प्रयागराज में संगम की रेत पर टेंट सिटी आकार ले चुकी है। एक लाख से ज्यादा टेंट लगाए गए हैं, जिनमें सामान्य से लेकर लग्जरी टेंट हैं। इनकी क्षमता 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं की है। इस बार महाकुंभ मेले में टेंट सिटी बसाने में 68 लाख बल्लियां लगी हैं। इन्हें जोड़ें तो लंबाई संगम से अमेरिका की दूरी से डेढ़ गुना ज्यादा होगी। महाकुंभ में तंबुओं के शहर का जिम्मा लल्लूजी एंड संस कंपनी के पास है। यह कंपनी 104 साल से रेत पर तंबुओं का शहर बसाने का काम कर रही है। इस कंपनी को कुंभ का विश्वकर्मा कहा जाता है। दैनिक भास्कर टेंट सिटी में पहुंचा। जानिए टेंट सिटी कैसे बसती है, इसमें कितना कपड़ा लगता है और दूसरे रोचक फैक्ट्स… रेत पर बसी टेंट सिटी की ड्रोन से ली गई तस्वीर… परेड ग्राउंड पर काली सड़क से होते हुए हम कुंभ क्षेत्र में पहुंचे। हमें सड़क के दोनों किनारे बांस-बल्लियों, रस्सियों और टेंट के कपड़ों का एक पहाड़ नजर आया। हर इक्विपमेंट पर ‘लल्लू जी एंड संस’ का ब्रांड नेम छपा था। यहीं पर लल्लू जी एंड संस का गोदाम है। सड़क किनारे महिलाएं-पुरुष टेंट सिलने और फटे हुए कपड़ों में पैबंद लगाने के काम में जुटे थे। वहां रामबचन ने बताया- यह काम हम तब से कर रहे हैं, जब हमें सिर्फ 10 रुपए मिलते थे। अब हमारी उम्र 60 साल हो गई है। रोजाना 500 रुपए मिल रहे हैं। अब बहुत ज्यादा टेंट लगाए जाते हैं। अपने काम को तेजी से पूरा कर रहे कुलदीप ने बताया- हम पिछले ढाई महीने से इन कपड़ों से टेंट बना रहे हैं। ये टेंट सूती और टेरीकॉट के कपड़े को मिलकर बनाया जा रहा है। बारिश से बचने के लिए इसमें पॉलीथिन की लेयर लगाई जाएगी। लल्लूजी एंड संस के मैनेजर विश्वनाथ मिश्र ने कहा- कुंभ और लल्लूजी का जुड़ाव आजादी के पहले से है। इस कंपनी की स्थापना बाल गोविंद दास लल्लूजी ने की थी। शुरू में वे टेंट, तिरपाल का कारोबार करते थे। लल्लूजी 1918 में वाराणसी से इलाहाबाद आए। आज उनकी पांचवीं पीढ़ी इस काम में लगी है। कैसे यह पूरा सिस्टम काम करता है? कैसे कई महीनों तक रेत में डूबे संगम क्षेत्र में पूरी टेंट सिटी बनती है? यह जानने के लिए हम ‘लल्लूजी एंड संस’ के मैनेजिंग पार्टनर दीपांशु अग्रवाल से मिलने पहुंचे। वह बताते हैं कि यह मेला पिछली बार (2019 में 32 सौ हेक्टेयर) की तुलना में 800 हेक्टेयर ज्यादा बड़ा हो रहा है। भले ही यह 45 दिनों तक चलेगा, लेकिन इसकी तैयारी हमने डेढ़ साल पहले शुरू कर दी थी। इसमें नए टेंट बनाना, पुराने टेंट की रिपेयरिंग और पुराने इन्फ्रास्ट्रक्चर का रिफर्बिशमेंट शामिल है। मेला बसाने में 6 महीने, उजाड़ने में ढाई महीने का समय
