हिमाचल में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई है। भाजपा ने यहां पार्टी का सूपड़ा साफ कर दिया, लेकिन विधानसभा उप-चुनाव में 6 में से 4 सीटें जीतकर CM सुक्खू सरकार को बचाने में कामयाब रहे हैं। इससे राज्यसभा चुनाव में सरकार पर आया सियासी संकट अब टल गया है। इसी के साथ हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 34 से बढ़कर 38 हो गई है, जो कि मौजूदा विधानसभा में 65 विधायकों के हिसाब से बहुमत से 5 ज्यादा है। वहीं, इस हार के बाद 4 जून को प्रदेश में सरकार बनाने का दावा करने वाली भाजपा को भी करारा झटका लगा है। BJP केवल धर्मशाला और बड़सर में ही जीत दर्ज कर पाई है। धर्मशाला में दिग्गज नेता सुधीर शर्मा और बड़सर में इंद्रदत्त लखनपाल चुनाव जीते हैं। दोनों कांग्रेस सरकार से भी चार-चार बार विधायक रह चुके हैं। 4 सीटों पर भाजपा की हार ने हिमाचल में सरकार बनाने के दावों की हवा निकाल दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने बीते दिनों हिमाचल में चुनावी जनसभाओं के दौरान 4 जून को सरकार बनाने का दावा किया था। राणा को हराकर धूमल समर्थकों की टीस खत्म
सुजानपुर सीट पर राजेंद्र राणा की हार ने धूमल समर्थकों की टीस खत्म कर दी है। राजेंद्र राणा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री चेहरा एवं 2 बार के CM प्रेम कुमार धूमल को हराया था, लेकिन इस बार राणा धूमल के हनुमान कहे जाने वाले कैप्टन रणजीत से चुनाव हार गए। कैप्टन रणजीत ने बीते मई माह में ही कांग्रेस का दामन थामा था। राणा समर्थक अंदरखाते धूमल गुट द्वारा सुजानपुर में भितरघात के आरोप लगा रहे हैं। यही BJP की हार की यही बड़ी वजह मानी जा रही है। भीतरघात को हार का कारण बता रहे समर्थक
कुटलैहड़ में देवेंद्र भुट्टो और गगरेट में चैतन्य शर्मा समर्थक अब भीतरघात को हार का कारण मान रहे हैं। क्योंकि, इनकी BJP में एंट्री के बाद पार्टी के दिग्गज नेताओं का भविष्य दांव पर लग गया था। खासकर कुटलैहड़ सीट पर पूर्व सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री की रेस में गिने जाने वाले पूर्व मंत्री वीरेंद्र कंवर का भविष्य दांव पर लग गया था। उधर, लाहौल-स्पीति से कांग्रेस के पूर्व बागी विधायक एवं BJP उम्मीदवार रवि ठाकुर की भी करारी हार हुई है। इस सीट पर रवि ठाकुर तीसरे स्थान और BJP के बागी एवं निर्दलीय मारकंडा दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के 6 में 4 बागियों को बगावत पड़ी भारी
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार से बगावत करने वाले 6 पूर्व विधायक भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। इनमें से 4 को हार मिली। इस तरह इन विधायकों पर बगावत भारी पड़ी है। उन्हें 18 महीने पहले जनता ने 5 साल के लिए चुनकर भेजा था। अब उन्हें जनता ने ही अगले 44 महीने के लिए घर बैठा दिया है। धर्मशाला-बड़सर सीट नहीं जिता पाए सुक्खू
बेशक, सत्तारूढ़ कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में झटका लगा है, लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए राहत देने वाले हैं। हालांकि, धर्मशाला और बड़सर सीट पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने बार-बार बागी विधायकों पर तीखे हमले किए और चुनाव प्रचार में पूरी जान फूंकी। फिर भी इन दोनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव हार गई। मुख्यमंत्री सुक्खू ने बीते 3 महीने के दौरान सबसे ज्यादा हमले सुधीर शर्मा पर किए, लेकिन वह उन्हें नहीं हरा पाए। सुधीर शर्मा के तौर पर BJP को कांगड़ा जिला में बड़ा ब्राह्मण चेहरा मिल गया है। शांता कुमार के बाद कांगड़ा में BJP के पास बड़ा चेहरा नहीं बचा था। हिमाचल