उत्तर प्रदेश सरकार को प्रमोटी आईपीएस अफसरों पर भरोसा नहीं है। प्रमोट होकर आईपीएस बने अफसरों को जिला संभालने का मौका कम ही मिल रहा है। इस समय सिर्फ 13 जिले के कप्तान प्रमोटी आईपीएस अफसर हैं। यह आंकड़ा दूसरी सरकारों से कम है। हालांकि प्रमोट होकर आईएएस अफसर बनने वालों की स्थिति ज्यादा बेहतर है। इस समय 23 प्रमोटी आईएएस अफसर डीएम हैं। यूपी में कॉडर स्ट्रेंथ के हिसाब से कुल आईपीएस के पदों में 33 प्रतिशत पद प्रमोशन से भरे जाते हैं, जबकि बाकी के पद डायरेक्ट भरे जाते हैं। मौजूदा समय में यूपी में आईपीएस की कॉडर स्ट्रेंथ 541 हैं। ऐसे में लगभग 180 आईपीएस प्रांतीय पुलिस सेवा से प्रोन्नति के जरिए भरे जाते हैं। लगभग ऐसा ही रेशियो जिलों की पोस्टिंग में भी अपनाया जाता रहा है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसमें भारी गिरावट आई है। क्या कहता है नियम?
यूपी में आईएएस और आईपीएस अफसरों के कुल पदों में 33 प्रतिशत पद राज्य सेवा के अफसरों के लिए आरक्षित हैं। आईएएस के कुल सेंक्शन पद 652 हैं। इसमें से 33 प्रतिशत यानी 198 अफसर राज्य सेवा के होते हैं, जो प्रमोशन के जरिए आईएएस बनते हैं। बाकी 67 फीसदी यानी 454 पद सीधी भर्ती के होते हैं। इसी तरह आईपीएस की कुल कॉडर स्ट्रेंथ 541 है। इसमें 180 पद प्रांतीय पुलिस सेवा के अफसरों को प्रमोशन देकर भरे जाते हैं। किसी भी राज्य में कॉडर स्ट्रेंथ केंद्र सरकार तय करती है। कई अफसरों की जिले में पोस्टिंग के बिना खत्म हो जाती है नौकरी
पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि हर पुलिस अफसर का सपना होता है कि वह जिले का कप्तान बने, यानी एसपी या एसएसपी बने। लेकिन प्रोन्नति पाए कम ही अफसरों को यह मौका मिल पाता है। ज्यादातर अफसर बिना जिले की कमान संभाले ही रिटायर हो जाते हैं। यह स्थिति पीसीएस से आईएएस बनने वाले और पीपीएस से आईपीएस बनने वाले अफसरों दोनों की है। प्रांतीय पुलिस सेवा के अफसरों का मानना है कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है। पीसीएस के मुकाबले उनके साथ भेदभाव हो रहा है। पूर्व आईजी आरके चतुर्वेदी बताते हैं कि एक ओर जहां 2007 बैच के पीपीएस अफसरों को प्रमोशन मिल चुका है और वे आईएएस बन चुके हैं। वहीं, पीपीएस संवर्ग में 1996 बैच के अफसरों को अब प्रमोशन देकर आईपीएस बनाया गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पीपीएस अफसरों की बड़ी संख्या में भर्ती कर ली गई और आईपीएस कॉडर में उसके अनुपात में पदों का सृजन नहीं हुआ। जो पद पहले से थे जहां तक पीपीएस अफसर पहुंच पाते थे, उनका कद सरकार ने बढ़ा दिया। मसलन जोन स्तर पर पहले आईजी की तैनाती होती थी। कई ऐसे प्रमोटी अफसर रहे हैं जो जोन की कमान संभाल चुके हैं। लेकिन अब यह संभव नहीं है क्याेंकि जोन के मुखिया का पद एडीजी कर दिया गया है। प्रमोटी अफसर एडीजी तक पहुंच भी नहीं पाता और रिटायर हो जाता है। जहां तक जिलों में तैनाती की बात है तो सबसे अधिक अनुभव प्रमोटी अफसरों के पास होता है और किसी भी परिस्थिति को हैंडिल करने में वे सक्षम होते हैं। वहीं, डायरेक्ट अफसरों की वजह से कई बार स्थितियां बिगड़ जाती हैं। सरकार को क्यों नहीं होता भरोसा?
प्रमोटी अफसरों को जिला न मिलने के पीछे की एक वजह ऊपरी कमाई बताई जाती है। उनको पता होता है कि किस तरह से ऊपरी कमाई की जा सकती है। वहीं, डायरेक्ट अफसर ज्यादा ईमानदार माने जाते हैं। हालांकि कई डायरेक्ट अफसर ऐसे रहे हैं जिनकी वजह से सरकारों की फजीहत भी हुई है। मसलन करप्शन के आरोप में ही महोबा के एसपी रहे मणिलाल पाटीदार को पहले निलंबित किया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त किया गया। नोएडा में एसएसपी रहते हुए वैभव कृष्ण ने जिन आईपीएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे उसमें आधे से ज्यादा डायरेक्ट आईपीएस थे। फील्ड में अच्छा काम करने वालों पर ही भरोसा
पूर्व मुख्य सचिव आरके तिवारी कहते हैं- जो अधिकारी फील्ड में अच्छा काम कर पाते हैं सरकार उन पर भरोसा करती है। जो सरकार की मंशा के अनुरूप डिलीवरी दे सकते हैं, बेहतर परफॉर्मेंस दे सकते हैं उन्हें फील्ड में पोस्टिंग दी जाती है। यूपी में फिलहाल कई जिलों में डीएम और मंडलायुक्त प्रमोटी अफसर ही लगे हैं। ऐसे भी कई डायरेक्ट आईएएस अफसर हैं जिनका कामकाज अच्छा नहीं है, सरकार ने उन्हें लंबे समय से फील्ड पोस्टिंग नहीं दी है। पूर्व मुख्य सचिव आलाेक रंजन कहते हैं- आईएएस में 33 प्रतिशत पद पीसीएस से पदोन्नत होने वाले अफसरों के लिए आरक्षित हैं। लेकिन ऐसा कोई कोटा तय नहीं है कि प्रमोटी अफसर को कितने जिलों में डीएम लगाया जाएगा। प्रमोटी अफसर काबिलियत में किसी से कम नहीं होते हैं। उन्हें भी फील्ड पोस्टिंग में पर्याप्त अवसर दिया जाना है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि किसी एक बैच में एक साथ काफी संख्या में पीसीएस से आईएएस बनते हैं। तो फिर उनमें से कुछ लोग डीएम बनने से वंचित रह जाते हैं। लेकिन प्रमोटी अफसरों को भी कम से कम एक बार डीएम बनने का अवसर दिया जाना चाहिए। हर आईएएस की इच्छा होती है कि वह एक बार डीएम अवश्य बने। अब सवाल उठता है पहले की सरकारों में क्या स्थिति थी? पूर्व की सरकारों में मिलती रही तरजीह
डायरेक्ट आईपीएस के मुकाबले प्रमोटी आईपीएस अफसरों को पूर्व की सरकार में वरीयता मिलती रही है। मसलन अखिलेश यादव की सरकार में भी एक समय में 28 अफसर जिलों के कप्तान रहे। वहीं, मुलायम सिंह और मायावती सरकार में यह आंकड़ा 35 से 40 अफसरों तक रहा है। प्रमोटी अफसरों को जिला मिलने का इंतजार
हाल ही में प्रदेश के 22 पीपीएस अफसरों को प्रमोशन मिला है। यह अफसर या तो जिलों में तैनात हैं या फिर पीएसी व अन्य नान डीएफ में तैनात हैं। ऐसे में इन्हें अब एसपी के पद पर तैनात किया जाना है। जिलों में पहले से ही प्रमोटी आईपीएस अफसरों की संख्या कम है। सवाल उठना वाजिब है कि क्या सरकार 33 प्रतिशत के रेशियो में जिलों में भी कोटा देगी या कुछ प्रमोटी अफसरों को फील्ड से हटाकर उनके स्थान पर हाल ही में प्रमोशन पाए अफसरों को मौका मिलेगा। सीडीओ में भी आईएएस ने हक मारा
