सबसे पुरानी पार्टी के एक नेताजी सीधे वायनाड पहुंच गए। सोच रहे थे कि हाईकमान उनको इसके लिए शाबासी देगा, लेकिन दांव ही उल्टा पड़ गया। धर्म संकट में फंसे नेताजी भागकर यूपी आ गए। लखनऊ के पड़ोसी जिले के कलेक्टर को एक गेट तुड़वाना गले की फांस बना गया है। जिसका गेट था, वो इतना भारी पड़ा कि अब लखनऊ से साहब की डांट लग रही है। कमल वाले दल में नए निजाम की तलाश शुरू हो गई है। इस पद की चाह में एक हारे नेता दिल्ली तक दौड़ लगा आए। खूब सिफारिश करवा रहे हैं, लेकिन विरोधी ने उनका पांव इस तरह खींचा कि उन्हें कुर्सी मिलनी मुश्किल है। बड़े साहब के टारगेट पर आ गए छोटे साहब बीते दिनों राजधानी के पड़ोस वाले जिले के साहब अपने महकमे के मुखिया के निशाने पर आ गए। हुआ यह कि साहब की नजर जिले के एक फार्म पर पड़ गई। फार्म ऐसे व्यक्ति का था, जिसके खिलाफ कार्रवाई करके वह एक वर्ग को खुश करना चाहते थे। पहले अधिकारी फीता लेकर पहुंचे और देखते ही देखते वहां बुलडोजर भी पहुंच गया, मालिक सारे दस्तावेज लेकर खड़ा रह गया और गेट पर बुलडोजर चल गया। जिसका फार्म था, वह अपनी फरियाद लेकर लखनऊ पहुंचा। लखनऊ में बड़े साहब को अपनी पीड़ा सुनाई तो बड़े साहब ने फोन कर सही कार्रवाई के लिए कह दिया। जिले के साहब को यह बात नागवार गुजरी। फार्म के मालिक जब साहब से फोन कराने के बाद जिले के साहब से मिलने पहुंचे तो जिले के साहब आग बबूला हो गए और खूब खरी-खरी सुना दी। फार्म मालिक ने अक्षरश: बातें लखनऊ वाले साहब को बता दी। लखनऊ वाले साहब ने अपना कार्यक्रम उसी फार्म पर लगवा लिया और सभी प्रमुख अधिकारियों को मौके पर मौजूद रहने को कहा। फिर क्या था, पूरा मामला ही उलट गया। देखते ही देखते पूरा अमला फार्म पर पहुंच गया। मालिक से माफी-तलाफी करने लगा। तोड़े गए गेट का मलबा हटाने की मिन्नत करने लगा। मालिक ने मना कर दिया तो जिला प्रशासन ने खुद मलबा हटवा दिया। फार्म की जो खामियां बताई जा रही थीं, वह रातों रात दुरुस्त हो गईं। इसी दौरान लखनऊ में एक मीटिंग हुई तो अलग-अलग बहाने से बड़े साहब ने जिले के साहब की खूब खिंचाई की। नेताजी वायनाड जाकर फंसे एक राष्ट्रीय पार्टी के एक नेता के सामने बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया है। हुआ यह कि उप चुनाव में उनकी पार्टी यूपी में सहभागी की भूमिका में है। एक भी सीट पर खुद चुनाव नहीं लड़ रही है। नेता जी ने यूपी में प्रचार से दूर रहना चाहते थे, इस लिए वे खुद पहुंच गए केरल की वायनाड सीट पर। यहां उनकी मुलाकात पार्टी के एक बड़े नेता से हुई तो उन्होंने सवाल कर दिया कि आप यहां क्या कर रहे हैं? आपको तो यूपी में होना चाहिए था। नेता जी बोले- वहां पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही, इसलिए प्रचार के लिए यहां आ गया। जवाब मिला कि आप बड़े नेता हैं और समझदार भी हैं। आपको नहीं पता कि यूपी में पार्टी ने साइकिल वाली पार्टी को समर्थन दिया है। आपको वहां उनके उम्मीदवार के लिए प्रचार करना है और प्रदेश अध्यक्ष आपको जो जिम्मेदारी देंगे, उसे आपको ईमानदारी से निभाना है। अब साहब वायनाड से लौटकर सीधे अपनी जिम्मेदारी वाली सीट पर पहुंच गए हैं और सपा के लिए वोट मांग रहे हैं। किसके हाथ रहेगी कमल की कमान सूबे में सत्ताधारी दल में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लखनऊ से दिल्ली तक दावेदार दौड़ लगा रहे हैं। दावेदार एक-दूसरे की जड़ खोदने और खुद को सबसे अच्छा बताने में जुटे हुए हैं। पूर्वांचल में एक सीट से लोकसभा चुनाव हारे दावेदार इन दिनों दिल्ली में गोलबंदी कर रहे हैं, लेकिन यूपी में उनके खिलाफ भी लामबंदी होने लगी है। सूबे में भगवा टोली का कोई भी रणनीतिकार पूर्व सांसद महोदय को यूपी में भगवा टोली की कमान सौंपने के पक्ष में नहीं है। बीते दिनों भाई साहब लोगों के यहां भी उनकी खिलाफत हुई है कि यदि उन्हें कमान दी गई तो बड़ा नुकसान होगा। साहब ने गेंद दूसरों के पाले में डाल दी शासन के मुखिया ने बीते दिनों एक महत्वपूर्ण निर्णय का ऐलान किया। इन्वेस्टमेंट का दावा तो मुखिया साहब ने किया था। दावा इतना बड़ा था कि साहब अपने दावे को पूरा नहीं करा सकते। जब बात बिगड़ने लगी तो दावे को अमल कराने की जिम्मेदारी डीएम और डीसी पर डाल दी है। डीएम और डीसी काम पूरा नहीं करा सके तो उनकी ACR बिगड़ जाएगी। अब शासन के गलियों में चर्चा है कि साहब खुद तो हवा हवाई दावा कर मुखिया की कुर्सी पर गए। अब जिम्मेदारी नीचे डाल रहे हैं। नीचे वाले अफसर कह रहे है कि इस व्यवस्था से गलत काम को सही करने का दबाव बढ़ेगा। लेकिन कहे कौन, जिसने आवाज उठाई तो उसका क्या होगा? अंजाम सबको पता है, इसलिए सबकी चुपी है। —————————– यह भी पढ़ें:- यूपी के बड़े साहब की चुगली के चर्चे:लड़की हूं…लड़ सकती हूं की पोस्टर गर्ल चर्चा में; लाल टोपी के खिलाफ इस्तेमाल कर डिप्टी बनाया सबसे पुरानी पार्टी के एक नेताजी सीधे वायनाड पहुंच गए। सोच रहे थे कि हाईकमान उनको इसके लिए शाबासी देगा, लेकिन दांव ही उल्टा पड़ गया। धर्म संकट में फंसे नेताजी भागकर यूपी आ गए। लखनऊ के पड़ोसी जिले के कलेक्टर को एक गेट तुड़वाना गले की फांस बना गया है। जिसका गेट था, वो इतना भारी पड़ा कि अब लखनऊ से साहब की डांट लग रही है। कमल वाले दल में नए निजाम की तलाश शुरू हो गई है। इस पद की चाह में एक हारे नेता दिल्ली तक दौड़ लगा आए। खूब सिफारिश करवा रहे हैं, लेकिन विरोधी ने उनका पांव इस तरह खींचा कि उन्हें कुर्सी मिलनी मुश्किल है। बड़े साहब के टारगेट पर आ गए छोटे साहब बीते दिनों राजधानी के पड़ोस वाले जिले के साहब अपने महकमे के मुखिया के निशाने पर आ गए। हुआ यह कि साहब की नजर जिले के एक फार्म पर पड़ गई। फार्म ऐसे व्यक्ति का था, जिसके खिलाफ कार्रवाई करके वह एक वर्ग को खुश करना चाहते थे। पहले अधिकारी फीता लेकर पहुंचे और देखते ही देखते वहां बुलडोजर भी पहुंच गया, मालिक सारे दस्तावेज लेकर खड़ा रह गया और गेट पर बुलडोजर चल गया। जिसका फार्म था, वह अपनी फरियाद लेकर लखनऊ पहुंचा। लखनऊ में बड़े साहब को अपनी पीड़ा सुनाई तो बड़े साहब ने फोन कर सही कार्रवाई के लिए कह दिया। जिले के साहब को यह बात नागवार गुजरी। फार्म के मालिक जब साहब से फोन कराने के बाद जिले के साहब से मिलने पहुंचे तो जिले के साहब आग बबूला हो गए और खूब खरी-खरी सुना दी। फार्म मालिक ने अक्षरश: बातें लखनऊ वाले साहब को बता दी। लखनऊ वाले साहब ने अपना कार्यक्रम उसी फार्म पर लगवा लिया और सभी प्रमुख अधिकारियों को मौके पर मौजूद रहने को कहा। फिर क्या था, पूरा मामला ही उलट गया। देखते ही देखते पूरा अमला फार्म पर पहुंच गया। मालिक से माफी-तलाफी करने लगा। तोड़े गए गेट का मलबा हटाने की मिन्नत करने लगा। मालिक ने मना कर दिया तो जिला प्रशासन ने खुद मलबा हटवा दिया। फार्म की जो खामियां बताई जा रही थीं, वह रातों रात दुरुस्त हो गईं। इसी दौरान लखनऊ में एक मीटिंग हुई तो अलग-अलग बहाने से बड़े साहब ने जिले के साहब की खूब खिंचाई की। नेताजी वायनाड जाकर फंसे एक राष्ट्रीय पार्टी के एक नेता के सामने बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया है। हुआ यह कि उप चुनाव में उनकी पार्टी यूपी में सहभागी की भूमिका में है। एक भी सीट पर खुद चुनाव नहीं लड़ रही है। नेता जी ने यूपी में प्रचार से दूर रहना चाहते थे, इस लिए वे खुद पहुंच गए केरल की वायनाड सीट पर। यहां उनकी मुलाकात पार्टी के एक बड़े नेता से हुई तो उन्होंने सवाल कर दिया कि आप यहां क्या कर रहे हैं? आपको तो यूपी में होना चाहिए था। नेता जी बोले- वहां पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही, इसलिए प्रचार के लिए यहां आ गया। जवाब मिला कि आप बड़े नेता हैं और समझदार भी हैं। आपको नहीं पता कि यूपी में पार्टी ने साइकिल वाली पार्टी को समर्थन दिया है। आपको वहां उनके उम्मीदवार के लिए प्रचार करना है और प्रदेश अध्यक्ष आपको जो जिम्मेदारी देंगे, उसे आपको ईमानदारी से निभाना है। अब साहब वायनाड से लौटकर सीधे अपनी जिम्मेदारी वाली सीट पर पहुंच गए हैं और सपा के लिए वोट मांग रहे हैं। किसके हाथ रहेगी कमल की कमान सूबे में सत्ताधारी दल में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लखनऊ से दिल्ली तक दावेदार दौड़ लगा रहे हैं। दावेदार एक-दूसरे की जड़ खोदने और खुद को सबसे अच्छा बताने में जुटे हुए हैं। पूर्वांचल में एक सीट से लोकसभा चुनाव हारे दावेदार इन दिनों दिल्ली में गोलबंदी कर रहे हैं, लेकिन यूपी में उनके खिलाफ भी लामबंदी होने लगी है। सूबे में भगवा टोली का कोई भी रणनीतिकार पूर्व सांसद महोदय को यूपी में भगवा टोली की कमान सौंपने के पक्ष में नहीं है। बीते दिनों भाई साहब लोगों के यहां भी उनकी खिलाफत हुई है कि यदि उन्हें कमान दी गई तो बड़ा नुकसान होगा। साहब ने गेंद दूसरों के पाले में डाल दी शासन के मुखिया ने बीते दिनों एक महत्वपूर्ण निर्णय का ऐलान किया। इन्वेस्टमेंट का दावा तो मुखिया साहब ने किया था। दावा इतना बड़ा था कि साहब अपने दावे को पूरा नहीं करा सकते। जब बात बिगड़ने लगी तो दावे को अमल कराने की जिम्मेदारी डीएम और डीसी पर डाल दी है। डीएम और डीसी काम पूरा नहीं करा सके तो उनकी ACR बिगड़ जाएगी। अब शासन के गलियों में चर्चा है कि साहब खुद तो हवा हवाई दावा कर मुखिया की कुर्सी पर गए। अब जिम्मेदारी नीचे डाल रहे हैं। नीचे वाले अफसर कह रहे है कि इस व्यवस्था से गलत काम को सही करने का दबाव बढ़ेगा। लेकिन कहे कौन, जिसने आवाज उठाई तो उसका क्या होगा? अंजाम सबको पता है, इसलिए सबकी चुपी है। —————————– यह भी पढ़ें:- यूपी के बड़े साहब की चुगली के चर्चे:लड़की हूं…लड़ सकती हूं की पोस्टर गर्ल चर्चा में; लाल टोपी के खिलाफ इस्तेमाल कर डिप्टी बनाया उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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