में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई है। भाजपा ने यहां पार्टी का सूपड़ा साफ कर दिया, लेकिन विधानसभा उप-चुनाव में 6 में से 4 सीटें जीतकर CM सुक्खू सरकार को बचाने में कामयाब रहे हैं। इससे राज्यसभा चुनाव में सरकार पर आया सियासी संकट अब टल गया है। इसी के साथ हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 34 से बढ़कर 38 हो गई है, जो कि मौजूदा विधानसभा में 65 विधायकों के हिसाब से बहुमत से 5 ज्यादा है। वहीं, इस हार के बाद 4 जून को प्रदेश में सरकार बनाने का दावा करने वाली भाजपा को भी करारा झटका लगा है। BJP केवल धर्मशाला और बड़सर में ही जीत दर्ज कर पाई है। धर्मशाला में दिग्गज नेता सुधीर शर्मा और बड़सर में इंद्रदत्त लखनपाल चुनाव जीते हैं। दोनों कांग्रेस सरकार से भी चार-चार बार विधायक रह चुके हैं। 4 सीटों पर भाजपा की हार ने हिमाचल में सरकार बनाने के दावों की हवा निकाल दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने बीते दिनों हिमाचल में चुनावी जनसभाओं के दौरान 4 जून को सरकार बनाने का दावा किया था। राणा को हराकर धूमल समर्थकों की टीस खत्म
सुजानपुर सीट पर राजेंद्र राणा की हार ने धूमल समर्थकों की टीस खत्म कर दी है। राजेंद्र राणा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री चेहरा एवं 2 बार के CM प्रेम कुमार धूमल को हराया था, लेकिन इस बार राणा धूमल के हनुमान कहे जाने वाले कैप्टन रणजीत से चुनाव हार गए। कैप्टन रणजीत ने बीते मई माह में ही कांग्रेस का दामन थामा था। राणा समर्थक अंदरखाते धूमल गुट द्वारा सुजानपुर में भितरघात के आरोप लगा रहे हैं। यही BJP की हार की यही बड़ी वजह मानी जा रही है। भीतरघात को हार का कारण बता रहे समर्थक
कुटलैहड़ में देवेंद्र भुट्टो और गगरेट में चैतन्य शर्मा समर्थक अब भीतरघात को हार का कारण मान रहे हैं। क्योंकि, इनकी BJP में एंट्री के बाद पार्टी के दिग्गज नेताओं का भविष्य दांव पर लग गया था। खासकर कुटलैहड़ सीट पर पूर्व सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री की रेस में गिने जाने वाले पूर्व मंत्री वीरेंद्र कंवर का भविष्य दांव पर लग गया था। उधर, लाहौल-स्पीति से कांग्रेस के पूर्व बागी विधायक एवं BJP उम्मीदवार रवि ठाकुर की भी करारी हार हुई है। इस सीट पर रवि ठाकुर तीसरे स्थान और BJP के बागी एवं निर्दलीय मारकंडा दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के 6 में 4 बागियों को बगावत पड़ी भारी
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार से बगावत करने वाले 6 पूर्व विधायक भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। इनमें से 4 को हार मिली। इस तरह इन विधायकों पर बगावत भारी पड़ी है। उन्हें 18 महीने पहले जनता ने 5 साल के लिए चुनकर भेजा था। अब उन्हें जनता ने ही अगले 44 महीने के लिए घर बैठा दिया है। धर्मशाला-बड़सर सीट नहीं जिता पाए सुक्खू
बेशक, सत्तारूढ़ कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में झटका लगा है, लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए राहत देने वाले हैं। हालांकि, धर्मशाला और बड़सर सीट पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने बार-बार बागी विधायकों पर तीखे हमले किए और चुनाव प्रचार में पूरी जान फूंकी। फिर भी इन दोनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव हार गई। मुख्यमंत्री सुक्खू ने बीते 3 महीने के दौरान सबसे ज्यादा हमले सुधीर शर्मा पर किए, लेकिन वह उन्हें नहीं हरा पाए। सुधीर शर्मा के तौर पर BJP को कांगड़ा जिला में बड़ा ब्राह्मण चेहरा मिल गया है। शांता कुमार के बाद कांगड़ा में BJP के पास बड़ा चेहरा नहीं बचा था। हिमाचल | दैनिक भास्कर