हरियाणा में विधानसभा चुनाव तय समय से पहले हो सकते हैं। भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 25 अगस्त के बाद इसकी घोषणा करेगा। इस साल 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें हरियाणा के अलावा महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड शामिल हैं। ECI के सूत्रों का कहना है कि जम्मू कश्मीर के कारण चुनाव की डेट में बदलाव किया गया है। 2019 में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने 21 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी किया था। इस सरकार का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 को खत्म होगा। समय से पहले विधानसभा चुनाव को लेकर हरियाणा सरकार भी अलर्ट हो गई है। सीएम नायब सैनी ने मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) और टॉप ब्यूरोक्रेसी को अलर्ट कर दिया है। यही वजह है कि CMO के ऑफिसर्स देर रात तक काम कर रहे हैं। हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी पंकज अग्रवाल पहले ही बता चुके हैं कि विधानसभा चुनावों को लेकर भारतीय चुनाव आयोग की टीम 12-13 अगस्त को हरियाणा दौरे पर आ रही है। स्थानीय स्तर पर सभी 22 जिलों मे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के इंजीनियरों द्वारा EVM चेकिंग का काम किया जा रहा है। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए 817 पोलिंग बूथ नए बनाए गए हैं, जिसके बाद पोलिंग बूथों की संख्या बढ़कर 20,629 हो गई है। समय से पहले विधानसभा चुनाव कराने की ये 3 बड़ी वजहें… 1. जम्मू-कश्मीर जम्मू-कश्मीर में 2018 से सरकार नहीं है। यहां राष्ट्रपति शासन लागू है। यहां अब विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां सितंबर 2024 में विधानसभा चुनाव संभावित हैं, जबकि हरियाणा सहित 3 अन्य राज्यों में अक्टूबर 2024 में विधानसभा प्रस्तावित है। जम्मू-कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से लगती है। आर्टिकल 370 हटने के बाद यहां पिछले कुछ दिनों से आतंकी घटनाएं बढ़ गई हैं, ऐसे में केंद्र सरकार विधानसभा चुनाव कराकर इतिश्री करना चाहती है। यही वजह है कि दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव समय से पहले कराने पड़ रहे हैं। 2. विपक्ष को ज्यादा टाइम देने के मूड में नहीं केंद्र राजनीतिक जानकारों का कहना है लोकसभा चुनाव के बाद BJP के लिए इन चारों राज्यों के विधानसभा चुनाव बड़े महत्वपूर्ण होने वाले हैं। इन राज्यों के चुनाव का सीधा असर केंद्र की सरकार पर पड़ेगा। चूंकि अभी भाजपा ने केंद्र में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के सहयोग से बनी है। यदि इन राज्यों में भाजपा को अच्छे परिणाम नहीं मिले तो जाहिर है कि इसका सीधा सरकार गठबंधन के सहयोगियों पर भी पड़ेगा। जल्द चुनाव होने से विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस को अपनी तैयारियों को लेकर टाइम नहीं मिल पाएगा। 3. हरियाणा में भी BJP चाहती है जल्दी चुनाव केंद्र के साथ हरियाणा BJP भी यह चाहती है कि यहां समय से पहले ही विधानसभा चुनाव हों। इसका इनपुट हरियाणा की टॉप लीडरशिप केंद्र को दे चुकी है। यदि यहां समय से पहले चुनाव होते हैं तो हरियाणा सरकार विधानसभा में मानसून सेशन एक दिन का कर सकती है। संविधान विशेषज्ञ राम नारायण यादव ने बताया आर्टिकल 174 के कारण सरकार को 6 महीने के भीतर विधानसभा सत्र बुलाना जरूरी है। चाहे वह एक दिन ही सत्र क्यों न हो। हरियाणा में BJP-JJP गठबंधन की सरकार थी, इसी साल अलग हुए दोनों हरियाणा में 2019 में पिछले विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा को 41 और जजपा को 10 सीट मिली थीं। 6 निर्दलीय और एक हलोपा विधायक के साथ भाजपा ने सरकार बनाई थी। मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि वह 5 साल कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इसी साल 12 मार्च को जजपा और भाजपा का गठबंधन टूट गया। मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी को विधायक दल की बैठक में नेता चुना गया। इसके बाद मुख्यमंत्री नायब सैनी ने दावा किया कि उनके पास 48 विधायकों का समर्थन है। मीटिंग में भाजपा के 41 और 7 निर्दलीय विधायक शामिल हुए थे, यानी 48। विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 46 विधायकों का सपोर्ट चाहिए था। लोकसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस को 5-5 सीट मिलीं लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने 5 सीटें जीतीं। वहीं भाजपा को भी 5 सीटों पर जीत मिली। 2019 में भाजपा ने यहां 10 में से 10 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को यहां एक भी सीट नहीं मिल पाई थी। उनके दिग्गज नेता तक चुनाव हार गए थे। हरियाणा विधानसभा में बदल चुकी स्थिति लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा विधानसभा के नंबरों में बदलाव हो चुका है। 90 विधायकों वाली विधानसभा में अब 87 विधायक ही बचे हैं। सिरसा की रानियां विधानसभा से रणजीत सिंह चौटाला के इस्तीफे, बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक राकेश दौलताबाद के निधन और अंबाला लोकसभा सीट से मुलाना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी के अंबाला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह स्थिति बनी है। 87 सदस्यीय इस विधानसभा में अब बहुमत का आंकड़ा 46 से गिरकर 44 हो गया है। अब भाजपा, कांग्रेस के पास विधायकों की क्या है संख्या मौजूदा स्थिति की बात करें तो भाजपा के पास 41 विधायक हैं। इसके अलावा उन्हें हलोपा विधायक गोपाल कांडा और एक निर्दलीय नयनपाल रावत का समर्थन प्राप्त है। भाजपा के पास 43 विधायक हैं। वहीं विपक्ष में भाजपा से एक ज्यादा यानी 44 विधायक हैं। इनमें कांग्रेस के 29 (किरण चौधरी अभी कांग्रेस विधायक हैं, स्पीकर ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है।), जजपा के 10, निर्दलीय 4 और एक इनेलो विधायक हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनाव तय समय से पहले हो सकते हैं। भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 25 अगस्त के बाद इसकी घोषणा करेगा। इस साल 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें हरियाणा के अलावा महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड शामिल हैं। ECI के सूत्रों का कहना है कि जम्मू कश्मीर के कारण चुनाव की डेट में बदलाव किया गया है। 2019 में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने 21 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी किया था। इस सरकार का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 को खत्म होगा। समय से पहले विधानसभा चुनाव को लेकर हरियाणा सरकार भी अलर्ट हो गई है। सीएम नायब सैनी ने मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) और टॉप ब्यूरोक्रेसी को अलर्ट कर दिया है। यही वजह है कि CMO के ऑफिसर्स देर रात तक काम कर रहे हैं। हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी पंकज अग्रवाल पहले ही बता चुके हैं कि विधानसभा चुनावों को लेकर भारतीय चुनाव आयोग की टीम 12-13 अगस्त को हरियाणा दौरे पर आ रही है। स्थानीय स्तर पर सभी 22 जिलों मे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के इंजीनियरों द्वारा EVM चेकिंग का काम किया जा रहा है। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए 817 पोलिंग बूथ नए बनाए गए हैं, जिसके बाद पोलिंग बूथों की संख्या बढ़कर 20,629 हो गई है। समय से पहले विधानसभा चुनाव कराने की ये 3 बड़ी वजहें… 1. जम्मू-कश्मीर जम्मू-कश्मीर में 2018 से सरकार नहीं है। यहां राष्ट्रपति शासन लागू है। यहां अब विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां सितंबर 2024 में विधानसभा चुनाव संभावित हैं, जबकि हरियाणा सहित 3 अन्य राज्यों में अक्टूबर 2024 में विधानसभा प्रस्तावित है। जम्मू-कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से लगती है। आर्टिकल 370 हटने के बाद यहां पिछले कुछ दिनों से आतंकी घटनाएं बढ़ गई हैं, ऐसे में केंद्र सरकार विधानसभा चुनाव कराकर इतिश्री करना चाहती है। यही वजह है कि दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव समय से पहले कराने पड़ रहे हैं। 2. विपक्ष को ज्यादा टाइम देने के मूड में नहीं केंद्र राजनीतिक जानकारों का कहना है लोकसभा चुनाव के बाद BJP के लिए इन चारों राज्यों के विधानसभा चुनाव बड़े महत्वपूर्ण होने वाले हैं। इन राज्यों के चुनाव का सीधा असर केंद्र की सरकार पर पड़ेगा। चूंकि अभी भाजपा ने केंद्र में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के सहयोग से बनी है। यदि इन राज्यों में भाजपा को अच्छे परिणाम नहीं मिले तो जाहिर है कि इसका सीधा सरकार गठबंधन के सहयोगियों पर भी पड़ेगा। जल्द चुनाव होने से विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस को अपनी तैयारियों को लेकर टाइम नहीं मिल पाएगा। 3. हरियाणा में भी BJP चाहती है जल्दी चुनाव केंद्र के साथ हरियाणा BJP भी यह चाहती है कि यहां समय से पहले ही विधानसभा चुनाव हों। इसका इनपुट हरियाणा की टॉप लीडरशिप केंद्र को दे चुकी है। यदि यहां समय से पहले चुनाव होते हैं तो हरियाणा सरकार विधानसभा में मानसून सेशन एक दिन का कर सकती है। संविधान विशेषज्ञ राम नारायण यादव ने बताया आर्टिकल 174 के कारण सरकार को 6 महीने के भीतर विधानसभा सत्र बुलाना जरूरी है। चाहे वह एक दिन ही सत्र क्यों न हो। हरियाणा में BJP-JJP गठबंधन की सरकार थी, इसी साल अलग हुए दोनों हरियाणा में 2019 में पिछले विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा को 41 और जजपा को 10 सीट मिली थीं। 6 निर्दलीय और एक हलोपा विधायक के साथ भाजपा ने सरकार बनाई थी। मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि वह 5 साल कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इसी साल 12 मार्च को जजपा और भाजपा का गठबंधन टूट गया। मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी को विधायक दल की बैठक में नेता चुना गया। इसके बाद मुख्यमंत्री नायब सैनी ने दावा किया कि उनके पास 48 विधायकों का समर्थन है। मीटिंग में भाजपा के 41 और 7 निर्दलीय विधायक शामिल हुए थे, यानी 48। विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 46 विधायकों का सपोर्ट चाहिए था। लोकसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस को 5-5 सीट मिलीं लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने 5 सीटें जीतीं। वहीं भाजपा को भी 5 सीटों पर जीत मिली। 2019 में भाजपा ने यहां 10 में से 10 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को यहां एक भी सीट नहीं मिल पाई थी। उनके दिग्गज नेता तक चुनाव हार गए थे। हरियाणा विधानसभा में बदल चुकी स्थिति लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा विधानसभा के नंबरों में बदलाव हो चुका है। 90 विधायकों वाली विधानसभा में अब 87 विधायक ही बचे हैं। सिरसा की रानियां विधानसभा से रणजीत सिंह चौटाला के इस्तीफे, बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक राकेश दौलताबाद के निधन और अंबाला लोकसभा सीट से मुलाना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी के अंबाला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह स्थिति बनी है। 87 सदस्यीय इस विधानसभा में अब बहुमत का आंकड़ा 46 से गिरकर 44 हो गया है। अब भाजपा, कांग्रेस के पास विधायकों की क्या है संख्या मौजूदा स्थिति की बात करें तो भाजपा के पास 41 विधायक हैं। इसके अलावा उन्हें हलोपा विधायक गोपाल कांडा और एक निर्दलीय नयनपाल रावत का समर्थन प्राप्त है। भाजपा के पास 43 विधायक हैं। वहीं विपक्ष में भाजपा से एक ज्यादा यानी 44 विधायक हैं। इनमें कांग्रेस के 29 (किरण चौधरी अभी कांग्रेस विधायक हैं, स्पीकर ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है।), जजपा के 10, निर्दलीय 4 और एक इनेलो विधायक हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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यादों के झरोखे से विधानसभा चुनाव:उम्मीदवार लोगों को बताता- वोट कैसे डाला जाता है, चुनावी प्रचार में लोग गाड़ी को देखने जाते थे एक समय था, जब लोग नेताओं के चुनावी प्रचार में उनके भाषण सुनने नहीं, उनकी गाड़ी को देखने जाते थे। कच्ची सड़कों पर धूल उड़ती थी, फिर भी बच्चे गाड़ियों के पीछे पर्चे उठाने के लिए भागते थे और लोग सड़कों के किनारे कतार लगाकर खड़े होते थे। हरियाणा में जब पहली बार चुनाव हुआ तो माहौल में इतना चकाचौंध नहीं था, सोशल मीडिया और इंटरनेट का जमाना भी नहीं था, उस वक्त चुनावी प्रचार करने में नेताओं के पसीने छूट जाया करते थे। एक गांव से दूसरे गांव पैदल चलकर जाना, घर-घर वोट मांगना, अपनी पहचान और पार्टी का नाम बताना और लोगों को वोट के महत्त्व के बारे में समझाना आज के समय से कहीं ज्यादा मुश्किल हुआ करता था। 1967 में हुआ था पहला विधानसभा चुनाव हरियाणा में कुछ ही दिनों बाद 15वां विधानसभा का चुनाव होने वाला है, सभी पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं, किसकी हार होगी और किसकी जीत? यह तो तय नहीं है, मगर ये जरूर तय है कि सत्ता की कुर्सी किसी एक को ही मिलेगी। चुनाव जीतने के लिए सभी पार्टियां करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं, मगर एक वक्त था जब नेताओं के पास अपनी गाड़ी भी नहीं होती थी। उस वक्त चुनावी प्रचार के लिए नेता पैदल या साइकिल से जाते थे। उस दौर में लाउड स्पीकर/साउंड का जमाना नहीं था, इतने शोर-शराबे भी नहीं होते थे। ये बात उस समय की है जब देश अंग्रेजों के चंगुल से नया-नया आजाद हुआ था और पहली बार चुनाव हुआ। वो साल था 1951-52 का, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे। तब हरियाणा और पंजाब एक ही राज्य हुआ करते थे। जब हरियाणा कटकर अलग हुआ तो 1967 में विधानसभा का पहला चुनाव हुआ। नेताओं के काफिले में बैलगाड़ी होती थी पलवल जिले के न्यू कॉलोनी में रहने वाले 92 वर्षीय तीर्थ दास रहेजा बताते हैं कि “पहले के समय में लोकसभा चुनाव को बड़ी वोट और विधानसभा की चुनाव को छोटी वोट बोला जाता था। आज के समय में उम्मीदवार पैसे को पानी की तरह बहाते हैं, लेकिन एक वक्त था जब उम्मीदवार पैदल-पैदल चलकर ही शहरों व गांवों में वोट मांगने जाया करते थे। उस समय सादगी पूर्ण तरीके से चुनाव प्रचार होता था। वो ऐसा वक्त था जब उम्मीदवार के पास न तो गाड़ी थी, न प्रचार के लिए माइक थे। गांवों में जाने के लिए पक्की सड़कें भी नहीं थी। प्रचार के लिए साधन के रूप में केवल साइकिल का इस्तेमाल होता था या फिर प्रत्याशी को पैदल ही जाना पड़ता था। आज के समय में नेताओं की रैली में हजारों लग्जरी गाड़ियों का काफिला निकलता है, पर उस समय रैली के नाम पर नेताओं के काफिले में बैलगाड़ी और तांगे चला करते थे। उसमें भी अधिकांश प्रत्याशी ऐसे होते, जो ये सुविधाएं भी नहीं जुटा पाते थे।” सोशल मीडिया और इंटरनेट का नहीं था जमाना तीर्थ दास बताते हैं, उस समय की भी अपनी कहानी है। आज के दौर में सोशल मीडिया और इंटरनेट का जमाना है, लोग घर बैठे नेताओं के भाषण सुन लेते हैं, क्षण-क्षण बदलते उनके बयान सुन लेते हैं, टीवी और इंटरनेट पर छपे विज्ञापनों में नेताओं का प्रचार देख लेते हैं। मगर उस दौर में प्रत्याशी को अपनी पहचान बताने के लिए घर-घर जाना पड़ता था, एक-एक व्यक्ति से मिलना पड़ता था। हां मगर उस समय आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला नहीं था, नेता उल्टी-सीधी बयानबाजी भी नहीं करते थे। आज के समय में सोशल मीडिया पर केवल एक पोस्ट वायरल हो जाने से रातों-रात नेताओं की छवि बदल जाती है, जिसका सीधा असर चुनावी नतीजे पर पड़ता है पर उस दौर में ऐसा कुछ भी नहीं होता था। वैलेट पेपर पर डाले जाते थे वोट तीर्थ दास पुरानी यादों के बारे में बताते हुए उस दौर का जिक्र करते हैं, जब देश में पहली बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव हुआ था। एक समस्या ये भी थी, कितने लोगों को पता ही नहीं था कि वोट कैसे डाला जाता है, उस टाइम ईवीएम मशीन प्रचलन में नहीं था, वैलेट पेपर पर वोट डाले जाते थे। कितने वोट तो गलत तरीके से डालने के कारण रद्द हो जाते थे। प्रत्याशी चुनावी प्रचार के दौरान वैलेट पेपर का एक नमुना अपने साथ ले जाते और उसे दिखाकर लोगों को वोट डालने के तरीके के बारे में भी समझाते थे। उस समय प्रत्याशी जब चुनाव प्रचार के लिए किसी गांव में पहुंचता तो लोग उसे देखने के लिए इकट्ठे हो जाते थे। तब शहर और गांवों को जोड़ने के लिए कच्चे रास्ते होते थे, पक्की सड़कें या गाड़ी तो थी ही नहीं। उस समय के चुनावों में प्रचार का जिम्मा प्रत्याशी के गांव के लोग, रिश्तेदार व सगे- संबंधी खुद संभालते थे और पैदल-पैदल गांवों में जाकर सादगी के साथ वोट मांगा करते थे। 1967 से 2024 तक चुनावी सफर उस समय चुनावी प्रचार में न तो बैंडबाजे होते थे, न ही लाउड स्पीकर, न जातिवाद न संप्रदायवाद केवल विकास ही मुद्दा होता था। उन्होंने बताया कि 1966 में जब हरियाणा बना तो चुनाव प्रचार में कुछ बदलाव आया। माइक व प्रचार में एक-दो अंबेसडर गाड़ी आ चुकी थी। चुनाव प्रचार के लिए जब गाड़ी गांव में पहुंचती थी तो लोग चुनाव प्रचार को कम, गाड़ी को देखने के लिए ज्यादा एकत्रित होते थे। लेकिन उस समय भी कच्चे रास्ते होते थे, गाड़ी जब निकलती थी तो धूल उड़ती थी, लेकिन उसके बाद भी बच्चे पर्चे लेने के लिए गाड़ी के पीछे काफी दूर तक दौड़ा करते थे। आज के समय में बहुत कुछ बदल गया है, चुनावी प्रचार के तरीके बदल गए, वोट मांगने तरीकों में भी बदलाव आ गया और मुद्दे भी बदल गए। मगर आज भी हरियाणा के कई पिछड़े गांव विकास की राह निहार रहे हैं। जो पक्की सड़क, बेहतर शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था से आज भी अछूते हैं। कौन हैं तीर्थ दास रहेजा? 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” मुझे दो दिन से रणधीर पनिहार दिल्ली बुला रहे हैं। मैं आज आया मेरे साथ ट्रेजडी की और मेरे साथ बहुत की बुरा बर्ताव किया। ये सारी चीजें मैं समाज को दिन में 11 बजे बताउंगा। मैं आज नहीं बताउंगा, क्योंकि यह बहुत बड़ी घटना है और बहुत बड़ी मेरे साथ ट्रेडजी है। यह सब चीजें कैमरे में हैं। अब मैं आप लोगों को इतना ही बता पाउंगा मैं माफी चाहता हूं। कल मैं आपको सारी चीजें बता दूंगा। ये रणधीर पनिहार पता नहीं मुझसे क्या मांगता है”। अभी हुए हरियाणा चुनाव में विधायक बने है रणधीर पनिहार
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