हरियाणा के सोनीपत में एक चिनाई मिस्त्री की पड़ोसियों ने बुरी तरह से पिटाई की। गाली गलौज देने से टोकने पर उस पर लाठी से वार किए ही गए, साथ में सिर व पेट में चाकू भी घोंप दिया। उसके गंभीर हालत में खानपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिल कराया गया है। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। मामले में छानबीन जारी है। गांव निजामपुर के रहने वाले संदीप ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि वह चिनाई मिस्त्री का काम करता है। शाम को साढ़े 8 बजे अपने ताऊ ओमप्रकास के लड़के अनिल के पास उसके घऱ पर गया हुआ था। अनिल का पडोसी गली में अपने मकान के सामने खड़ा होकर शराब के नशे में हमारे परिवार को गालियां दे रहा था। बाद में जब वह अनिल के घर से अपने घर जा रहा था ओर कुलदीप के मकान के सामने पहुंचा तो कुलदीप ने उसे गंदी गालियां देनी शुरू कर दी। एक ने घोंपा चाकू,दूसरे ने डंडे से पीटा संदीप ने बताया कि जब उसने कुलदीप से गालियां देने का कारण पूछा तो उसने अपने परिवार को आवाज लगाई कि आज संदीप व उसके परिवार को मजा चखाते हैं। इतने में रवीन्द्र (बीन्द्र) अपने हाथ में लाठी लेकर, पवन व अमन वहां पर आ गए। इन सभी ने उसका रास्ता रोक कर उसकी पिटाई करनी शुरू कर दी। इस दौरान कुलदीप ने उस पर चाकु से वार किया। चाकू उसके सिर व पेट में घोंप दिया। रविन्द्र (बीन्द्र) ने लाठी से चोटें मारी। पवन व अमन ने उसे लात और मुक्के मारे। परिवार के लोगों को देख हुए फरार उसने बताया कि उसने बचाव बचाव की आवाज लगाई तो भाई अनिल व हमारे परिवार के लोग वहां आने लगे। इसके कुलदीप व उसके परिवार के लोग उसे जान से मारने की धमकी देकर हथियारों समेत वहां से चले गए। इसके बाद उसे परिजनों ने गोहाना के नागरिक अस्पताल में दाखिल कराया। डाक्टर ने उसे पीजीआई खानपुर रेफर कर दिया। पुलिस ने कई धाराओं में दर्ज किया केस थाना बरौदा के एसआई राजकुमार ने बताया कि रात को सवा 10 बजे अस्पताल से सूचना मिली थी कि संदीप निवासी निजामपुर लड़ाई झगड़े में घायल होकर अस्पताल में दाखिल है। गैर समय होने के कारण वह रात को मौके पर नहीं जा सके। इसके बाद सुबह अस्पताल में पहुंचे तो पता चला कि संदीप को BPS खानपुर कलां रेफर किया गया है। पुलिस ने वहां संदीप के बयान दर्ज किए। आरोपियों के खिलाफ धारा 115(2),126(2),118(1),351(2),110,3(5) में केस दर्ज कर लिया है। छानबीन जारी है। हरियाणा के सोनीपत में एक चिनाई मिस्त्री की पड़ोसियों ने बुरी तरह से पिटाई की। गाली गलौज देने से टोकने पर उस पर लाठी से वार किए ही गए, साथ में सिर व पेट में चाकू भी घोंप दिया। उसके गंभीर हालत में खानपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिल कराया गया है। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। मामले में छानबीन जारी है। गांव निजामपुर के रहने वाले संदीप ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि वह चिनाई मिस्त्री का काम करता है। शाम को साढ़े 8 बजे अपने ताऊ ओमप्रकास के लड़के अनिल के पास उसके घऱ पर गया हुआ था। अनिल का पडोसी गली में अपने मकान के सामने खड़ा होकर शराब के नशे में हमारे परिवार को गालियां दे रहा था। बाद में जब वह अनिल के घर से अपने घर जा रहा था ओर कुलदीप के मकान के सामने पहुंचा तो कुलदीप ने उसे गंदी गालियां देनी शुरू कर दी। एक ने घोंपा चाकू,दूसरे ने डंडे से पीटा संदीप ने बताया कि जब उसने कुलदीप से गालियां देने का कारण पूछा तो उसने अपने परिवार को आवाज लगाई कि आज संदीप व उसके परिवार को मजा चखाते हैं। इतने में रवीन्द्र (बीन्द्र) अपने हाथ में लाठी लेकर, पवन व अमन वहां पर आ गए। इन सभी ने उसका रास्ता रोक कर उसकी पिटाई करनी शुरू कर दी। इस दौरान कुलदीप ने उस पर चाकु से वार किया। चाकू उसके सिर व पेट में घोंप दिया। रविन्द्र (बीन्द्र) ने लाठी से चोटें मारी। पवन व अमन ने उसे लात और मुक्के मारे। परिवार के लोगों को देख हुए फरार उसने बताया कि उसने बचाव बचाव की आवाज लगाई तो भाई अनिल व हमारे परिवार के लोग वहां आने लगे। इसके कुलदीप व उसके परिवार के लोग उसे जान से मारने की धमकी देकर हथियारों समेत वहां से चले गए। इसके बाद उसे परिजनों ने गोहाना के नागरिक अस्पताल में दाखिल कराया। डाक्टर ने उसे पीजीआई खानपुर रेफर कर दिया। पुलिस ने कई धाराओं में दर्ज किया केस थाना बरौदा के एसआई राजकुमार ने बताया कि रात को सवा 10 बजे अस्पताल से सूचना मिली थी कि संदीप निवासी निजामपुर लड़ाई झगड़े में घायल होकर अस्पताल में दाखिल है। गैर समय होने के कारण वह रात को मौके पर नहीं जा सके। इसके बाद सुबह अस्पताल में पहुंचे तो पता चला कि संदीप को BPS खानपुर कलां रेफर किया गया है। पुलिस ने वहां संदीप के बयान दर्ज किए। आरोपियों के खिलाफ धारा 115(2),126(2),118(1),351(2),110,3(5) में केस दर्ज कर लिया है। छानबीन जारी है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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बनारसी दास को भाषण के दौरान गोली लगी:ट्रेन में छिपकर पत्नी के साथ लाहौर से भारत पहुंचे; कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया साल 1989, चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बने और बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनवा दिया। तब ओम प्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे। उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना था। ओमप्रकाश चौटाला, रोहतक जिले की महम सीट से उपचुनाव में उतरे। ये वो सीट थी जहां से लगातार तीन बार देवीलाल जीत चुके थे। जब चुनाव हुआ तो महम सीट हिंसा की भेंट चढ़ गई। 