सहारनपुर के प्रवीण सैनी को मार्शल आर्ट में महारत हासिल है। वो मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट (तृतीय डॉन डिग्री) हैं। नेशनल से लेकर इंटरनेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके हैं। लेकिन, अब ये खिलाड़ी सब्जी की दुकान लगाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। उन्होंने कहा- अब सरकार से किसी भी मदद की कोई आस नहीं है। देश के लिए मेडल लाने के बाद भी उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला। अब वो सब कुछ छोड़ चुके हैं। सब्जी बेचकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं। परिवार पालने को छोड़ दिया खेल
मार्शल आर्ट खिलाड़ी प्रवीण सैनी ने कहा- देश, प्रदेश और जिले में मार्शल आर्ट्स से अच्छा नाम कमाया। लेकिन, सरकारी मदद के नाम पर एक पैसा भी नहीं मिला। मेडल और सर्टिफिकेट तो बहुत मिले। लेकिन, इनसे पेट नहीं भरता है। सरकारी नौकरी मिलती तो अपने परिवार का गुजरा करता और आगे खेलकर देश का नाम भी रोशन करता। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका। परिवार की मजबूरी के कारण पिता की सब्जी की दुकान चलानी पड़ी। पिता की तबीयत खराब रहती थी। अब मैं ही काम करता हूं तो परिवार का गुजारा होता है। 1999 में शुरू की थी मार्शल आर्ट्स
प्रवीण सैनी ने बताया- मार्शल आर्ट्स को ओलिंपिक में जगह नहीं मिल सकी। इस कारण सरकार ने कोई बढ़ावा मार्शल आर्टस और खिलाड़ियों को देने का काम नहीं किया। वो बताते हैं कि 1999 में मार्शल आर्ट्स सीखा। 2002 में मुंबई में इंटरनेशनल कूडो चैम्पियनशिप में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। 2005 में फिर से अंतरराष्ट्रीय कूडो चैम्पियनशिप में भाग लिया और गोल्ड जीता। इसके अलावा स्टेट और जिला स्तर पर भी कई मेडल जीते। लेकिन, आज तक कोई सहायता राशि सरकार की ओर से नहीं मिली। हां, जनप्रतिनिधियों ने आश्वासन खूब दिए। जान पर खेलकर बचाई जान…फिर भी नहीं मिला सम्मान
प्रवीण बताते हैं- 2009 में बड़ी नहर में छह साल का बच्चा डूब रहा था। वे बड़ी नहर पर किसी काम से गए हुए थे। बच्चे को डूबता देख उन्होंने बड़ी नहर में छलांग लगा दी। अपनी जान पर खेलकर उन्होंने बच्चे की जान बचाई। एक घटना 7 मई 2010 की है। दिल्ली रोड पर एक टैंपो चालक ने साइकिल सवार को टक्कर मार दी और वो भाग गया। उन्होंने घटना को देखकर टैंपो के पीछे दौड़ लगा दी और एक किलोमीटर तक उसका पीछा किया। टैंपो वाले को पकड़ लिया। आरोपी टैंपो चालक को पुलिस के हवाले कर दिया। घायल को तुरंत अस्पताल पहुंचाया और उसकी जान बचाई। वहीं, 2011 में सब्जी मंडी में 11 हजार वोल्ट की लाइन टूटकर गिरी। उन्होंने तुरंत साहस का परिचय देते हुए तार के चारों और कुर्सी लगाई और पब्लिक को आने से रोक दिया। यदि ऐसा वो नहीं करते तो कई लोगों की जान चली जाती। वो बताते हैं कि 19 जुलाई 2010 में तत्कालीन सांसद जगदीश राणा ने प्रवीण को घर बुलाकर सम्मानित किया। शासन की ओर से दिए जाने वाले जीवन रक्षक पदक के लिए डीएम स्तर से प्रवीण सैनी का नाम भेजा गया। इसकी जांच हुई, लेकिन आज तक भी उन्हें जीवन रक्षक पदक से सम्मानित नहीं किया गया। 2017 में बहादुरी पुरस्कार के लिए डीएम ने नाम भेजा था। 7 साल से ये पुरस्कार अभी तक नहीं मिला है। सहारनपुर के प्रवीण सैनी को मार्शल आर्ट में महारत हासिल है। वो मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट (तृतीय डॉन डिग्री) हैं। नेशनल से लेकर इंटरनेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके हैं। लेकिन, अब ये खिलाड़ी सब्जी की दुकान लगाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। उन्होंने कहा- अब सरकार से किसी भी मदद की कोई आस नहीं है। देश के लिए मेडल लाने के बाद भी उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला। अब वो सब कुछ छोड़ चुके हैं। सब्जी बेचकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं। परिवार पालने को छोड़ दिया खेल
मार्शल आर्ट खिलाड़ी प्रवीण सैनी ने कहा- देश, प्रदेश और जिले में मार्शल आर्ट्स से अच्छा नाम कमाया। लेकिन, सरकारी मदद के नाम पर एक पैसा भी नहीं मिला। मेडल और सर्टिफिकेट तो बहुत मिले। लेकिन, इनसे पेट नहीं भरता है। सरकारी नौकरी मिलती तो अपने परिवार का गुजरा करता और आगे खेलकर देश का नाम भी रोशन करता। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका। परिवार की मजबूरी के कारण पिता की सब्जी की दुकान चलानी पड़ी। पिता की तबीयत खराब रहती थी। अब मैं ही काम करता हूं तो परिवार का गुजारा होता है। 1999 में शुरू की थी मार्शल आर्ट्स
प्रवीण सैनी ने बताया- मार्शल आर्ट्स को ओलिंपिक में जगह नहीं मिल सकी। इस कारण सरकार ने कोई बढ़ावा मार्शल आर्टस और खिलाड़ियों को देने का काम नहीं किया। वो बताते हैं कि 1999 में मार्शल आर्ट्स सीखा। 2002 में मुंबई में इंटरनेशनल कूडो चैम्पियनशिप में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। 2005 में फिर से अंतरराष्ट्रीय कूडो चैम्पियनशिप में भाग लिया और गोल्ड जीता। इसके अलावा स्टेट और जिला स्तर पर भी कई मेडल जीते। लेकिन, आज तक कोई सहायता राशि सरकार की ओर से नहीं मिली। हां, जनप्रतिनिधियों ने आश्वासन खूब दिए। जान पर खेलकर बचाई जान…फिर भी नहीं मिला सम्मान
प्रवीण बताते हैं- 2009 में बड़ी नहर में छह साल का बच्चा डूब रहा था। वे बड़ी नहर पर किसी काम से गए हुए थे। बच्चे को डूबता देख उन्होंने बड़ी नहर में छलांग लगा दी। अपनी जान पर खेलकर उन्होंने बच्चे की जान बचाई। एक घटना 7 मई 2010 की है। दिल्ली रोड पर एक टैंपो चालक ने साइकिल सवार को टक्कर मार दी और वो भाग गया। उन्होंने घटना को देखकर टैंपो के पीछे दौड़ लगा दी और एक किलोमीटर तक उसका पीछा किया। टैंपो वाले को पकड़ लिया। आरोपी टैंपो चालक को पुलिस के हवाले कर दिया। घायल को तुरंत अस्पताल पहुंचाया और उसकी जान बचाई। वहीं, 2011 में सब्जी मंडी में 11 हजार वोल्ट की लाइन टूटकर गिरी। उन्होंने तुरंत साहस का परिचय देते हुए तार के चारों और कुर्सी लगाई और पब्लिक को आने से रोक दिया। यदि ऐसा वो नहीं करते तो कई लोगों की जान चली जाती। वो बताते हैं कि 19 जुलाई 2010 में तत्कालीन सांसद जगदीश राणा ने प्रवीण को घर बुलाकर सम्मानित किया। शासन की ओर से दिए जाने वाले जीवन रक्षक पदक के लिए डीएम स्तर से प्रवीण सैनी का नाम भेजा गया। इसकी जांच हुई, लेकिन आज तक भी उन्हें जीवन रक्षक पदक से सम्मानित नहीं किया गया। 2017 में बहादुरी पुरस्कार के लिए डीएम ने नाम भेजा था। 7 साल से ये पुरस्कार अभी तक नहीं मिला है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
सहारनपुर में सब्जी बेचने को मजबूर इंटरनेशनल प्लेयर:प्रवीण बोले- मेडल और सर्टिफिकेट तो खूब मिले, लेकिन इनसे पेट नहीं भरता, सरकारी मदद नहीं
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