<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी को प्रताड़ित करने के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ दायर मामले को रद्द करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वैवाहिक संबंधों से जुड़ी प्राथमिकी को नियमित तरीके से रद्द नहीं किया जाना चाहिए, खासकर तब, जब पीड़ित पक्ष इसका विरोध करे.<br /><br />जज चंद्रधारी सिंह ने कहा कि एक-दूसरे से अलग रह रहे दंपति ने शुरू में भले ही आपसी सहमति से तलाक लेने और सभी विवादों को सुलझाने का फैसला किया था, लेकिन बाद में महिला ने अपने पति के खिलाफ दायर मामलों को वापस लिए जाने का विरोध किया. दावा किया कि उसके पति ने समझौता राशि वापस ले ली है और उसे प्रताड़ित भी किया है.<br /><br /><strong>कानून का उल्लंघन करने की कोशिश की</strong><br />हाईकोर्ट ने इसे “पाठ्यपुस्तकों में दिया जाने वाला उदाहरण” करार दिया कि कैसे एक संपन्न व्यक्ति ने आपराधिक कृत्य होने के बावजूद पीड़ित पक्ष को विवाद के निपटारे के लिए मजबूर करके कानून का उल्लंघन करने की कोशिश की और सुलह दस्तावेजों के साथ अदालत का रुख किया.<br /><br />कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में समझौता हो जाता है, उन्हें रद्द करना पड़ता है, क्योंकि ऐसे मामलों में मुकदमे को आगे बढ़ाने के कोई मायने नहीं होते. हालांकि, वैवाहिक संबंधों से जुड़े आपराधिक मामलों को नियमित तरीके से नहीं रद्द किया जाना चाहिए, खासतौर पर तब, जब अपराध का सामना करने वाला पीड़ित पक्ष समझौते से इनकार करते हुए मामले को रद्द करने का विरोध करे.<br /><br />हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-482 के तहत व्यापक शक्तियां हासिल होने के बावजूद इनका कम से कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए, खासकर ऐसे मामलों में, जिनमें समाज को कोई नुकसान नहीं हुआ हो. समझौते के तहत महिला को अपने पिता के खिलाफ दायर सभी मुकदमे वापस लेने थे, जिसके बदले में वह उसे 45 लाख रुपये का भुगतान करता.<br /><br /><strong>महिला ने किया ये दावा</strong><br />हालांकि, महिला ने हाईकोर्ट में अपने पति की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें उसने अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामले को रद्द करने का अनुरोध किया था. महिला ने दावा किया कि तलाक का दूसरा प्रस्ताव अमल में न आने के कारण समझौता ज्ञापन अमान्य हो गया है. उसने अपने पति पर समझौता राशि वापस लेने और वह रकम हड़पने का आरोप लगाया, जो उसने खुद के व्यवसाय से कमाई थी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हाईकोर्ट ने व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उसे प्राथमिकी रद्द करने की कोई वजह नहीं मिली, क्योंकि कार्रवाई के पीछे का कारण अभी भी कायम है और दोनों पक्षों में हुए समझौते का उस व्यक्ति ने कभी पालन नहीं किया. रिकॉर्ड के अनुसार, दंपति ने 2012 में शादी की थी और 2015 में पत्नी के प्रति कथित आपराधिक विश्वासघात और क्रूरता के लिए व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”जामिया यूनिवर्सिटी में वाल्मीकि जयंती मनाने को लेकर विवाद? सफाई कर्मचारियों ने लगाए ये आरोप” href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/delhi-jamia-university-valmiki-jayanti-row-after-clash-for-diwali-celebration-ann-2809442″ target=”_self”>जामिया यूनिवर्सिटी में वाल्मीकि जयंती मनाने को लेकर विवाद? सफाई कर्मचारियों ने लगाए ये आरोप</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी को प्रताड़ित करने के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ दायर मामले को रद्द करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वैवाहिक संबंधों से जुड़ी प्राथमिकी को नियमित तरीके से रद्द नहीं किया जाना चाहिए, खासकर तब, जब पीड़ित पक्ष इसका विरोध करे.<br /><br />जज चंद्रधारी सिंह ने कहा कि एक-दूसरे से अलग रह रहे दंपति ने शुरू में भले ही आपसी सहमति से तलाक लेने और सभी विवादों को सुलझाने का फैसला किया था, लेकिन बाद में महिला ने अपने पति के खिलाफ दायर मामलों को वापस लिए जाने का विरोध किया. दावा किया कि उसके पति ने समझौता राशि वापस ले ली है और उसे प्रताड़ित भी किया है.<br /><br /><strong>कानून का उल्लंघन करने की कोशिश की</strong><br />हाईकोर्ट ने इसे “पाठ्यपुस्तकों में दिया जाने वाला उदाहरण” करार दिया कि कैसे एक संपन्न व्यक्ति ने आपराधिक कृत्य होने के बावजूद पीड़ित पक्ष को विवाद के निपटारे के लिए मजबूर करके कानून का उल्लंघन करने की कोशिश की और सुलह दस्तावेजों के साथ अदालत का रुख किया.<br /><br />कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में समझौता हो जाता है, उन्हें रद्द करना पड़ता है, क्योंकि ऐसे मामलों में मुकदमे को आगे बढ़ाने के कोई मायने नहीं होते. हालांकि, वैवाहिक संबंधों से जुड़े आपराधिक मामलों को नियमित तरीके से नहीं रद्द किया जाना चाहिए, खासतौर पर तब, जब अपराध का सामना करने वाला पीड़ित पक्ष समझौते से इनकार करते हुए मामले को रद्द करने का विरोध करे.<br /><br />हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-482 के तहत व्यापक शक्तियां हासिल होने के बावजूद इनका कम से कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए, खासकर ऐसे मामलों में, जिनमें समाज को कोई नुकसान नहीं हुआ हो. समझौते के तहत महिला को अपने पिता के खिलाफ दायर सभी मुकदमे वापस लेने थे, जिसके बदले में वह उसे 45 लाख रुपये का भुगतान करता.<br /><br /><strong>महिला ने किया ये दावा</strong><br />हालांकि, महिला ने हाईकोर्ट में अपने पति की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें उसने अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामले को रद्द करने का अनुरोध किया था. महिला ने दावा किया कि तलाक का दूसरा प्रस्ताव अमल में न आने के कारण समझौता ज्ञापन अमान्य हो गया है. उसने अपने पति पर समझौता राशि वापस लेने और वह रकम हड़पने का आरोप लगाया, जो उसने खुद के व्यवसाय से कमाई थी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हाईकोर्ट ने व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उसे प्राथमिकी रद्द करने की कोई वजह नहीं मिली, क्योंकि कार्रवाई के पीछे का कारण अभी भी कायम है और दोनों पक्षों में हुए समझौते का उस व्यक्ति ने कभी पालन नहीं किया. रिकॉर्ड के अनुसार, दंपति ने 2012 में शादी की थी और 2015 में पत्नी के प्रति कथित आपराधिक विश्वासघात और क्रूरता के लिए व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.</p>
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