साल 2002 में एनडी तिवारी की सरकार ने बनाया पहला भू-कानून, 23 साल में उत्तराखंड में हुए कई बदलाव

साल 2002 में एनडी तिवारी की सरकार ने बनाया पहला भू-कानून, 23 साल में उत्तराखंड में हुए कई बदलाव

<p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand Land Law:</strong> उत्तराखंड के गठन के बाद भी राज्य में उत्तर प्रदेश का ही भू-कानून लागू था, जिसके तहत भूमि खरीद पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं था. हालांकि, राज्य सरकारों ने समय-समय पर इसमें बदलाव किए हैं ताकि भूमि के अनियंत्रित उपयोग को रोका जा सके और स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा की जा सके. उत्तराखंड राज्य बनने के दो साल बाद 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार ने पहला भू-कानून बनाया. इसके तहत बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीदने को लेकर कुछ नियम निर्धारित किए गए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वर्ष 2003 में एनडी तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 में संशोधन करते हुए धारा-154 के तहत बाहरी व्यक्तियों के लिए आवासीय उपयोग हेतु 500 वर्गमीटर भूमि खरीदने की सीमा तय कर दी. साथ ही, कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगाया गया और 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति जिलाधिकारी को दी गई. स्वास्थ्य, औद्योगिक और चिकित्सा उपयोग के लिए भूमि खरीदने हेतु सरकार से अनुमति अनिवार्य की गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>साल 2007 में कानून को किया गया कठोर</strong><br />इसके अलावा, कानून में यह प्रावधान जोड़ा गया कि जिस परियोजना के लिए भूमि खरीदी जा रही है, उसे दो साल में पूरा करना होगा. परियोजना में देरी होने पर उचित कारण बताने पर समय-सीमा बढ़ाई जा सकती थी. औद्योगिक पैकेज के कारण बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने 2007 में कानून को और कठोर कर दिया. उन्होंने आवासीय भूमि खरीद की सीमा को 500 वर्गमीटर से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वर्ष 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून में संशोधन करते हुए उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को बढ़ा दिया. इसके साथ ही, किसान होने की बाध्यता समाप्त कर दी गई और कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलना आसान कर दिया गया. पहले यह संशोधन पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित था, लेकिन बाद में इसे मैदानी क्षेत्रों में भी लागू कर दिया गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>भू-कानून की मांग की पर सीएम धामी गठित की थी टीम</strong><br />जनभावनाओं के अनुरूप सशक्त भू-कानून की मांग को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2022 में पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. इस समिति ने 5 सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसमें 23 सिफारिशें शामिल थीं. सरकार ने इस रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक उच्च स्तरीय प्रवर समिति भी गठित की. इससे पहले, कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने से पहले खरीदार और विक्रेता के सत्यापन का निर्देश दिया गया था.</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/ugzKLdM65ts?si=8T6h01Y97wk7-ksy” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”>अब उत्तराखंड सरकार ने नया संशोधन विधेयक कैबिनेट से पास किया है, जिसमें जनभावनाओं का विशेष ध्यान रखा गया है. इस नए कानून के तहत भूमि खरीद से जुड़े पुराने loopholes को दूर किया गया है. पहले लोग किसी उद्देश्य के लिए जमीन खरीदते थे, लेकिन उसका उपयोग किसी और कार्य में कर लेते थे. इस संशोधन के बाद ऐसा करना मुश्किल होगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”>शहरी विकास एवं आवास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि सरकार ने जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस कानून को लागू किया है. यह कानून उत्तराखंड और यहां के निवासियों के हितों की रक्षा करेगा. हालांकि, अभी यह विधेयक विधानसभा के पटल पर रखा जाना बाकी है, जिसके बाद ही इसकी पूरी जानकारी सार्वजनिक हो सकेगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>23 वर्षों में कई बदलावों से गुजरा भू-कानून</strong><br />उत्तराखंड में भू-कानून पिछले 23 वर्षों में कई बदलावों से गुजरा है. शुरुआती वर्षों में जहां इसे सख्त किया गया, वहीं बाद के वर्षों में इसमें कई ढील दी गईं. अब धामी सरकार ने इसे फिर से मजबूत करने का प्रयास किया है ताकि राज्य की भूमि का संरक्षण हो सके और स्थानीय निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें. विधानसभा में पारित होने के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह कानून राज्य में भूमि प्रबंधन को कैसे प्रभावित