योगी सरकार में कहां है IAS-IPS एसोसिएशन?:दुर्गा शक्ति नागपाल मामले में झुक गई थी सपा सरकार; एक्सपर्ट बोले- अधिकारी डरपोक हो गए

योगी सरकार में कहां है IAS-IPS एसोसिएशन?:दुर्गा शक्ति नागपाल मामले में झुक गई थी सपा सरकार; एक्सपर्ट बोले- अधिकारी डरपोक हो गए

ब्यूरोक्रेसी की महत्वपूर्ण कड़ी IAS और IPS अफसरों की एसोसिएशन सात साल से निष्क्रिय है। इसकी आखिरी बैठक कब हुई, ये न तो सेवा में आए नए आईएएस अफसरों को याद है और न ही आईपीएस को। वजह- प्रदेश में 2017 में भाजपा सरकार आने के बाद से केवल एक बार ही बैठक हुई। इसके बाद न तो कभी आईएएस वीक मनाया गया और न ही कोई बैठक हुई। पहले यही IAS अपनों को बचाने के लिए सरकार से मोर्चा लेते थे। किसी को पोस्टिंग नहीं मिलती थी तो सीधे सरकार से सवाल करते थे। मगर अब ऐसा नहीं है। यही हाल IPS एसोसिएशन का है। आखिर क्या वजह है कि ये संगठन खामोश हैं। क्या इसके पीछे सरकारी दबाव है या फिर ब्यूरोक्रेसी के भीतर की खेमेबाजी और प्राथमिकता की कमी ने इन्हें निष्क्रिय कर दिया है? दैनिक भास्कर की इस खास रिपोर्ट में सारे सवालों के जवाब तलाशेंगे… पूर्व मुख्य सचिव और अपने जमाने में IAS एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे आलोक रंजन बताते हैं कि आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) के गठन के समय इसकी एसोसिएशन पर जोर दिया गया था। IAS एसोसिएशन कोई यूनियन नहीं होता और न ही ये यूनियन की तरह धरना-प्रदर्शन, हड़ताल और आंदोलन करते हैं। जो स्वाभाविक मांगें होतीं, उन्हीं को सरकार के सामने रखते थे। न कोई मीटिंग, न ही कोई रेजोल्यूशन पास हुआ आलोक रंजन कहते हैं कि बीते कई साल से न तो कोई मीटिंग हुई है और न ही कोई रेजोल्यूशन पास हुआ। पहले IAS वीक होता था, मीटिंग होती थी। कॉन्फ्रेंस होती थी, सभी अफसरों की फैमिली आपस में मिलती थीं। जूनियर-सीनियर के बीच संवाद होता था, चाहे वह किसी भी पोस्ट पर क्यों न हो। क्रिकेट मैच हुआ करता था। लोग मिला-जुला करते थे। अच्छी चीज थी, सोशल अट्रेक्शन था। सीनियर और जूनियर के बीच की दूरी कम होती थी। कॉडर रिव्यू का मामला उठता था। पूर्व आईएएस आलोक रंजन कहते हैं कि कई ऐसे अफसर हैं, जो कई साल से निष्क्रिय पोस्ट पर पड़े हुए हैं। जबकि कई ऐसे हैं, जिन्हें तीन–तीन चार–चार चार्ज मिले हैं। यह सारी बातें एसोसिएशन के माध्यम से सरकार तक पहुंचाई जाती थीं। सरकार उस पर अमल भी करती थी। IAS एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे आलोक रंजन बताते हैं कि जो अफसर लंबे समय तक निष्क्रिय पोस्ट पर होता है, उसका भविष्य प्रभावित होता है। वह आगे नहीं बढ़ पाएगा। इसी तरह अगर किसी के पास तीन–तीन, चार-चार चार्ज हैं तो वह अपने काम के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। पहले आईएएस अफसरों का कॉडर रिव्यू हर पांच साल पर होता था और उसके हिसाब से पद घटाए या बढ़ाए जाने की सिफारिशें होती थीं। लेकिन 2016 के बाद से उत्तर प्रदेश में कॉडर रिव्यू भी नहीं हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार बताते हैं कि पहले IAS एसोसिएशन की बैठक में पूरे साल के लिए रेजोल्यूशन पास होता था। लोग अपनी बात रखते थे। किसी के साथ नाइंसाफी हो रही है तो उसकी बात शासन-सत्ता से करते थे। अब अफसर इतने कमजोर हो गए हैं कि वे अपनी बात रखने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। …जब अपनों के बीच से चुने ‘महाभ्रष्ट अफसर’ राजेंद्र कुमार कहते हैं कि ‘मुझे याद है कि 1996 में IAS वीक के दौरान एसोसिएशन की बैठक थी। बैठक में इन अफसरों ने ही अपनों के बीच से सबसे भ्रष्ट अफसर चुनने का फैसला किया। तीन अफसरों के नाम मीटिंग में तय किए गए और उन्हें महाभ्रष्ट अफसर का खिताब दिया गया। दिलचस्प बात यह रही कि जिन तीन नामों को तय किया गया, उसमें से बाद में दो लोगों को भ्रष्टाचार के ही आरोप में जेल भी जाना पड़ा।’ दुर्गा शक्ति नागपाल का मुद्दा उठाकर कराई थी बहाली एसोसिएशन की भी अपनी ताकत होती है। सपा की सरकार में IAS अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल को उनकी पहली पोस्टिंग में ही अखिलेश यादव ने किसी बात से नाराज होकर निलंबित कर दिया। इसे लेकर आईएएस एसोसिएशन नाराज हो गई। आपात बैठक बुलाई गई, सरकार के फैसले की आलोचना की गई। बाद में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के सामने एसोसिएशन के लोग पेश हुए। अखिलेश यादव को दुर्गा शक्ति नागपाल को बहाल करना पड़ा था। राजेंद्र कुमार कहते हैं कि IAS एसोसिएशन पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम का विरोध करता था। जब ये एसोसिएशन निष्क्रिय हुआ तो यूपी में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू हो गया। पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम से आम लोगों को परेशानी बढ़ी है, न कि आसान हुई है। आईएएस वीक या एसोसिएशन की बैठक न होने की एक वजह यह भी है कि सरकारें अपनी पसंद के अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करती हैं, जिससे ब्यूरोक्रेसी में खेमेबाजी बढ़ी है। यह स्थिति IAS और IPS एसोसिएशन की निष्क्रियता का एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा, सरकारी दबाव और सख्त कार्रवाई का डर भी अधिकारियों को इन संगठनों की गतिविधियों से दूर रख रहा है। कौन होता है एसोसिएशन अध्यक्ष, कैसे होता है चुनाव? आलोक रंजन बताते हैं कि आईएएस एसोसिएशन और आईपीएस एसोसिएशन का अध्यक्ष वरिष्ठतम अधिकारी होता है। अगर वह मुख्य सचिव या डीजीपी है तो उसके बाद वाले अधिकारी को यह जिम्मेदारी दी जाती है। वही अध्यक्ष जिसे चाहता है, सचिव बना लेता है। आम तौर पर सचिव का नाम मीटिंग में तय होता है। लेकिन बीते सात साल से आईएएस एसोसिएशन की कोई बड़ी मीटिंग हुई ही नहीं। ऐसे में मौजूदा समय में अनिल कुमार एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। वहीं पंकज यादव सचिव हैं। इसी तरह आईपीएस एसोसिएशन में सबसे सीनियर अधिकारी के तौर पर 1989 बैच के आईपीएस आशीष गुप्ता अध्यक्ष हैं, जिनका 8 जून को रिटायरमेंट है। यहां सचिव का पद रिक्त है। 2016 में आईपीएस नीलाब्जा चौधरी को सचिव चुना गया था, उसके बाद से कोई नया सचिव नहीं बना। ———————— ये खबर भी पढ़ें… सेंगोल-संविधान के नाम पर भाजपा को घेर रही सपा:कहा- देश राजा के डंडे से नहीं चलेगा; क्या यह राहुल गांधी से मुद्दा झटकने की तैयारी? समाजवादी पार्टी ने संसद भवन से सेंगोल हटाकर उसकी जगह संविधान की कॉपी रखने की मांग फिर उठाई है। सपा सांसद आरके चौधरी ने इसके खिलाफ बाकायदा अभियान शुरू कर दिया है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब सपा ने सेंगोल का विरोध किया है। सपा सांसद आरके चौधरी पहले भी ये मुद्दा उठाते रहे हैं। लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि संसद में स्थापना के 2 साल बाद इसे लेकर अब क्यों विवाद छिड़ा? पढ़ें पूरी खबर ब्यूरोक्रेसी की महत्वपूर्ण कड़ी IAS और IPS अफसरों की एसोसिएशन सात साल से निष्क्रिय है। इसकी आखिरी बैठक कब हुई, ये न तो सेवा में आए नए आईएएस अफसरों को याद है और न ही आईपीएस को। वजह- प्रदेश में 2017 में भाजपा सरकार आने के बाद से केवल एक बार ही बैठक हुई। इसके बाद न तो कभी आईएएस वीक मनाया गया और न ही कोई बैठक हुई। पहले यही IAS अपनों को बचाने के लिए सरकार से मोर्चा लेते थे। किसी को पोस्टिंग नहीं मिलती थी तो सीधे सरकार से सवाल करते थे। मगर अब ऐसा नहीं है। यही हाल IPS एसोसिएशन का है। आखिर क्या वजह है कि ये संगठन खामोश हैं। क्या इसके पीछे सरकारी दबाव है या फिर ब्यूरोक्रेसी के भीतर की खेमेबाजी और प्राथमिकता की कमी ने इन्हें निष्क्रिय कर दिया है? दैनिक भास्कर की इस खास रिपोर्ट में सारे सवालों के जवाब तलाशेंगे… पूर्व मुख्य सचिव और अपने जमाने में IAS एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे आलोक रंजन बताते हैं कि आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) के गठन के समय इसकी एसोसिएशन पर जोर दिया गया था। IAS एसोसिएशन कोई यूनियन नहीं होता और न ही ये यूनियन की तरह धरना-प्रदर्शन, हड़ताल और आंदोलन करते हैं। जो स्वाभाविक मांगें होतीं, उन्हीं को सरकार के सामने रखते थे। न कोई मीटिंग, न ही कोई रेजोल्यूशन पास हुआ आलोक रंजन कहते हैं कि बीते कई साल से न तो कोई मीटिंग हुई है और न ही कोई रेजोल्यूशन पास हुआ। पहले IAS वीक होता था, मीटिंग होती थी। कॉन्फ्रेंस होती थी, सभी अफसरों की फैमिली आपस में मिलती थीं। जूनियर-सीनियर के बीच संवाद होता था, चाहे वह किसी भी पोस्ट पर क्यों न हो। क्रिकेट मैच हुआ करता था। लोग मिला-जुला करते थे। अच्छी चीज थी, सोशल अट्रेक्शन था। सीनियर और जूनियर के बीच की दूरी कम होती थी। कॉडर रिव्यू का मामला उठता था। पूर्व आईएएस आलोक रंजन कहते हैं कि कई ऐसे अफसर हैं, जो कई साल से निष्क्रिय पोस्ट पर पड़े हुए हैं। जबकि कई ऐसे हैं, जिन्हें तीन–तीन चार–चार चार्ज मिले हैं। यह सारी बातें एसोसिएशन के माध्यम से सरकार तक पहुंचाई जाती थीं। सरकार उस पर अमल भी करती थी। IAS एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे आलोक रंजन बताते हैं कि जो अफसर लंबे समय तक निष्क्रिय पोस्ट पर होता है, उसका भविष्य प्रभावित होता है। वह आगे नहीं बढ़ पाएगा। इसी तरह अगर किसी के पास तीन–तीन, चार-चार चार्ज हैं तो वह अपने काम के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। पहले आईएएस अफसरों का कॉडर रिव्यू हर पांच साल पर होता था और उसके हिसाब से पद घटाए या बढ़ाए जाने की सिफारिशें होती थीं। लेकिन 2016 के बाद से उत्तर प्रदेश में कॉडर रिव्यू भी नहीं हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार बताते हैं कि पहले IAS एसोसिएशन की बैठक में पूरे साल के लिए रेजोल्यूशन पास होता था। लोग अपनी बात रखते थे। किसी के साथ नाइंसाफी हो रही है तो उसकी बात शासन-सत्ता से करते थे। अब अफसर इतने कमजोर हो गए हैं कि वे अपनी बात रखने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। …जब अपनों के बीच से चुने ‘महाभ्रष्ट अफसर’ राजेंद्र कुमार कहते हैं कि ‘मुझे याद है कि 1996 में IAS वीक के दौरान एसोसिएशन की बैठक थी। बैठक में इन अफसरों ने ही अपनों के बीच से सबसे भ्रष्ट अफसर चुनने का फैसला किया। तीन अफसरों के नाम मीटिंग में तय किए गए और उन्हें महाभ्रष्ट अफसर का खिताब दिया गया। दिलचस्प बात यह रही कि जिन तीन नामों को तय किया गया, उसमें से बाद में दो लोगों को भ्रष्टाचार के ही आरोप में जेल भी जाना पड़ा।’ दुर्गा शक्ति नागपाल का मुद्दा उठाकर कराई थी बहाली एसोसिएशन की भी अपनी ताकत होती है। सपा की सरकार में IAS अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल को उनकी पहली पोस्टिंग में ही अखिलेश यादव ने किसी बात से नाराज होकर निलंबित कर दिया। इसे लेकर आईएएस एसोसिएशन नाराज हो गई। आपात बैठक बुलाई गई, सरकार के फैसले की आलोचना की गई। बाद में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के सामने एसोसिएशन के लोग पेश हुए। अखिलेश यादव को दुर्गा शक्ति नागपाल को बहाल करना पड़ा था। राजेंद्र कुमार कहते हैं कि IAS एसोसिएशन पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम का विरोध करता था। जब ये एसोसिएशन निष्क्रिय हुआ तो यूपी में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू हो गया। पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम से आम लोगों को परेशानी बढ़ी है, न कि आसान हुई है। आईएएस वीक या एसोसिएशन की बैठक न होने की एक वजह यह भी है कि सरकारें अपनी पसंद के अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करती हैं, जिससे ब्यूरोक्रेसी में खेमेबाजी बढ़ी है। यह स्थिति IAS और IPS एसोसिएशन की निष्क्रियता का एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा, सरकारी दबाव और सख्त कार्रवाई का डर भी अधिकारियों को इन संगठनों की गतिविधियों से दूर रख रहा है। कौन होता है एसोसिएशन अध्यक्ष, कैसे होता है चुनाव? आलोक रंजन बताते हैं कि आईएएस एसोसिएशन और आईपीएस एसोसिएशन का अध्यक्ष वरिष्ठतम अधिकारी होता है। अगर वह मुख्य सचिव या डीजीपी है तो उसके बाद वाले अधिकारी को यह जिम्मेदारी दी जाती है। वही अध्यक्ष जिसे चाहता है, सचिव बना लेता है। आम तौर पर सचिव का नाम मीटिंग में तय होता है। लेकिन बीते सात साल से आईएएस एसोसिएशन की कोई बड़ी मीटिंग हुई ही नहीं। ऐसे में मौजूदा समय में अनिल कुमार एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। वहीं पंकज यादव सचिव हैं। इसी तरह आईपीएस एसोसिएशन में सबसे सीनियर अधिकारी के तौर पर 1989 बैच के आईपीएस आशीष गुप्ता अध्यक्ष हैं, जिनका 8 जून को रिटायरमेंट है। यहां सचिव का पद रिक्त है। 2016 में आईपीएस नीलाब्जा चौधरी को सचिव चुना गया था, उसके बाद से कोई नया सचिव नहीं बना। ———————— ये खबर भी पढ़ें… सेंगोल-संविधान के नाम पर भाजपा को घेर रही सपा:कहा- देश राजा के डंडे से नहीं चलेगा; क्या यह राहुल गांधी से मुद्दा झटकने की तैयारी? समाजवादी पार्टी ने संसद भवन से सेंगोल हटाकर उसकी जगह संविधान की कॉपी रखने की मांग फिर उठाई है। सपा सांसद आरके चौधरी ने इसके खिलाफ बाकायदा अभियान शुरू कर दिया है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब सपा ने सेंगोल का विरोध किया है। सपा सांसद आरके चौधरी पहले भी ये मुद्दा उठाते रहे हैं। लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि संसद में स्थापना के 2 साल बाद इसे लेकर अब क्यों विवाद छिड़ा? 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