प्रदेश में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) के 75 पद हैं। इसमें 28 पद प्रादेशिक विकास सेवा संवर्ग के लिए हैं। लेकिन वर्तमान में केवल 19 सीडीओ ही संवर्ग से हैं। जबकि 56 सीडीओ आईएएस अधिकारी हैं। प्रादेशिक विकास सेवा संगठन की ओर से कई बार राज्य सरकार से इस संबंध में न्याय की गुहार भी लगाई गई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रदेश में नगर निगम आयुक्त के पद पर वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी तैनात किए जाते थे। लेकिन अब अधिकांश नगर निगम में नगर आयुक्त के पद पर भी आईएएस अफसर ही तैनात किए जा रहे हैं। जिलाधिकारी बने बिना ही रिटायर हो रहे अफसर
पीसीएस से आईएएस बने अफसरों को जिलाधिकारी बनने का मौका भी ज्यादा नहीं मिलता। जिन प्रमोटी आईएएस अफसरों का राजनीतिक जुगाड़ या जातीय आधार मजबूत होता है, वह तो दो से तीन बार डीएम और मंडलायुक्त बनने में सफल हो जाते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में प्रमोटी अफसर ऐसे भी हैं, जिन्हें एक बार भी डीएम या मंडलायुक्त बनने का मौका नहीं मिला। वह शासन में भी विशेष सचिव पद से ही रिटायर हो गए। संस्कृति विभाग के विशेष सचिव रहे आनंद कुमार जिलाधिकारी बने बिना रिटायर हो गए। सामान्य प्रशासन विभाग के विशेष सचिव रामकेवल को भी जिलाधिकारी बनने का मौका नहीं मिला। —————— ये भी पढ़ें… प्रशांत कुमार स्थायी DGP बनेंगे या नहीं?:सिर्फ 3 दिन बचे; अब तक कमेटी नहीं बनी, 11 में से सिर्फ एक अफसर योगी के भरोसेमंद प्रदेश में स्थायी डीजीपी की तैनाती को लेकर सस्पेंस बरकरार है। कैबिनेट से नई नियमावली पास कराने के बाद भी अब तक सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया है। कैबिनेट में डीजीपी की नियुक्ति के लिए जिस कमेटी को गठित करने की बात की गई, वो भी गठित नहीं हो पाई। नई नियमावली के हिसाब से अगले 3 दिन में प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, तो मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार का स्थायी डीजीपी बनना मुश्किल हो जाएगा। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नई नियमावली आने के बाद भी इस प्रक्रिया में कहां बाधा आ रही है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तर प्रदेश सरकार को प्रमोटी आईपीएस अफसरों पर भरोसा नहीं है। प्रमोट होकर आईपीएस बने अफसरों को जिला संभालने का मौका कम ही मिल रहा है। इस समय सिर्फ 13 जिले के कप्तान प्रमोटी आईपीएस अफसर हैं। यह आंकड़ा दूसरी सरकारों से कम है। हालांकि प्रमोट होकर आईएएस अफसर बनने वालों की स्थिति ज्यादा बेहतर है। इस समय 23 प्रमोटी आईएएस अफसर डीएम हैं। यूपी में कॉडर स्ट्रेंथ के हिसाब से कुल आईपीएस के पदों में 33 प्रतिशत पद प्रमोशन से भरे जाते हैं, जबकि बाकी के पद डायरेक्ट भरे जाते हैं। मौजूदा समय में यूपी में आईपीएस की कॉडर स्ट्रेंथ 541 हैं। ऐसे में लगभग 180 आईपीएस प्रांतीय पुलिस सेवा से प्रोन्नति के जरिए भरे जाते हैं। लगभग ऐसा ही रेशियो जिलों की पोस्टिंग में भी अपनाया जाता रहा है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसमें भारी गिरावट आई है। क्या कहता है नियम?
यूपी में आईएएस और आईपीएस अफसरों के कुल पदों में 33 प्रतिशत पद राज्य सेवा के अफसरों के लिए आरक्षित हैं। आईएएस के कुल सेंक्शन पद 652 हैं। इसमें से 33 प्रतिशत यानी 198 अफसर राज्य सेवा के होते हैं, जो प्रमोशन के जरिए आईएएस बनते हैं। बाकी 67 फीसदी यानी 454 पद सीधी भर्ती के होते हैं। इसी तरह आईपीएस की कुल कॉडर स्ट्रेंथ 541 है। इसमें 180 पद प्रांतीय पुलिस सेवा के अफसरों को प्रमोशन देकर भरे जाते हैं। किसी भी राज्य में कॉडर स्ट्रेंथ केंद्र सरकार तय करती है। कई अफसरों की जिले में पोस्टिंग के बिना खत्म हो जाती है नौकरी
पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि हर पुलिस अफसर का सपना होता है कि वह जिले का कप्तान बने, यानी एसपी या एसएसपी बने। लेकिन प्रोन्नति पाए कम ही अफसरों को यह मौका मिल पाता है। ज्यादातर अफसर बिना जिले की कमान संभाले ही रिटायर हो जाते हैं। यह स्थिति पीसीएस से आईएएस बनने वाले और पीपीएस से आईपीएस बनने वाले अफसरों दोनों की है। प्रांतीय पुलिस सेवा के अफसरों का मानना है कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है। पीसीएस के मुकाबले उनके साथ भेदभाव हो रहा है। पूर्व आईजी आरके चतुर्वेदी बताते हैं कि एक ओर जहां 2007 बैच के पीपीएस अफसरों को प्रमोशन मिल चुका है और वे आईएएस बन चुके हैं। वहीं, पीपीएस संवर्ग में 1996 बैच के अफसरों को अब प्रमोशन देकर आईपीएस बनाया गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पीपीएस अफसरों की बड़ी संख्या में भर्ती कर ली गई और आईपीएस कॉडर में उसके अनुपात में पदों का सृजन नहीं हुआ। जो पद पहले से थे जहां तक पीपीएस अफसर पहुंच पाते थे, उनका कद सरकार ने बढ़ा दिया। मसलन जोन स्तर पर पहले आईजी की तैनाती होती थी। कई ऐसे प्रमोटी अफसर रहे हैं जो जोन की कमान संभाल चुके हैं। लेकिन अब यह संभव नहीं है क्याेंकि जोन के मुखिया का पद एडीजी कर दिया गया है। प्रमोटी अफसर एडीजी तक पहुंच भी नहीं पाता और रिटायर हो जाता है। जहां तक जिलों में तैनाती की बात है तो सबसे अधिक अनुभव प्रमोटी अफसरों के पास होता है और किसी भी परिस्थिति को हैंडिल करने में वे सक्षम होते हैं। वहीं, डायरेक्ट अफसरों की वजह से कई बार स्थितियां बिगड़ जाती हैं। सरकार को क्यों नहीं होता भरोसा?
प्रमोटी अफसरों को जिला न मिलने के पीछे की एक वजह ऊपरी कमाई बताई जाती है। उनको पता होता है कि किस तरह से ऊपरी कमाई की जा सकती है। वहीं, डायरेक्ट अफसर ज्यादा ईमानदार माने जाते हैं। हालांकि कई डायरेक्ट अफसर ऐसे रहे हैं जिनकी वजह से सरकारों की फजीहत भी हुई है। मसलन करप्शन के आरोप में ही महोबा के एसपी रहे मणिलाल पाटीदार को पहले निलंबित किया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त किया गया। नोएडा में एसएसपी रहते हुए वैभव कृष्ण ने जिन आईपीएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे उसमें आधे से ज्यादा डायरेक्ट आईपीएस थे। फील्ड में अच्छा काम करने वालों पर ही भरोसा
पूर्व मुख्य सचिव आरके तिवारी कहते हैं- जो अधिकारी फील्ड में अच्छा काम कर पाते हैं सरकार उन पर भरोसा करती है। जो सरकार की मंशा के अनुरूप डिलीवरी दे सकते हैं, बेहतर परफॉर्मेंस दे सकते हैं उन्हें फील्ड में पोस्टिंग दी जाती है। यूपी में फिलहाल कई जिलों में डीएम और मंडलायुक्त प्रमोटी अफसर ही लगे हैं। ऐसे भी कई डायरेक्ट आईएएस अफसर हैं जिनका कामकाज अच्छा नहीं है, सरकार ने उन्हें लंबे समय से फील्ड पोस्टिंग नहीं दी है। पूर्व मुख्य सचिव आलाेक रंजन कहते हैं- आईएएस में 33 प्रतिशत पद पीसीएस से पदोन्नत होने वाले अफसरों के लिए आरक्षित हैं। लेकिन ऐसा कोई कोटा तय नहीं है कि प्रमोटी अफसर को कितने जिलों में डीएम लगाया जाएगा। प्रमोटी अफसर काबिलियत में किसी से कम नहीं होते हैं। उन्हें भी फील्ड पोस्टिंग में पर्याप्त अवसर दिया जाना है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि किसी एक बैच में एक साथ काफी संख्या में पीसीएस से आईएएस बनते हैं। तो फिर उनमें से कुछ लोग डीएम बनने से वंचित रह जाते हैं। लेकिन प्रमोटी अफसरों को भी कम से कम एक बार डीएम बनने का अवसर दिया जाना चाहिए। हर आईएएस की इच्छा होती है कि वह एक बार डीएम अवश्य बने। अब सवाल उठता है पहले की सरकारों में क्या स्थिति थी? पूर्व की सरकारों में मिलती रही तरजीह
डायरेक्ट आईपीएस के मुकाबले प्रमोटी आईपीएस अफसरों को पूर्व की सरकार में वरीयता मिलती रही है। मसलन अखिलेश यादव की सरकार में भी एक समय में 28 अफसर जिलों के कप्तान रहे। वहीं, मुलायम सिंह और मायावती सरकार में यह आंकड़ा 35 से 40 अफसरों तक रहा है। प्रमोटी अफसरों को जिला मिलने का इंतजार
हाल ही में प्रदेश के 22 पीपीएस अफसरों को प्रमोशन मिला है। यह अफसर या तो जिलों में तैनात हैं या फिर पीएसी व अन्य नान डीएफ में तैनात हैं। ऐसे में इन्हें अब एसपी के पद पर तैनात किया जाना है। जिलों में पहले से ही प्रमोटी आईपीएस अफसरों की संख्या कम है। सवाल उठना वाजिब है कि क्या सरकार 33 प्रतिशत के रेशियो में जिलों में भी कोटा देगी या कुछ प्रमोटी अफसरों को फील्ड से हटाकर उनके स्थान पर हाल ही में प्रमोशन पाए अफसरों को मौका मिलेगा। सीडीओ में भी आईएएस ने हक मारा
प्रदेश में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) के 75 पद हैं। इसमें 28 पद प्रादेशिक विकास सेवा संवर्ग के लिए हैं। लेकिन वर्तमान में केवल 19 सीडीओ ही संवर्ग से हैं। जबकि 56 सीडीओ आईएएस अधिकारी हैं। प्रादेशिक विकास सेवा संगठन की ओर से कई बार राज्य सरकार से इस संबंध में न्याय की गुहार भी लगाई गई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रदेश में नगर निगम आयुक्त के पद पर वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी तैनात किए जाते थे। लेकिन अब अधिकांश नगर निगम में नगर आयुक्त के पद पर भी आईएएस अफसर ही तैनात किए जा रहे हैं। जिलाधिकारी बने बिना ही रिटायर हो रहे अफसर
पीसीएस से आईएएस बने अफसरों को जिलाधिकारी बनने का मौका भी ज्यादा नहीं मिलता। जिन प्रमोटी आईएएस अफसरों का राजनीतिक जुगाड़ या जातीय आधार मजबूत होता है, वह तो दो से तीन बार डीएम और मंडलायुक्त बनने में सफल हो जाते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में प्रमोटी अफसर ऐसे भी हैं, जिन्हें एक बार भी डीएम या मंडलायुक्त बनने का मौका नहीं मिला। वह शासन में भी विशेष सचिव पद से ही रिटायर हो गए। संस्कृति विभाग के विशेष सचिव रहे आनंद कुमार जिलाधिकारी बने बिना रिटायर हो गए। सामान्य प्रशासन विभाग के विशेष सचिव रामकेवल को भी जिलाधिकारी बनने का मौका नहीं मिला। —————— ये भी पढ़ें… प्रशांत कुमार स्थायी DGP बनेंगे या नहीं?:सिर्फ 3 दिन बचे; अब तक कमेटी नहीं बनी, 11 में से सिर्फ एक अफसर योगी के भरोसेमंद प्रदेश में स्थायी डीजीपी की तैनाती को लेकर सस्पेंस बरकरार है। कैबिनेट से नई नियमावली पास कराने के बाद भी अब तक सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया है। कैबिनेट में डीजीपी की नियुक्ति के लिए जिस कमेटी को गठित करने की बात की गई, वो भी गठित नहीं हो पाई। नई नियमावली के हिसाब से अगले 3 दिन में प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, तो मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार का स्थायी डीजीपी बनना मुश्किल हो जाएगा। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नई नियमावली आने के बाद भी इस प्रक्रिया में कहां बाधा आ रही है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर