साल 1967, अक्टूबर का महीना, देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी। पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन कांग्रेस छोड़कर उत्तर-पूर्व बंबई सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। हरियाणा के मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह उनके चुनाव प्रचार के लिए बंबई पहुंचे थे। इसी बीच राव के पास खबर आई कि गया लाल उनके गठबंधन से अलग हो गए हैं। इधर, हरियाणा में चर्चा जोर पकड़ रही थी कि राव साहब बहुमत खो चुके हैं। राव प्रचार छोड़कर बंबई से सीधे दिल्ली के लिए निकल गए। उन्होंने गया लाल से भी बोल दिया कि वो भी दिल्ली पहुंचें। दोनों दिल्ली में मिले और एक ही कार से चंडीगढ़ में सीएम हाउस पहुंचे। वहां मीडिया पहले से उनका इंतजार कर रही थी। राव जैसे ही गाड़ी से उतर कर अंदर जाने लगे, पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। गया लाल के पार्टी छोड़ने और सरकार के अल्पमत में होने को लेकर सवाल पूछने लगे। राव हंस पड़े। कुछ पलों बाद गया लाल भी गाड़ी से उतरे। राव ने कहा- गया लाल वापस आ गए हैं। जो लोग सरकार गिराना चाहते थे, उनकी साजिश नाकाम हो गई है। तब राव बीरेंद्र की सरकार तो बच गई, लेकिन गया लाल ने दल बदलना नहीं छोड़ा। उन्होंने 24 घंटे के भीतर तीन बार दल बदला। विधायकों के बार-बार दल बदलने से तंग आकर राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। राव साहब महज 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के दूसरे एपिसोड में राव बीरेंद्र सिंह के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… फरवरी 1967, नए-नवेले राज्य हरियाणा की गलियों में पहले विधानसभा चुनाव की गूंज थी। संयुक्त पंजाब की तरह हरियाणा में भी कांग्रेस का दबदबा था। चुनाव के नतीजे इस तस्वीर को साफ बयां कर रहे थे। कांग्रेस को 81 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत मिली। वहीं, जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2 और स्वतंत्र पार्टी को 3 सीटें मिलीं। जबकि 16 निर्दलीय विधायक भी जीते। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चुनाव से पहले चेहरा मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा थे। नतीजों के बाद शर्मा फिर से सीएम बनने के लिए पूरी जोर-आजमाइश कर रहे थे। वे एक-एक करके अपने विरोधियों को ठिकाने लगा रहे थे। देवीलाल और शेर सिंह जैसे दिग्गजों को तो उन्होंने विधानसभा चुनाव ही नहीं लड़ने दिया। जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह की सीट पर अपने खेमे के निर्दलीय उम्मीदवार से हरवाकर उन्हें भी रास्ते से हटा दिया। हालांकि तमाम हथकंडों के बाद भी एक शख्स ऐसा था, जो भगवत दयाल शर्मा के लिए चुनौती बना हुआ था। वह इंदिरा गांधी की पसंद था और ज्यादातर विधायक भी उसके समर्थन में थे। नाम राव बीरेंद्र सिंह। अहीरवाल राज के वंशज राव बीरेंद्र सिंह राजनीति में आने से पहले अंग्रेजों की फौज में कैप्टन रह चुके थे। दूसरे विश्व युद्ध में शामिल भी रहे थे। इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा से कहा कि वो राव बीरेंद्र को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं, लेकिन भगवत दयाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए सिंडिकेट से पैरवी की। दरअसल, तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी सिंडिकेट के बूते वे दोबारा मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन राव बगावत पर उतर आए। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे भगवत दयाल की सरकार को 13 दिन भी नहीं चलने देंगे। इंदिरा ने भगवत दयाल सरकार गिराने का जिम्मा देवीलाल को दिया भगवत दयाल भांप चुके थे कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है। इसलिए उन्होंने अपने करीबियों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ा। नाराज विधायकों को बगावत का मौका मिल गया। वे राव बीरेंद्र से संपर्क साधने में जुट गए। हरियाणा में जो कुछ हो रहा था, उस पर केंद्र की भी नजर थी। इंदिरा गांधी भी बैक गेट से अपनी ही सरकार गिराने की बिसात बिछा रही थीं। इसका दावा भगवत दयाल शर्मा के निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा रामस्वरूप करते हैं। एक इंटरव्यू में रामस्वरूप बताते हैं- ‘प्रधानमंत्री इंदिरा खुद चाहतीं थीं कि भगवत दयाल की सरकार किसी तरीके से गिर जाए। उन्होंने भगवत दयाल के विरोधी और कांग्रेस के कद्दावर नेता चौधरी देवीलाल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी।’ इंदिरा गांधी के इशारे पर चौधरी देवीलाल, भगवत दयाल सरकार को गिराने में जुट चुके थे, लेकिन इसके लिए जरूरी था कि राव बीरेंद्र सिंह के साथ उनके सियासी मतभेद दूर हों। लेखक के. गोपी यादव लिखते हैं, ‘हरियाणा बनने से पहले देवीलाल और राव के बीच गहरी दोस्ती थी, बाद में दोनों के संबंध बिगड़ गए। दोबारा संबंध ठीक करने के लिए देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव को दिल्ली में अपने बंगले पर डिनर के लिए बुलाया। राव डिनर पर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे मान गए। राव उसके घर जैसे ही पहुंचे, उन्हें वहां देवीलाल मिल गए। राव बिल्डर पर गुस्सा हो गए। बिल्डर ने हिम्मत जुटाते हुए राव साहब से कहा कि देवीलाल चाहते हैं कि आप मुख्यमंत्री बनें और वह तहे दिल से आपका सहयोग करेंगे। इस पर राव ने देवीलाल की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो इन पर भरोसा नहीं कर सकते। राव का लहजा और लफ्ज दोनों ही सख्त थे, लेकिन देवीलाल ने संयम नहीं खोया। उन्होंने राव को मना लिया। उसी रोज डिनर की टेबल पर पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने का प्लान बना।’ अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ लड़ा स्पीकर का चुनाव और जीत भी गए 17 मार्च 1967, भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बने एक हफ्ता बीत चुका था। अब स्पीकर चुनने की बारी थी। भगवत दयाल शर्मा ने जींद से विधायक लाला दयाकिशन का नाम स्पीकर के लिए आगे बढ़ाया। इस बीच उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम स्पीकर पद के लिए प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री भगवत दयाल के खेमे में खलबली मच गई। वोटिंग हुई तो दयाकिशन को 37 वोट मिले, जबकि राव को 28 विपक्षी और कांग्रेस के 12 असंतुष्ट विधायकों को मिलाकर कुल 40 वोट मिले। इसका सीधा मतलब था कि भगवत दयाल शर्मा की सरकार खतरे में है। आखिर बहुमत परीक्षण की बारी भी आई। स्पीकर का चुनाव जीतने के बाद भी बीरेंद्र सिंह का खेमा एक विधायक को लेकर चिंतित था। वो थे चौधरी बंसीलाल, जो पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। राव साहब जानते थे कि अगर बंसीलाल विधानसभा पहुंच गए, तो खेल बिगड़ सकता है। ऐसे में योजना बनाई गई कि बंसीलाल को फ्लोर टेस्ट वाले दिन सदन में आने ही न दिया जाए। पूर्व विधायक और लेखक भीम सिंह दहिया अपनी किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘बंसीलाल को सदन से दूर रखने की जिम्मेदारी एक अफसर को सौंपी गई। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। थोड़ी देर बाद जब वे बाथरूम में गए, तो अफसर ने दरवाजा बंद कर दिया। वे काफी देर तक आवाज लगाते रहे, लेकिन दरवाजा तब तक नहीं खोला गया, जब तक फ्लोर टेस्ट में भगवत दयाल की सरकार गिरा नहीं दी गई।’ भगवत दयाल की सरकार गिराने के बाद कांग्रेस से बागी हुए 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम की नई पार्टी बनाई। 16 निर्दलीय विधायकों ने नवीन हरियाणा पार्टी बनाई। 20 मार्च 1967 को कांग्रेस, इन सभी को मिलाकर हरियाणा संयुक्त विधायक दल पार्टी का गठन किया। चौधरी देवीलाल को इसका संयोजक बनाया गया। चार दिन बाद यानी, 24 मार्च को राव बीरेंद्र सिंह ने 15 मंत्रियों के साथ हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस तरह पहली बार राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर साथ देने की कसम खाई सीएम बनने के बाद भी राव बीरेंद्र के मन में देवीलाल को लेकर संशय बना हुआ था। के. गोपी यादव लिखते हैं- ‘देवीलाल ने संयुक्त विधायक दल की सरकार के सभी समर्थक विधायकों के सामने गंगाजल से भरी हांडी में नमक डालकर कसम खाई कि अगर वे किसान-मजदूर हितैषी राव की सरकार के साथ विश्वासघात करेंगे, तो वे हांडी में डाले गए नमक की तरह घुल जाएंगे। इसके बाद राव ने उनसे पूछा कि मुझे क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। देवीलाल ने कहा कि हमारी कोई शर्त नहीं है, लेकिन राव को अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उनका मन कह रहा था कि जरूर कुछ ऐसा है जिसे छिपाया जा रहा है। तब देवीलाल ने कहा कि राव साहब, अगर आपको उचित लगे तो चांदराम को उद्योग मंत्री बना दीजिए। राव ने चांदराम को मंत्री बनाया, लेकिन उन्हें उद्योग विभाग नहीं दिया।’ देवीलाल ने ढाई महीने में ही तोड़ दी अपनी कसम राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बने अभी कुछ ही महीने हुए थे कि उन्होंने देवीलाल को तवज्जो देना बंद कर दिया। देवीलाल, सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी भी जाहिर करने लगे। 5 जून 1967 को देवीलाल ने लेटर जारी किया, जिस पर 13 विधायकों और मंत्रियों के हस्ताक्षर थे। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच रिश्ते फिर बिगड़ने लगे। 13 जुलाई को देवीलाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा- ‘राव बीरेंद्र सिंह की सरकार जनसंघ से प्रभावित है। इसलिए हरियाणा विरोधी इस सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया है। देवीलाल ने राव पर कांग्रेस से साठगांठ का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि राव इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने का वचन दिया जाए तो वे कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे।’ हालांकि राव ने इस आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि देवीलाल की नाराजगी का असली कारण उन्हें मंत्री न बनाया जाना है। सरकार बनाने पहुंचे देवीलाल तो राज्यपाल ने ठुकराया प्रस्ताव 14 जुलाई को संयुक्त विधायक दल ने 38 विधायकों के साथ बैठक की और देवीलाल को निष्कासित कर दिया। देवीलाल ने तुरंत कांग्रेस से समझौता कर लिया और राव सरकार का तख्तापलट करने में जुट गए। दावा किया जाता है कि कांग्रेस हाईकमान समझौते के तहत देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी तैयार हो गया था। बशर्तें वे संयुक्त मोर्चे के कुछ विधायकों को अपने साथ ले आएं। राव को इसकी भनक लग चुकी थी। 