करता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/up-weather-update-20-february-2025-imd-rain-alert-with-strong-wind-and-thunderstorm-in-up-2888159″><strong>UP Weather Update: यूपी में तेज हवा के साथ बारिश का अलर्ट, वज्रपात की संभावना भी, IMD ने की ये अपील</strong></a></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand Land Law:</strong> उत्तराखंड के गठन के बाद भी राज्य में उत्तर प्रदेश का ही भू-कानून लागू था, जिसके तहत भूमि खरीद पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं था. हालांकि, राज्य सरकारों ने समय-समय पर इसमें बदलाव किए हैं ताकि भूमि के अनियंत्रित उपयोग को रोका जा सके और स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा की जा सके. उत्तराखंड राज्य बनने के दो साल बाद 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार ने पहला भू-कानून बनाया. इसके तहत बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीदने को लेकर कुछ नियम निर्धारित किए गए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वर्ष 2003 में एनडी तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 में संशोधन करते हुए धारा-154 के तहत बाहरी व्यक्तियों के लिए आवासीय उपयोग हेतु 500 वर्गमीटर भूमि खरीदने की सीमा तय कर दी. साथ ही, कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगाया गया और 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति जिलाधिकारी को दी गई. स्वास्थ्य, औद्योगिक और चिकित्सा उपयोग के लिए भूमि खरीदने हेतु सरकार से अनुमति अनिवार्य की गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>साल 2007 में कानून को किया गया कठोर</strong><br />इसके अलावा, कानून में यह प्रावधान जोड़ा गया कि जिस परियोजना के लिए भूमि खरीदी जा रही है, उसे दो साल में पूरा करना होगा. परियोजना में देरी होने पर उचित कारण बताने पर समय-सीमा बढ़ाई जा सकती थी. औद्योगिक पैकेज के कारण बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने 2007 में कानून को और कठोर कर दिया. उन्होंने आवासीय भूमि खरीद की सीमा को 500 वर्गमीटर से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वर्ष 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून में संशोधन करते हुए उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को बढ़ा दिया. इसके साथ ही, किसान होने की बाध्यता समाप्त कर दी गई और कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलना आसान कर दिया गया. पहले यह संशोधन पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित था, लेकिन बाद में इसे मैदानी क्षेत्रों में भी लागू कर दिया गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>भू-कानून की मांग की पर सीएम धामी गठित की थी टीम</strong><br />जनभावनाओं के अनुरूप सशक्त भू-कानून की मांग को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2022 में पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. इस समिति ने 5 सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसमें 23 सिफारिशें शामिल थीं. सरकार ने इस रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक उच्च स्तरीय प्रवर समिति भी गठित की. इससे पहले, कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने से पहले खरीदार और विक्रेता के सत्यापन का निर्देश दिया गया था.</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/ugzKLdM65ts?si=8T6h01Y97wk7-ksy” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”>अब उत्तराखंड सरकार ने नया संशोधन विधेयक कैबिनेट से पास किया है, जिसमें जनभावनाओं का विशेष ध्यान रखा गया है. इस नए कानून के तहत भूमि खरीद से जुड़े पुराने loopholes को दूर किया गया है. पहले लोग किसी उद्देश्य के लिए जमीन खरीदते थे, लेकिन उसका उपयोग किसी और कार्य में कर लेते थे. इस संशोधन के बाद ऐसा करना मुश्किल होगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”>शहरी विकास एवं आवास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि सरकार ने जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस कानून को लागू किया है. यह कानून उत्तराखंड और यहां के निवासियों के हितों की रक्षा करेगा. हालांकि, अभी यह विधेयक विधानसभा के पटल पर रखा जाना बाकी है, जिसके बाद ही इसकी पूरी जानकारी सार्वजनिक हो सकेगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>23 वर्षों में कई बदलावों से गुजरा भू-कानून</strong><br />उत्तराखंड में भू-कानून पिछले 23 वर्षों में कई बदलावों से गुजरा है. शुरुआती वर्षों में जहां इसे सख्त किया गया, वहीं बाद के वर्षों में इसमें कई ढील दी गईं. अब धामी सरकार ने इसे फिर से मजबूत करने का प्रयास किया है ताकि राज्य की भूमि का संरक्षण हो सके और स्थानीय निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें. विधानसभा में पारित होने के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह कानून राज्य में भूमि प्रबंधन को कैसे प्रभावित करता है.</p>
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