कथावाचक मोरारी बापू ने काशी के संतों और विद्वत समाज से माफी मांग ली है, बावजूद इसके विवाद थम नहीं रहा है। अब ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मोरारी बाबू पर निशाना साधा। शंकराचार्य ने कहा, मोरारी बापू का व्यवहार रावण जैसी प्रवृत्ति का है। अपने शास्त्र का मोरारी बापू प्रमाण दें। सूतक में दर्शन-पूजन और कथा करना शास्त्र के खिलाफ है। अगर पश्चाताप नहीं किया तो यमराज दंड देंगे। सोमवार को काशी के मछोदरी में स्थानीय लोगों ने मोरारी बापू का पुतला बनाकर दफन किया। वहीं, देर शाम सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुरारी बापू से मुलाकात की। बंद कमरे में दोनों 10 मिनट साथ रहे। सोर्स के मुताबिक, योगी ने मुरारी बापू की पत्नी के निधन पर दुख जताया। दरअसल, मोरारी बापू की पत्नी का 12 जून को निधन हो गया था। इसके बाद वो 14 जून को काशी आए। यहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। जलाभिषेक किया। इसके बाद उनका विरोध शुरू हो गया। वाराणसी में कथा के पहले दिन लोगों ने उनका पुतला फूंककर विरोध जताया था। रविवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में व्यासपीठ से मोरारी बापू ने माफी मांगी। उन्होंने कहा- हम यहां आए। शिवजी के दर्शन करने गए। जल चढ़ाया और कथा गाने लगे। यह बात कई पूज्य चरणों और कई महापुरुषों को ठीक नहीं लगी। किसी को ठेस लगी हो तो मैं आप सबके प्रति क्षमा प्रार्थी हूं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि मेरे पास भी शास्त्र है, दिखा सकता हूं। अविमुक्तेश्वरानंद बोले- मोरारी बापू दिखाएं अपना शास्त्र
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सोमवार को वीडियो बयान जारी कर कहा- काशी में अशास्त्रीय काम हो रहा है। इस पर लोग सवाल कर रहे हैं। हमें पता चला है कि मोरारी बापू काशी में अपनी पत्नी के निधन के तीन दिन बाद कथा कहने आए हैं। उन्होंने बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन और अभिषेक भी किया है। यह सबसे बड़ा सवाल है कि सूतक में यह कैसे हो सकता है? हम मोरारी बापू से कहना चाहते हैं कि उनके पास जो शास्त्र है, वह लाएं और बताएं कि कहां लिखा है कि सूतक में कथा और दर्शन पूजन किया जाता है। संबंधों से बड़ा शास्त्र होता है, जो नहीं मानेगा उसका विरोध होगा
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- हमारे यहां संबंधों से बड़ा शास्त्र होता है। उसका निर्वाहन अगर कोई नहीं करेगा तो उसका विरोध हमें करना पड़ेगा। अगर वह अपने किए गए अपराध का पश्चाताप नहीं करता है तो यमराज उन्हें दंड देंगे। उन्होंने कहा कि सनातन का यही दृष्टिकोण है कि सूतक में जो काम नहीं करना चाहिए, वह इस समय मोरारी बापू कर रहे हैं। मैं एक बार पुनः मोरारी बापू से यह पूछना चाहता हूं कि वह किसलिए और किस अधिकार से कथा कह रहे हैं। जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया तो मोरारी बापू ने कहा कि हमारी परंपरा काफी पुरानी है। हम वैष्णो साधु हैं और हम पर यह सूतक लागू नहीं होता है। समाधि करने से ही हमारा सब पूरा हो जाता है। मोरारी बापू शब्दों के पंडित हैं तो शब्दों का उपयोग करना चाहिए
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मोरारी बापू के माफी वाले वीडियो पर भी आपत्ति जताई है। शंकाराचार्य ने कहा- मोरारी बापू शब्दों के पंडित हैं तो उन्हें शब्दों का उपयोग करना चाहिए। लेकिन, वह दुरुपयोग कर रहे हैं। जो शास्त्र को मानता है, उसे ठेस लगी है। अगर उनके जैसा प्रसिद्ध व्यक्ति मनमाना करेगा तो पूरा समाज मनमाना तरीके से काम करने लगेगा। अगर सारा समाज मनमाना हो जाएगा तो विधि-विधान और बनी हुई प्रक्रिया बेकार हो जाएगी। अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- किसी व्यक्ति को अपने मन का नहीं करना चाहिए। यह रावण की प्रवृत्ति थी, वह अपने मन से सब कुछ करता था। उन्होंने कहा कि रावण था, जो अपने ही मंत्रों से राज्य करने लगा था। रावण अपने भुजों के बल पर विश्व को अपने वश में कर लिया। उनका कोई अधिकार नहीं है कि वह अपना मंत्र बनाकर और उसी के अनुसार काम करने लगें। यह रावणी प्रवृत्ति है। मोरारी बापू का यह मनमानापन किसी भी प्रकार से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। पुतला बनाकर लोगों ने दफन किया आज सोमवार को वाराणसी के मछोदरी निवासी लोगों ने मोरारी बापू का पुतला बनाकर दफन किया। विरोध करने वाले लोगों ने कहा- धार्मिक मर्यादाओं और परंपराओं का उल्लंघन कर मोरारी बापू ने भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। ऐसा करने मोरारी बापू ने धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ किया है। बापू का पुतला जलाकर विरोध जताया था
14 जून को वाराणसी के लोगों ने कहा था- घर के परिवार के सदस्य का निधन होने के बाद सूतक लग जाता है। इस काल में पूजा नहीं होती, दर्शन नहीं होता, कथा नहीं कही जाती। लेकिन, मोरारी बापू काशी में राम कथा करने आए हैं और बाबा विश्वनाथ के मंदिर भी गए। विरोध पर मोरारी बापू ने कहा था- हम लोग वैष्णव हैं। जो लोग पूजा-पाठ करते हैं, उन पर ये लागू नहीं होता। भगवान भजन करना, इसमें सुकून है, न कि सूतक। इसमें विवाद नहीं करना चाहिए। स्वामी जितेंद्रानंद बोले- ये निंदनीय है…वो अर्थ की कामना कर रहे अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने अपनी बात रखी। कहा- सूतक काल में कथा वाचक मोरारी बापू का कथा कहना घोर निंदनीय है। उन्हें इस काल में राम कथा नहीं कहनी चाहिए। उन्होंने धर्म से ऊपर उठकर अर्थ की कामना से इस तरह का कृत्य करना गलत है। ये समाज के लिए निंदनीय है। इससे पहले उन्होंने यह जानते हुए भी कि 32 प्रकार की अग्नि होती है, उन्होंने चिता की अग्नि के सामने फेरे डलवाए थे। व्यास पीठ पर बैठकर अल्लाह-मौला करना उचित नहीं। मंगल का अमंगल से कनेक्शन जोड़ते हैं। स्वामी जितेंद्रानंद ने सवाल उठाए कि ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मचारी और राजा को सूरत नहीं लगता, तो मोरारी बापू को बताना चाहिए वो किसमें आते हैं? सिर्फ संन्यास परंपरा में ही जीवित खुद का पिंडदान करता है। मोरारी बापू समाज को धोखा न दें, धर्म को धंधे में न बदलें, यही बेहतर होगा। शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती बोले-यह धर्म और परंपरा के विपरीत वाराणसी के सुमेर पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने मोरारी बापू पर बयान देते हुए कहा, जिसकी पत्नी का निधन हो चुका है, वह फिर भी काशी के रुद्राक्ष क्षेत्र में राम कथा का वाचन कर रहा है। यह धर्म और परंपरा के विपरीत है। उन्होंने कहा- ऐसे व्यक्ति ने धर्मशास्त्रों की मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। पत्नी के निधन के बाद ‘सूतक’ की अवधि में मंदिर जाना, भगवानों को स्पर्श करना और धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन करना शास्त्र विरूद्ध बताया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति का काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश और कथा वाचन पवित्रता के विरुद्ध है, जिसे एक ‘भीषण पाप’ माना जाना चाहिए। अब सूतक और इससे जुड़ी मान्यताएं जानिए सवाल : सूतक क्या होता है?
जवाब: भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के रिसर्चर आचार्य राकेश झा बताते हैं, घर में किसी की मौत हो जाने जाने के बाद हिंदू धर्म में 13 दिन का सूतक माना जाता है। घर में किसी नवजात का जन्म होने पर भी सूतक होता है। हालांकि, इसको अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं। यूपी, बिहार, झारखंड, दिल्ली आदि इलाकों में इसे सूतक कहते हैं। वहीं, मध्य प्रदेश और राजस्थान के इलाकों में इसको पातक कहते हैं। ग्रहण काल को भी सूतक माना जाता है। सूतक को शास्त्रीय भाषा में अशौच काल भी कहा जाता है। आचार्य राकेश बताते हैं सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है। ज्योतिष कर्मकांड से जुड़े पंडित नरेंद्र उपाध्याय बताते है कि घर किसी की मौत या जन्म होने पर पूरे परिवार पर सूतक लग जाता है। कहा जाता है कि परिवार ‘छुतके’ से गुजर रहा है। कहने का मतलब वो अशुद्ध होते हैं। इस दौरान घर पर कोई धार्मिक कार्य करना या परिवार के किसी भी शख्स को शुभ कामों में भाग लेना वर्जित माना जाता है। सवाल: कब से सूतक लग जाता है?
जवाब: कर्मकांड के जानकारों के मुताबिक, यह परिवार के सभी सदस्यों, खानदान और कभी-कभी गोत्र-कुल के लोगों पर भी लागू हो सकता है। जिस दिन दाह-संस्कार होता है, उस दिन से सूतक की गणना होती है। जिस दिन व्यक्ति की मौत होती है, उस दिन से इसको नहीं जोड़ा जाता। अगर किसी के घर का सदस्य बाहर हो, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से उस पर सूतक लगता है। अगर किसी को 12वें दिन सूचना मिलती है, तो सिर्फ स्नान मात्र से शुद्धि हो जाती है। सवाल : क्या सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है? जवाब: आचार्य राकेश झा बताते हैं- सूतक के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि, ये समय धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध माना जाता है। सूतक काल चाहे जन्म के बाद हो या मौत के बाद, एक नेगेटिव एनर्जी का टाइम होता है। जिसमें किसी भी मांगलिक या शुभ कार्यों से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक अवधि 12 या 13 दिन की मानी जाती है। इस अवधि तक घर में सूतक के नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। कितने दिन का होता है मृत्यु सूतक? सवाल : क्या सूतक में मंदिर में प्रवेश या पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए?
जवाब: पंडित नरेंद्र उपाध्याय और आचार्य राकेश बताते हैं- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक के दौरान छूत लग जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। हर चीज अशुद्ध होती है, इस वजह से मंदिर जाना या घर के मंदिर में पूजा करने की भी मनाही होती है। मान्यता है कि इस दौरान पितृ लोग इर्द-गिर्द रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण को 10 दिन का क्षत्रिय को 12 दिन का और वैश्य को 15 दिन और शूद्र को एक महीने का सूतक लगता है। विशेष परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि 10 दिनों में ही होती है। इसे शारीरिक शुद्धि कहते हैं। इसके बाद किसी तरह का दोष नहीं रहता। त्रयोदश संस्कार (तेरहवीं) के बाद पूर्णशुद्धि हो जाती है। इसके बाद ही देवताओं की पूजा-आराधना की जाती है। सूतक के दौरान बाल कटवाने, नाखून काटने और कहीं-कहीं पर हल्दी और खाने में तेल के इस्तेमाल की मनाही होती है। सवाल : वैष्णव संत कौन होते हैं?
जवाब: ये संत वैष्णव धर्म के अनुयायी होते है। भगवान विष्णु और उनके अवतारों जैसे राम-कृष्ण के भक्त होते हैं। ये भगवान विष्णु को सर्वोच्च ईश्वर मानते हैं। अपने जीवन को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए समर्पित करते हैं। इसमें भजन, कीर्तन, कथा वाचन और अन्य धार्मिक क्रियाएं शामिल हैं। आमतौर पर ये शाकाहारी होते हैं, सत्य और अहिंसा का पालन करते हैं। सवाल : क्या वैष्णव संतों के लिए सूतक नहीं लागू होता? जवाब: आचार्य राकेश झा के अनुसार, संन्यासी-वैष्णव संतों और जिनका गृहस्थ आश्रम से कुछ लेना-देना नहीं, उन पर ये नियम नहीं लागू होता। क्योंकि जब आप संन्यासी बनते हैं, तब पिंडदान कर दिया जाता है। इससे आपका गृहस्थ जीवन से कोई ताल्लुक नहीं रहता। इस वजह से ये लोग किसी की मौत या जन्म के बाद शुभ काम कर सकते हैं। लेकिन अगर आप गृहस्थ जीवन में हैं, चाहे आप कथा वाचक हों या फिर एस्ट्रोलॉजर, तो आपको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। आचार्य राकेश झा का कहना है कि मोरारी बापू बहुत अच्छे और महान संत हैं। लेकिन, उनका इस तरह से कथा करना सही नहीं है। वो गृहस्थ जीवन में हैं, उनको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। सवाल : धार्मिक ग्रंथों में सूतक का कहां-कहां जिक्र है? जवाब: हिंदू धर्म के पुराणों और शास्त्रों में मौत के बाद सूतक का उल्लेख मिलता है। गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण में इसका जिक्र है, लेकिन अग्नि पुराण में इसकी विस्तृत चर्चा की गई है। ——————– ये खबर भी पढ़ें… डॉल्फिन-कछुओं की लगातार हो रहीं मौतें:यूपी में जहां सबसे ज्यादा संख्या वहां नहीं दिखती डॉल्फिन, पार्ट-2 बुलंदशहर जिले का गांव राजघाट। गंगा का ये इलाका डॉल्फिन, कछुओं और मछलियों की मौजूदगी के लिए मशहूर है। अकेले इसी जगह गंगा में 20 से ज्यादा डॉल्फिन हैं। लेकिन, हमें निराश होना पड़ा। दो घंटे मोटरबोट में घूमने के बाद भी हमें डॉल्फिन की एक झलक भी नहीं दिखी। ‘दैनिक भास्कर’ ने अपनी गंगा यात्रा के दूसरे दिन मेरठ के हस्तिनापुर से संभल तक करीब 175 किलोमीटर का सफर तय किया। यात्रा के इस पड़ाव में हमने देखा गंगा में डॉल्फिन, कछुओं की मौजूदगी कम है। पढ़ें पूरी खबर कथावाचक मोरारी बापू ने काशी के संतों और विद्वत समाज से माफी मांग ली है, बावजूद इसके विवाद थम नहीं रहा है। अब ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मोरारी बाबू पर निशाना साधा। शंकराचार्य ने कहा, मोरारी बापू का व्यवहार रावण जैसी प्रवृत्ति का है। अपने शास्त्र का मोरारी बापू प्रमाण दें। सूतक में दर्शन-पूजन और कथा करना शास्त्र के खिलाफ है। अगर पश्चाताप नहीं किया तो यमराज दंड देंगे। सोमवार को काशी के मछोदरी में स्थानीय लोगों ने मोरारी बापू का पुतला बनाकर दफन किया। वहीं, देर शाम सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुरारी बापू से मुलाकात की। बंद कमरे में दोनों 10 मिनट साथ रहे। सोर्स के मुताबिक, योगी ने मुरारी बापू की पत्नी के निधन पर दुख जताया। दरअसल, मोरारी बापू की पत्नी का 12 जून को निधन हो गया था। इसके बाद वो 14 जून को काशी आए। यहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। जलाभिषेक किया। इसके बाद उनका विरोध शुरू हो गया। वाराणसी में कथा के पहले दिन लोगों ने उनका पुतला फूंककर विरोध जताया था। रविवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में व्यासपीठ से मोरारी बापू ने माफी मांगी। उन्होंने कहा- हम यहां आए। शिवजी के दर्शन करने गए। जल चढ़ाया और कथा गाने लगे। यह बात कई पूज्य चरणों और कई महापुरुषों को ठीक नहीं लगी। किसी को ठेस लगी हो तो मैं आप सबके प्रति क्षमा प्रार्थी हूं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि मेरे पास भी शास्त्र है, दिखा सकता हूं। अविमुक्तेश्वरानंद बोले- मोरारी बापू दिखाएं अपना शास्त्र
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सोमवार को वीडियो बयान जारी कर कहा- काशी में अशास्त्रीय काम हो रहा है। इस पर लोग सवाल कर रहे हैं। हमें पता चला है कि मोरारी बापू काशी में अपनी पत्नी के निधन के तीन दिन बाद कथा कहने आए हैं। उन्होंने बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन और अभिषेक भी किया है। यह सबसे बड़ा सवाल है कि सूतक में यह कैसे हो सकता है? हम मोरारी बापू से कहना चाहते हैं कि उनके पास जो शास्त्र है, वह लाएं और बताएं कि कहां लिखा है कि सूतक में कथा और दर्शन पूजन किया जाता है। संबंधों से बड़ा शास्त्र होता है, जो नहीं मानेगा उसका विरोध होगा
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- हमारे यहां संबंधों से बड़ा शास्त्र होता है। उसका निर्वाहन अगर कोई नहीं करेगा तो उसका विरोध हमें करना पड़ेगा। अगर वह अपने किए गए अपराध का पश्चाताप नहीं करता है तो यमराज उन्हें दंड देंगे। उन्होंने कहा कि सनातन का यही दृष्टिकोण है कि सूतक में जो काम नहीं करना चाहिए, वह इस समय मोरारी बापू कर रहे हैं। मैं एक बार पुनः मोरारी बापू से यह पूछना चाहता हूं कि वह किसलिए और किस अधिकार से कथा कह रहे हैं। जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया तो मोरारी बापू ने कहा कि हमारी परंपरा काफी पुरानी है। हम वैष्णो साधु हैं और हम पर यह सूतक लागू नहीं होता है। समाधि करने से ही हमारा सब पूरा हो जाता है। मोरारी बापू शब्दों के पंडित हैं तो शब्दों का उपयोग करना चाहिए
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मोरारी बापू के माफी वाले वीडियो पर भी आपत्ति जताई है। शंकाराचार्य ने कहा- मोरारी बापू शब्दों के पंडित हैं तो उन्हें शब्दों का उपयोग करना चाहिए। लेकिन, वह दुरुपयोग कर रहे हैं। जो शास्त्र को मानता है, उसे ठेस लगी है। अगर उनके जैसा प्रसिद्ध व्यक्ति मनमाना करेगा तो पूरा समाज मनमाना तरीके से काम करने लगेगा। अगर सारा समाज मनमाना हो जाएगा तो विधि-विधान और बनी हुई प्रक्रिया बेकार हो जाएगी। अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- किसी व्यक्ति को अपने मन का नहीं करना चाहिए। यह रावण की प्रवृत्ति थी, वह अपने मन से सब कुछ करता था। उन्होंने कहा कि रावण था, जो अपने ही मंत्रों से राज्य करने लगा था। रावण अपने भुजों के बल पर विश्व को अपने वश में कर लिया। उनका कोई अधिकार नहीं है कि वह अपना मंत्र बनाकर और उसी के अनुसार काम करने लगें। यह रावणी प्रवृत्ति है। मोरारी बापू का यह मनमानापन किसी भी प्रकार से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। पुतला बनाकर लोगों ने दफन किया आज सोमवार को वाराणसी के मछोदरी निवासी लोगों ने मोरारी बापू का पुतला बनाकर दफन किया। विरोध करने वाले लोगों ने कहा- धार्मिक मर्यादाओं और परंपराओं का उल्लंघन कर मोरारी बापू ने भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। ऐसा करने मोरारी बापू ने धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ किया है। बापू का पुतला जलाकर विरोध जताया था
14 जून को वाराणसी के लोगों ने कहा था- घर के परिवार के सदस्य का निधन होने के बाद सूतक लग जाता है। इस काल में पूजा नहीं होती, दर्शन नहीं होता, कथा नहीं कही जाती। लेकिन, मोरारी बापू काशी में राम कथा करने आए हैं और बाबा विश्वनाथ के मंदिर भी गए। विरोध पर मोरारी बापू ने कहा था- हम लोग वैष्णव हैं। जो लोग पूजा-पाठ करते हैं, उन पर ये लागू नहीं होता। भगवान भजन करना, इसमें सुकून है, न कि सूतक। इसमें विवाद नहीं करना चाहिए। स्वामी जितेंद्रानंद बोले- ये निंदनीय है…वो अर्थ की कामना कर रहे अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने अपनी बात रखी। कहा- सूतक काल में कथा वाचक मोरारी बापू का कथा कहना घोर निंदनीय है। उन्हें इस काल में राम कथा नहीं कहनी चाहिए। उन्होंने धर्म से ऊपर उठकर अर्थ की कामना से इस तरह का कृत्य करना गलत है। ये समाज के लिए निंदनीय है। इससे पहले उन्होंने यह जानते हुए भी कि 32 प्रकार की अग्नि होती है, उन्होंने चिता की अग्नि के सामने फेरे डलवाए थे। व्यास पीठ पर बैठकर अल्लाह-मौला करना उचित नहीं। मंगल का अमंगल से कनेक्शन जोड़ते हैं। स्वामी जितेंद्रानंद ने सवाल उठाए कि ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मचारी और राजा को सूरत नहीं लगता, तो मोरारी बापू को बताना चाहिए वो किसमें आते हैं? सिर्फ संन्यास परंपरा में ही जीवित खुद का पिंडदान करता है। मोरारी बापू समाज को धोखा न दें, धर्म को धंधे में न बदलें, यही बेहतर होगा। शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती बोले-यह धर्म और परंपरा के विपरीत वाराणसी के सुमेर पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने मोरारी बापू पर बयान देते हुए कहा, जिसकी पत्नी का निधन हो चुका है, वह फिर भी काशी के रुद्राक्ष क्षेत्र में राम कथा का वाचन कर रहा है। यह धर्म और परंपरा के विपरीत है। उन्होंने कहा- ऐसे व्यक्ति ने धर्मशास्त्रों की मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। पत्नी के निधन के बाद ‘सूतक’ की अवधि में मंदिर जाना, भगवानों को स्पर्श करना और धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन करना शास्त्र विरूद्ध बताया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति का काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश और कथा वाचन पवित्रता के विरुद्ध है, जिसे एक ‘भीषण पाप’ माना जाना चाहिए। अब सूतक और इससे जुड़ी मान्यताएं जानिए सवाल : सूतक क्या होता है?
जवाब: भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के रिसर्चर आचार्य राकेश झा बताते हैं, घर में किसी की मौत हो जाने जाने के बाद हिंदू धर्म में 13 दिन का सूतक माना जाता है। घर में किसी नवजात का जन्म होने पर भी सूतक होता है। हालांकि, इसको अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं। यूपी, बिहार, झारखंड, दिल्ली आदि इलाकों में इसे सूतक कहते हैं। वहीं, मध्य प्रदेश और राजस्थान के इलाकों में इसको पातक कहते हैं। ग्रहण काल को भी सूतक माना जाता है। सूतक को शास्त्रीय भाषा में अशौच काल भी कहा जाता है। आचार्य राकेश बताते हैं सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है। ज्योतिष कर्मकांड से जुड़े पंडित नरेंद्र उपाध्याय बताते है कि घर किसी की मौत या जन्म होने पर पूरे परिवार पर सूतक लग जाता है। कहा जाता है कि परिवार ‘छुतके’ से गुजर रहा है। कहने का मतलब वो अशुद्ध होते हैं। इस दौरान घर पर कोई धार्मिक कार्य करना या परिवार के किसी भी शख्स को शुभ कामों में भाग लेना वर्जित माना जाता है। सवाल: कब से सूतक लग जाता है?
जवाब: कर्मकांड के जानकारों के मुताबिक, यह परिवार के सभी सदस्यों, खानदान और कभी-कभी गोत्र-कुल के लोगों पर भी लागू हो सकता है। जिस दिन दाह-संस्कार होता है, उस दिन से सूतक की गणना होती है। जिस दिन व्यक्ति की मौत होती है, उस दिन से इसको नहीं जोड़ा जाता। अगर किसी के घर का सदस्य बाहर हो, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से उस पर सूतक लगता है। अगर किसी को 12वें दिन सूचना मिलती है, तो सिर्फ स्नान मात्र से शुद्धि हो जाती है। सवाल : क्या सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है? जवाब: आचार्य राकेश झा बताते हैं- सूतक के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि, ये समय धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध माना जाता है। सूतक काल चाहे जन्म के बाद हो या मौत के बाद, एक नेगेटिव एनर्जी का टाइम होता है। जिसमें किसी भी मांगलिक या शुभ कार्यों से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक अवधि 12 या 13 दिन की मानी जाती है। इस अवधि तक घर में सूतक के नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। कितने दिन का होता है मृत्यु सूतक? सवाल : क्या सूतक में मंदिर में प्रवेश या पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए?
जवाब: पंडित नरेंद्र उपाध्याय और आचार्य राकेश बताते हैं- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक के दौरान छूत लग जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। हर चीज अशुद्ध होती है, इस वजह से मंदिर जाना या घर के मंदिर में पूजा करने की भी मनाही होती है। मान्यता है कि इस दौरान पितृ लोग इर्द-गिर्द रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण को 10 दिन का क्षत्रिय को 12 दिन का और वैश्य को 15 दिन और शूद्र को एक महीने का सूतक लगता है। विशेष परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि 10 दिनों में ही होती है। इसे शारीरिक शुद्धि कहते हैं। इसके बाद किसी तरह का दोष नहीं रहता। त्रयोदश संस्कार (तेरहवीं) के बाद पूर्णशुद्धि हो जाती है। इसके बाद ही देवताओं की पूजा-आराधना की जाती है। सूतक के दौरान बाल कटवाने, नाखून काटने और कहीं-कहीं पर हल्दी और खाने में तेल के इस्तेमाल की मनाही होती है। सवाल : वैष्णव संत कौन होते हैं?
जवाब: ये संत वैष्णव धर्म के अनुयायी होते है। भगवान विष्णु और उनके अवतारों जैसे राम-कृष्ण के भक्त होते हैं। ये भगवान विष्णु को सर्वोच्च ईश्वर मानते हैं। अपने जीवन को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए समर्पित करते हैं। इसमें भजन, कीर्तन, कथा वाचन और अन्य धार्मिक क्रियाएं शामिल हैं। आमतौर पर ये शाकाहारी होते हैं, सत्य और अहिंसा का पालन करते हैं। सवाल : क्या वैष्णव संतों के लिए सूतक नहीं लागू होता? जवाब: आचार्य राकेश झा के अनुसार, संन्यासी-वैष्णव संतों और जिनका गृहस्थ आश्रम से कुछ लेना-देना नहीं, उन पर ये नियम नहीं लागू होता। क्योंकि जब आप संन्यासी बनते हैं, तब पिंडदान कर दिया जाता है। इससे आपका गृहस्थ जीवन से कोई ताल्लुक नहीं रहता। इस वजह से ये लोग किसी की मौत या जन्म के बाद शुभ काम कर सकते हैं। लेकिन अगर आप गृहस्थ जीवन में हैं, चाहे आप कथा वाचक हों या फिर एस्ट्रोलॉजर, तो आपको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। आचार्य राकेश झा का कहना है कि मोरारी बापू बहुत अच्छे और महान संत हैं। लेकिन, उनका इस तरह से कथा करना सही नहीं है। वो गृहस्थ जीवन में हैं, उनको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। सवाल : धार्मिक ग्रंथों में सूतक का कहां-कहां जिक्र है? जवाब: हिंदू धर्म के पुराणों और शास्त्रों में मौत के बाद सूतक का उल्लेख मिलता है। गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण में इसका जिक्र है, लेकिन अग्नि पुराण में इसकी विस्तृत चर्चा की गई है। ——————– ये खबर भी पढ़ें… डॉल्फिन-कछुओं की लगातार हो रहीं मौतें:यूपी में जहां सबसे ज्यादा संख्या वहां नहीं दिखती डॉल्फिन, पार्ट-2 बुलंदशहर जिले का गांव राजघाट। गंगा का ये इलाका डॉल्फिन, कछुओं और मछलियों की मौजूदगी के लिए मशहूर है। अकेले इसी जगह गंगा में 20 से ज्यादा डॉल्फिन हैं। लेकिन, हमें निराश होना पड़ा। दो घंटे मोटरबोट में घूमने के बाद भी हमें डॉल्फिन की एक झलक भी नहीं दिखी। ‘दैनिक भास्कर’ ने अपनी गंगा यात्रा के दूसरे दिन मेरठ के हस्तिनापुर से संभल तक करीब 175 किलोमीटर का सफर तय किया। यात्रा के इस पड़ाव में हमने देखा गंगा में डॉल्फिन, कछुओं की मौजूदगी कम है। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
योगी मुरारी बापू से मिले…पत्नी के निधन पर दुख जताया:2 दिन पहले काशी में हुआ था विरोध, शंकराचार्य बोले- मोरारी बापू को यमराज दंड देंगे