10 लोगों की जान चली गई। चुनाव रद्द हो गया। महम कांड की आंच चौटाला परिवार तक पहुंची। इधर, अप्रैल 1990, जनता दल में नए अध्यक्ष को लेकर गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- एसआर बोम्मई का, जिन्हें समाजवादी नेता चंद्रशेखर का समर्थन था। दूसरा- एस जयपाल रेड्डी का, जिनके खेमे में रामकृष्ण हेगड़े और अजीत सिंह जैसे नेता थे। देवीलाल, बोम्मई का समर्थन कर रहे थे। उन्हें लगता था कि बोम्मई अध्यक्ष बनते हैं, तो ओमप्रकाश चौटाला की कुर्सी बच जाएगी। उधर, रेड्डी को आशंका थी कि प्रधानमंत्री वीपी 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छोटे से गांव में हुआ। पिता रामस्वरूप गुप्ता गांव में दुकान चलाते थे और खेती भी करते थे। उनकी मौसी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कुछ सालों तक अपनी मौसी के पास रहे, लेकिन जब उनको बेटा हुआ तो बनारसी दास माता-पिता के पास लौट आए। बनारसी दास की तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई। उन दिनों स्कूल में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था। वे इसका विरोध करते और उनके साथ ही बैठते। आठवीं के बाद वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे। जब फीस जमा करने की बारी आई तो बनारसी दास ने 100 रुपए का नोट दिया। नोट किनारे से फटा था, मुनीम ने नोट लेने से मना कर दिया। बनारसी दास के पास सिर्फ उतने ही रुपए थे। पूरा दिन उन्होंने सड़क पर बिताया। शाम को कॉलेज के मालिक घनश्यामदास बिड़ला ने उन्हें देखा और कारण पूछा। तब बनारसी दास ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इसके बाद उन्हें एडमिशन मिल गया। बिड़ला कॉलेज से 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वे पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में उतर गए। उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ साल जेल में भी रहे। बंटवारे के दौरान पत्नी को 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हालात बदले तो वे जेल से बाहर आए। इस दौरान जींद के महाराजा ने सीमित मताधिकार से चुने गए 65 सदस्यों की विधानसभा का गठन किया। बनारसी दास जींद से निर्विरोध सदस्य चुने गए। आजादी के बाद बनारसीदास और उनके साथियों ने जींद रियासत का पंजाब में विलय करने के लिए संघर्ष किया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद पंजाब की सभी रियासतों को मिलाकर पेप्सू यूनियन बनाया गया। आगे चलकर पंजाब में इसका विलय कर दिया गया। रियासती प्रजामंडलों का कांग्रेस में विलय कर दिया। बनारसी दास भी कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने भिवानी को कार्यक्षेत्र बनाया। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के बैनर तले मजदूरों को संगठित किया। इस दौरान उन्होंने 17 दिन तक अनशन भी किया। वे 1953 से 1960 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1953 में ही भिवानी नगरपालिका के पहले गैर सरकारी अध्यक्ष चुने गए। 1968 में बनारसीदास भिवानी से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीतीं। बनारसी दास फिर विधायक बने। बंसीलाल दोबारा मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद बंसीलाल ने बनारसी दास को स्पीकर बनाया। बंसीलाल को इंदिरा का बुलावा और बनारसी दास सीएम बन गए स्पीकर बनने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने विधानसभा का सारा काम हिंदी में करने का आदेश दिया। इससे वे चर्चा में आ गए। यह पहला मौका था जब किसी विधानसभा में सारा काम हिंदी में करने का आदेश जारी हुआ था। 1973 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंसीलाल मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उन्हें बिजली, सिंचाई, कृषि, सहकारिता, स्वास्थ्य और नागरिक प्रशासन मंत्रालय मिला। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को दिल्ली बुला लिया। बंसीलाल हरियाणा की कमान अपने किसी करीबी को सौंपना चाहते थे। उन्होंने बनारसी दास को मुफीद माना। इस तरह 1 दिसंबर 1975 को बनारसी दास गुप्ता पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि इस दौरान उन पर डमी सीएम होने का आरोप भी लगा। कहा जाता है कि भले ही बंसीलाल दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे, लेकिन हरियाणा में हर फैसले में उनकी और उनके बेटे सुरेंद्र की दखल रहती थी। 1977 में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, बनारसी दास ने पाला बदल लिया 1977 में इमरजेंसी हटने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3 सीटों पर सिमट गई। बनारसी दास भी चुनाव हार गए। जनता पार्टी 75 सीटों के साथ सत्ता में आई। चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि दो साल बाद ही उनकी जगह भजनलाल को सीएम बना दिया गया। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल के बीच पंजाब में समझौता हुआ। इसमें चंड़ीगढ़ और रावी-व्यास के जल बंटवारे से जुड़ा मामला शामिल था। इसे लेकर हरियाणा में काफी आक्रोश था। देवीलाल ने 18 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देकर ‘न्याय युद्ध’ छेड़ दिया। बनारसी दास ने कांग्रेस को आंदोलन में शामिल होने की सलाह दी, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इसके बाद बनारसी दास कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवीलाल के साथ आ गए। 1987 में विधानसभा चुनाव हुए तो चौधरी देवीलाल को 60 सीटें मिलीं। देवीलाल मुख्यमंत्री बने और बनारसी दास गुप्ता को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा, बनारसी दास पर कठपुतली सीएम का ठप्पा लगा दो साल बाद केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी, तो देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। देवीलाल राज्य की सत्ता बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप कर दिल्ली की तरफ बढ़ गए। चौटाला सीएम बने तो वे विधायक नहीं थे। उन्होंने महम सीट पर उपचुनाव में पर्चा भर दिया। खाप पंचायतों ने इसका विरोध किया और देवीलाल के करीबी रहे आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर समर्थन दे दिया। 27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई। आनंद सिंह दांगी ने चुनाव आयोग से आठ वोटिंग सेंटर्स पर बूथ कैप्चरिंग की शिकायत की। अगले दिन यानी 28 फरवरी को उन आठ बूथों पर फिर से वोटिंग हुई। उस दौरान भी भारी हिंसा हुई। भीड़ ने बचाव में जुटी CRPF के एक जवान की हत्या कर दी। इसके बाद सुरक्षाबलों ने भीड़ पर गोलियां चला दीं जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- महम हिंसा के बाद जनता दल में अजीत सिंह, अरुण नेहरू, जॉर्ज फर्नांडिस और रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं ने वीपी सिंह पर चौटाला को हटाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 3 मार्च को एक बैठक में देवीलाल और अजीत सिंह में जमकर गाली-गलौज हुई। इसी रात एक और बैठक हुई इसमें जनता दल शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बैठक में उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह यादव, बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव और ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक ने चौटाला को हटाने की वकालत की। देवीलाल के खास शरद यादव भी चौटाला को हटाने के पक्ष में थे। हालांकि बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। अब इसका फैसला करने का जिम्मा एक कमेटी को सौंप गया। कमेटी में अजीत सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, अरुण नेहरू और यशवंत सिन्हा शामिल थे। 4 मार्च को कमेटी ने तय किया कि पार्टी चुनाव आयोग से महम सीट पर फिर से वोटिंग कराने को कहे। साथ ही चौटाला इस्तीफा दें। आखिरकार 22 मई 1990 को चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उसी दिन देवीलाल ने अपने करीबी और तब डिप्टी सीएम रहे बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया। हालांकि दो महीने के भीतर ही ओमप्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए। उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए। बनारसी दास गुप्ता 51 दिन ही सीएम रह सके। बनारसी दास गुप्ता को गोली लगी, बाल-बाल बचे इसके बाद बनारसी दास गुप्ता के देवीलाल से वैचारिक मतभेद बढ़ गए। वे सक्रिय राजनीति से अलग-थलग रहने लगे थे। 23 सितंबर 1990 की बात है। बनारसी दास भिवानी में महाराजा अग्रसेन जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसी दौरान अचानक उन पर फायरिंग हो गई। गोली उनके सीने को चीरती हुई पार निकल गई। हालांकि लंबे इलाज के बाद वे ठीक हो गए। इस घटना ने बनारसी दास को फिर से राजनीति में एक्टिव होने की ऊर्जा दे दी। राजीव गांधी के कहने पर बनारसी दास कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में भजनलाल सरकार के दौरान उन्हें राज्यसभा भेजा गया। कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया और समाजसेवा की तरफ बढ़ गए। 29 अगस्त 2007 को बनारसी दास का निधन हो गया।