लोकबंधु अस्पताल में सोमवार रात आग से एक मरीज की मौत हो गई। करीब 250 मरीजों को दूसरे अस्पतालों में ट्रांसफर करना पड़ा। अब प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन ने आग की घटना की जांच के लिए 5 सदस्यीय टीम गठित कर दी। इसकी अध्यक्षता डीजी मेडिकल हेल्थ करेंगे। उन्हें 15 दिन में रिपोर्ट सब्मिट करनी है। इससे पहले भास्कर रिपोर्टर ने अस्पताल में अग्निकांड को लेकर पड़ताल की। ये जानने की कोशिश कि आखिर इस लापरवाही के पीछे के जिम्मेदार कौन हैं? इसमें फायर सिस्टम के नोडल इंचार्ज, फायर प्रोटेक्शन एजेंसी और सिक्योरिटी एजेंसी की कुछ खामियां सामने आई हैं। अस्पताल सूत्र बताते हैं कि 1 अप्रैल को ही अस्पताल में नेशनल क्वालिटी एस्योरेंस स्टैंडर्ड्स (NQAS) की टीम ने मानकों को लेकर जांच की थी। जिसमें नोडल इंचार्ज भी मौजूद थे। उन्हें कुछ हिदायत भी दी थी, लेकिन जिसे उन्होंने समय रहते दुरुस्त नहीं कराया। पास में एम्बुलेंस पार्किंग होने से बड़ी कैजुअल्टी टल गई। अस्पताल में फायर प्रोटेक्शन का काम गोविंद एजेंसी देखती है। लेकिन आग के वक्त ये देखने में आया कि वहां लगी कई पानी की पाइपें खुली ही नहीं। कई फायर एक्सटिंग्युशर भी नहीं चले। वहीं, कैंपस में तैनात सिक्योरिटी गार्ड को आग की भनक तक नहीं लग सकी। वे अगर समय रहते तो सूचना देते तो अस्पताल में अफरातफरी को रोका जा सकता था। सबसे पहले घटना के 3 जिम्मेदारों को जानिए- अब जानिए वो तीन बातें, जिनकी वजह से बड़े हादसे को टाला जा सका- 1. अस्पताल के पास में एम्बुलेंस की पार्किंग थी लोकबंधु अस्पताल के बेहद नजदीक आशियाना के सेक्टर-M1 में एम्बुलेंस का बड़ी पार्किंग है। यहीं पर एम्बुलेंस संचालक का ऑफिस भी है। यही वजह है कि अस्पताल में आग घटना की जानकारी मिलते ही मौके पर बड़ी संख्या में एम्बुलेंस पहुंच गईं। इससे मरीजों को तुरंत दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट किया जा सका। खासकर, आईसीयू और एनआईसीयू के मरीजों की जान बचाई जा सकी। महज आधे घंटे के भीतर 30 से ज्यादा नई एम्बुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। इनके जरिए 5 मरीजों को KGMU के ट्रॉमा सेंटर, 26 मरीजों को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल, 15 मरीजों को बलरामपुर अस्पताल भेजा गया। महिला मरीजों को झलकारी बाई और डफरिन अस्पताल भेजा गया है। 2. डिप्टी सीएम और टॉप अधिकारियों का पहुंचना आग लगने जानकारी होते ही मौके पर स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक पहुंच गए। उनसे दो मिनट पहले जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर पहुंचे थे। महकमे के मंत्री और अधिकारियों की मौजूदगी के कारण अस्पताल प्रशासन तेजी से एक्टिव हुआ। इससे मरीजों को काफी मदद मिली। डिप्टी सीएम खुद ही अधिकारियों और अस्पतालों को फोन पर निर्देश देने लगे। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के निर्देश पर ही बड़ी संख्या में एम्बुलेंस पहुंचीं। जिलाधिकारी ने फौरन ट्रॉमा सेंटर, बलरामपुर अस्पताल और सिविल अस्पताल को अलर्ट किया। मंडलायुक्त रोशन भी मौके पर थीं। अधिकारियों की मौजूदगी के कारण विभाग ने तत्परता दिखाई। 3. भर्ती मरीजों की संख्या का कम होना वीकेंड और अंबेडकर जयंत के चलते लगातार 2 दिन का अवकाश होने के चलते अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या आम दिनों की अपेक्षा काफी कम थी। कम मरीज होने से हताहतों को बाहर निकालना आसान हो गया। अगर सामान्य दिनों में यह हादसा होता तो बेहद भयावह हो सकता था। क्योंकि मरीजों की भीड़ कम होने से लोगों को भागने की जगह नहीं मिल पाती। भीड़ होने पर हॉल के बाहर गैलरी में जगह कम होती तो भगदड़ जैसे हालात बन सकते थे। फायर प्रोटेक्शन एजेंसी का सफाईनामा पढ़िए गोबिंद फायर एजेंसी के प्रोपराइटर गणेश ने बताया- लोकबंधु अस्पताल के फायर प्रोटेक्शन सिस्टम को हम मेंटेन कर रहे हैं। सभी उपकरणों का रखरखाव ठीक से हो इसका ध्यान रखा जाता है। अस्पताल के स्टाफ को 7 से 15 दिन में ट्रेनिंग दी जाती है। मॉक ड्रिल भी की जाती है। घटना की जानकारी होते ही मौके पर मैं खुद टीम के साथ पहुंचा। सभी को बचाने का भरसक प्रयास किया। अब घटना के फाइटर हीरोज से मिलिए, जिन्होंने 2 घंटे आग से लोगों को निकाला एक फाइटर को अस्पताल पहुंचाना पड़ा अस्पताल की फायर यूनिट में काम करने वाले मोहम्मद दिलशाद ने कई लोगों को बचाया। आग जब शांत हुई और रेस्क्यू पूरा हुआ तो दिलशाद अस्पताल के एक कोने में थककर बैठ गया था। उसके कपड़े झुलस चुके थे और सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। बाद में उसे भी इलाज के लिए दूसरे अस्पताल भेजा गया। जान की बाजी लगाकर जान बचाई आग को काबू पाने में और घटना को रोकने में सबसे अहम भूमिका दमकल कर्मियों ने निभाई। सीएफओ मंगेश कुमार ने बताया कि रात 9:44 बजे सूचना मिली। तत्काल आलमबाग, सरोजनी नगर, हजरतगंज, चौक और गोमतीनगर के प्रभारियों को बुलाया गया। 5 टीमें बनाकर काम शुरू हुआ। काम मुश्किल था क्योंकि स्मोक फैला हुआ था। बिजली जा चुकी थी। आग बुझानी थी और लोगों को निकालना भी था। आग बुझाने के लिए 15 दमकल गाड़ियों का इस्तेमाल हुआ। दमकल कर्मियों ने साहस के जान पर खेलते हुए लोगों की जान बचाई। अब उन तीमारदारों से जानिए, जो घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं- ऑक्सीजन सप्लाई बंद होने से जान गई लोकबंधु अस्पताल में आग से हुसैनगंज के छितवापुर निवासी राजकुमार प्रजापति (61) की मौत हो गई। अनूप दुबे ने बताया कि राजकुमार उनके मित्र के पिता थे। 12 तारीख को भर्ती कराया था। लूज मोशन आ रहे थे और सांस लेने में भी दिक्कत थी। आग लगने के बाद अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई बंद कर दी गई, जिससे उनकी मौत हो गई। लोकबंधु अस्पताल से सिविल अस्पताल लेकर आए तो डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। राजकुमार की मौत के बाद परिवार की स्थिति बेहद खराब है। कुछ समझ आता कि आग फैल गई अस्पताल में मौजूद अर्चना सिंह ने बताया कि उनकी चाची मधु सिंह के पिता का ऑपरेशन हुआ था। अपने मरीज के साथ वह वार्ड में थीं तभी अचानक लोगों के चीखने को आवाजें सुनाई देने लगीं। देखते ही देखते धुआं भरने लगा तब समझ में आया कि आग लग गई है। अचानक हुई इस घटना के बाद कुछ देर तो समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है। फिर हम लोग मरीज को धीरे-धीरे अस्पताल के बाहर लेकर आए। हमारे मरीज को सिविल अस्पताल ले जाया गया। सब लोग भाग रहे थे, पिताजी लेटे रहे अस्पताल में मौजूद विश्वजीत ने बताया कि उनके पिता मुन्नी लाल (55) एक सप्ताह से भर्ती थे। आग लगने की सूचना पर भागते हुए हॉस्पिटल पहुंचे तो देखा गेट पर लगभग 400 लोगों का जमावड़ा लगा था। इस भीड़ में किसी के पास उनके पिता नहीं थे। भागते हुए 116 नंबर पर बेड पर पहुंचे तो देखा कि वह लेटे हैं। फौरन उन्हें बाहर निकाला। उसके बाद उस वार्ड और कई मरीज थे सबको बाहर निकाला। फिलहाल पिता को घर लेकर आ गए हैं । उस समय माहौल बहुत गंभीर और डरावना था। 3 किलोमीटर दूर से दिखीं आग की लपटें अस्पताल पहुंचे महेश रावत ने बताया कि उनका घर वहां से 3 किलोमीटर दूर है। अस्पताल में बुआ को भर्ती करवाया था। जब आग लगी तो उसकी लपटें उनके घर तक नजर आ रही थीं। वह काम पर थे। घरवालों ने आग देखकर उन्हें बताया तो वे तत्काल अस्पताल पहुंचे। वहां देखा कि माहौल बहुत गंभीर था। चारों तरफ मरीज चीख-पुकार मचा रहे थे और भाग रहे थे। लोकबंधु अस्पताल में सोमवार रात आग से एक मरीज की मौत हो गई। करीब 250 मरीजों को दूसरे अस्पतालों में ट्रांसफर करना पड़ा। अब प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन ने आग की घटना की जांच के लिए 5 सदस्यीय टीम गठित कर दी। इसकी अध्यक्षता डीजी मेडिकल हेल्थ करेंगे। उन्हें 15 दिन में रिपोर्ट सब्मिट करनी है। इससे पहले भास्कर रिपोर्टर ने अस्पताल में अग्निकांड को लेकर पड़ताल की। ये जानने की कोशिश कि आखिर इस लापरवाही के पीछे के जिम्मेदार कौन हैं? इसमें फायर सिस्टम के नोडल इंचार्ज, फायर प्रोटेक्शन एजेंसी और सिक्योरिटी एजेंसी की कुछ खामियां सामने आई हैं। अस्पताल सूत्र बताते हैं कि 1 अप्रैल को ही अस्पताल में नेशनल क्वालिटी एस्योरेंस स्टैंडर्ड्स (NQAS) की टीम ने मानकों को लेकर जांच की थी। जिसमें नोडल इंचार्ज भी मौजूद थे। उन्हें कुछ हिदायत भी दी थी, लेकिन जिसे उन्होंने समय रहते दुरुस्त नहीं कराया। पास में एम्बुलेंस पार्किंग होने से बड़ी कैजुअल्टी टल गई। अस्पताल में फायर प्रोटेक्शन का काम गोविंद एजेंसी देखती है। लेकिन आग के वक्त ये देखने में आया कि वहां लगी कई पानी की पाइपें खुली ही नहीं। कई फायर एक्सटिंग्युशर भी नहीं चले। वहीं, कैंपस में तैनात सिक्योरिटी गार्ड को आग की भनक तक नहीं लग सकी। वे अगर समय रहते तो सूचना देते तो अस्पताल में अफरातफरी को रोका जा सकता था। सबसे पहले घटना के 3 जिम्मेदारों को जानिए- अब जानिए वो तीन बातें, जिनकी वजह से बड़े हादसे को टाला जा सका- 1. अस्पताल के पास में एम्बुलेंस की पार्किंग थी लोकबंधु अस्पताल के बेहद नजदीक आशियाना के सेक्टर-M1 में एम्बुलेंस का बड़ी पार्किंग है। यहीं पर एम्बुलेंस संचालक का ऑफिस भी है। यही वजह है कि अस्पताल में आग घटना की जानकारी मिलते ही मौके पर बड़ी संख्या में एम्बुलेंस पहुंच गईं। इससे मरीजों को तुरंत दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट किया जा सका। खासकर, आईसीयू और एनआईसीयू के मरीजों की जान बचाई जा सकी। महज आधे घंटे के भीतर 30 से ज्यादा नई एम्बुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। इनके जरिए 5 मरीजों को KGMU के ट्रॉमा सेंटर, 26 मरीजों को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल, 15 मरीजों को बलरामपुर अस्पताल भेजा गया। महिला मरीजों को झलकारी बाई और डफरिन अस्पताल भेजा गया है। 2. डिप्टी सीएम और टॉप अधिकारियों का पहुंचना आग लगने जानकारी होते ही मौके पर स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक पहुंच गए। उनसे दो मिनट पहले जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर पहुंचे थे। महकमे के मंत्री और अधिकारियों की मौजूदगी के कारण अस्पताल प्रशासन तेजी से एक्टिव हुआ। इससे मरीजों को काफी मदद मिली। डिप्टी सीएम खुद ही अधिकारियों और अस्पतालों को फोन पर निर्देश देने लगे। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के निर्देश पर ही बड़ी संख्या में एम्बुलेंस पहुंचीं। जिलाधिकारी ने फौरन ट्रॉमा सेंटर, बलरामपुर अस्पताल और सिविल अस्पताल को अलर्ट किया। मंडलायुक्त रोशन भी मौके पर थीं। अधिकारियों की मौजूदगी के कारण विभाग ने तत्परता दिखाई। 3. भर्ती मरीजों की संख्या का कम होना वीकेंड और अंबेडकर जयंत के चलते लगातार 2 दिन का अवकाश होने के चलते अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या आम दिनों की अपेक्षा काफी कम थी। कम मरीज होने से हताहतों को बाहर निकालना आसान हो गया। अगर सामान्य दिनों में यह हादसा होता तो बेहद भयावह हो सकता था। क्योंकि मरीजों की भीड़ कम होने से लोगों को भागने की जगह नहीं मिल पाती। भीड़ होने पर हॉल के बाहर गैलरी में जगह कम होती तो भगदड़ जैसे हालात बन सकते थे। फायर प्रोटेक्शन एजेंसी का सफाईनामा पढ़िए गोबिंद फायर एजेंसी के प्रोपराइटर गणेश ने बताया- लोकबंधु अस्पताल के फायर प्रोटेक्शन सिस्टम को हम मेंटेन कर रहे हैं। सभी उपकरणों का रखरखाव ठीक से हो इसका ध्यान रखा जाता है। अस्पताल के स्टाफ को 7 से 15 दिन में ट्रेनिंग दी जाती है। मॉक ड्रिल भी की जाती है। घटना की जानकारी होते ही मौके पर मैं खुद टीम के साथ पहुंचा। सभी को बचाने का भरसक प्रयास किया। अब घटना के फाइटर हीरोज से मिलिए, जिन्होंने 2 घंटे आग से लोगों को निकाला एक फाइटर को अस्पताल पहुंचाना पड़ा अस्पताल की फायर यूनिट में काम करने वाले मोहम्मद दिलशाद ने कई लोगों को बचाया। आग जब शांत हुई और रेस्क्यू पूरा हुआ तो दिलशाद अस्पताल के एक कोने में थककर बैठ गया था। उसके कपड़े झुलस चुके थे और सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। बाद में उसे भी इलाज के लिए दूसरे अस्पताल भेजा गया। जान की बाजी लगाकर जान बचाई आग को काबू पाने में और घटना को रोकने में सबसे अहम भूमिका दमकल कर्मियों ने निभाई। सीएफओ मंगेश कुमार ने बताया कि रात 9:44 बजे सूचना मिली। तत्काल आलमबाग, सरोजनी नगर, हजरतगंज, चौक और गोमतीनगर के प्रभारियों को बुलाया गया। 5 टीमें बनाकर काम शुरू हुआ। काम मुश्किल था क्योंकि स्मोक फैला हुआ था। बिजली जा चुकी थी। आग बुझानी थी और लोगों को निकालना भी था। आग बुझाने के लिए 15 दमकल गाड़ियों का इस्तेमाल हुआ। दमकल कर्मियों ने साहस के जान पर खेलते हुए लोगों की जान बचाई। अब उन तीमारदारों से जानिए, जो घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं- ऑक्सीजन सप्लाई बंद होने से जान गई लोकबंधु अस्पताल में आग से हुसैनगंज के छितवापुर निवासी राजकुमार प्रजापति (61) की मौत हो गई। अनूप दुबे ने बताया कि राजकुमार उनके मित्र के पिता थे। 12 तारीख को भर्ती कराया था। लूज मोशन आ रहे थे और सांस लेने में भी दिक्कत थी। आग लगने के बाद अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई बंद कर दी गई, जिससे उनकी मौत हो गई। लोकबंधु अस्पताल से सिविल अस्पताल लेकर आए तो डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। राजकुमार की मौत के बाद परिवार की स्थिति बेहद खराब है। कुछ समझ आता कि आग फैल गई अस्पताल में मौजूद अर्चना सिंह ने बताया कि उनकी चाची मधु सिंह के पिता का ऑपरेशन हुआ था। अपने मरीज के साथ वह वार्ड में थीं तभी अचानक लोगों के चीखने को आवाजें सुनाई देने लगीं। देखते ही देखते धुआं भरने लगा तब समझ में आया कि आग लग गई है। अचानक हुई इस घटना के बाद कुछ देर तो समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है। फिर हम लोग मरीज को धीरे-धीरे अस्पताल के बाहर लेकर आए। हमारे मरीज को सिविल अस्पताल ले जाया गया। सब लोग भाग रहे थे, पिताजी लेटे रहे अस्पताल में मौजूद विश्वजीत ने बताया कि उनके पिता मुन्नी लाल (55) एक सप्ताह से भर्ती थे। आग लगने की सूचना पर भागते हुए हॉस्पिटल पहुंचे तो देखा गेट पर लगभग 400 लोगों का जमावड़ा लगा था। इस भीड़ में किसी के पास उनके पिता नहीं थे। भागते हुए 116 नंबर पर बेड पर पहुंचे तो देखा कि वह लेटे हैं। फौरन उन्हें बाहर निकाला। उसके बाद उस वार्ड और कई मरीज थे सबको बाहर निकाला। फिलहाल पिता को घर लेकर आ गए हैं । उस समय माहौल बहुत गंभीर और डरावना था। 3 किलोमीटर दूर से दिखीं आग की लपटें अस्पताल पहुंचे महेश रावत ने बताया कि उनका घर वहां से 3 किलोमीटर दूर है। अस्पताल में बुआ को भर्ती करवाया था। जब आग लगी तो उसकी लपटें उनके घर तक नजर आ रही थीं। वह काम पर थे। घरवालों ने आग देखकर उन्हें बताया तो वे तत्काल अस्पताल पहुंचे। वहां देखा कि माहौल बहुत गंभीर था। चारों तरफ मरीज चीख-पुकार मचा रहे थे और भाग रहे थे। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
लोकबंधु अस्पताल में 12 दिन पहले हुई थी फायर-सेफ्टी ऑडिट:नोडल एजेंसी ने हिदायतों को किया नजरअंदाज, एम्बुलेंस पार्किंग के चलते बड़ी कैजुअल्टी टली
