हरियाणा में सरकार बचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सियासी खेल शुरू कर दिया है। जल्द ही 2 विधायक अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देंगे। इसके बदले में भाजपा उन्हें सितंबर-अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट देगी। इसको लेकर चंडीगढ़ में CM सैनी की विधायकों को दी गई डिनर पार्टी में रणनीति बन चुकी है। केंद्र में NDA की सरकार बनते ही इस सियासी खेल को अमली जामा पहनाना शुरू हो जाएगा। सरकार बचाने की इस मुहिम में भाजपा के पास विपक्ष से 1 विधायक ज्यादा हो जाएगा। हरियाणा विधानसभा में लोकसभा चुनाव के रिजल्ट आने के बाद नंबर गेम बदल चुका है। 90 सदस्यों की विधानसभा में 87 मेंबर ही बचे हैं। कौन इस्तीफा देगा हरियाणा विधानसभा से जजपा से बागी हो चुके 2 विधायक अपनी सदस्यता से इस्तीफा देंगे। इनमें JJP के MLA जोगीराम सिहाग (बरवाला) और राम निवास सुरजाखेड़ा (नरवाना) का नाम है। हाल ही में इन दोनों विधायकों ने चंडीगढ़ में सीएम नायब सैनी और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मीटिंग की थी। मीटिंग में विधानसभा में सरकार की स्थिति को देखते हुए सीएम और पूर्व मुख्यमंत्री ने दोनों जजपा विधायकों के साथ इसको लेकर चर्चा की गई थी। जिसके बाद तय हुआ था कि वे अपनी सदस्यता से इस्तीफा देंगे, जिसके बदले में उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट दी जाएगी। सरकार का मौजूदा गणित हरियाणा में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के साथ ही विधानसभा का गुणा-गणित बदल चुका है। CM नायब सैनी के करनाल विधानसभा का उप चुनाव जीतने के बाद भी भाजपा के सदन में 41 विधायक पूरे हो चुके हैं। हलोपा के गोपाल कांडा और एक निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत सरकार को समर्थन दे रहे हैं। इन दोनों का साथ पाकर विधानसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 43 हो गई है। हालांकि सिरसा की रानियां विधानसभा से रणजीत सिंह चौटाला के इस्तीफे, बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक राकेश दौलताबाद के निधन से और अंबाला लोकसभा सीट से मुलाना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी के अंबाला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद विधानसभा में 87 सदस्य ही बचे हैं। 87 सदस्यीय इस विधानसभा में अब बहुमत का आंकड़ा 46 से गिरकर 44 हो गया है। इस्तीफे के बाद का गणित जजपा ने अभी बागी हुए जोगीराम सिहाग और रामनिवास सुरजाखेड़ा दोनों विधायकों के खिलाफ विधानसभा में एक याचिका डाली हुई है। इस याचिका में दोनों विधायकों के द्वारा बीजेपी के समर्थन के ऐलान पर दलबदलू कानून के तहत सदस्यता रद्द करने की मांग की गई है। इसके सबूत भी जजपा की ओर से दिए गए हैं। यदि स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता इन दोनों विधायकों की सदस्यता रद्द कर देते हैं तो सरकार के खिलाफ विपक्ष के विधायकों की संख्या 2 कम हो जाएगी। जिसका फायदा यदि विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होता है उसमें भाजपा को मिलेगा।हालांकि भाजपा की रणनीति के तहत स्पीकर के फैसले से पहले दोनों विधायक इस्तीफा दे देंगे। जिसके बाद विपक्ष दलों की संख्या पर असर पड़ेगा। अभी विपक्ष के पास कुल 44 विधायक हैं, जिसमें कांग्रेस के 29 ( वरुण चौधरी को छोड़कर) जजपा के 10, 4 निर्दलीय और 1 इनेलो के अभय चौटाला शामिल हैं। JJP के 2 विधायकों के इस्तीफे के बाद विपक्षी विधायकों की संख्या गिरकर 42 हो जाएगी, जो भाजपा से एक कम होगी। अल्पमत की नौबत क्यों आई? तीन निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन दियाहरियाणा में 7 मई को भाजपा को झटका देते हुए 3 निर्दलीय विधायकों ने नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। 3 विधायकों-सोमबीर सांगवान, रणधीर गोलन और धर्मपाल गोंदर ने समर्थन वापसी के साथ यह भी ऐनान किया था कि उन्होंने चुनाव के दौरान कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है। तीनों विधायकों ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख उदय भान की मौजूदगी में रोहतक में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की थी। जिसके बाद भाजपा सरकार अल्पमत में आ गई थी। इससे पहले तीनों विधायकों के समर्थन से भाजपा ने जजपा से गठबंधन तोड़कर सरकार बनाई थी। विपक्ष की रणनीति क्या?हरियाणा सरकार के अल्पमत में होने का दावा करने वाली कांग्रेस ने अब आगे की रणनीति बना ली है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 10 जून को कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग बुला ली है। इस मीटिंग में प्रदेश में विधानसभा भंग करने के लिए रणनीति बनाई जाएगी। मीटिंग में यह भी तय किया जाएगा कि गवर्नर द्वारा जवाब नहीं दिए जाने को लेकर क्या करना चाहिए। भाजपा को सरकार बचाना जरूरी क्यों?… इसकी दो वजहें लोकसभा में क्लीन स्वीप नहीं कर पाई भाजपा के लिए हरियाणा में सरकार बचाने की पहली वजह यह है कि वह लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप नहीं कर पाई। जबकि 2019 में भाजपा ने सूबे की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में वह पांच सीटों पर हार गई। लोकसभा चुनाव में इस खराब प्रदर्शन को सुधारने को लेकर सूबा सरकार पर काफी दवाब है। तीन महीने के लिए बने मुख्यमंत्री नायब सैनी का भी भविष्य भी इसी सरकार के कार्यकाल में तय होगा। इसी साल विधानसभा चुनाव हरियाणा में लोकसभा चुनाव के बाद अब इसी साल सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हैं। यह चुनाव जितने कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हैं, उससे कही ज्यादा भाजपा के लिए भी हैं। चूंकि हरियाणा में दस साल से भाजपा सत्ता में है। केंद्रीय नेतृत्व ने भी एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए जजपा से गठबंधन तोड़कर सीएम फेस भी बदल दिया। हालांकि इसका फायदा भाजपा को अभी तक नहीं हुआ है। हरियाणा में सरकार बचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सियासी खेल शुरू कर दिया है। जल्द ही 2 विधायक अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देंगे। इसके बदले में भाजपा उन्हें सितंबर-अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट देगी। इसको लेकर चंडीगढ़ में CM सैनी की विधायकों को दी गई डिनर पार्टी में रणनीति बन चुकी है। केंद्र में NDA की सरकार बनते ही इस सियासी खेल को अमली जामा पहनाना शुरू हो जाएगा। सरकार बचाने की इस मुहिम में भाजपा के पास विपक्ष से 1 विधायक ज्यादा हो जाएगा। हरियाणा विधानसभा में लोकसभा चुनाव के रिजल्ट आने के बाद नंबर गेम बदल चुका है। 90 सदस्यों की विधानसभा में 87 मेंबर ही बचे हैं। कौन इस्तीफा देगा हरियाणा विधानसभा से जजपा से बागी हो चुके 2 विधायक अपनी सदस्यता से इस्तीफा देंगे। इनमें JJP के MLA जोगीराम सिहाग (बरवाला) और राम निवास सुरजाखेड़ा (नरवाना) का नाम है। हाल ही में इन दोनों विधायकों ने चंडीगढ़ में सीएम नायब सैनी और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मीटिंग की थी। मीटिंग में विधानसभा में सरकार की स्थिति को देखते हुए सीएम और पूर्व मुख्यमंत्री ने दोनों जजपा विधायकों के साथ इसको लेकर चर्चा की गई थी। जिसके बाद तय हुआ था कि वे अपनी सदस्यता से इस्तीफा देंगे, जिसके बदले में उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट दी जाएगी। सरकार का मौजूदा गणित हरियाणा में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के साथ ही विधानसभा का गुणा-गणित बदल चुका है। CM नायब सैनी के करनाल विधानसभा का उप चुनाव जीतने के बाद भी भाजपा के सदन में 41 विधायक पूरे हो चुके हैं। हलोपा के गोपाल कांडा और एक निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत सरकार को समर्थन दे रहे हैं। इन दोनों का साथ पाकर विधानसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 43 हो गई है। हालांकि सिरसा की रानियां विधानसभा से रणजीत सिंह चौटाला के इस्तीफे, बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक राकेश दौलताबाद के निधन से और अंबाला लोकसभा सीट से मुलाना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी के अंबाला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद विधानसभा में 87 सदस्य ही बचे हैं। 87 सदस्यीय इस विधानसभा में अब बहुमत का आंकड़ा 46 से गिरकर 44 हो गया है। इस्तीफे के बाद का गणित जजपा ने अभी बागी हुए जोगीराम सिहाग और रामनिवास सुरजाखेड़ा दोनों विधायकों के खिलाफ विधानसभा में एक याचिका डाली हुई है। इस याचिका में दोनों विधायकों के द्वारा बीजेपी के समर्थन के ऐलान पर दलबदलू कानून के तहत सदस्यता रद्द करने की मांग की गई है। इसके सबूत भी जजपा की ओर से दिए गए हैं। यदि स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता इन दोनों विधायकों की सदस्यता रद्द कर देते हैं तो सरकार के खिलाफ विपक्ष के विधायकों की संख्या 2 कम हो जाएगी। जिसका फायदा यदि विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होता है उसमें भाजपा को मिलेगा।हालांकि भाजपा की रणनीति के तहत स्पीकर के फैसले से पहले दोनों विधायक इस्तीफा दे देंगे। जिसके बाद विपक्ष दलों की संख्या पर असर पड़ेगा। अभी विपक्ष के पास कुल 44 विधायक हैं, जिसमें कांग्रेस के 29 ( वरुण चौधरी को छोड़कर) जजपा के 10, 4 निर्दलीय और 1 इनेलो के अभय चौटाला शामिल हैं। JJP के 2 विधायकों के इस्तीफे के बाद विपक्षी विधायकों की संख्या गिरकर 42 हो जाएगी, जो भाजपा से एक कम होगी। अल्पमत की नौबत क्यों आई? 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