हरियाणा में तीन महीने में 4100 से अधिक लोगों के मिसिंग होने के मामले सामने आए हैं। इन मामलों पर नाराजगी जाहिर करते हुए हरियाणा मानवाधिकार आयोग (HHRC) ने स्वतः: संज्ञान लिया है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 4100 से अधिक लोग लापता हुए, यानी प्रतिदिन औसतन 45 से अधिक व्यक्ति गायब हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त 1000 से अधिक किडनैपिंग के मामले दर्ज हुए हैं। साथ ही मर्डर और गैर इरादतन हत्या की घटनाओं में भी पिछले वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। ये आंकड़े सार्वजनिक सुरक्षा तंत्र के विफल होने की गंभीर स्थिति को दर्शाते हैं। 31 को फिर आयोग करेगा सुनवाई हरियाणा मानव अधिकार आयोग के प्रोटोकाल, सूचना व जनसंपर्क अधिकारी डॉ पुनीत अरोड़ा ने बताया कि आयोग के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर यह स्थिति आयोग की त्वरित हस्तक्षेप और प्रशासनिक जांच की मांग करती है। जवाबदेही तय करने और मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाना भी आवश्यक है।आयोग ने पुलिस महानिदेशक (जांच) हरियाणा पंचकूला से एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जो वर्ष 2021 से 2025 तक के गुमशुदा व्यक्तियों, अपहरण और हत्या के मामलों की वास्तविक स्थिति जांच की प्रगति और अधिकारियों द्वारा उठाए गए निवारक उपायों का विवरण आठ सप्ताह में प्रस्तुत करें। मामले में अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी। यहां पढ़िए आयोग की टिप्पणी के मेन प्वाइंट्स.. 1. मानवाधिकार उल्लंघन के मिल रहे संकेत आयोग के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस ललित बत्रा, सदस्यों कुलदीप जैन व दीप भाटिया का मानना है कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट होता है कि यह स्थिति मौलिक मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की ओर संकेत करती है। प्रभावी रोकथाम और जांच तंत्र की अनुपस्थिति राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के तहत राज्य की जिम्मेदारियों के उल्लंघन के समान हो सकती है। 2. महिला, बच्चे, कमजोर वर्ग के शोषण की आशंका रिपोर्ट में विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों के शोषण की आशंका भी जताई गई है। सेवानिवृत्त जस्टिस ललित बत्रा की अध्यक्षता वाले पूर्ण आयोग के आदेशानुसार गुमशुदा व्यक्तियों का मुद्दा केवल आंकड़ों एक सीमित नहीं है। यह गहन मानवीय पीड़ा और संकट को दर्शाता है। गुमशुदा व्यक्तियों के परिवारों को गंभीर मानसिक आघात का सामना करना पड़ता है। विशेषकर तब, जब उन्हें यह जानकारी तक नहीं होती कि उनके प्रियजन जीवित है या नहीं। 3. मानसिक तनाव जैसी स्थिति लंबे समय तक रहती है इस असमंजस से उत्पन्न मानसिक तनाव, अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट जैसी समस्याएं लंबे समय तक बनी रहती हैं। यहां तक जब गुमशुदा व्यक्ति मिल भी जाते है, तब भी उनके और परिवारों के लिए सामान्य जीवन में वापसी आसान नहीं होती। आयोग यह भी नजरअंदाज नहीं कर सकता कि गुमशुदा व्यक्ति शोषण और आपराधिक गतिविधियों के लिए अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। हरियाणा में तीन महीने में 4100 से अधिक लोगों के मिसिंग होने के मामले सामने आए हैं। इन मामलों पर नाराजगी जाहिर करते हुए हरियाणा मानवाधिकार आयोग (HHRC) ने स्वतः: संज्ञान लिया है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 4100 से अधिक लोग लापता हुए, यानी प्रतिदिन औसतन 45 से अधिक व्यक्ति गायब हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त 1000 से अधिक किडनैपिंग के मामले दर्ज हुए हैं। साथ ही मर्डर और गैर इरादतन हत्या की घटनाओं में भी पिछले वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। ये आंकड़े सार्वजनिक सुरक्षा तंत्र के विफल होने की गंभीर स्थिति को दर्शाते हैं। 31 को फिर आयोग करेगा सुनवाई हरियाणा मानव अधिकार आयोग के प्रोटोकाल, सूचना व जनसंपर्क अधिकारी डॉ पुनीत अरोड़ा ने बताया कि आयोग के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर यह स्थिति आयोग की त्वरित हस्तक्षेप और प्रशासनिक जांच की मांग करती है। जवाबदेही तय करने और मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाना भी आवश्यक है।आयोग ने पुलिस महानिदेशक (जांच) हरियाणा पंचकूला से एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जो वर्ष 2021 से 2025 तक के गुमशुदा व्यक्तियों, अपहरण और हत्या के मामलों की वास्तविक स्थिति जांच की प्रगति और अधिकारियों द्वारा उठाए गए निवारक उपायों का विवरण आठ सप्ताह में प्रस्तुत करें। मामले में अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी। यहां पढ़िए आयोग की टिप्पणी के मेन प्वाइंट्स.. 1. मानवाधिकार उल्लंघन के मिल रहे संकेत आयोग के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस ललित बत्रा, सदस्यों कुलदीप जैन व दीप भाटिया का मानना है कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट होता है कि यह स्थिति मौलिक मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की ओर संकेत करती है। प्रभावी रोकथाम और जांच तंत्र की अनुपस्थिति राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के तहत राज्य की जिम्मेदारियों के उल्लंघन के समान हो सकती है। 2. महिला, बच्चे, कमजोर वर्ग के शोषण की आशंका रिपोर्ट में विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों के शोषण की आशंका भी जताई गई है। सेवानिवृत्त जस्टिस ललित बत्रा की अध्यक्षता वाले पूर्ण आयोग के आदेशानुसार गुमशुदा व्यक्तियों का मुद्दा केवल आंकड़ों एक सीमित नहीं है। यह गहन मानवीय पीड़ा और संकट को दर्शाता है। गुमशुदा व्यक्तियों के परिवारों को गंभीर मानसिक आघात का सामना करना पड़ता है। विशेषकर तब, जब उन्हें यह जानकारी तक नहीं होती कि उनके प्रियजन जीवित है या नहीं। 3. मानसिक तनाव जैसी स्थिति लंबे समय तक रहती है इस असमंजस से उत्पन्न मानसिक तनाव, अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट जैसी समस्याएं लंबे समय तक बनी रहती हैं। यहां तक जब गुमशुदा व्यक्ति मिल भी जाते है, तब भी उनके और परिवारों के लिए सामान्य जीवन में वापसी आसान नहीं होती। आयोग यह भी नजरअंदाज नहीं कर सकता कि गुमशुदा व्यक्ति शोषण और आपराधिक गतिविधियों के लिए अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर
