महेंद्रगढ़ में माता भूरा भवानी का मेला आज:900 वर्ष पूर्व मंदिर बना था, खेल प्रतियोगिताएं होगी, भंडारे का आयोजन किया जाएगा

महेंद्रगढ़ में माता भूरा भवानी का मेला आज:900 वर्ष पूर्व मंदिर बना था, खेल प्रतियोगिताएं होगी, भंडारे का आयोजन किया जाएगा

हरियाणा के महेंद्रगढ़ के निकटवर्ती गांव सिसोठ की बणी में लगभग 900 वर्ष पूर्व माता भूरा भवानी का मंदिर बनाया गया था। नवमी के दिन खेल प्रतियोगिताएं व भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। दूर दराज से श्रद्धालु पहुंचकर माथा टेक मन्नते मांगते हैं। मंदिर कमेटी के पूर्व प्रधान प्रेम प्रेमचंद सिसोठिया व मुकेश चौहान ने बताया कि सप्तमी की रात को मंदिर परिसर में जागरण हुआ, अष्टमी की रात को महिलाओं के द्वारा गरबा खेला गया। वहीं नवमी के दिन यहां पर मेला भरता है, खेल प्रतियोगिताएं होती हैं और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। मंदिर कमेटी के पूर्व प्रधान प्रेमचंद सिसोठिया व सदस्य मुकेश चौहान ने बताया कि लगभग 900 वर्ष पूर्व राजस्थान से कुछ व्यापारी दिल्ली मंडी से खांड लेकर राजस्थान जा रहे थे। अंधेरा होने पर विश्राम के लिए यहां ठहर गए। बैल गाड़ियों से खांड की बोरियों रखी हुई थी। व्यापारी खाना खाने के बाद विश्राम करने लगे। जब वे विश्राम कर रहे थे तब वहां पर एक कन्या आई तथा उसने व्यापारियों से बोरियों में भरे सामान के बारे में पूछा। व्यापारियों ने सोचा यह खांड की मांग करेंगी। इसलिए उन्होंने कहा कि बोरियों में नमक है। इसके बाद वह कन्या वहां से चली गई। व्यापारियों ने जब राजस्थान अपने गंतव्य पर पहुंचकर, मंडी में बिक्री के लिए बोरियां खोली तो खांड की जगह नमक देखकर वे दंग रह गए। व्यापारी उसी स्थान पर नमक की बोरियों को लेकर आए। रात को फिर कन्या दिखाई देने पर व्यापारियों ने क्षमा याचना करते हुए नमक की बोरियों को खांड की बोरियों में बदलने की अरदास की। व्यापारियों की अरदास सुन कन्या ने सभी को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गई। व्यापारियों ने देखा तो सभी बोरियों में खांड मिली। उसी समय व्यापारियों ने एक छोटा सा मंढीनुमा चबूतरा बनाकर पूजा की और अपने सफर पर चले गए। उसी समय से मां के स्वरुप इस कन्या को माता भूरा भवानी के रूप में पूजा जा रहा है। भूरा भवानी मंदिर में वर्ष में दो बार नवरात्रों के अवसर पर होने वाली विशेष पूजा-अर्चना में देशभर से श्रद्धालु पहुंचकर मन्नतें मांगते हैं। माता के मंदिर ने भी चबूतरे से तीन एकड़ में भव्य धाम का सफर तय किया है। प्राचीन समय में गांव बसने से पूर्व यहां एक छोटा सा चबूतरा होता था। लोगों की मन्नतें पूरी होने लगी और माता में श्रद्धा बढ़ने लगी इसी कारण वर्तमान में इस चबूतरे ने बड़े मंदिर का रूप ले लिया।

श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए व्यवस्था की गई है

इसकी भव्यता लगातार बढ़ती जा रही है। माता भूरा भवानी मंदिर करीब तीन एकड़ में बना हुआ है। मंदिर के साथ-साथ लगती पांच एकड़ भूमि पर नवरात्र के दौरान मेला, जागरण व खेलकूद प्रतियोगिता होती है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए दो मंजिला धर्मशाला, तीन पार्क, बड़ा हॉल व भंडारे के लिए टीन शेड लगाया है। मेले में खेल प्रतियोगिताएं होती हैं मेले मे खेलो का आयोजन होता। जिसमें वॉलीबॉल व कुश्ती करवाई जाती है। जिसमे वॉलीबॉल मे प्रथम इनाम 11 हजार व द्वितीय स्थान पर रहने वाली टीम को 71 सौ रुपए, कुश्ती 51 रुपए से शुरू होकर 51 हजार रुपए तक कराई जाती है। मुख्य अतिथि विधायक कंवर सिंह यादव खेलों में विजेता टीमों को इनाम वितरण करेंगे। हरियाणा के महेंद्रगढ़ के निकटवर्ती गांव सिसोठ की बणी में लगभग 900 वर्ष पूर्व माता भूरा भवानी का मंदिर बनाया गया था। नवमी के दिन खेल प्रतियोगिताएं व भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। दूर दराज से श्रद्धालु पहुंचकर माथा टेक मन्नते मांगते हैं। मंदिर कमेटी के पूर्व प्रधान प्रेम प्रेमचंद सिसोठिया व मुकेश चौहान ने बताया कि सप्तमी की रात को मंदिर परिसर में जागरण हुआ, अष्टमी की रात को महिलाओं के द्वारा गरबा खेला गया। वहीं नवमी के दिन यहां पर मेला भरता है, खेल प्रतियोगिताएं होती हैं और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। मंदिर कमेटी के पूर्व प्रधान प्रेमचंद सिसोठिया व सदस्य मुकेश चौहान ने बताया कि लगभग 900 वर्ष पूर्व राजस्थान से कुछ व्यापारी दिल्ली मंडी से खांड लेकर राजस्थान जा रहे थे। अंधेरा होने पर विश्राम के लिए यहां ठहर गए। बैल गाड़ियों से खांड की बोरियों रखी हुई थी। व्यापारी खाना खाने के बाद विश्राम करने लगे। जब वे विश्राम कर रहे थे तब वहां पर एक कन्या आई तथा उसने व्यापारियों से बोरियों में भरे सामान के बारे में पूछा। व्यापारियों ने सोचा यह खांड की मांग करेंगी। इसलिए उन्होंने कहा कि बोरियों में नमक है। इसके बाद वह कन्या वहां से चली गई। व्यापारियों ने जब राजस्थान अपने गंतव्य पर पहुंचकर, मंडी में बिक्री के लिए बोरियां खोली तो खांड की जगह नमक देखकर वे दंग रह गए। व्यापारी उसी स्थान पर नमक की बोरियों को लेकर आए। रात को फिर कन्या दिखाई देने पर व्यापारियों ने क्षमा याचना करते हुए नमक की बोरियों को खांड की बोरियों में बदलने की अरदास की। व्यापारियों की अरदास सुन कन्या ने सभी को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गई। व्यापारियों ने देखा तो सभी बोरियों में खांड मिली। उसी समय व्यापारियों ने एक छोटा सा मंढीनुमा चबूतरा बनाकर पूजा की और अपने सफर पर चले गए। उसी समय से मां के स्वरुप इस कन्या को माता भूरा भवानी के रूप में पूजा जा रहा है। भूरा भवानी मंदिर में वर्ष में दो बार नवरात्रों के अवसर पर होने वाली विशेष पूजा-अर्चना में देशभर से श्रद्धालु पहुंचकर मन्नतें मांगते हैं। माता के मंदिर ने भी चबूतरे से तीन एकड़ में भव्य धाम का सफर तय किया है। प्राचीन समय में गांव बसने से पूर्व यहां एक छोटा सा चबूतरा होता था। लोगों की मन्नतें पूरी होने लगी और माता में श्रद्धा बढ़ने लगी इसी कारण वर्तमान में इस चबूतरे ने बड़े मंदिर का रूप ले लिया।

श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए व्यवस्था की गई है

इसकी भव्यता लगातार बढ़ती जा रही है। माता भूरा भवानी मंदिर करीब तीन एकड़ में बना हुआ है। मंदिर के साथ-साथ लगती पांच एकड़ भूमि पर नवरात्र के दौरान मेला, जागरण व खेलकूद प्रतियोगिता होती है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए दो मंजिला धर्मशाला, तीन पार्क, बड़ा हॉल व भंडारे के लिए टीन शेड लगाया है। मेले में खेल प्रतियोगिताएं होती हैं मेले मे खेलो का आयोजन होता। जिसमें वॉलीबॉल व कुश्ती करवाई जाती है। जिसमे वॉलीबॉल मे प्रथम इनाम 11 हजार व द्वितीय स्थान पर रहने वाली टीम को 71 सौ रुपए, कुश्ती 51 रुपए से शुरू होकर 51 हजार रुपए तक कराई जाती है। मुख्य अतिथि विधायक कंवर सिंह यादव खेलों में विजेता टीमों को इनाम वितरण करेंगे।   हरियाणा | दैनिक भास्कर