दीपांशु आगे बताते हैं- संपूर्ण टेंट सिटी को बसाने में करीब 6 महीने का समय लगता है। मानसून की वजह से इस बार काम में थोड़ी देर हो रही है। संगम एक ऐसा क्षेत्र है, जो 3 महीने तक पानी में डूबा रहता है। पानी हटने के बाद इसके निर्माण का काम शुरू होता है। इसमें स्टोर बनाना, टीनशेड से एरिया को बांटना, सामान को मेला क्षेत्र में लाने का कम शुरू हो जाता है। वहीं, मेला खत्म होने के बाद इसे उखाड़ने में करीब ढाई से 3 महीने का समय लगता है। ऐसे टेंट लगे, जो फाइव स्टार होटल को देते हैं टक्कर
दीपांशु बताते हैं- इस बार वे एक ऐसी टेंट सिटी का निर्माण कर रहे हैं, जो फाइव स्टार होटल को भी मात दे सकेगी। इसमें कोजी बेडरूम, वेटिंग हॉल, मॉडर्न टॉयलेट, संगमरमर की फर्श, वुडन फर्नीचर, ड्राइंग रूम, टीवी, डीटीएच कनेक्शन, हीटर, इलेक्ट्रिकल ब्लैंकेट, इंटरकॉम सुविधा, वाई-फाई, सोफा, चेयर, फ्रिज और डिजाइनर फ्लावर्स पॉट मौजूद है। इलेक्ट्रिसिटी बचाने के लिए इस बार फाइव स्टार टेंट में ऑयल हीटर प्लेस हो रहा है। यमुना के तीर पर बसे इस टेंट सिटी में कोल्ड सबसे बड़ा चैलेंज रहेगा। इसलिए टेंट में खास इंसुलेटेड फैब्रिक का इस्तेमाल किया गया है। दिल्ली, उज्जैन, हरिद्वार और अहमदाबाद से मंगाए गए टेंट
लल्लूजी एंड संस के कार्यालय और गोदाम प्रयागराज के रामबाग, झूंसी और नैनी के साथ ही देश भर में हैं। कंपनी हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगने वाले मेलों में भी टेंट लगाने का काम करती है। कंपनी का सेटअप दिल्ली, उज्जैन, हरिद्वार और अहमदाबाद में भी है। 2025 महाकुंभ के लिए देश के 6 शहरों से लल्लूजी कंपनी की ओर से सामान मंगवाए गए हैं। दीपांशु अग्रवाल बताते हैं- महाकुंभ या कुंभ मेले में तंबुओं की नगरी बसाने का काम आसान नहीं होता। कपड़े के टेंट से लेकर बांस-बल्ली की व्यवस्था करना सबसे कठिन काम होता है। इस काम को आसानी से करने के लिए हम अनुभवी लोगों की टीम तैनात करते हैं। ठंड से बचने के लिए टेंट सिटी में फर्श पर पुआल बिछाया जाता है। थाने-चौकी बनाने का काम लल्लूजी डेरा वाले के जिम्मे
महाकुंभ में टेंट बनाने की जिम्मेदारी कुल 10 वेंडर्स को मिली है। इसमें 9 ठेके लल्लूजी एंड संस के परिवार के पास हैं। 10वां ठेका हरिद्वार के वृंदावन टेंट हाउस को दिया गया है। सरकार ने क्षमता के अनुसार काम दिया है। लल्लूजी को अखाड़ों का टेंट लगाने के साथ वीआईपी टेंट सिटी और बड़े इवेंट में सारी व्यवस्था देने की जिम्मेदारी भी मिली है। लल्लूजी से जुड़े डेरावाले को पुलिस डिपार्टमेंट के सभी टेंट लगाने की जिम्मेदारी मिली है। लल्लूजी डेरावाले के प्रमुख राजीव अग्रवाल बताते हैं- मेले में 56 थाने और 144 चौकियों को बनाने की जिम्मेदारी हमें मिली है। इसके अलावा प्रशासन से जुड़े ऑफिस और अस्थायी टेंट भी हम ही लगा रहे हैं। मेला अधिकारी जो भी काम देते हैं, हम उसे बेहतर करने की कोशिश करते हैं। पिछले कुंभ से दोगुना मटेरियल किया जा रहा यूज
हमने राजीव से पूछा कि 2019 के अर्द्धकुंभ से यह कुंभ कितना अलग है? वह कहते हैं, सब कुछ दोगुना हो गया है। उस वक्त हमने 2 लाख बल्लियां लगाई थीं, इस साल हम 4 लाख बल्लियां लगा रहे हैं। टेंट का कपड़ा और अन्य सामान भी दोगुना लगा है। इसे हम मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड से मंगा रहे हैं। यह आप समझिए कि हम सब पिछले डेढ़ साल से इसकी तैयारी में जुटे थे। जुलाई महीने से ही हम कुंभ क्षेत्र में काम करने लगे थे। प्रयागराज में 2019 के कुंभ में भी सजाया तंबुओं का नगर
प्रयागराज में 2019 में कराए गए कुंभ में भी लल्लूजी एंड संस ने अस्थायी नगर को बसाने का काम किया था। तकरीबन 32 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बसी कुंभ नगरी का यानी 70% से अधिक क्षेत्रफल में लल्लूजी एंड संस ने ही टेंट, टिन का शहर बसाने का काम किया था। टेंट सिटी को कनेक्ट करने को बन रहे फ्लाईओवर
भीड़ को देखते हुए इस बार यमुना किनारे यानी अरेल साइड में भी टेंट सिटी का निर्माण किया जा रहा है। संगम से टेंट सिटी को कनेक्ट करने के लिए मोरी पांटून पुल, हरिश्चंद्र पांटून, भारद्वाज पांटून पुल, गंगेश्वर पांटून पुल, वल्लभाचार्य पांटून पुल, बजरंगजास पांटून पुल और कैलाशपुरी पांटून पुल बनाया गया है। भीड़ के दौरान श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र से बाहर निकालने के लिए तीन अतिरिक्त पांटून पुल बन रहे हैं। ————————————————-
महाकुंभ की हर अपडेट जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें प्रयागराज में संगम की रेत पर टेंट सिटी आकार ले चुकी है। एक लाख से ज्यादा टेंट लगाए गए हैं, जिनमें सामान्य से लेकर लग्जरी टेंट हैं। इनकी क्षमता 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं की है। इस बार महाकुंभ मेले में टेंट सिटी बसाने में 68 लाख बल्लियां लगी हैं। इन्हें जोड़ें तो लंबाई संगम से अमेरिका की दूरी से डेढ़ गुना ज्यादा होगी। महाकुंभ में तंबुओं के शहर का जिम्मा लल्लूजी एंड संस कंपनी के पास है। यह कंपनी 104 साल से रेत पर तंबुओं का शहर बसाने का काम कर रही है। इस कंपनी को कुंभ का विश्वकर्मा कहा जाता है। दैनिक भास्कर टेंट सिटी में पहुंचा। जानिए टेंट सिटी कैसे बसती है, इसमें कितना कपड़ा लगता है और दूसरे रोचक फैक्ट्स… रेत पर बसी टेंट सिटी की ड्रोन से ली गई तस्वीर… परेड ग्राउंड पर काली सड़क से होते हुए हम कुंभ क्षेत्र में पहुंचे। हमें सड़क के दोनों किनारे बांस-बल्लियों, रस्सियों और टेंट के कपड़ों का एक पहाड़ नजर आया। हर इक्विपमेंट पर ‘लल्लू जी एंड संस’ का ब्रांड नेम छपा था। यहीं पर लल्लू जी एंड संस का गोदाम है। सड़क किनारे महिलाएं-पुरुष टेंट सिलने और फटे हुए कपड़ों में पैबंद लगाने के काम में जुटे थे। वहां रामबचन ने बताया- यह काम हम तब से कर रहे हैं, जब हमें सिर्फ 10 रुपए मिलते थे। अब हमारी उम्र 60 साल हो गई है। रोजाना 500 रुपए मिल रहे हैं। अब बहुत ज्यादा टेंट लगाए जाते हैं। अपने काम को तेजी से पूरा कर रहे कुलदीप ने बताया- हम पिछले ढाई महीने से इन कपड़ों से टेंट बना रहे हैं। ये टेंट सूती और टेरीकॉट के कपड़े को मिलकर बनाया जा रहा है। बारिश से बचने के लिए इसमें पॉलीथिन की लेयर लगाई जाएगी। लल्लूजी एंड संस के मैनेजर विश्वनाथ मिश्र ने कहा- कुंभ और लल्लूजी का जुड़ाव आजादी के पहले से है। इस कंपनी की स्थापना बाल गोविंद दास लल्लूजी ने की थी। शुरू में वे टेंट, तिरपाल का कारोबार करते थे। लल्लूजी 1918 में वाराणसी से इलाहाबाद आए। आज उनकी पांचवीं पीढ़ी इस काम में लगी है। कैसे यह पूरा सिस्टम काम करता है? कैसे कई महीनों तक रेत में डूबे संगम क्षेत्र में पूरी टेंट सिटी बनती है? यह जानने के लिए हम ‘लल्लूजी एंड संस’ के मैनेजिंग पार्टनर दीपांशु अग्रवाल से मिलने पहुंचे। वह बताते हैं कि यह मेला पिछली बार (2019 में 32 सौ हेक्टेयर) की तुलना में 800 हेक्टेयर ज्यादा बड़ा हो रहा है। भले ही यह 45 दिनों तक चलेगा, लेकिन इसकी तैयारी हमने डेढ़ साल पहले शुरू कर दी थी। इसमें नए टेंट बनाना, पुराने टेंट की रिपेयरिंग और पुराने इन्फ्रास्ट्रक्चर का रिफर्बिशमेंट शामिल है। मेला बसाने में 6 महीने, उजाड़ने में ढाई महीने का समय
दीपांशु आगे बताते हैं- संपूर्ण टेंट सिटी को बसाने में करीब 6 महीने का समय लगता है। मानसून की वजह से इस बार काम में थोड़ी देर हो रही है। संगम एक ऐसा क्षेत्र है, जो 3 महीने तक पानी में डूबा रहता है। पानी हटने के बाद इसके निर्माण का काम शुरू होता है। इसमें स्टोर बनाना, टीनशेड से एरिया को बांटना, सामान को मेला क्षेत्र में लाने का कम शुरू हो जाता है। वहीं, मेला खत्म होने के बाद इसे उखाड़ने में करीब ढाई से 3 महीने का समय लगता है। ऐसे टेंट लगे, जो फाइव स्टार होटल को देते हैं टक्कर
दीपांशु बताते हैं- इस बार वे एक ऐसी टेंट सिटी का निर्माण कर रहे हैं, जो फाइव स्टार होटल को भी मात दे सकेगी। इसमें कोजी बेडरूम, वेटिंग हॉल, मॉडर्न टॉयलेट, संगमरमर की फर्श, वुडन फर्नीचर, ड्राइंग रूम, टीवी, डीटीएच कनेक्शन, हीटर, इलेक्ट्रिकल ब्लैंकेट, इंटरकॉम सुविधा, वाई-फाई, सोफा, चेयर, फ्रिज और डिजाइनर फ्लावर्स पॉट मौजूद है। इलेक्ट्रिसिटी बचाने के लिए इस बार फाइव स्टार टेंट में ऑयल हीटर प्लेस हो रहा है। यमुना के तीर पर बसे इस टेंट सिटी में कोल्ड सबसे बड़ा चैलेंज रहेगा। इसलिए टेंट में खास इंसुलेटेड फैब्रिक का इस्तेमाल किया गया है। दिल्ली, उज्जैन, हरिद्वार और अहमदाबाद से मंगाए गए टेंट
लल्लूजी एंड संस के कार्यालय और गोदाम प्रयागराज के रामबाग, झूंसी और नैनी के साथ ही देश भर में हैं। कंपनी हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगने वाले मेलों में भी टेंट लगाने का काम करती है। कंपनी का सेटअप दिल्ली, उज्जैन, हरिद्वार और अहमदाबाद में भी है। 2025 महाकुंभ के लिए देश के 6 शहरों से लल्लूजी कंपनी की ओर से सामान मंगवाए गए हैं। दीपांशु अग्रवाल बताते हैं- महाकुंभ या कुंभ मेले में तंबुओं की नगरी बसाने का काम आसान नहीं होता। कपड़े के टेंट से लेकर बांस-बल्ली की व्यवस्था करना सबसे कठिन काम होता है। इस काम को आसानी से करने के लिए हम अनुभवी लोगों की टीम तैनात करते हैं। ठंड से बचने के लिए टेंट सिटी में फर्श पर पुआल बिछाया जाता है। थाने-चौकी बनाने का काम लल्लूजी डेरा वाले के जिम्मे
महाकुंभ में टेंट बनाने की जिम्मेदारी कुल 10 वेंडर्स को मिली है। इसमें 9 ठेके लल्लूजी एंड संस के परिवार के पास हैं। 10वां ठेका हरिद्वार के वृंदावन टेंट हाउस को दिया गया है। सरकार ने क्षमता के अनुसार काम दिया है। लल्लूजी को अखाड़ों का टेंट लगाने के साथ वीआईपी टेंट सिटी और बड़े इवेंट में सारी व्यवस्था देने की जिम्मेदारी भी मिली है। लल्लूजी से जुड़े डेरावाले को पुलिस डिपार्टमेंट के सभी टेंट लगाने की जिम्मेदारी मिली है। लल्लूजी डेरावाले के प्रमुख राजीव अग्रवाल बताते हैं- मेले में 56 थाने और 144 चौकियों को बनाने की जिम्मेदारी हमें मिली है। इसके अलावा प्रशासन से जुड़े ऑफिस और अस्थायी टेंट भी हम ही लगा रहे हैं। मेला अधिकारी जो भी काम देते हैं, हम उसे बेहतर करने की कोशिश करते हैं। पिछले कुंभ से दोगुना मटेरियल किया जा रहा यूज
हमने राजीव से पूछा कि 2019 के अर्द्धकुंभ से यह कुंभ कितना अलग है? वह कहते हैं, सब कुछ दोगुना हो गया है। उस वक्त हमने 2 लाख बल्लियां लगाई थीं, इस साल हम 4 लाख बल्लियां लगा रहे हैं। टेंट का कपड़ा और अन्य सामान भी दोगुना लगा है। इसे हम मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड से मंगा रहे हैं। यह आप समझिए कि हम सब पिछले डेढ़ साल से इसकी तैयारी में जुटे थे। जुलाई महीने से ही हम कुंभ क्षेत्र में काम करने लगे थे। प्रयागराज में 2019 के कुंभ में भी सजाया तंबुओं का नगर
प्रयागराज में 2019 में कराए गए कुंभ में भी लल्लूजी एंड संस ने अस्थायी नगर को बसाने का काम किया था। तकरीबन 32 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बसी कुंभ नगरी का यानी 70% से अधिक क्षेत्रफल में लल्लूजी एंड संस ने ही टेंट, टिन का शहर बसाने का काम किया था। टेंट सिटी को कनेक्ट करने को बन रहे फ्लाईओवर
भीड़ को देखते हुए इस बार यमुना किनारे यानी अरेल साइड में भी टेंट सिटी का निर्माण किया जा रहा है। संगम से टेंट सिटी को कनेक्ट करने के लिए मोरी पांटून पुल, हरिश्चंद्र पांटून, भारद्वाज पांटून पुल, गंगेश्वर पांटून पुल, वल्लभाचार्य पांटून पुल, बजरंगजास पांटून पुल और कैलाशपुरी पांटून पुल बनाया गया है। भीड़ के दौरान श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र से बाहर निकालने के लिए तीन अतिरिक्त पांटून पुल बन रहे हैं। ————————————————-
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