हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की प्लानिंग पर पानी फिरा है। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने फिलहाल विधायकों की डिस्क्वालिफिकेशन पर रोक लगा दी है, क्योंकि हिमाचल में मुख्य संसदीय सचिव (CPS) की नियुक्ति और ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से प्रोटेक्शन को पहले ही कानून बने थे। सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति बनाए रखने के आदेशों से कांग्रेस सरकार को संजीवनी और बीजेपी की उम्मीदों को झटका लगा है। हाईकोर्ट के ऑर्डर के बाद बीजेपी नेता खुलकर कांग्रेस विधायकों के अनसीट होने की बात कह रहे थे। BJP के राज्यसभा सांसद हर्ष महाजन यहां तक कह चुके थे जब चाहे सरकार गिरा सकते हैं। इससे सियासी पारा चढ़ता जा रहा था। लाभ का पद मानते हुए राज्यपाल के पास चुनौती देने की थी तैयारी विपक्ष पार्टी भाजपा हाईकोर्ट के ऑर्डर में पैरा 50 के हिसाब से राज्यपाल से मिलने की तैयारी में थी। पैरा 50 में हाईकोर्ट ने लाभ के पद से पूर्व सीपीएस को मिली प्रोटेक्शन को समाप्त कर दिया था। इसके तहत राज्यपाल पूर्व सीपीएस को अनसीट करने के आदेश सुना सकते थे। मगर SC ने इस पर स्टे लगा दिया है। बीजेपी ले रही थी कानूनी राय वहीं बीजेपी भी कांग्रेस विधायकों की सदस्यता रद्द करने को लेकर कानूनी विशेषज्ञ से राय ले रही थी और राज्यपाल से मिलने की तैयारी में थी, क्योंकि भारत के संविधान 191 में डिस्क्वालिफिकेशन की शक्तियां राज्यपाल के पास है। 3(D) में मिली प्रोटेक्शन बहाल जानकारों की माने तो हिमाचल लैजिस्लेटिव असैंबली मेंबर्स एक्ट 1971 से हाईकोर्ट द्वारा 3(D) हटाने की वजह से विधायकों की सदस्यता पर संकट आ गया था। 3(D) हटने के बाद ऑफिस ऑफ प्रॉफिट पूर्व सीपीएस के खिलाफ अट्रेक्ट हो रहा था। लिहाजा लाभ का पद मानते हुए विपक्ष कांग्रेस के 6 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग करने वाला था। 6 नहीं, 9 विधायकों की सदस्यता को चुनौती की तैयारी थी बीजेपी 6 नहीं बल्कि 9 विधायकों की सदस्यता को चुनौती देने की योजना बना रही थी। पूर्व CPS के साथ-साथ कैबिनेट रैंक वाले 3 कांग्रेस विधायक भी लपेटे में आ सकते थे। क्योंकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कांग्रेस विधायक भवानी सिंह पठानिया, आरएस बाली और नंद लाल को भी कैबिनेट रैंक के साथ तैनाती दे रखी है। फतेहपुर से विधायक भवानी सिंह पठानिया को स्टेट प्लानिंग बोर्ड का डिप्टी चेयरमैन, नगरोटा बगवा से MLA आरएस बाली हिमाचल पर्यटन विकास निगम का वाइस-चेयरमैन और रामपुर से विधायक नंद लाल को सातवें वित्त आयोग का अध्यक्ष बना रखा है। इनकी विधायकी पर खतरा टला इन तीन विधायकों के अलावा पूर्व CPS किशोरी लाल, आशीष बुटेल, एमएल ब्राक्टा, सुंदर सिंह ठाकुर, संजय अवस्थी और दून से राम कुमार चौधरी की विधायक भी बीते कल तक संकट में मानी जा रही थी। अब CPS केस की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। यह केस पंजाब, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल राज्य के केस के साथ सुना जाएगा। फिलहाल उप चुनाव नहीं SC से कांग्रेस सरकार को यदि राहत नहीं मिलती तो बीजेपी ने कांग्रेस 9 विधायकों की सदस्यता को चुनौती देनी थी। यदि इनकी सदस्यता जाती तो राज्य में फिर से 9 सीटों पर उप चुनाव की नौबत आ सकती थी। जवाबी कार्रवाई को कांग्रेस भी तैयारी इस बीच सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार भी जवाब कार्रवाई कर सकती थी, क्योंकि बीजेपी के 9 विधायकों पर विधानसभा के बजट सत्र में दुर्व्यवहार व कागज फाड़ने के आरोप है। इस केस में स्पीकर ने बीजेपी विधायकों को नोटिस जारी कर रखे है। अब स्पीकर को केवल कार्रवाई करनी है। ऐसे में मुकाबला बीजेपी के 9 विधायक बनाम कांग्रेस के 9 विधायक हो सकता था। BJP के जिन विधायकों को नोटिस दिए गए हैं, उनमें ऊना से विधायक सत्तपाल सत्ती, नाचन से विनोद सुल्तानपुरी, चुराह से हंसराज, बंजार से सुरेंद्र शौरी, सुलह से विपिन सिंह परमार, बिलासपुर से त्रिलोक जम्वाल, बल्ह से इंद्र सिंह गांधी, आनी से लोकेंद्र कुमार और करसोग से दीपराज शामिल है। हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की प्लानिंग पर पानी फिरा है। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने फिलहाल विधायकों की डिस्क्वालिफिकेशन पर रोक लगा दी है, क्योंकि हिमाचल में मुख्य संसदीय सचिव (CPS) की नियुक्ति और ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से प्रोटेक्शन को पहले ही कानून बने थे। सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति बनाए रखने के आदेशों से कांग्रेस सरकार को संजीवनी और बीजेपी की उम्मीदों को झटका लगा है। हाईकोर्ट के ऑर्डर के बाद बीजेपी नेता खुलकर कांग्रेस विधायकों के अनसीट होने की बात कह रहे थे। BJP के राज्यसभा सांसद हर्ष महाजन यहां तक कह चुके थे जब चाहे सरकार गिरा सकते हैं। इससे सियासी पारा चढ़ता जा रहा था। लाभ का पद मानते हुए राज्यपाल के पास चुनौती देने की थी तैयारी विपक्ष पार्टी भाजपा हाईकोर्ट के ऑर्डर में पैरा 50 के हिसाब से राज्यपाल से मिलने की तैयारी में थी। पैरा 50 में हाईकोर्ट ने लाभ के पद से पूर्व सीपीएस को मिली प्रोटेक्शन को समाप्त कर दिया था। इसके तहत राज्यपाल पूर्व सीपीएस को अनसीट करने के आदेश सुना सकते थे। मगर SC ने इस पर स्टे लगा दिया है। बीजेपी ले रही थी कानूनी राय वहीं बीजेपी भी कांग्रेस विधायकों की सदस्यता रद्द करने को लेकर कानूनी विशेषज्ञ से राय ले रही थी और राज्यपाल से मिलने की तैयारी में थी, क्योंकि भारत के संविधान 191 में डिस्क्वालिफिकेशन की शक्तियां राज्यपाल के पास है। 3(D) में मिली प्रोटेक्शन बहाल जानकारों की माने तो हिमाचल लैजिस्लेटिव असैंबली मेंबर्स एक्ट 1971 से हाईकोर्ट द्वारा 3(D) हटाने की वजह से विधायकों की सदस्यता पर संकट आ गया था। 3(D) हटने के बाद ऑफिस ऑफ प्रॉफिट पूर्व सीपीएस के खिलाफ अट्रेक्ट हो रहा था। लिहाजा लाभ का पद मानते हुए विपक्ष कांग्रेस के 6 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग करने वाला था। 6 नहीं, 9 विधायकों की सदस्यता को चुनौती की तैयारी थी बीजेपी 6 नहीं बल्कि 9 विधायकों की सदस्यता को चुनौती देने की योजना बना रही थी। पूर्व CPS के साथ-साथ कैबिनेट रैंक वाले 3 कांग्रेस विधायक भी लपेटे में आ सकते थे। क्योंकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कांग्रेस विधायक भवानी सिंह पठानिया, आरएस बाली और नंद लाल को भी कैबिनेट रैंक के साथ तैनाती दे रखी है। फतेहपुर से विधायक भवानी सिंह पठानिया को स्टेट प्लानिंग बोर्ड का डिप्टी चेयरमैन, नगरोटा बगवा से MLA आरएस बाली हिमाचल पर्यटन विकास निगम का वाइस-चेयरमैन और रामपुर से विधायक नंद लाल को सातवें वित्त आयोग का अध्यक्ष बना रखा है। इनकी विधायकी पर खतरा टला इन तीन विधायकों के अलावा पूर्व CPS किशोरी लाल, आशीष बुटेल, एमएल ब्राक्टा, सुंदर सिंह ठाकुर, संजय अवस्थी और दून से राम कुमार चौधरी की विधायक भी बीते कल तक संकट में मानी जा रही थी। अब CPS केस की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। यह केस पंजाब, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल राज्य के केस के साथ सुना जाएगा। फिलहाल उप चुनाव नहीं SC से कांग्रेस सरकार को यदि राहत नहीं मिलती तो बीजेपी ने कांग्रेस 9 विधायकों की सदस्यता को चुनौती देनी थी। यदि इनकी सदस्यता जाती तो राज्य में फिर से 9 सीटों पर उप चुनाव की नौबत आ सकती थी। जवाबी कार्रवाई को कांग्रेस भी तैयारी इस बीच सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार भी जवाब कार्रवाई कर सकती थी, क्योंकि 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