मोदी मंत्रिमंडल में यूपी के 10 चेहरे हैं। इनमें 9 चेहरे यूपी के हैं। एक मंत्री हरदीप पुरी पंजाब के हैं, लेकिन राज्यसभा सांसद यूपी से हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के जरिए यूपी के क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। यूपी में 2019 में एनडीए के 64 सांसद थे। इस बार यह संख्या करीब आधा घटकर 36 पर पहुंच गई, लेकिन मंत्रियों की संख्या 8% बढ़ गई। सबसे ज्यादा 4 मंत्री पश्चिम यूपी से हैं। पूर्वांचल से 3 और अवध यानी सेंट्रल यूपी से 2 मंत्रियों को जगह मिली। जातीय संतुलन बनाते हुए 4 ओबीसी, 2 दलित और 3 सवर्ण चेहरे को मंत्रिमंडल में शामिल किया। ओबीसी मंत्रियों में 2 अति पिछड़ा वर्ग से हैं। जिन जातियों का वोट शिफ्ट हुआ, उनका ज्यादा ध्यान रखा
यूपी में भाजपा के खराब प्रदर्शन की वजह गैर-जाटव और ओबीसी में कुर्मी वोटर्स के इंडिया ब्लॉक की ओर शिफ्ट होना माना जा रहा है। यही वजह है कि कुर्मी समाज से 2 और अति पिछड़ा वर्ग से 2 मंत्री बनाए। गैर जाटव समाज के भी 2 मंत्री बनाए। मोदी ने इस मंत्रिमंडल के जरिए यूपी में 60-62% जातियों को साधने की कोशिश की। इन जातियों का 300-320 विधानसभा पर प्रभाव है। Today-Axis My poll के सर्वे के मुताबिक, इस बार भाजपा का करीब 21% जाटव और गैर जाटव वोटर्स इंडिया ब्लॉक को शिफ्ट हुआ। नोट- 2014 और 2019 में यूपी से दो-दो राज्यसभा सांसद बनाए गए। 2014 में अरुण जेटली और 2019 में हरदीप पुरी यूपी कोटे से थे, लेकिन यहां के रहने वाले नहीं थे। ओबीसी से 4 चेहरे, इनमें एक जाट और एक गैर पिछड़ा
पीएम मोदी ने मंत्रिमंडल में यूपी में जिन 4 ओबीसी चेहरों को जगह दी गई है। उनमें एक लोध जाति से, दूसरा जाट और बाकी के 2 कुर्मी हैं। ओबीसी वोटर इस बार भाजपा के वोट बैंक से छिटक गया था। मंत्रिमंडल में इसी तरह दलित समुदाय से जिन दो मंत्रियों को रखा गया है, उनमें एक गड़रिया और पासवान बिरादरी से हैं। जाटव और हरिजन समुदाय से कोई नहीं है। इन दोनों वर्गों का वोट भी इस बार भाजपा के पास नहीं गया। पूर्वांचल में 60 फीसदी सीटें हारी भाजपा, 3 मंत्री बने
भाजपा को इस बार सबसे ज्यादा डेंट पूर्वांचल में लगा। यहां लोकसभा की 27 सीटें हैं। लेकिन इस बार भाजपा सिर्फ 10 सीट जीत सकी। एक सीट अपना दल ने जीती। 2019 में भाजपा और अपना दल को 20 सीटें मिली थीं। इस पूरे इलाके से मोदी ने अपने कैबिनेट में 3 चेहरों को जगह दी है। वेस्ट यूपी में 29 सीटें आती हैं। इस बार भाजपा सिर्फ 14 जीत सकी है। 2 सीटें सहयोगी दल रालोद की मिली। 2019 में 29 में से 21 सीटें भाजपा ने अकेले जीती थी। यहां से 4 मंत्री बनाए गए हैं। सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड में कुल 24 सीटें आती हैं। यहां भाजपा को 9 सीटों पर जीत मिली है। यहां से सिर्फ एक मंत्री बना। यूपी से मंत्री बने चेहरों और उसके पीछे की सियासत राजनाथ सिंह- पार्टी में नंबर दो की पोजिशन, पूर्व अध्यक्ष, एनडीए सरकार का अनुभव रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। वह भाजपा के दिग्गज वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। दो बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जब मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए नॉमिनेट किया तब वह पार्टी अध्यक्ष थे। सरकार में राजनाथ सिंह की पोजिशन नंबर 2 पर है। राजनाथ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं, तब भी एनडीए की सरकार थी। राजनाथ यूपी के क्षत्रिय समाज से हैं। इस चुनाव में यूपी के कई इलाकों में क्षत्रिय समाज में भाजपा के प्रति नाराजगी देखने को मिली थी। सेंट्रल यूपी से आते हैं। कमलेश पासवान- पुराने नेता, दलित फेस, पूर्वांचल से आते हैं
बांसगांव लोकसभा से सांसद कमलेश पासवान भाजपा के दिग्गज नेता माने जाते हैं। वे बांसगांव लोकसभा सीट से 2009 से लगातार जीत रहे हैं। वह चौथी बार सांसद चुने गए हैं। इस बार उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद को 4540 मतों से हराया है। कमलेश के पिता ओम प्रकाश पासवान भी नेता थे, उन्हें एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान मार दिया गया था। कमलेश पासवान की मां सुभावती पासवान भी पूर्व सांसद रह चुकी हैं। कमलेश 2002 में बांसगांव निर्वाचन क्षेत्र से ही विधायक भी चुने जा चुके हैं। बिहार से सटे यूपी की 5 से 6 सीटों पर 5 से 7 फीसदी पासवान वोटर्स हैं। यह पूरा इलाका पूर्वांचल का है। पंकज चौधरी- मोदी के करीबी, 7वीं बार सांसद चुने गए पंकज चौधरी महाराजगंज से सांसद बने हैं। वह 7वीं बार सांसद चुने गए। 90 के दशक से भाजपा में हैं और चुनाव लड़ रहे हैं। 2009 में सिर्फ एक बार चुनाव हारे थे। पंकज OBC समुदाय से आते हैं। पूर्वी यूपी से हैं। इस इलाके में भाजपा को सबसे तगड़ा झटका लगा है। OBC वोटर ने भाजपा का साथ भी कम दिया। खासकर पूर्वी यूपी के कुर्मी वोटर्स, चौधरी इसी समुदाय से हैं। कुर्मी वोटर्स पूरे पूर्वांचल में प्रभावशाली हैं। चौधरी मोदी के काफी करीबी भी हैं। पिछले साल गोरखपुर दौरे के दौरान मोदी उनके घर भी अचानक पहुंच गए थे। उनके परिवार के साथ चाय भी पी थी। कीर्तिवर्धन सिंह- बृजभूषण के विकल्प, ठाकुरों की नाराजगी को दूर करना मकसद
गोंडा लोकसभा सीट से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए हैं। कीर्तिवर्धन मनकापुर के पूर्व राजघराने के वारिस हैं। उनके पिता कुंवर आनंद सिंह दिग्गज कांग्रेसी नेता और सपा सरकार में भी रह चुके हैं। 1998 के मध्यावधि चुनाव में आनंद सिंह ने बेटे कीर्तिवर्धन सिंह को मैदान में उतारा। बतौर सपा उम्मीदवार वह जीते और पहली बार संसद पहुंचे। 1999 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बृजभूषण शरण सिंह ने उन्हें हरा दिया। 2004 के चुनाव में कीर्तिवर्धन सिंह सपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीते। 2009 में वह बसपा में शामिल हो गए, लेकिन हार गए। 2014 में वह भाजपा में आ गए। तब से लगातार जीत रहे हैं। कीर्तिवर्धन सिंह को भाजपा बृजभूषण शरण सिंह के विकल्प के तौर पर पेश कर सकती है। क्योंकि बृजभूषण नाराज हैं। हालांकि उनके बेटे करण सिंह कैसरगंज से विजयी रहे हैं। कीर्तिवर्धन और बृजभूषण की सीटें अगल-बगल की सीटें हैं। यूपी में ठाकुर मतदाता नाराज भी बताए गए थे, इसलिए कीर्तिवर्धन के जरिए भाजपा उन्हें मैनेज भी करना चाहती है। एसपी सिंह बघेल- बृज क्षेत्र में चर्चित दलित फेस, शाह के करीबी SP सिंह बघेल आगरा सुरक्षित सीट से दूसरी बार सांसद चुने गए हैं। उन्होंने सपा उम्मीदवार को 2.71 लाख वोटों के मार्जिन से हराया। पिछली मोदी सरकार में कानून और स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे हैं। दलित वर्ग में गड़ेरिया समुदाय से आते हैं। दलित वोट इस बार भाजपा से सपा की ओर शिफ्ट हुआ। बघेल की दलितों में अच्छी पकड़ है। शाह और संगठन के करीबी हैं। वह काशी के प्रभारी भी रह चुके हैं। हालांकि उनकी जाति को लेकर पहले विवाद रह चुका है। आरोप है कि उन्होंने नौकरी पिछड़ी जाति के तौर पर ली थी और राजनीति में अनुसूचित जाति का इस्तेमाल करने लगे। सपा में भी रह चुके हैं। जितिन प्रसाद- ब्राह्मण फेस, केंद्र में मंत्री रहने का अनुभव, शाह के करीबी जितिन प्रसाद ने पीलीभीत सीट पर सपा उम्मीवार भगवत सरन गंगवार को हराया। उन्हें वरुण गांधी का टिकट काटकर भाजपा ने टिकट दिया था। जितिन यूपी में योगी सरकार में PWD मंत्री हैं। ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। बरेली-पीलीभीत-शाहजहांपुर यानी रुहेलखंड इलाके में प्रभावशाली हैं। पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के कद्दावर नेता थे, जितिन खुद भी कांग्रेस में रह चुके हैं। मनमोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। सियासी समीकरण साधने के लिए उन्हें मोदी सरकार में मंत्री पद दिया गया है। अमित शाह के करीबी हैं, उन्हीं के कहने पर भाजपा में शामिल हुए थे, फिर विधान परिषद के सदस्य बने और फिर मंत्री बनाए गए। भाजपा से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, इससे पहले बतौर कांग्रेस कैंडिडेट 2 चुनाव लगातार हार गए थे। बीएल वर्मा- कल्याण सिंह के शिष्य, लोध समुदाय पर पकड़ बीएल वर्मा बदायूं से आते हैं। फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं। ओबीसी में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोध समुदाय से आते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के शिष्य भी कहे जाते हैं। कल्याण सिंह भी लोध समुदाय से आते थे। बीएल वर्मा 2018 में उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष बने। इसके बाद वह राज्यसभा के सदस्य बने। 2021 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में बीएल वर्मा को जगह मिली थी। बीएल वर्मा को राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया था। वह जिस बदायूं से आते हैं, वह सीट इस बार भाजपा हार गई है। लोध जाति यूपी में 25 जिलों की 70-80 विधानसभा सीटों पर असर डालती है। उत्तर प्रदेश में आबादी के हिसाब से लोध वोट बैंक 8 फीसदी है। अनुप्रिया पटेल- NDA की पुरानी सहयोगी, पार्टी अध्यक्ष और ओबीसी फेस
अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने मिर्जापुर सीट से तीसरी बार जीत दर्ज की है। दोनों बार मोदी सरकार में मंत्री रही हैं। NDA की पुरानी सहयोगी हैं। 2014 से भाजपा के साथ हैं। इस बार उनकी पार्टी एक ही सीट जीत सकी। 2 सीटों पर चुनाव लड़ा था। अनुप्रिया कुर्मी समुदाय से आती हैं। इस बार उनकी पार्टी का वोट प्रतिशत काफी कम हुआ है। अनुप्रिया के पति आशीष पटेल योगी कैबिनेट में मंत्री हैं। चार सीटों पर पार्टी की पकड़ है। हालांकि उनकी बहन पल्लवी पटेल की अपनी अलग पार्टी है, जिसका नाम अपना दल कमेरावादी है। जिसकी वजह से भाजपा कौशांबी सीट हार भी गई और प्रतापगढ़ में काफी नुकसान हुआ। जयंत चौधरी- एनडीए के सहयोगी, जाट फेस, किसान नेता भाजपा की सहयोगी रालोद के दोनों प्रत्याशी चुनाव जीत गए। भाजपा ने गठबंधन के तहत जयंत की पार्टी को वेस्ट यूपी में बागपत और बिजनौर सीटें दी थीं। दोनों सीटें 2019 भाजपा खुद जीती थी। चुनाव से ठीक पहले जयंत NDA में शामिल हुए थे। इससे पहले उनके दादा चौ. चरण सिंह को भारत रत्न मिला था। यूपी सरकार में भी उनकी पार्टी को एक मंत्री पद, विधान परिषद की एक सीट भी भाजपा ने दी है। इससे पहले 2022 का विधानसभा चुनाव जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव के साथ मिलकर लड़ा था। अखिलेश ने ही उन्हें राज्यसभा सांसद भी बनवाया था। जयंत पश्चिम में उस इलाके से आते हैं, जो जाट और किसान बाहुल्य है। इस बार भाजपा के जाट फेस और कैबिनेट मंत्री संजीव बालियान चुनाव हार गए। जयंत भी जाट हैं। हालांकि कहा जा रहा है रालोद का वोट बैंक भाजपा को शिफ्ट नहीं हुआ और भाजपा को गठबंधन का कोई फायदा भी नहीं हुआ, इसलिए वेस्ट यूपी की कई सीटों पर नुकसान हुआ है। यही वजह है कि जयंत को एनडीए की बैठक में मंच पर जगह भी नहीं मिली। स्लाइड में मोदी कैबिनेट में यूपी… मोदी मंत्रिमंडल में यूपी के 10 चेहरे हैं। इनमें 9 चेहरे यूपी के हैं। एक मंत्री हरदीप पुरी पंजाब के हैं, लेकिन राज्यसभा सांसद यूपी से हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के जरिए यूपी के क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। यूपी में 2019 में एनडीए के 64 सांसद थे। इस बार यह संख्या करीब आधा घटकर 36 पर पहुंच गई, लेकिन मंत्रियों की संख्या 8% बढ़ गई। सबसे ज्यादा 4 मंत्री पश्चिम यूपी से हैं। पूर्वांचल से 3 और अवध यानी सेंट्रल यूपी से 2 मंत्रियों को जगह मिली। जातीय संतुलन बनाते हुए 4 ओबीसी, 2 दलित और 3 सवर्ण चेहरे को मंत्रिमंडल में शामिल किया। ओबीसी मंत्रियों में 2 अति पिछड़ा वर्ग से हैं। जिन जातियों का वोट शिफ्ट हुआ, उनका ज्यादा ध्यान रखा
यूपी में भाजपा के खराब प्रदर्शन की वजह गैर-जाटव और ओबीसी में कुर्मी वोटर्स के इंडिया ब्लॉक की ओर शिफ्ट होना माना जा रहा है। यही वजह है कि कुर्मी समाज से 2 और अति पिछड़ा वर्ग से 2 मंत्री बनाए। गैर जाटव समाज के भी 2 मंत्री बनाए। मोदी ने इस मंत्रिमंडल के जरिए यूपी में 60-62% जातियों को साधने की कोशिश की। इन जातियों का 300-320 विधानसभा पर प्रभाव है। Today-Axis My poll के सर्वे के मुताबिक, इस बार भाजपा का करीब 21% जाटव और गैर जाटव वोटर्स इंडिया ब्लॉक को शिफ्ट हुआ। नोट- 2014 और 2019 में यूपी से दो-दो राज्यसभा सांसद बनाए गए। 2014 में अरुण जेटली और 2019 में हरदीप पुरी यूपी कोटे से थे, लेकिन यहां के रहने वाले नहीं थे। ओबीसी से 4 चेहरे, इनमें एक जाट और एक गैर पिछड़ा
पीएम मोदी ने मंत्रिमंडल में यूपी में जिन 4 ओबीसी चेहरों को जगह दी गई है। उनमें एक लोध जाति से, दूसरा जाट और बाकी के 2 कुर्मी हैं। ओबीसी वोटर इस बार भाजपा के वोट बैंक से छिटक गया था। मंत्रिमंडल में इसी तरह दलित समुदाय से जिन दो मंत्रियों को रखा गया है, उनमें एक गड़रिया और पासवान बिरादरी से हैं। जाटव और हरिजन समुदाय से कोई नहीं है। इन दोनों वर्गों का वोट भी इस बार भाजपा के पास नहीं गया। पूर्वांचल में 60 फीसदी सीटें हारी भाजपा, 3 मंत्री बने
भाजपा को इस बार सबसे ज्यादा डेंट पूर्वांचल में लगा। यहां लोकसभा की 27 सीटें हैं। लेकिन इस बार भाजपा सिर्फ 10 सीट जीत सकी। एक सीट अपना दल ने जीती। 2019 में भाजपा और अपना दल को 20 सीटें मिली थीं। इस पूरे इलाके से मोदी ने अपने कैबिनेट में 3 चेहरों को जगह दी है। वेस्ट यूपी में 29 सीटें आती हैं। इस बार भाजपा सिर्फ 14 जीत सकी है। 2 सीटें सहयोगी दल रालोद की मिली। 2019 में 29 में से 21 सीटें भाजपा ने अकेले जीती थी। यहां से 4 मंत्री बनाए गए हैं। सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड में कुल 24 सीटें आती हैं। यहां भाजपा को 9 सीटों पर जीत मिली है। यहां से सिर्फ एक मंत्री बना। यूपी से मंत्री बने चेहरों और उसके पीछे की सियासत राजनाथ सिंह- पार्टी में नंबर दो की पोजिशन, पूर्व अध्यक्ष, एनडीए सरकार का अनुभव रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। वह भाजपा के दिग्गज वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। दो बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जब मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए नॉमिनेट किया तब वह पार्टी अध्यक्ष थे। सरकार में राजनाथ सिंह की पोजिशन नंबर 2 पर है। राजनाथ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं, तब भी एनडीए की सरकार थी। राजनाथ यूपी के क्षत्रिय समाज से हैं। इस चुनाव में यूपी के कई इलाकों में क्षत्रिय समाज में भाजपा के प्रति नाराजगी देखने को मिली थी। सेंट्रल यूपी से आते हैं। कमलेश पासवान- पुराने नेता, दलित फेस, पूर्वांचल से आते हैं
बांसगांव लोकसभा से सांसद कमलेश पासवान भाजपा के दिग्गज नेता माने जाते हैं। वे बांसगांव लोकसभा सीट से 2009 से लगातार जीत रहे हैं। वह चौथी बार सांसद चुने गए हैं। इस बार उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद को 4540 मतों से हराया है। कमलेश के पिता ओम प्रकाश पासवान भी नेता थे, उन्हें एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान मार दिया गया था। कमलेश पासवान की मां सुभावती पासवान भी पूर्व सांसद रह चुकी हैं। कमलेश 2002 में बांसगांव निर्वाचन क्षेत्र से ही विधायक भी चुने जा चुके हैं। बिहार से सटे यूपी की 5 से 6 सीटों पर 5 से 7 फीसदी पासवान वोटर्स हैं। यह पूरा इलाका पूर्वांचल का है। पंकज चौधरी- मोदी के करीबी, 7वीं बार सांसद चुने गए पंकज चौधरी महाराजगंज से सांसद बने हैं। वह 7वीं बार सांसद चुने गए। 90 के दशक से भाजपा में हैं और चुनाव लड़ रहे हैं। 2009 में सिर्फ एक बार चुनाव हारे थे। पंकज OBC समुदाय से आते हैं। पूर्वी यूपी से हैं। इस इलाके में भाजपा को सबसे तगड़ा झटका लगा है। OBC वोटर ने भाजपा का साथ भी कम दिया। खासकर पूर्वी यूपी के कुर्मी वोटर्स, चौधरी इसी समुदाय से हैं। कुर्मी वोटर्स पूरे पूर्वांचल में प्रभावशाली हैं। चौधरी मोदी के काफी करीबी भी हैं। पिछले साल गोरखपुर दौरे के दौरान मोदी उनके घर भी अचानक पहुंच गए थे। उनके परिवार के साथ चाय भी पी थी। कीर्तिवर्धन सिंह- बृजभूषण के विकल्प, ठाकुरों की नाराजगी को दूर करना मकसद
गोंडा लोकसभा सीट से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए हैं। कीर्तिवर्धन मनकापुर के पूर्व राजघराने के वारिस हैं। उनके पिता कुंवर आनंद सिंह दिग्गज कांग्रेसी नेता और सपा सरकार में भी रह चुके हैं। 1998 के मध्यावधि चुनाव में आनंद सिंह ने बेटे कीर्तिवर्धन सिंह को मैदान में उतारा। बतौर सपा उम्मीदवार वह जीते और पहली बार संसद पहुंचे। 1999 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बृजभूषण शरण सिंह ने उन्हें हरा दिया। 2004 के चुनाव में कीर्तिवर्धन सिंह सपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीते। 2009 में वह बसपा में शामिल हो गए, लेकिन हार गए। 2014 में वह भाजपा में आ गए। तब से लगातार जीत रहे हैं। कीर्तिवर्धन सिंह को भाजपा बृजभूषण शरण सिंह के विकल्प के तौर पर पेश कर सकती है। क्योंकि बृजभूषण नाराज हैं। हालांकि उनके बेटे करण सिंह कैसरगंज से विजयी रहे हैं। कीर्तिवर्धन और बृजभूषण की सीटें अगल-बगल की सीटें हैं। यूपी में ठाकुर मतदाता नाराज भी बताए गए थे, इसलिए कीर्तिवर्धन के जरिए भाजपा उन्हें मैनेज भी करना चाहती है। एसपी सिंह बघेल- बृज क्षेत्र में चर्चित दलित फेस, शाह के करीबी SP सिंह बघेल आगरा सुरक्षित सीट से दूसरी बार सांसद चुने गए हैं। उन्होंने सपा उम्मीदवार को 2.71 लाख वोटों के मार्जिन से हराया। पिछली मोदी सरकार में कानून और स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे हैं। दलित वर्ग में गड़ेरिया समुदाय से आते हैं। दलित वोट इस बार भाजपा से सपा की ओर शिफ्ट हुआ। बघेल की दलितों में अच्छी पकड़ है। शाह और संगठन के करीबी हैं। वह काशी के प्रभारी भी रह चुके हैं। हालांकि उनकी जाति को लेकर पहले विवाद रह चुका है। आरोप है कि उन्होंने नौकरी पिछड़ी जाति के तौर पर ली थी और राजनीति में अनुसूचित जाति का इस्तेमाल करने लगे। सपा में भी रह चुके हैं। जितिन प्रसाद- ब्राह्मण फेस, केंद्र में मंत्री रहने का अनुभव, शाह के करीबी जितिन प्रसाद ने पीलीभीत सीट पर सपा उम्मीवार भगवत सरन गंगवार को हराया। उन्हें वरुण गांधी का टिकट काटकर भाजपा ने टिकट दिया था। जितिन यूपी में योगी सरकार में PWD मंत्री हैं। ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। बरेली-पीलीभीत-शाहजहांपुर यानी रुहेलखंड इलाके में प्रभावशाली हैं। पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के कद्दावर नेता थे, जितिन खुद भी कांग्रेस में रह चुके हैं। मनमोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। सियासी समीकरण साधने के लिए उन्हें मोदी सरकार में मंत्री पद दिया गया है। अमित शाह के करीबी हैं, उन्हीं के कहने पर भाजपा में शामिल हुए थे, फिर विधान परिषद के सदस्य बने और फिर मंत्री बनाए गए। भाजपा से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, इससे पहले बतौर कांग्रेस कैंडिडेट 2 चुनाव लगातार हार गए थे। बीएल वर्मा- कल्याण सिंह के शिष्य, लोध समुदाय पर पकड़ बीएल वर्मा बदायूं से आते हैं। फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं। ओबीसी में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोध समुदाय से आते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के शिष्य भी कहे जाते हैं। कल्याण सिंह भी लोध समुदाय से आते थे। बीएल वर्मा 2018 में उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष बने। इसके बाद वह राज्यसभा के सदस्य बने। 2021 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में बीएल वर्मा को जगह मिली थी। बीएल वर्मा को राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया था। वह जिस बदायूं से आते हैं, वह सीट इस बार भाजपा हार गई है। लोध जाति यूपी में 25 जिलों की 70-80 विधानसभा सीटों पर असर डालती है। उत्तर प्रदेश में आबादी के हिसाब से लोध वोट बैंक 8 फीसदी है। अनुप्रिया पटेल- NDA की पुरानी सहयोगी, पार्टी अध्यक्ष और ओबीसी फेस
अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने मिर्जापुर सीट से तीसरी बार जीत दर्ज की है। दोनों बार मोदी सरकार में मंत्री रही हैं। NDA की पुरानी सहयोगी हैं। 2014 से भाजपा के साथ हैं। इस बार उनकी पार्टी एक ही सीट जीत सकी। 2 सीटों पर चुनाव लड़ा था। अनुप्रिया कुर्मी समुदाय से आती हैं। इस बार उनकी पार्टी का वोट प्रतिशत काफी कम हुआ है। अनुप्रिया के पति आशीष पटेल योगी कैबिनेट में मंत्री हैं। चार सीटों पर पार्टी की पकड़ है। हालांकि उनकी बहन पल्लवी पटेल की अपनी अलग पार्टी है, जिसका नाम अपना दल कमेरावादी है। जिसकी वजह से भाजपा कौशांबी सीट हार भी गई और प्रतापगढ़ में काफी नुकसान हुआ। जयंत चौधरी- एनडीए के सहयोगी, जाट फेस, किसान नेता भाजपा की सहयोगी रालोद के दोनों प्रत्याशी चुनाव जीत गए। भाजपा ने गठबंधन के तहत जयंत की पार्टी को वेस्ट यूपी में बागपत और बिजनौर सीटें दी थीं। दोनों सीटें 2019 भाजपा खुद जीती थी। चुनाव से ठीक पहले जयंत NDA में शामिल हुए थे। इससे पहले उनके दादा चौ. चरण सिंह को भारत रत्न मिला था। यूपी सरकार में भी उनकी पार्टी को एक मंत्री पद, विधान परिषद की एक सीट भी भाजपा ने दी है। इससे पहले 2022 का विधानसभा चुनाव जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव के साथ मिलकर लड़ा था। अखिलेश ने ही उन्हें राज्यसभा सांसद भी बनवाया था। जयंत पश्चिम में उस इलाके से आते हैं, जो जाट और किसान बाहुल्य है। इस बार भाजपा के जाट फेस और कैबिनेट मंत्री संजीव बालियान चुनाव हार गए। जयंत भी जाट हैं। हालांकि कहा जा रहा है रालोद का वोट बैंक भाजपा को शिफ्ट नहीं हुआ और भाजपा को गठबंधन का कोई फायदा भी नहीं हुआ, इसलिए वेस्ट यूपी की कई सीटों पर नुकसान हुआ है। यही वजह है कि जयंत को एनडीए की बैठक में मंच पर जगह भी नहीं मिली। स्लाइड में मोदी कैबिनेट में यूपी… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर