लोक निर्माण विभाग में नई नीतियों के चलते ठेकेदार कल्याण समिति ने प्रदेश भर में टेंडर बहिष्कार का निर्णय लिया है। ठेकेदार संघ ने नई नीतियों को जनविरोधी और विभाग के लिए घातक बताया है। कोषागार प्रणाली पर असंतोष जताते हुए ठेकेदार कल्याण समिति के महामंत्री ने राजू वर्मा ने विभागाध्यक्ष व प्रमुख अभियंता को पत्र लिखकर टेंडर बहिष्कार की जानकारी दी है। प्रमुख अभियंता को लिखे पत्र में राजू वर्मा ने कोषागार प्रणाली, रॉयल्टी कटौती और पांच वर्षीय अनुरक्षण नीति को लेकर गहरा असंतोष है। कोषागार प्रणाली से दिक्कत कोषागार प्रणाली के तहत लाखों – करोड़ों रुपए डिपॉजिट के रूप में ठेकेदारों के फंसे हुए हैं। इससे वे बर्बादी के कगार पर पहुंच चुके हैं। इस प्रणाली के चलते ठेकेदारों को भुगतान में अत्यधिक देरी हो रही है। इससे उनकी वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ठेकेदारों का कहना है कि पहले की तुलना में अब यह प्रणाली उन्हें और अधिक संकट में डाल रही है। रॉयल्टी में कटौती से परेशानी नई व्यवस्था के तहत राॅयल्टी में कटौती भी ठेकेदारों के लिए समस्याएं पैदा कर रही है। पहले लोक निर्माण विभाग खुद रॉयल्टी की कटौती करता था अब इसे एक जटिल प्रक्रिया बना दिया गया है। इसके कारण ठेकेदारों को रॉयल्टी के चक्कर में उलझा दिया गया है। अब उन्हें रॉयल्टी की छह गुना ज्यादा कटौती का सामना करना पड़ रहा है। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब ठेकेदारों को ही रॉयल्टी का निरीक्षक बना दिया गया है। इसके चलते ठेकेदार तनाव में रहता है। पांच वर्षीय अनुरक्षण नीति खतरनाक लोक निर्माण विभाग द्वारा अब ग्रामीण सड़कों पर पांच वर्षीय अनुरक्षण नीति लागू करने का प्रस्ताव लाया गया है। हालांकि विभाग के ही अधिकारी इस नीति को लेकर असमंजस में हैं। शासनादेश तो जारी किया गया लेकिन संबंधित आदेश पत्र (बेसओपी) जारी नहीं हो पाया है। विभाग में यह स्पष्ट नहीं है कि यह नीति किस तरह से लागू की जाएगी। प्रमुख अभियंता द्वारा बनाये गए नियमों की स्वीकृति के इंतजार में निविदाएं जारी कर दी गईं हैं जो विभाग के लिए ही फांस बनी हुई हैं। ठेकेदार घेरेंगे मुख्यालय टेंडर प्रक्रिया में जटिलताओं और गलत नीतियों के चलते प्रदेश के ठेकेदारों ने टेंडर बहिष्कार का निर्णय लिया है। ठेकेदारों ने चेतावनी दी है कि यदि एक सप्ताह के भीतर इन मुद्दों पर कार्रवाई नहीं की गई तो वे शीघ्र प्रमुख अभियंता कार्यालय का घेराव करेंगे। ठेकेदारों ने अपनी छह सूत्री मांगों को लेकर विभाग से तत्काल वार्ता की मांग की है। आइए जानते हैं ठेकेदारों की प्रमुख मांगें जानिए टेंडर बहिष्कार हुआ तो क्या होगा ठेकेदारों द्वारा टेंडर बहिष्कार करने के बाद उत्तर प्रदेश के निर्माण और विकास कार्यों पर गहरा असर पड़ेगा। निर्माण कार्यों में देरी यदि ठेकेदारों ने टेंडरों का बहिष्कार किया तो सरकारी परियोजनाओं की समय पर शुरुआत और संपन्नता में भारी देरी हो सकती है। इससे निर्माण कार्यों में रुकावट आ सकती है। महत्वपूर्ण परियोजनाएं जैसे सड़क निर्माण, पुल, स्कूल, अस्पताल आदि प्रभावित हो सकते हैं। इससे राज्य सरकार के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी दिक्कत होगी। राजस्व पर असर ठेकेदारों के टेंडर बहिष्कार करने से सार्वजनिक निर्माण कार्य रुक सकते हैं। इसका सीधा असर राज्य सरकार के राजस्व पर पड़ सकता है। विकास कार्यों की धीमी गति के कारण सरकार की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। विशेषकर उन परियोजनाओं पर सीधे तौर पर असर पड़ेगा जो राजस्व बढ़ाने में मददगार होते हैं। प्रशासनिक संकट टेंडर बहिष्कार के कारण लोक निर्माण विभाग को भारी प्रशासनिक संकट का सामना करना पड़ेगा। नए टेंडर के बिना विभाग के पास अनुभव वाले ठेकेदार नहीं होंगे। इससे काम की गति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे विभाग को निर्माण कार्यों की योजना को फिर से समायोजित करने की जरूरत पड़ सकती है। इससे समय और संसाधन दोनों की बर्बादी होगी। गुणवत्ता में गिरावट यदि ठेकेदारों के विरोध के कारण मजबूरी में टेंडर दिए जाते हैं तो इसके चलते गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है। ठेकेदारों का विश्वास कम होने के कारण जल्दबाजी में या बिना उचित योजना के कार्य करने से सड़कें, भवन और अन्य निर्माण कार्य कमजोर हो सकते हैं। इससे बाद में मरम्मत और रखरखाव की जरूरत भी बढ़ सकती है। निर्माण कार्य ठप हो जाएंगी सरकार की जो योजनाएं विकास कार्यों से जुड़ी हैं वे ठप हो जाएंगी। टेंडर बहिष्कार से नई सड़कें बनाना, बुनियादी ढांचे का निर्माण, ग्रामीण विकास आदि कार्य रुक सकते हैं। इससे ग्रामीण इलाकों में विकास की गति धीमी हो सकती है। सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित हो सकता है। यह समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए भी आर्थिक संकट का कारण बन सकता है। ठेकेदारों और सरकार के बीच तनाव ठेकेदारों का टेंडर बहिष्कार के निर्णय से सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है। जो आगमी चुनाव में सरकार के विरोध में माहौल खड़ा कर सकता है। इससे प्रशासन और ठेकेदारों के बीच विश्वास की कमी बढ़ सकती है। यदि सरकार इन समस्याओं का समाधान नहीं करती है तो इससे निर्माण क्षेत्रों में अनिश्चितता और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो सकती है। नौकरी और श्रमिकों पर प्रभाव जब ठेकेदार निर्माण कार्यों को रोकेंगे या बहिष्कार करेंगे तो इससे श्रमिकों और अन्य कंस्ट्रक्शन उद्योग से जुड़े लोगों की रोज़ी – रोटी पर भी असर पड़ेगा। निर्माण परियोजनाओं में काम करने वाले श्रमिकों के लिए यह संकट का कारण बन सकता है क्योंकि कई मजदूर और श्रमिक इन परियोजनाओं से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। लोक निर्माण विभाग में नई नीतियों के चलते ठेकेदार कल्याण समिति ने प्रदेश भर में टेंडर बहिष्कार का निर्णय लिया है। ठेकेदार संघ ने नई नीतियों को जनविरोधी और विभाग के लिए घातक बताया है। कोषागार प्रणाली पर असंतोष जताते हुए ठेकेदार कल्याण समिति के महामंत्री ने राजू वर्मा ने विभागाध्यक्ष व प्रमुख अभियंता को पत्र लिखकर टेंडर बहिष्कार की जानकारी दी है। प्रमुख अभियंता को लिखे पत्र में राजू वर्मा ने कोषागार प्रणाली, रॉयल्टी कटौती और पांच वर्षीय अनुरक्षण नीति को लेकर गहरा असंतोष है। कोषागार प्रणाली से दिक्कत कोषागार प्रणाली के तहत लाखों – करोड़ों रुपए डिपॉजिट के रूप में ठेकेदारों के फंसे हुए हैं। इससे वे बर्बादी के कगार पर पहुंच चुके हैं। इस प्रणाली के चलते ठेकेदारों को भुगतान में अत्यधिक देरी हो रही है। इससे उनकी वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ठेकेदारों का कहना है कि पहले की तुलना में अब यह प्रणाली उन्हें और अधिक संकट में डाल रही है। रॉयल्टी में कटौती से परेशानी नई व्यवस्था के तहत राॅयल्टी में कटौती भी ठेकेदारों के लिए समस्याएं पैदा कर रही है। पहले लोक निर्माण विभाग खुद रॉयल्टी की कटौती करता था अब इसे एक जटिल प्रक्रिया बना दिया गया है। इसके कारण ठेकेदारों को रॉयल्टी के चक्कर में उलझा दिया गया है। अब उन्हें रॉयल्टी की छह गुना ज्यादा कटौती का सामना करना पड़ रहा है। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब ठेकेदारों को ही रॉयल्टी का निरीक्षक बना दिया गया है। इसके चलते ठेकेदार तनाव में रहता है। पांच वर्षीय अनुरक्षण नीति खतरनाक लोक निर्माण विभाग द्वारा अब ग्रामीण सड़कों पर पांच वर्षीय अनुरक्षण नीति लागू करने का प्रस्ताव लाया गया है। हालांकि विभाग के ही अधिकारी इस नीति को लेकर असमंजस में हैं। शासनादेश तो जारी किया गया लेकिन संबंधित आदेश पत्र (बेसओपी) जारी नहीं हो पाया है। विभाग में यह स्पष्ट नहीं है कि यह नीति किस तरह से लागू की जाएगी। प्रमुख अभियंता द्वारा बनाये गए नियमों की स्वीकृति के इंतजार में निविदाएं जारी कर दी गईं हैं जो विभाग के लिए ही फांस बनी हुई हैं। ठेकेदार घेरेंगे मुख्यालय टेंडर प्रक्रिया में जटिलताओं और गलत नीतियों के चलते प्रदेश के ठेकेदारों ने टेंडर बहिष्कार का निर्णय लिया है। ठेकेदारों ने चेतावनी दी है कि यदि एक सप्ताह के भीतर इन मुद्दों पर कार्रवाई नहीं की गई तो वे शीघ्र प्रमुख अभियंता कार्यालय का घेराव करेंगे। ठेकेदारों ने अपनी छह सूत्री मांगों को लेकर विभाग से तत्काल वार्ता की मांग की है। आइए जानते हैं ठेकेदारों की प्रमुख मांगें जानिए टेंडर बहिष्कार हुआ तो क्या होगा ठेकेदारों द्वारा टेंडर बहिष्कार करने के बाद उत्तर प्रदेश के निर्माण और विकास कार्यों पर गहरा असर पड़ेगा। निर्माण कार्यों में देरी यदि ठेकेदारों ने टेंडरों का बहिष्कार किया तो सरकारी परियोजनाओं की समय पर शुरुआत और संपन्नता में भारी देरी हो सकती है। इससे निर्माण कार्यों में रुकावट आ सकती है। महत्वपूर्ण परियोजनाएं जैसे सड़क निर्माण, पुल, स्कूल, अस्पताल आदि प्रभावित हो सकते हैं। इससे राज्य सरकार के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी दिक्कत होगी। राजस्व पर असर ठेकेदारों के टेंडर बहिष्कार करने से सार्वजनिक निर्माण कार्य रुक सकते हैं। इसका सीधा असर राज्य सरकार के राजस्व पर पड़ सकता है। विकास कार्यों की धीमी गति के कारण सरकार की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। विशेषकर उन परियोजनाओं पर सीधे तौर पर असर पड़ेगा जो राजस्व बढ़ाने में मददगार होते हैं। प्रशासनिक संकट टेंडर बहिष्कार के कारण लोक निर्माण विभाग को भारी प्रशासनिक संकट का सामना करना पड़ेगा। नए टेंडर के बिना विभाग के पास अनुभव वाले ठेकेदार नहीं होंगे। इससे काम की गति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे विभाग को निर्माण कार्यों की योजना को फिर से समायोजित करने की जरूरत पड़ सकती है। इससे समय और संसाधन दोनों की बर्बादी होगी। गुणवत्ता में गिरावट यदि ठेकेदारों के विरोध के कारण मजबूरी में टेंडर दिए जाते हैं तो इसके चलते गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है। ठेकेदारों का विश्वास कम होने के कारण जल्दबाजी में या बिना उचित योजना के कार्य करने से सड़कें, भवन और अन्य निर्माण कार्य कमजोर हो सकते हैं। इससे बाद में मरम्मत और रखरखाव की जरूरत भी बढ़ सकती है। निर्माण कार्य ठप हो जाएंगी सरकार की जो योजनाएं विकास कार्यों से जुड़ी हैं वे ठप हो जाएंगी। टेंडर बहिष्कार से नई सड़कें बनाना, बुनियादी ढांचे का निर्माण, ग्रामीण विकास आदि कार्य रुक सकते हैं। इससे ग्रामीण इलाकों में विकास की गति धीमी हो सकती है। सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित हो सकता है। यह समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए भी आर्थिक संकट का कारण बन सकता है। ठेकेदारों और सरकार के बीच तनाव ठेकेदारों का टेंडर बहिष्कार के निर्णय से सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है। जो आगमी चुनाव में सरकार के विरोध में माहौल खड़ा कर सकता है। इससे प्रशासन और ठेकेदारों के बीच विश्वास की कमी बढ़ सकती है। यदि सरकार इन समस्याओं का समाधान नहीं करती है तो इससे निर्माण क्षेत्रों में अनिश्चितता और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो सकती है। नौकरी और श्रमिकों पर प्रभाव जब ठेकेदार निर्माण कार्यों को रोकेंगे या बहिष्कार करेंगे तो इससे श्रमिकों और अन्य कंस्ट्रक्शन उद्योग से जुड़े लोगों की रोज़ी – रोटी पर भी असर पड़ेगा। निर्माण परियोजनाओं में काम करने वाले श्रमिकों के लिए यह संकट का कारण बन सकता है क्योंकि कई मजदूर और श्रमिक इन परियोजनाओं से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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TB Free Himachal: कफ सिरप से ठीक न हुई खांसी तो होगी टीबी की जांच, सात दिन बाद आएगा फोन कॉल
TB Free Himachal: कफ सिरप से ठीक न हुई खांसी तो होगी टीबी की जांच, सात दिन बाद आएगा फोन कॉल <div dir=”auto” style=”text-align: justify;”><strong>TB Free Himachal Campaign:</strong> भारत में टीबी की बीमारी के मरीजों की संख्या भले ही हर साल कम हो रही है, लेकिन आज भी दुनियाभर में टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भारत में ही हैं. टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस का इलाज 50 साल पहले ही खोज लिया गया था. बावजूद इसके आज भी इस बीमारी की वजह से हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती हैं.</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>WHO के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल 22 लाख लोग टीबी की चपेट में आते हैं. इनमें से 18 लाख से ज्यादा की मौत हो जाती है. टीबी की बीमारी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की वजह से होती है. मरीज को पर्याप्त इलाज होने के बाद भी ये बीमारी घातक साबित हो सकती है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि ज्यादातर लोग टीबी के लक्षणों से अनजान होते हैं.</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”><strong>हिमाचल को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य</strong></div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने का खूब प्रयास किया जा रहा है. इस संबंध में जिला शिमला उपायुक्त ने आज बुधवार को अपने कार्यालय में एक महत्वपूर्ण बैठक की. इस बैठक में अहम फैसला लिया गया है. अब केमिस्ट से कफ सिरप खरीदने वाले लोगों का रिकॉर्ड रखा जाएगा.</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>सात दिन बाद कफ सिरप खरीदने वाले व्यक्ति को फोन किया जाएगा और तबीयत की जानकारी ली जाएगी. अगर सात दिन बाद भी खांसी नहीं गई, तो उसे टीबी की जांच करने के लिए कहा जाएगा. इससे जिला में टीबी के मरीजों की पहचान के बाद इलाज उपलब्ध करवाने में आसानी हो सकेगी.</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”><strong>अक्टूबर महीने से शुरू होगा काम</strong></div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>जिला शिमला उपायुक्त अनुपम कश्यप ने कहा कि प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने जपाइगो के साथ एमओयू साइन किया है. जपाइगो का प्रोजेक्ट टीबी इंप्लीमेंटेशन फ्रेमवर्क एग्रीमेंट (टीफा) जिले में एक अक्टूबर से शुरू किया जाएगा. इससे पहले जपाइगो की ओर से जिले में दवाई विक्रेताओं और आयुर्वेदिक चिकित्सकों के साथ प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा. प्रशिक्षण से प्रोजेक्ट के तहत किए जाने वाले कामों पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध की जाएगी.</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”><strong>टी. बी. के क्या हैं लक्षण?</strong></div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>• तीन हफ्ते से ज्‍यादा खांसी</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>• बुखार, विशेष तौर से शाम को बढ़ने वाला बुखार</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>• छाती में दर्द</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>• वजन का घटना</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>• भूख में कमी</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”>• बलगम के साथ खून आना</div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”> </div>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़े: <a title=”Himachal: राज्यपाल से मिला NPS कर्मचारी संघ, केंद्र से नौ हजार करोड़ दिलवाने की मांग” href=”https://www.abplive.com/states/himachal-pradesh/new-pension-scheme-employees-federation-meeting-with-himachal-governor-shiv-pratap-shukla-ann-2750295″ target=”_self”>Himachal: राज्यपाल से मिला NPS कर्मचारी संघ, केंद्र से नौ हजार करोड़ दिलवाने की मांग</a></strong></div>