हरियाणा में मेयर चुनाव पर कानूनी पेंच फंस सकता है:निगम एक्ट में वोटिंग के बाद पार्षदों को भी अधिकार; 6 सवाल-जवाब से जानिए पूरा विवाद

हरियाणा में मेयर चुनाव पर कानूनी पेंच फंस सकता है:निगम एक्ट में वोटिंग के बाद पार्षदों को भी अधिकार; 6 सवाल-जवाब से जानिए पूरा विवाद

हरियाणा में 10 नगर निगमों के मेयर चुनाव में कानूनी पेंच फंस सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हरियाणा के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट-1994 में मेयर चुनाव के लिए एक नहीं, बल्कि 2 नियम बना दिए गए। एक तरफ मेयर का सीधे पब्लिक के वोट से चुनाव हो रहा है तो दूसरी तरफ पार्षदों को भी पहली मीटिंग में मेयर चुनाव का अधिकार दे रखा है। ऐसे में अगर जनता के चुने मेयर को नगर निगम हाउस में पार्षद बहुमत से नकार देते हैं तो फिर कानूनी संकट खड़ा हो सकता है। बता दें कि रविवार को प्रदेश के 7 निगमों, फरीदाबाद, गुरुग्राम, हिसार, करनाल, मानेसर, रोहतक और यमुनानगर मेयर चुनाव और सोनीपत व अंबाला में मेयर उपचुनाव हुआ है। पानीपत में मेयर के लिए 9 मार्च को वोटिंग होनी है। मेयर चुनाव पर कानूनी पेंच के बारे में 6 सवाल-जवाब से जानिए…… 1. हरियाणा में मेयर चुनाव की पहले क्या व्यवस्था थी?
जवाब: दूसरे प्रदेशों की तरह ही हरियाणा में भी मेयर चुना जाता था। जनता वोट से वार्डों के पार्षद चुनती थी। फिर पार्षदों के बहुमत से उन्हीं में से कोई एक पार्षद मेयर चुना जाता था। इसके लिए हरियाणा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट-1994 की धारा 53 में मेयर चुनाव के लिए यह नियम बनाया गया था। 2. मेयर चुनाव की अभी क्या व्यवस्था है, यह बदलाव कैसे हुआ?
जवाब: हरियाणा की BJP सरकार ने हरियाणा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट-1994 में सितंबर 2018 में संशोधन कर दिया। इसमें यह तय किया गया कि अब मेयर के चुनाव वार्डों के पार्षद नहीं, बल्कि सीधे जनता करेगी। इसके बाद अब वार्ड पार्षदों के साथ मेयर का चुनाव भी सीधे लोगों के वोट से किया जाता है। इसे हरियाणा विधानसभा से भी पास कराया गया। 3. सरकार एक्ट में संशोधन कर चुकी, फिर 2 तरह की व्यवस्थाएं क्यों हैं?
जवाब: असल में सरकार ने एक्ट में तो संशोधन कर दिया, लेकिन वार्ड पार्षदों के मेयर चुनने के लिए एक्ट में जो धारा 53 थी, उसे नहीं हटाया गया। वह अभी भी एक्ट में शामिल है। जिस वक्त एक्ट को विधानसभा से संशोधित किया गया, उस वक्त इस धारा को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया। ऐसे में यह एक्ट एक ही है लेकिन इसमें मेयर चुनाव को लेकर 2 तरह की व्यवस्थाएं हैं। 2019 में जारी एक्ट में मौजूद धारा 53, जिसमें मेयर के पार्षदों से चुनाव का जिक्र है 4. जनता मेयर चुन चुकी, अब पार्षद कैसे चुनाव करेंगे?
जवाब: एक्ट के एक प्रावधान के हिसाब से जनता मेयर का चुनाव कर चुकी है। इसके नतीजे 12 मार्च को आएंगे। अब दूसरे प्रावधान के हिसाब से नतीजों के 30 दिन के भीतर निगम हाउस की पहली मीटिंग बुलाई जाएगी। इसमें जीते हुए पार्षदों में से मेयर को चुना जाएगा। इस चुनावी प्रक्रिया की अध्यक्षता के लिए मंडल आयुक्त ऐसे पार्षद को मनोनीत करेंगे जो मेयर चुनाव का उम्मीदवार न रहा हो। 5. एक्ट में संशोधन के बाद क्या पार्षदों ने मेयर चुना?
जवाब: सितंबर 2018 में एक्ट में संशोधन के बाद दिसंबर 2018 में करनाल, पानीपत, हिसार, रोहतक और यमुनानगर में सीधे मेयर चुनाव हुए। उसके दो साल बाद दिसंबर 2020 में अंबाला, पंचकूला, सोनीपत नगर निगमों में मेयर चुनाव हुए। हालांकि, जनता के चुने जाने के बाद हाउस में पार्षदों के मेयर चुनने वाली प्रक्रिया को फॉलो नहीं किया गया। 6. जब एक्ट की संशोधित धारा का पालन हो रहा तो फिर कानूनी पेंच कैसे है?
जवाब: इस बारे में हमने म्यूनिसिपल कानून के एक्सपर्ट व पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार से बात की। उन्होंने हरियाणा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट में दोनों तरह की व्यवस्था होने की पुष्टि की। उन्होंने इसको लेकर 2 बातें बताईं.. पहली… एक्ट की धारा में संशोधन न होने से विवाद हो सकता है। अगर मेयर चुनाव जीते उम्मीदवार के विरोध में ज्यादा पार्षद हों तो उनके पास कानूनी विकल्प होगा कि वह कोर्ट जाकर मेयर चुनाव पार्षदों के जरिए कराने की मांग कर सकते हैं। इसके लिए वह एक्ट में पुरानी धारा 53 का हवाला दे सकते हैं। दूसरी.. सरकार को पहले एक्ट से दोहरी व्यवस्था को खत्म करना चाहिए था। इसके बाद ही सभी नगर निगमों के चुनाव कराने चाहिए थे। पुरानी धारा खत्म होने से ही मेयर के सीधे वोटर्स से चुनाव को पूर्ण वैधानिक मान्यता मिल सकती है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आगामी दिनों में मेयर चुनाव के मामले में कानूनी पेंच फंस सकता है। हरियाणा में 10 नगर निगमों के मेयर चुनाव में कानूनी पेंच फंस सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हरियाणा के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट-1994 में मेयर चुनाव के लिए एक नहीं, बल्कि 2 नियम बना दिए गए। एक तरफ मेयर का सीधे पब्लिक के वोट से चुनाव हो रहा है तो दूसरी तरफ पार्षदों को भी पहली मीटिंग में मेयर चुनाव का अधिकार दे रखा है। ऐसे में अगर जनता के चुने मेयर को नगर निगम हाउस में पार्षद बहुमत से नकार देते हैं तो फिर कानूनी संकट खड़ा हो सकता है। बता दें कि रविवार को प्रदेश के 7 निगमों, फरीदाबाद, गुरुग्राम, हिसार, करनाल, मानेसर, रोहतक और यमुनानगर मेयर चुनाव और सोनीपत व अंबाला में मेयर उपचुनाव हुआ है। पानीपत में मेयर के लिए 9 मार्च को वोटिंग होनी है। मेयर चुनाव पर कानूनी पेंच के बारे में 6 सवाल-जवाब से जानिए…… 1. हरियाणा में मेयर चुनाव की पहले क्या व्यवस्था थी?
जवाब: दूसरे प्रदेशों की तरह ही हरियाणा में भी मेयर चुना जाता था। जनता वोट से वार्डों के पार्षद चुनती थी। फिर पार्षदों के बहुमत से उन्हीं में से कोई एक पार्षद मेयर चुना जाता था। इसके लिए हरियाणा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट-1994 की धारा 53 में मेयर चुनाव के लिए यह नियम बनाया गया था। 2. मेयर चुनाव की अभी क्या व्यवस्था है, यह बदलाव कैसे हुआ?
जवाब: हरियाणा की BJP सरकार ने हरियाणा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट-1994 में सितंबर 2018 में संशोधन कर दिया। इसमें यह तय किया गया कि अब मेयर के चुनाव वार्डों के पार्षद नहीं, बल्कि सीधे जनता करेगी। इसके बाद अब वार्ड पार्षदों के साथ मेयर का चुनाव भी सीधे लोगों के वोट से किया जाता है। इसे हरियाणा विधानसभा से भी पास कराया गया। 3. सरकार एक्ट में संशोधन कर चुकी, फिर 2 तरह की व्यवस्थाएं क्यों हैं?
जवाब: असल में सरकार ने एक्ट में तो संशोधन कर दिया, लेकिन वार्ड पार्षदों के मेयर चुनने के लिए एक्ट में जो धारा 53 थी, उसे नहीं हटाया गया। वह अभी भी एक्ट में शामिल है। जिस वक्त एक्ट को विधानसभा से संशोधित किया गया, उस वक्त इस धारा को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया। ऐसे में यह एक्ट एक ही है लेकिन इसमें मेयर चुनाव को लेकर 2 तरह की व्यवस्थाएं हैं। 2019 में जारी एक्ट में मौजूद धारा 53, जिसमें मेयर के पार्षदों से चुनाव का जिक्र है 4. जनता मेयर चुन चुकी, अब पार्षद कैसे चुनाव करेंगे?
जवाब: एक्ट के एक प्रावधान के हिसाब से जनता मेयर का चुनाव कर चुकी है। इसके नतीजे 12 मार्च को आएंगे। अब दूसरे प्रावधान के हिसाब से नतीजों के 30 दिन के भीतर निगम हाउस की पहली मीटिंग बुलाई जाएगी। इसमें जीते हुए पार्षदों में से मेयर को चुना जाएगा। इस चुनावी प्रक्रिया की अध्यक्षता के लिए मंडल आयुक्त ऐसे पार्षद को मनोनीत करेंगे जो मेयर चुनाव का उम्मीदवार न रहा हो। 5. एक्ट में संशोधन के बाद क्या पार्षदों ने मेयर चुना?
जवाब: सितंबर 2018 में एक्ट में संशोधन के बाद दिसंबर 2018 में करनाल, पानीपत, हिसार, रोहतक और यमुनानगर में सीधे मेयर चुनाव हुए। उसके दो साल बाद दिसंबर 2020 में अंबाला, पंचकूला, सोनीपत नगर निगमों में मेयर चुनाव हुए। हालांकि, जनता के चुने जाने के बाद हाउस में पार्षदों के मेयर चुनने वाली प्रक्रिया को फॉलो नहीं किया गया। 6. जब एक्ट की संशोधित धारा का पालन हो रहा तो फिर कानूनी पेंच कैसे है?
जवाब: इस बारे में हमने म्यूनिसिपल कानून के एक्सपर्ट व पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार से बात की। उन्होंने हरियाणा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट में दोनों तरह की व्यवस्था होने की पुष्टि की। उन्होंने इसको लेकर 2 बातें बताईं.. पहली… एक्ट की धारा में संशोधन न होने से विवाद हो सकता है। अगर मेयर चुनाव जीते उम्मीदवार के विरोध में ज्यादा पार्षद हों तो उनके पास कानूनी विकल्प होगा कि वह कोर्ट जाकर मेयर चुनाव पार्षदों के जरिए कराने की मांग कर सकते हैं। इसके लिए वह एक्ट में पुरानी धारा 53 का हवाला दे सकते हैं। दूसरी.. सरकार को पहले एक्ट से दोहरी व्यवस्था को खत्म करना चाहिए था। इसके बाद ही सभी नगर निगमों के चुनाव कराने चाहिए थे। पुरानी धारा खत्म होने से ही मेयर के सीधे वोटर्स से चुनाव को पूर्ण वैधानिक मान्यता मिल सकती है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आगामी दिनों में मेयर चुनाव के मामले में कानूनी पेंच फंस सकता है।   हरियाणा | दैनिक भास्कर