15 जुलाई को अचानक राव बीरेंद्र सिंह ने राज्यपाल को मंत्रिमंडल का त्यागपत्र दे दिया। उनका मकसद देवीलाल समर्थकों को मंत्रिमंडल से हटाकर नया मंत्रिमंडल बनाना था। राव जब तक अपनी योजना को अमलीजामा पहना पाते, उससे पहले ही देवीलाल 51 विधायकों के समर्थन का दावा लेकर राज्यपाल के पास पहुंच गए, लेकिन राज्यपाल ने यह कहते हुए देवीलाल का दावा खारिज कर दिया कि सूची में विधायकों के साइन नहीं हैं। हालांकि कहा जाता है कि उस पत्र में विधायकों के दस्तखत थे। राज्यपाल ने राव बीरेंद्र सिंह को फिर से मंत्रिमंडल बनाने को कहा। उसी दिन 15 जुलाई को राव के नए मंत्रिमंडल ने शपथ ली। इस बार मंत्रिमंडल में देवीलाल के करीबी चांदराम और मनीराम गोदारा को शामिल नहीं किया गया। इससे नाराज देवीलाल समर्थक मुख्य संसदीय सचिव जगन्नाथ ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। अगले चार महीने यानी नवंबर तक दोनों खेमों में सियासी उठापटक चलती रही। कभी देवीलाल के सहयोगी टूटकर संयुक्त मोर्चे में शामिल होते, तो कभी संयुक्त मोर्चे के विधायक को तोड़कर देवीलाल अपने पाले में लाते। 17 नवंबर 1967 को राज्यपाल वीएन चक्रवर्ती ने हरियाणा की राजनीतिक उठापटक को लेकर राष्ट्रपति से विधानसभा भंग करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने 21 नवंबर 1967 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। जबकि देवीलाल कांग्रेस में शामिल हो गए। अप्रैल-मई 1968 में हरियाणा में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। वोटों की गिनती हुई तो कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं। इस बार बंसीलाल को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया। वही बंसीलाल जिन्हें एक साल पहले भगवत दयाल की सरकार गिराने के लिए बाथरूम में बंद कर दिया गया था। साल 1967, अक्टूबर का महीना, देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी। पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन कांग्रेस छोड़कर उत्तर-पूर्व बंबई सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। हरियाणा के मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह उनके चुनाव प्रचार के लिए बंबई पहुंचे थे। इसी बीच राव के पास खबर आई कि गया लाल उनके गठबंधन से अलग हो गए हैं। इधर, हरियाणा में चर्चा जोर पकड़ रही थी कि राव साहब बहुमत खो चुके हैं। राव प्रचार छोड़कर बंबई से सीधे दिल्ली के लिए निकल गए। उन्होंने गया लाल से भी बोल दिया कि वो भी दिल्ली पहुंचें। दोनों दिल्ली में मिले और एक ही कार से चंडीगढ़ में सीएम हाउस पहुंचे। वहां मीडिया पहले से उनका इंतजार कर रही थी। राव जैसे ही गाड़ी से उतर कर अंदर जाने लगे, पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। गया लाल के पार्टी छोड़ने और सरकार के अल्पमत में होने को लेकर सवाल पूछने लगे। राव हंस पड़े। कुछ पलों बाद गया लाल भी गाड़ी से उतरे। राव ने कहा- गया लाल वापस आ गए हैं। जो लोग सरकार गिराना चाहते थे, उनकी साजिश नाकाम हो गई है। तब राव बीरेंद्र की सरकार तो बच गई, लेकिन गया लाल ने दल बदलना नहीं छोड़ा। उन्होंने 24 घंटे के भीतर तीन बार दल बदला। विधायकों के बार-बार दल बदलने से तंग आकर राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। राव साहब महज 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के दूसरे एपिसोड में राव बीरेंद्र सिंह के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… फरवरी 1967, नए-नवेले राज्य हरियाणा की गलियों में पहले विधानसभा चुनाव की गूंज थी। संयुक्त पंजाब की तरह हरियाणा में भी कांग्रेस का दबदबा था। चुनाव के नतीजे इस तस्वीर को साफ बयां कर रहे थे। कांग्रेस को 81 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत मिली। वहीं, जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2 और स्वतंत्र पार्टी को 3 सीटें मिलीं। जबकि 16 निर्दलीय विधायक भी जीते। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चुनाव से पहले चेहरा मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा थे। नतीजों के बाद शर्मा फिर से सीएम बनने के लिए पूरी जोर-आजमाइश कर रहे थे। वे एक-एक करके अपने विरोधियों को ठिकाने लगा रहे थे। देवीलाल और शेर सिंह जैसे दिग्गजों को तो उन्होंने विधानसभा चुनाव ही नहीं लड़ने दिया। जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह की सीट पर अपने खेमे के निर्दलीय उम्मीदवार से हरवाकर उन्हें भी रास्ते से हटा दिया। हालांकि तमाम हथकंडों के बाद भी एक शख्स ऐसा था, जो भगवत दयाल शर्मा के लिए चुनौती बना हुआ था। वह इंदिरा गांधी की पसंद था और ज्यादातर विधायक भी उसके समर्थन में थे। नाम राव बीरेंद्र सिंह। अहीरवाल राज के वंशज राव बीरेंद्र सिंह राजनीति में आने से पहले अंग्रेजों की फौज में कैप्टन रह चुके थे। दूसरे विश्व युद्ध में शामिल भी रहे थे। इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा से कहा कि वो राव बीरेंद्र को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं, लेकिन भगवत दयाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए सिंडिकेट से पैरवी की। दरअसल, तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी सिंडिकेट के बूते वे दोबारा मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन राव बगावत पर उतर आए। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे भगवत दयाल की सरकार को 13 दिन भी नहीं चलने देंगे। इंदिरा ने भगवत दयाल सरकार गिराने का जिम्मा देवीलाल को दिया भगवत दयाल भांप चुके थे कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है। इसलिए उन्होंने अपने करीबियों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ा। नाराज विधायकों को बगावत का मौका मिल गया। वे राव बीरेंद्र से संपर्क साधने में जुट गए। हरियाणा में जो कुछ हो रहा था, उस पर केंद्र की भी नजर थी। इंदिरा गांधी भी बैक गेट से अपनी ही सरकार गिराने की बिसात बिछा रही थीं। इसका दावा भगवत दयाल शर्मा के निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा रामस्वरूप करते हैं। एक इंटरव्यू में रामस्वरूप बताते हैं- ‘प्रधानमंत्री इंदिरा खुद चाहतीं थीं कि भगवत दयाल की सरकार किसी तरीके से गिर जाए। उन्होंने भगवत दयाल के विरोधी और कांग्रेस के कद्दावर नेता चौधरी देवीलाल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी।’ इंदिरा गांधी के इशारे पर चौधरी देवीलाल, भगवत दयाल सरकार को गिराने में जुट चुके थे, लेकिन इसके लिए जरूरी था कि राव बीरेंद्र सिंह के साथ उनके सियासी मतभेद दूर हों। लेखक के. गोपी यादव लिखते हैं, ‘हरियाणा बनने से पहले देवीलाल और राव के बीच गहरी दोस्ती थी, बाद में दोनों के संबंध बिगड़ गए। दोबारा संबंध ठीक करने के लिए देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव को दिल्ली में अपने बंगले पर डिनर के लिए बुलाया। राव डिनर पर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे मान गए। राव उसके घर जैसे ही पहुंचे, उन्हें वहां देवीलाल मिल गए। राव बिल्डर पर गुस्सा हो गए। बिल्डर ने हिम्मत जुटाते हुए राव साहब से कहा कि देवीलाल चाहते हैं कि आप मुख्यमंत्री बनें और वह तहे दिल से आपका सहयोग करेंगे। इस पर राव ने देवीलाल की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो इन पर भरोसा नहीं कर सकते। राव का लहजा और लफ्ज दोनों ही सख्त थे, लेकिन देवीलाल ने संयम नहीं खोया। उन्होंने राव को मना लिया। उसी रोज डिनर की टेबल पर पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने का प्लान बना।’ अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ लड़ा स्पीकर का चुनाव और जीत भी गए 17 मार्च 1967, भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बने एक हफ्ता बीत चुका था। अब स्पीकर चुनने की बारी थी। भगवत दयाल शर्मा ने जींद से विधायक लाला दयाकिशन का नाम स्पीकर के लिए आगे बढ़ाया। इस बीच उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम स्पीकर पद के लिए प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री भगवत दयाल के खेमे में खलबली मच गई। वोटिंग हुई तो दयाकिशन को 37 वोट मिले, जबकि राव को 28 विपक्षी और कांग्रेस के 12 असंतुष्ट विधायकों को मिलाकर कुल 40 वोट मिले। इसका सीधा मतलब था कि भगवत दयाल शर्मा की सरकार खतरे में है। आखिर बहुमत परीक्षण की बारी भी आई। स्पीकर का चुनाव जीतने के बाद भी बीरेंद्र सिंह का खेमा एक विधायक को लेकर चिंतित था। वो थे चौधरी बंसीलाल, जो पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। राव साहब जानते थे कि अगर बंसीलाल विधानसभा पहुंच गए, तो खेल बिगड़ सकता है। ऐसे में योजना बनाई गई कि बंसीलाल को फ्लोर टेस्ट वाले दिन सदन में आने ही न दिया जाए। पूर्व विधायक और लेखक भीम सिंह दहिया अपनी किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘बंसीलाल को सदन से दूर रखने की जिम्मेदारी एक अफसर को सौंपी गई। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। थोड़ी देर बाद जब वे बाथरूम में गए, तो अफसर ने दरवाजा बंद कर दिया। वे काफी देर तक आवाज लगाते रहे, लेकिन दरवाजा तब तक नहीं खोला गया, जब तक फ्लोर टेस्ट में भगवत दयाल की सरकार गिरा नहीं दी गई।’ भगवत दयाल की सरकार गिराने के बाद कांग्रेस से बागी हुए 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम की नई पार्टी बनाई। 16 निर्दलीय विधायकों ने नवीन हरियाणा पार्टी बनाई। 20 मार्च 1967 को कांग्रेस, इन सभी को मिलाकर हरियाणा संयुक्त विधायक दल पार्टी का गठन किया। चौधरी देवीलाल को इसका संयोजक बनाया गया। चार दिन बाद यानी, 24 मार्च को राव बीरेंद्र सिंह ने 15 मंत्रियों के साथ हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस तरह पहली बार राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर साथ देने की कसम खाई सीएम बनने के बाद भी राव बीरेंद्र के मन में देवीलाल को लेकर संशय बना हुआ था। के. गोपी यादव लिखते हैं- ‘देवीलाल ने संयुक्त विधायक दल की सरकार के सभी समर्थक विधायकों के सामने गंगाजल से भरी हांडी में नमक डालकर कसम खाई कि अगर वे किसान-मजदूर हितैषी राव की सरकार के साथ विश्वासघात करेंगे, तो वे हांडी में डाले गए नमक की तरह घुल जाएंगे। इसके बाद राव ने उनसे पूछा कि मुझे क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। देवीलाल ने कहा कि हमारी कोई शर्त नहीं है, लेकिन राव को अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उनका मन कह रहा था कि जरूर कुछ ऐसा है जिसे छिपाया जा रहा है। तब देवीलाल ने कहा कि राव साहब, अगर आपको उचित लगे तो चांदराम को उद्योग मंत्री बना दीजिए। राव ने चांदराम को मंत्री बनाया, लेकिन उन्हें उद्योग विभाग नहीं दिया।’ देवीलाल ने ढाई महीने में ही तोड़ दी अपनी कसम राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बने अभी कुछ ही महीने हुए थे कि उन्होंने देवीलाल को तवज्जो देना बंद कर दिया। देवीलाल, सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी भी जाहिर करने लगे। 5 जून 1967 को देवीलाल ने लेटर जारी किया, जिस पर 13 विधायकों और मंत्रियों के हस्ताक्षर थे। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच रिश्ते फिर बिगड़ने लगे। 13 जुलाई को देवीलाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा- ‘राव बीरेंद्र सिंह की सरकार जनसंघ से प्रभावित है। इसलिए हरियाणा विरोधी इस सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया है। देवीलाल ने राव पर कांग्रेस से साठगांठ का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि राव इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने का वचन दिया जाए तो वे कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे।’ हालांकि राव ने इस आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि देवीलाल की नाराजगी का असली कारण उन्हें मंत्री न बनाया जाना है। सरकार बनाने पहुंचे देवीलाल तो राज्यपाल ने ठुकराया प्रस्ताव 14 जुलाई को संयुक्त विधायक दल ने 38 विधायकों के साथ बैठक की और देवीलाल को निष्कासित कर दिया। देवीलाल ने तुरंत कांग्रेस से समझौता कर लिया और राव सरकार का तख्तापलट करने में जुट गए। दावा किया जाता है कि कांग्रेस हाईकमान समझौते के तहत देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी तैयार हो गया था। बशर्तें वे संयुक्त मोर्चे के कुछ विधायकों को अपने साथ ले आएं। राव को इसकी भनक लग चुकी थी। 15 जुलाई को अचानक राव बीरेंद्र सिंह ने राज्यपाल को मंत्रिमंडल का त्यागपत्र दे दिया। उनका मकसद देवीलाल समर्थकों को मंत्रिमंडल से हटाकर नया मंत्रिमंडल बनाना था। राव जब तक अपनी योजना को अमलीजामा पहना पाते, उससे पहले ही देवीलाल 51 विधायकों के समर्थन का दावा लेकर राज्यपाल के पास पहुंच गए, लेकिन राज्यपाल ने यह कहते हुए देवीलाल का दावा खारिज कर दिया कि सूची में विधायकों के साइन नहीं हैं। हालांकि कहा जाता है कि उस पत्र में विधायकों के दस्तखत थे। राज्यपाल ने राव बीरेंद्र सिंह को फिर से मंत्रिमंडल बनाने को कहा। उसी दिन 15 जुलाई को राव के नए मंत्रिमंडल ने शपथ ली। इस बार मंत्रिमंडल में देवीलाल के करीबी चांदराम और मनीराम गोदारा को शामिल नहीं किया गया। इससे नाराज देवीलाल समर्थक मुख्य संसदीय सचिव जगन्नाथ ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। अगले चार महीने यानी नवंबर तक दोनों खेमों में सियासी उठापटक चलती रही। कभी देवीलाल के सहयोगी टूटकर संयुक्त मोर्चे में शामिल होते, तो कभी संयुक्त मोर्चे के विधायक को तोड़कर देवीलाल अपने पाले में लाते। 17 नवंबर 1967 को राज्यपाल वीएन चक्रवर्ती ने हरियाणा की राजनीतिक उठापटक को लेकर राष्ट्रपति से विधानसभा भंग करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने 21 नवंबर 1967 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। जबकि देवीलाल कांग्रेस में शामिल हो गए। अप्रैल-मई 1968 में हरियाणा में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। वोटों की गिनती हुई तो कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं। इस बार बंसीलाल को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया। वही बंसीलाल जिन्हें एक साल पहले भगवत दयाल की सरकार गिराने के लिए बाथरूम में बंद कर दिया गया था। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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भूपेंद्र हुड्डा बोले- हरियाणा में नाकाम व यू-टर्न सरकार:BJP जवाब दे- पहले के फैसले सही या फिर आज के; सभी पर लाठियां बरसाई हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा शुक्रवार को अंबाला कैंट में पहुंचे। यहां पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में पत्रकारों से वार्ता करते हुए हुड्डा ने भाजपा सरकार पर निशाना साधा और कहा कि भाजपा सरकार ने सभी पर अत्याचार किए हैं।अब चुनाव को देख लोगों को लुभाने के लिए घोषणाएं कर रहे हैं। इस मौके पर नवनिर्वाचित सांसद वरुण मुलाना, पूर्व मंत्री निर्मल सिंह चौधरी व चित्रा सरवारा विशेष रूप से उपस्थित रही। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि भाजपा सरकार में जिसने भी आवाज या मांग उठाई, उन सभी पर लाठी चार्ज किया गया। आज इलेक्शन से पहले सरपंचों के लिए घोषणा करके सरकार वाह वाही लूट रही है। हुड्डा ने कहा कि भाजपा राम के नाम पर राजनीति कर रही है, जबकि हम सब राम का नाम लेकर ही काम की शुरुआत करते हैं। भूपेंद्र सिंह ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद अंबाला में आईएमटी बनाई जाएगी। पूर्व सीएम ने कहा कि भाजपा सरकार कौशल निगम में भर्ती करके युवाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। इसमें न तो युवाओं को अच्छा वेतन दिया जा रहा है, न ही पक्की नौकरी। यह नहीं इस निगम में न कोई मेरिट है न कोई आरक्षण। यही नहीं निगम के MD पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि हरियाणा में आज नाकाम और यू-टर्न सरकार चल रही है। लोकसभा में करारी हार के बाद से ये सरकार कोई काम करने की बजाय सिर्फ अपने ही फैसलों से यू-टर्न मारने में लगी है। ऐसे में बीजेपी को जवाब देना चाहिए कि उसके मौजूदा फैसले सही थे या अभी लिए जा रहे फैसले सही हैं? सरकार के ऊल-जलूल फैसलों के चलते 10 बरस में जनता का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा? हुड्डा ने सवाल उठाए कि बीजेपी द्वारा 2014 में किसानों को दी गई एमएसपी की गारंटी को पूरा क्यों नहीं किया? गरीब, एससी और ओबीसी से 100-100 गज के प्लाट का अधिकर छीनकर बीजेपी 30 गज के प्लाट की फर्जी घोषणा कर रही है। प्लॉट का झांसा देकर गरीबों से 10000-10000 रुपए लिए जा रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हरियाणा के सरकारी विभागों में 2 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। तमाम विभाग कर्मचारियों के भारी टोटे को झेल रहे हैं। इसकी वजह से जनता को हर छोटे-बड़े काम के लिए दफ्तरों के बार-बार धक्के खाने पड़ते हैं और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। इसलिए प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने पर खाली पदों को भरना और बेरोजगारी पर अंकुश लगाना पहली प्रथामिकता होगी। आज जनता बीजेपी द्वारा खड़े किए गए पोर्टल के मकड़जाल से बुरी तरह परेशान है। प्रॉपर्टी आईडी ने निगम व नगर पालिकाओं को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है। पीपीपी परमानेंट परेशानी पत्र बन गई है और ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ किसानों की एमएसपी के लिए सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है। इसलिए कांग्रेस सरकार बनने पर ऐसे तमाम जनविरोधी पोर्टलों को खत्म करके डिजिटलाइजेशन का सही दिशा व जनता की सहुलियत के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
भाजपा के 21 उम्मीदवारों का एनालिसिस:टिकट बंटवारे में RSS का दबदबा, खट्टर को झटका; एंटी इनकंबेंसी से बचने को गढ़ में भी चेहरे बदले
भाजपा के 21 उम्मीदवारों का एनालिसिस:टिकट बंटवारे में RSS का दबदबा, खट्टर को झटका; एंटी इनकंबेंसी से बचने को गढ़ में भी चेहरे बदले हरियाणा चुनाव के लिए BJP ने 21 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी कर दी। इस लिस्ट में पार्टी का सर्वे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का फीडबैक सबसे दमदार रहा। यह जिनके पक्ष में था, उन्हें हारने के बावजूद टिकट मिला। इनमें 4 बड़े चेहरे शामिल हैं। जिनके खिलाफ रहा, उनके मंत्री या सिटिंग विधायक होने पर भी पार्टी ने टिकट काट दिया। मंत्री डॉ. बनवारी लाल हों या सीमा त्रिखा, इनके समेत 7 विधायकों को दोबारा टिकट नहीं मिला। इस लिस्ट में भाजपा ने केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत को खुश करने की कोशिश की। इस बार उनके विरोध पर 2 सिटिंग विधायकों का टिकट काट दिया। पहले जारी 67 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में उनके विरोध काे दरकिनार कर उनके 4 कट्टर विरोधियों को टिकट दिया गया था। केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी हाईकमान ने झटका दिया है। उनके विरोध के बावजूद पटौदी से बिमला चौधरी को टिकट दिया गया। 2019 में खट्टर ने टिकट कटवा दिया था। इस बार राव की सिफारिश चल गई। खट्टर के करीबी रहे विधायक बनवारी लाल और सत्यप्रकाश जरावता का टिकट काट दिया गया। अहीरवाल बेल्ट वाली दक्षिण हरियाणा में अपने गढ़ में भाजपा हाईकमान ने जमकर उलटफेर किया। यहां भाजपा ने 5 सिटिंग विधायकों का टिकट काट दिया। इस लिस्ट में भाजपा ने एक मुस्लिम नेता का टिकट भी काट दिया। जिन 2 मुस्लिम नेताओं पर भरोसा जताया, वहां मुस्लिम वोट बैंक के दूसरे वर्ग से बड़ा होने की मजबूरी रही। एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए 14 नए चेहरे उतार दिए। जीटी रोड बेल्ट में भी नए चेहरों को मौका देने से गुरेज नहीं किया। विधायकों के टिकट काटने के कारण जातीय समीकरण ऐसे साधा… लोकसभा में नाराजगी देख सबसे ज्यादा SC चेहरों को टिकट
इस लिस्ट में सबसे ज्यादा 4 उम्मीदवार SC वर्ग से हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जाट के बाद सबसे ज्यादा एससी वर्ग से ही नुकसान हुआ। ऐसे में कृष्ण कुमार बेदी, बिमला चौधरी को दोबारा से टिकट दिया गया है। 2019 में कृष्ण बेदी पिछला चुनाव हार गए थे और बिमला चौधरी का पार्टी ने टिकट काट दिया था। जबकि एससी वर्ग से ही आने वाले स्वास्थ्य विभाग में निदेशक पद से एक दिन पहले नौकरी छोड़ने वाले डॉ. कृष्ण कुमार को टिकट दिया है। होडल से हरिंदर सिंह रामरतन को मैदान में उतारा है। नाराज जाटों के 3 चेहरे, OBC पर फोकस करते हुए 3 उम्मीदवार उतारे
दूसरी लिस्ट में जाट और OBC समाज से 3-3 कैंडिडेट उतारे गए हैं। लोकसभा चुनाव में ओबीसी बड़ा मुद्दा बना हुआ था। जाट पहले से ही बीजेपी से नाराज थे। ऐसे में दोनों लिस्ट में सबसे ज्यादा उम्मीदवार इन दोनों ही समाज से उतारे गए हैं। जाट वर्ग से राई से कृष्णा गहलावत, बरोदा से प्रदीप सांगवान और जुलाना से योगेश बैरागी को टिकट दिया है। वहीं ओबीसी वर्ग से पवन सैनी, पूर्व मंत्री ओमप्रकाश यादव को दोबारा मौका दिया गया। पुंडरी से सतपाल जांबा को टिकट दिया है। पंजाबी वोट बैंक, इनकार करने पर भी ग्रोवर को टिकट दिया
पंजाबी वोटरों के लिहाज से मनीष ग्रोवर, अमीर चंद मेहता, धनेश अदलखा को उतारा गया हैं। इनमें पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर को रोहतक से हार के बाद भी मौका दिया गया। ग्रोवर पहले चुनाव लड़ने से इनकार कर रहे थे। पंजाबी वोट बैंक वाली सीट पर ब्राह्मण चेहरा
बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक कहे जाने वाले ब्राह्मणों को दूसरी लिस्ट में भी साधने की कोशिश की गई। पिहोवा सीट पर कवलजीत सिंह का पाकिस्तानी आर्मी के साथ फोटो वायरल होने के बाद यहां ब्राह्मण चेहरे के तौर पर जयभगवान शर्मा को टिकट दिया है। पिछली बार यहां पर संदीप सिंह को उतारा था। खेल मंत्री बनने के बाद महिला कोच से विवाद के चलते उनका टिकट काटा गया। नूंह से मुस्लिम नेता का टिकट काटा, हिंदू नेता उतारा
मुस्लिम समुदाय का एक टिकट इस बार भाजपा ने काट दिया। फिरोजपुर झिरका से नसीम अहमद और पुन्हाना से ऐजाज खान को टिकट दिया, लेकिन नूंह से जाकिर हुसैन का टिकट काट दिया। 2023 में नूंह हिंसा के बाद नूंह की सीट से भाजपा ने हिंदू उम्मीदवार संजय सिंह को उतारा है। पंजाब से सटी सीटें, सिख-पंजाबी को टिकट
डबवाली में सिख और ऐलनाबाद में पंजाबी चेहरा उतारा है। यह दोनों सीटें पंजाब से सटी हुई हैं। जहां ज्यादातर पंजाबी और सिख वोट बैंक है। इसके जरिए भाजपा ने उस वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। जुलाना में जाट चेहरे विनेश के खिलाफ ओबीसी चेहरा उतारा
जुलाना सीट पर रेसलर विनेश फोगाट के खिलाफ भी भाजपा ने सावधानी से जातीय कार्ड खेला है। विनेश जाट कम्युनिटी से हैं। उनके खिलाफ भाजपा ने ओबीसी वर्ग से कैप्टन योगेश बैरागी को टिकट दिया है। यहां विनेश के आने के बाद जाट एकतरफा होने के संकेत हैं, ऐसे में भाजपा बाकी जातियों को साधना चाहती है। वहीं विनेश फोगाट के प्रति पेरिस ओलिंपिक में डिसक्वालिफिकेशन के बाद बने सहानुभूति के माहौल को कम करने की भी कोशिश की है। दरअसल, योगेश बैरागी भी एयर इंडिया के कैप्टन रहते कोरोना काल में लोगों की जान बचाने के लिए काम किया है। क्षेत्रीय समीकरण को ऐसे साधा 1. मजबूत वोट बैंक वाले जीटी बेल्ट में ज्यादा नए चेहरे उतारे
भाजपा का कोर वोट बैंक शहरी माना जाता है। हरियाणा में सोनीपत से लेकर अंबाला तक जीटी रोड बेल्ट की करीब 30 सीटें हैं। दूसरी लिस्ट में यहां 4 नए चेहरे और एक पुराने चेहरे को फिर से शामिल किया हैं। इस बेल्ट में फिर से संगठन और RSS के फीडबैक के साथ केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर की पैरवी काम कर गई। यहां भाजपा ने एंटी इनकंबेंसी से बचने की कोशिश की है। 2. दक्षिणी हरियाणा-अहीरवाल बेल्ट पर ज्यादा टिकट काटे
भाजपा ने इस बार दक्षिणी हरियाणा की 23 सीटों पर ज्यादा फोकस किया है। दूसरी लिस्ट में भी यहां से सबसे ज्यादा पांच विधायकों का टिकट काट दिया गया। इनमें 2 कैबिनेट मंत्री तक शामिल हैं। जबकि एक राज्यमंत्री को नूंह में शिफ्ट कर दिया गया। यहां की सिर्फ एक सीट महेंद्रगढ़ को होल्ड पर रखा गया है। जब 2014 में भाजपा यहां से 11 सीटें जीती थी तो पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। 2019 में भाजपा यहां सिर्फ 8 सीटें ही जीत पाई तो सरकार बहुमत के 46 के आंकड़े से दूर 40 पर ही रह गई थी। RSS से जुड़े 5 चेहरों को टिकट दिया
दूसरी लिस्ट में टिकट बंटवारे को देखा जाए तो यहां राव इंद्रजीत सिंह को छोड़कर किसी व्यक्ति विशेष नेता तो तवज्जो देने की बजाय शीर्ष नेतृत्व ने संगठन और RSS के फीडबैक को तवज्जो दी है। उदाहरण के तौर पर डा. पवन सैनी और कृष्ण कुमार बेदी 2 ऐसे चेहरे हैं, जो संगठन के पुराने साथी के अलावा आरएसएस से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा होडल में हरिंद्र सिंह रामरतन और हथीन से मनोज रावत शामिल हैं। इसके अलावा पांचवा नाम धनेश अदलखा हैं। इन तीनों ही सीटों पर सिटिंग एमएलए का टिकट काटकर संगठन और आरएसएस से जुड़े नेता को टिकट दिया गया है। पार्टी ने 2 बार प्राइवेट एजेंसी से इनका सर्वे कराया। 2 सीटों पर सर्वे रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ भी दिखी, लेकिन आरएसएस के फीडबैक में पॉजिटिव पाए जाने पर नए चेहरे होने के बावजूद उन्हें टिकट दे दिया। कैंडिडेट्स से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें… हरियाणा में BJP के 21 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी:प्रदेश अध्यक्ष और 2 मंत्रियों के टिकट कटे, एक प्रत्याशी बदला; 2 मुस्लिम भी कैंडिडेट भाजपा की दूसरी लिस्ट के 21 प्रत्याशियों की डिटेल प्रोफाइल:विनेश फोगाट के खिलाफ कैप्टन बैरागी; गहलावत उम्रदराज, 3 बारहवीं तक पढ़े, 18 नए चेहरे हरियाणा में BJP की पहली लिस्ट जारी, 67 नाम:CM लाडवा से लड़ेंगे; 25 नए चेहरे, 8 मंत्री रिपीट, 2 मंत्री-9 विधायकों का टिकट कटा भाजपा के 67 उम्मीदवारों का एनालिसिस:हरियाणा में हारे नेताओं को भी मौका, हाईकमान का सीधा मैसेज- सभी टिकट दिल्ली से तय होंगे भाजपा की पहली लिस्ट के 67 उम्मीदवारों की डिटेल प्रोफाइल:पहली लिस्ट में 5 हारे चेहरों पर दांव, 10 दलबदलुओं को टिकट दी
हरियाणा में प्रॉपर्टी के लिए मां-भाई की हत्या:युवती ने पैर पकड़े, ममेरे भाई ने मुंह में कपड़ा ठूंसकर गला घोंटा, लूट की झूठी शिकायत दी
हरियाणा में प्रॉपर्टी के लिए मां-भाई की हत्या:युवती ने पैर पकड़े, ममेरे भाई ने मुंह में कपड़ा ठूंसकर गला घोंटा, लूट की झूठी शिकायत दी हरियाणा के यमुनानगर में प्रॉपर्टी के लिए बेटी ने अपनी मां और भाई की हत्या कर दी। हत्या को अंजाम देने के लिए उसने ममेरे भाई की मदद ली। इनमें युवती ने मां और भाई के दोनों पैर पकड़े और ममेरे भाई ने मुंह में कपड़ा ठूंसकर उनका गला दबा दिया। यही नहीं, दोनों की हत्या करने के बाद उसने खुद ही पुलिस को सूचना देकर बुलाया। जहां उसने लूट का ड्रामा रचा लेकिन CCTV कैमरे में उसके साथ संदिग्ध के दिखने के बाद पोल खुल गई। पुलिस ने आरोपी बेटी पर हत्या का केस दर्ज कर पहले उसे गिरफ्तार किया। इसके बाद उसके ममेरे भाई विश्वकर्मा मोहल्ला निवासी कृष को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। मां-बेटे के हत्याकांड की पूरी कहानी… पिता की मौत हो चुकी, 6 महीने पहले नया घर लिया
पुलिस जांच के मुताबिक मीना (45) बेटे राहुल (24) और बेटी काजल (26) के साथ यमुनानगर के आजाद नगर की गली नंबर 2 में रहती थी। मीना के पति केशनाथ की 2007 में मौत हो चुकी थी। उन्होंने कुछ समय पहले ही यहां 32 लाख का घर खरीदा। जिसके बाद वह सावनपुरी कॉलोनी से यहां शिफ्ट हुए थे। पुलिस के मुताबिक राहुल मुथूट फाइनेंस कंपनी में काम करता था। वहीं उसकी बहन काजल एक मोबाइल शॉप में काम करती थी। पुलिस को कहा- लूटपाट कर हत्या कर दी
काजल ने रविवार दोपहर 2.43 पर डायल-112 पर पुलिस को कॉल की। जिसमें उसने कहा कि उनके घर में लूट हुई है। लुटेरों ने मां और भाई की भी हत्या कर दी है। वह जब घर लौटी तो उसे इसका पता चला। इसके बाद पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची और घटनास्थल की जांच के बाद शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवाया। अपने ही जाल में ऐसे फंसी काजल
पुलिस के मुताबिक जांच में पुलिस को सीसीटीवी कैमरा बंद मिला। वहीं अंदर जिस तरह से लूट का सामान बिखेरा गया था, वह भी लुटेरों का काम नहीं लगा। दोनों की मौत को भी 7 घंटे बीत चुके थे। इसके बाद पुलिस ने उनके घर को आने-जाने वाले सीसीटीवी कैमरा चैक किए तो काजल के साथ एक युवक भी दिखाई दिया। पुलिस ने जब इसको लेकर काजल से पूछताछ की तो वह बार-बार बयान बदलने लगी। जिसके बाद पुलिस ने उसे हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी। काजल ने पैर पकड़े, ममेरे भाई ने मुंह में कपड़ा रख गला घोंटा
थाना सिटी यमुनानगर के SHO जगदीश चंद्र ने बताया कि काजल की अक्सर अपनी मां से कहासुनी होती थी। वारदात के दिन भी दोनों की कहासुनी हुई। काजल के साथ ममेरा भाई भी आया था। जिसका उनके साथ प्रॉपर्टी का झगड़ा चल रहा था। गुस्से में आकर काजल ने ममेरे भाई के साथ मिलकर मां की हत्या की ठान ली। उसने मां को नीचे गिरा उसके दोनों पैर पकड़ लिए। उसके ममेरे भाई ने मुंह पर कपड़ा रख गला दबा दिया। मुंह में कपड़ा होने की वजह से वह चिल्ला भी न सकी। उस वक्त बेटा राहुल घर पर नहीं था। हालांकि जब ये दोनों मां मीना की हत्या कर रहे थे तो वह भी घर पहुंच गया। उसने दोनों को मां की हत्या करते देख लिया। यह देख काजल और ममेरे भाई ने उसे नीचे गिराया। फिर काजल ने उसके दोनों पैर पकड़ लिए। ममेरे भाई ने कपड़े से मुंह दबाकर उसका गला घोंट दिया। जिसके बाद ममेरा भाई वहां से फरार हो गया। मामला लूट का लगे, इसलिए वह कुछ सामान भी वहां से लेकर भाग निकला। इसके बाद काजल ने घर में सामान बिखेरा और पूरी साजिश के तहत पुलिस को फोन कर लूट और हत्या की शिकायत कर दी। मां से नहीं बनती थी, लड़कों की तरह रहती है काजल
SHO जगदीश चंद्र ने कहा कि काजल की मां के साथ नहीं बनती थी। उनके बीच अक्सर झगड़ा होता था। शुरूआती जांच में यह हत्या प्रॉपर्टी की वजह से ही लग रही है। फिर भी हर एंगल से अभी जांच की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि काजल लड़कों की तरह रहती है। उसी तरह के कपड़े पहनती है और बात भी लड़कों की तरह ही करती है। उससे पूरे हत्याकांड के बारे में और पूछताछ की जा रही है।