गोरखपुर में 11 नवंबर को सीएम योगी के जनता दरबार में वाराणसी के एक पशुपालक अपनी गायों के कम दूध देने की समस्या लेकर पहुंचे। उन्होंने सीएम से शिकायत की कि तेज आवाज में बजने वाले DJ की वजह से गायें 30 से 40 फीसदी कम दूध दे रही हैं। शिकायती पत्र में उन्होंने लिखा- हमारे पास 4 गाय हैं। शादी के लग्न और धार्मिक आयोजन वाले महीनों को छोड़कर गाय पूरे साल करीब 5 लीटर दूध देती हैं। लेकिन, आयोजनों में बजने वाले DJ के शोर से वो करीब 3 लीटर दूध ही दे पा रही हैं। DJ के शोर से कभी-कभी गायें भड़क जाती हैं। खूंटा तोड़कर भाग जाती हैं। फिर दोबारा दूध निकालना मुश्किल हो जाता है। क्या सच में तेज शोर या DJ की कानफाड़ू आवाज से गाय या बाकी दूध देने वाले जानवरों पर फर्क पड़ता है? क्या कहता है विज्ञान? भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- सबसे पहले इसे लेकर सीएम से की गई शिकायत पढ़िए- क्या गायों पर आसपास के वातावरण का फर्क पड़ता है?
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन जर्नल के मुताबिक, गायों पर वातावरण का सीधा असर पड़ता है। गाय कैसा और कितना दूध देगी, ये उसके शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। आसपास के वातावरण को शांत और आरामदायक रखने पर गायों के दूध के प्रोडक्शन पर असर दिखता है। इसमें उनकी देखभाल भी शामिल है। देखभाल करने वाले इंसान उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं, इसका भी असर पड़ता है। गायों के दूध के प्रोडक्शन का क्या म्यूजिक से कोई लेना-देना है?
इस सवाल का जवाब है- हां। गाय के दूध देने का म्यूजिक से सीधा कनेक्शन है। इस पर पिछले एक दशक में कई रिसर्च हुईं। इनमें सामने आया है कि अगर दूध निकालते समय गाय या दूध देने वाले किसी भी जानवर के आसपास हल्का संगीत बजता रहे तो यह उनकी दूध देने की क्षमता को बढ़ा देता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन जर्नल के मुताबिक, प्रयोग में गाय से दूध निकालने से पहले जब धीमा और मधुर संगीत बजाया गया तो उनकी दूध देने की क्षमता में फर्क देखा गया। वहीं, बिना ऐसे किसी सेटअप के दूध निकाला गया तो कम था। सवाल उठता है, संगीत कैसे गाय के दूध देने की क्षमता पर असर डालता है?
ट्रॉपिकल एग्रीकल्चरल साइंस और नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन जर्नल के मुताबिक, हल्के और मधुर संगीत से गायों के अंदर मूड को रिलैक्स करने वाला हार्मोन सेरोटोनीन रिलीज होता है। स्ट्रेस कम करने वाला यह हार्मोन जब गायों के अंदर रिलीज होता है, तो उनके दूध देने की मात्रा पर इसका सीधा असर होता है। साइनडो जर्नल में 1991 में छपी एक रिपोर्ट ‘नॉइस इज ए फैक्टर ऑफ एनवायरमेंटल स्ट्रेस फॉर कैटल’ के मुताबिक, दूध देने वाले पालतू जानवरों के आस-पास अगर एक निश्चित डेसिबल से ज्यादा तेज आवाज हो तो उन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे जानवरों के आस पास अगर हर रोज 80 से 100 या उससे अधिक डेसिबल की आवाज रहती है, तो ये उनके दूध देने की क्षमता को घटा सकता है। जानिए दूध देने वाले जानवरों पर लंबे समय तक तेज आवाज में रहने के असर
किसी भी तरह की तेज आवाज इंसानों के लिए ही नहीं, जानवरों के लिए भी उतनी ही नुकसानदेह होती है। या यूं कहें कि इंसानों से भी ज्यादा और जल्दी जानवरों को नुकसान पहुंचता है। बीते कुछ सालों में DJ के बढ़ते चलन और उन पर बजने वाला कानफोड़ू संगीत, बच्चों से लेकर बूढ़े और जानवरों तक के लिए समस्या बन गया है। अब तो पिछले एक दशक में हुई कई रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि लंबे समय तक गाय या उस जैसे दूध देने वाले पालतू पशुओं के पास तेज आवाज होती रही तो इससे उनके दूध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ने लगता है। इंसान जहां 80 से 100 डेसिबल के आवाज के बीच संतुलित रह पाता है। वहीं, जानवरों के लिए 60 डेसिबल से ऊपर आवाज परेशान करने लगती है। तेज आवाज का पशुओं पर असर- ———————– ये भी पढ़ें… यूपी में प्रदूषण से 8 साल उम्र घटी, 30 साल में हवा 1000% खराब हुई; दुनिया के सबसे खराब हवा वाले शहरों में गाजियाबाद-नोएडा दिवाली के बाद से यूपी में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी यूपी के शहरों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। दिल्ली के पास के गाजियाबाद, नोएडा और मेरठ जैसे जिलों में जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही, हवा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। नवंबर के पहले हफ्ते से ही इन शहरों का AQI 300 से ऊपर दर्ज हो रहा है। AQI से ही हवा की गुणवत्ता मापी जाती है। 300 से ऊपर AQI खराब कैटेगरी में आता है। दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ सहित और आसपास के जिलों में भी AQI 150 से ऊपर रह रहा है। यह हवा भी हेल्थ पर बुरा असर डालने वाली होती है। खासकर बीमार, बुजुर्ग और बच्चों के लिए। WHO के मुताबिक, बढ़े प्रदूषण की वजह से यूपी के लोगों की औसत उम्र में 8.6 साल की कमी आई है। पढ़े पूरी खबर… गोरखपुर में 11 नवंबर को सीएम योगी के जनता दरबार में वाराणसी के एक पशुपालक अपनी गायों के कम दूध देने की समस्या लेकर पहुंचे। उन्होंने सीएम से शिकायत की कि तेज आवाज में बजने वाले DJ की वजह से गायें 30 से 40 फीसदी कम दूध दे रही हैं। शिकायती पत्र में उन्होंने लिखा- हमारे पास 4 गाय हैं। शादी के लग्न और धार्मिक आयोजन वाले महीनों को छोड़कर गाय पूरे साल करीब 5 लीटर दूध देती हैं। लेकिन, आयोजनों में बजने वाले DJ के शोर से वो करीब 3 लीटर दूध ही दे पा रही हैं। DJ के शोर से कभी-कभी गायें भड़क जाती हैं। खूंटा तोड़कर भाग जाती हैं। फिर दोबारा दूध निकालना मुश्किल हो जाता है। क्या सच में तेज शोर या DJ की कानफाड़ू आवाज से गाय या बाकी दूध देने वाले जानवरों पर फर्क पड़ता है? क्या कहता है विज्ञान? भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- सबसे पहले इसे लेकर सीएम से की गई शिकायत पढ़िए- क्या गायों पर आसपास के वातावरण का फर्क पड़ता है?
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन जर्नल के मुताबिक, गायों पर वातावरण का सीधा असर पड़ता है। गाय कैसा और कितना दूध देगी, ये उसके शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। आसपास के वातावरण को शांत और आरामदायक रखने पर गायों के दूध के प्रोडक्शन पर असर दिखता है। इसमें उनकी देखभाल भी शामिल है। देखभाल करने वाले इंसान उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं, इसका भी असर पड़ता है। गायों के दूध के प्रोडक्शन का क्या म्यूजिक से कोई लेना-देना है?
इस सवाल का जवाब है- हां। गाय के दूध देने का म्यूजिक से सीधा कनेक्शन है। इस पर पिछले एक दशक में कई रिसर्च हुईं। इनमें सामने आया है कि अगर दूध निकालते समय गाय या दूध देने वाले किसी भी जानवर के आसपास हल्का संगीत बजता रहे तो यह उनकी दूध देने की क्षमता को बढ़ा देता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन जर्नल के मुताबिक, प्रयोग में गाय से दूध निकालने से पहले जब धीमा और मधुर संगीत बजाया गया तो उनकी दूध देने की क्षमता में फर्क देखा गया। वहीं, बिना ऐसे किसी सेटअप के दूध निकाला गया तो कम था। सवाल उठता है, संगीत कैसे गाय के दूध देने की क्षमता पर असर डालता है?
ट्रॉपिकल एग्रीकल्चरल साइंस और नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन जर्नल के मुताबिक, हल्के और मधुर संगीत से गायों के अंदर मूड को रिलैक्स करने वाला हार्मोन सेरोटोनीन रिलीज होता है। स्ट्रेस कम करने वाला यह हार्मोन जब गायों के अंदर रिलीज होता है, तो उनके दूध देने की मात्रा पर इसका सीधा असर होता है। साइनडो जर्नल में 1991 में छपी एक रिपोर्ट ‘नॉइस इज ए फैक्टर ऑफ एनवायरमेंटल स्ट्रेस फॉर कैटल’ के मुताबिक, दूध देने वाले पालतू जानवरों के आस-पास अगर एक निश्चित डेसिबल से ज्यादा तेज आवाज हो तो उन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे जानवरों के आस पास अगर हर रोज 80 से 100 या उससे अधिक डेसिबल की आवाज रहती है, तो ये उनके दूध देने की क्षमता को घटा सकता है। जानिए दूध देने वाले जानवरों पर लंबे समय तक तेज आवाज में रहने के असर
किसी भी तरह की तेज आवाज इंसानों के लिए ही नहीं, जानवरों के लिए भी उतनी ही नुकसानदेह होती है। या यूं कहें कि इंसानों से भी ज्यादा और जल्दी जानवरों को नुकसान पहुंचता है। बीते कुछ सालों में DJ के बढ़ते चलन और उन पर बजने वाला कानफोड़ू संगीत, बच्चों से लेकर बूढ़े और जानवरों तक के लिए समस्या बन गया है। अब तो पिछले एक दशक में हुई कई रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि लंबे समय तक गाय या उस जैसे दूध देने वाले पालतू पशुओं के पास तेज आवाज होती रही तो इससे उनके दूध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ने लगता है। इंसान जहां 80 से 100 डेसिबल के आवाज के बीच संतुलित रह पाता है। वहीं, जानवरों के लिए 60 डेसिबल से ऊपर आवाज परेशान करने लगती है। तेज आवाज का पशुओं पर असर- ———————– ये भी पढ़ें… यूपी में प्रदूषण से 8 साल उम्र घटी, 30 साल में हवा 1000% खराब हुई; दुनिया के सबसे खराब हवा वाले शहरों में गाजियाबाद-नोएडा दिवाली के बाद से यूपी में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी यूपी के शहरों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। दिल्ली के पास के गाजियाबाद, नोएडा और मेरठ जैसे जिलों में जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही, हवा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। नवंबर के पहले हफ्ते से ही इन शहरों का AQI 300 से ऊपर दर्ज हो रहा है। AQI से ही हवा की गुणवत्ता मापी जाती है। 300 से ऊपर AQI खराब कैटेगरी में आता है। दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ सहित और आसपास के जिलों में भी AQI 150 से ऊपर रह रहा है। यह हवा भी हेल्थ पर बुरा असर डालने वाली होती है। खासकर बीमार, बुजुर्ग और बच्चों के लिए। WHO के मुताबिक, बढ़े प्रदूषण की वजह से यूपी के लोगों की औसत उम्र में 8.6 साल की कमी आई है। पढ़े पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर