ का संदर्भ लेते हैं… सबसे पहले श्रीपंचायती अखाड़ा, आखिर में उदासीन अखाड़ा करता है स्नान
प्रयागराज में जनवरी, 2019 के कुंभ में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने सबसे पहले राजसी स्नान किया था। उसके साथ श्री पंचायती अटल अखाड़ा भी मौजूद था। दूसरे क्रम में श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा और तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़े ने शाही स्नान किया था। इसके बाद श्री पंचदश नाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदश नाम आह्वान अखाड़ा और श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़े ने एक साथ स्नान किया था। इसके बाद बैरागी अखाड़ों के शाही स्नान का क्रम शुरू हुआ था। जिसमें सबसे पहले अखिल भारतीय श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा ने स्नान किया था। उसके बाद अखिल भारतीय श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा और अखिल भारतीय पंच निर्मोही अनी अखाड़े ने स्नान किया था। सबसे अंत में उदासीन अखाड़े ने स्नान किया था। इसमें पहले श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, उसके बाद श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन और श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल ने स्नान किया था। हरिद्वार में निरंजनी अखाड़ा करता है पहले स्नान
पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत यमुना पुरी बताते हैं कि सभी अखाड़ों के अपने-अपने ईष्टदेव होते हैं। सभी अखाड़े पहले अपने-अपने देवताओं को स्नान कराते हैं। सभी देवताओं को सम्मान दिया जाता है। प्रयागराज कुंभ और महाकुंभ में सबसे पहले महानिर्वाणी अखाड़े के शाही स्नान की परंपरा है। हरिद्वार में निरंजनी अखाड़ा सबसे पहले स्नान करता है। उज्जैन और नासिक में जूना अखाड़ा सबसे पहले शाही स्नान करता है। अखाड़े तीन स्नान पर्वों पर राजसी स्नान करते हैं। मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी पर अखाड़ों का राजसी स्नान होता है। अब पढ़िए कैसे शाही स्नान का नाम बदलकर राजसी स्नान किया गया… प्रयागराज महाकुंभ में ‘शाही स्नान’ और ‘पेशवाई’ नहीं:700 साल बाद संत करेंगे राजसी स्नान; नाम बदलने के पीछे के तर्क की पूरी कहानी प्रयागराज में कुंभ 2025 की तैयारियां अब आखिरी चरण में हैं। तमाम अखाड़े भी अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगे हैं। उनकी इन्हीं तैयारियों में इस बार एक काम और शामिल है, वह है- कुछ नामों को बदलना। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सर्वसम्मति से निर्णय ले रहे हैं। पढ़िए पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर