हिसार की बेटी जानवी को श्रेष्ठ दिव्यांग बालिका के रूप में उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया है। जानवी के माता पिता और भाई भी मूक बधिर हैं। जानवी ने चित्रकला, शतरंज मे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित होने पर जानवी और उसका पूरा परिवार खुश है। आसपास के लोग उन्हें बधाई देने के लिए पहुंच रहे है। पिता विजय कुमार दर्जी का काम करते हैं, वही मां कुसुम ग्रहणी है। जानवी का छोटा भाई भी मूक बधिर है। 8वीं में पढ़ती है जानवी जानवी की चचेरी बहन ईशा ने बताया कि 13 वर्षीय जानवी हिसार की अनाज मंडी में मूक बधिर स्कूल में 8वीं कक्षा में पढ़ती है। जानवी खेल सहित अन्य गतिविधियों में काफी एक्टिव है। इसकी परफॉर्मेंस को देखते हुए स्कूल के स्टाफ ने जानवी का नाम केंद्र में भेजा था। जहां से सिलेक्शन होने के बाद जानवी को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया गया। बीते दिन राष्ट्रपति ने 33 दिव्यांगजनों को सम्मानित किया था। जानवी के दादा राजकुमार ने बताया कि जानवी शुरू से ही पढ़ने में होशियार है। चित्र कला,निबंध लिखना और शतरंज जानवी को बहुत पसंद है। हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारे परिवार के किसी सदस्य को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जाएगा। हिसार की बेटी जानवी को श्रेष्ठ दिव्यांग बालिका के रूप में उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया है। जानवी के माता पिता और भाई भी मूक बधिर हैं। जानवी ने चित्रकला, शतरंज मे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित होने पर जानवी और उसका पूरा परिवार खुश है। आसपास के लोग उन्हें बधाई देने के लिए पहुंच रहे है। पिता विजय कुमार दर्जी का काम करते हैं, वही मां कुसुम ग्रहणी है। जानवी का छोटा भाई भी मूक बधिर है। 8वीं में पढ़ती है जानवी जानवी की चचेरी बहन ईशा ने बताया कि 13 वर्षीय जानवी हिसार की अनाज मंडी में मूक बधिर स्कूल में 8वीं कक्षा में पढ़ती है। जानवी खेल सहित अन्य गतिविधियों में काफी एक्टिव है। इसकी परफॉर्मेंस को देखते हुए स्कूल के स्टाफ ने जानवी का नाम केंद्र में भेजा था। जहां से सिलेक्शन होने के बाद जानवी को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया गया। बीते दिन राष्ट्रपति ने 33 दिव्यांगजनों को सम्मानित किया था। जानवी के दादा राजकुमार ने बताया कि जानवी शुरू से ही पढ़ने में होशियार है। चित्र कला,निबंध लिखना और शतरंज जानवी को बहुत पसंद है। हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारे परिवार के किसी सदस्य को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जाएगा। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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स्वैच्छिक रक्तदान की जननी पद्मश्री कांता का निधन:ब्लड की खरीद-फरोख्त के खिलाफ कोर्ट गईं, पति हरियाणा के पहले मुख्य सचिव थे पद्मश्री कांता कृष्णन, जिन्हें मदर, दीदी या कांता जी के नाम से भी जाना जाता है, का निधन हो गया। वे 95 वर्ष की थीं और लगभग दो सप्ताह से अस्वस्थ थीं। उनके स्वर्गीय पति सरूप कृष्णन, आईसीएस, हरियाणा के पहले मुख्य सचिव थे और उन्होंने इस पद पर 7 वर्षों तक सेवा दी। कांता जी ने 1964 में स्थापित ब्लड बैंक सोसायटी की सचिव के रूप में स्वैच्छिक रक्तदान आंदोलन की शुरुआत पहले चंडीगढ़ में, फिर उत्तर भारत और पूरे देश में की। उन्होंने चंडीगढ़ को सुरक्षित रक्त आंदोलन का केंद्र बना दिया। रक्तदान की हानि रहितता के बारे में लोगों को जागरूक करने और लाखों लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने के उनके अथक प्रयासों को 1972 में भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार देकर सम्मानित किया। उन्हें राष्ट्रपति स्वर्ण पदक, आईएसबीटीआई का मदर टेरेसा अवार्ड, 1996 में चंडीगढ़ प्रशासन का गणतंत्र दिवस पुरस्कार और कई अन्य सम्मान प्राप्त हुए। ब्लड की खरीद-फरोख्त के खिलाफ कोर्ट गई कांता जी ब्लड बैंक सोसायटी की सचिव और बाद में अध्यक्ष रहीं। वे 24 वर्षों तक भारतीय रक्त संक्रमण और इम्यूनो हेमेटोलॉजी सोसायटी की संस्थापक सचिव थीं। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए इंडियन नेशनल थिएटर की स्थापना में भी योगदान दिया। कांता जी के प्रयासों के चलते “कॉमन कॉज” द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) से 1996 में रक्त के खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध लगाने का ऐतिहासिक निर्णय आया। इसके बाद, उन्होंने भारत सरकार को राष्ट्रीय रक्त नीति तैयार करने के लिए प्रेरित किया। छह दशकों तक चले उनके स्वैच्छिक कार्यों ने लाखों लोगों की जान बचाई। परिवार को भी मुहिम से जोड़ा कांता जी को बागवानी, खाना पकाने, सिलाई, फूलों की सजावट और भारतीय शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि थी। वे जिस भी कार्य में लगीं, उसमें उत्कृष्टता हासिल की। कांता जी अपने पुत्र संजीव कृष्णन (दीपा से विवाहित), दो पुत्रियों अनु (पुरिंदर गंजू से विवाहित) और निति सरिन (मनोहन “मैक” सरिन से विवाहित) के साथ-साथ 7 पोते-पोतियों और 8 परपोते-परपोतियों को छोड़ गई हैं। निति और मैक कांता जी के पदचिह्नों पर चलते हुए ब्लड बैंक सोसायटी के क्रमशः सचिव और अध्यक्ष हैं। उनकी इच्छा के अनुसार, उनका शरीर अनुसंधान के लिए पीजीआई को दान कर दिया गया।
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करनाल में कांग्रेस का हारे हुए उम्मीदवारों पर दांव:वीरेंद्र राठौर लगातार तीन बार, राकेश कंबोज 3, सुमिता 1 ने एक बार हारा चुनाव हरियाणा में कांग्रेस ने 40 उम्मीदवारों वाली तीसरी लिस्ट जारी कर दी। बहुप्रतीक्षित लिस्ट के बाद कांग्रेस नेताओं और समर्थकों का इंतजार खत्म हो गया। करनाल विधानसभा में पूर्व विधायक सुमिता सिंह पर कांग्रेस ने विश्वास जताया है। इंद्री में पूर्व विधायक राकेश कुमार कंबोज को टिकट दिया गया है। घरौंडा विधानसभा में कांग्रेस की टिकट पर तीन बार हारने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव वीरेंद्र सिंह राठौर पर एक बार फिर कांग्रेस ने दांव खेला है। क्यों मिला टिकट करनाल में सुमिता सिंह ने 2005 में करीब 34 हजार के मार्जिन से चुनाव जीता। 2009 में सुमिता सिंह 3700 वोटों से जीती। 2014 में पार्टी ने उन्हें असंध विधानसभा से मैदान में उतारा लेकिन वहां से भाजपा उम्मीदवार से हार गई। सुमित सिंह पिछले काफी लंबे समय से लोगों के बीच में एक्टिव रही। उनके पास अच्छा और लंबा राजनीतिक अनुभव है, और पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के नजदीक है। जनता के बीच इनकी अच्छी पकड़ है और मजबूत स्थिति में है। आजाद प्रत्याशी रहते दूसरे नंबर रहे राकेश कुमार कंबोज इंद्री से 2005 में कांग्रेस की टिकट पर विधायक रह चुके हैं। 2009 में हरियाणा जनहित कांग्रेस से चुनाव लड़ा। तीसरे स्थान पर रहे। फिर 2014 में जनहित कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और फिर भी तीसरे स्थान पर रहे। 2019 में आजाद प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे। कंबोज लगातार तीन बार हार चुके है। अब फिर से कांग्रेस ने उन पर विश्वास जताया है, उनकी जनता के बीच अच्छी पकड़ है और पिछला मार्जन महज सात हजार का था। राकेश हुड्डा के नजदीकी है और राकेश को राजनीति का लंबा अनुभव है। राहुल गांधी के करीबी वीरेंद्र सिंह राठौर घरौंडा की राजनीति में बड़ा चेहरा है। जिनके सीधे संबंध राहुल गांधी से है। कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिव है और विरेंद्र राठौर ने 2005, 2009 और 2014 में विधानसभा का चुनाव लड़ा। किसी में भी चुनाव में वे जीत नहीं पाए। 2009 के चुनाव में ही वे दूसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन अन्य चुनावों में वे तीसरे स्थान पर रहे। फिर भी कांग्रेस ने राठौर को टिकट दिया है। क्यों कटा टिकट करनाल में सुमित सिंह के साथ मनोज वाधवा भी टिकट मांग रहे थे। अशोक खुराना भी टिकट के दावेदारों में थे। मनोज वाधवा पंजाबी चेहरा तो थे, लेकिन वे कुछ ही महीने पहले बीजेपी से कांग्रेस में आए थे। वहीं, अशोक खुराना का राजनीति अनुभव सुमिता सिंह से कम आंकना उनके टिकट कटने का कारण माना जा रहा है। इसके अलावा दूसरा कारण यह भी है कि भाजपा पहले ही पंजाबी कैंडिडेट को उतार चुकी है। ऐसे में अशोक खुराना पंजाबी समाज से है और ज्यादा अनुभव नहीं है। 2019 में सांगवान की थी कांग्रेस जॉइन घरौंडा में नरेंद्र सांगवान इनेलो से विधायक रहे है और 2019 में कांग्रेस जॉइन की थी। उनको कांग्रेस में ज्यादा समय नहीं हुआ। सतीश राणा भी बीजेपी से कांग्रेस में आए थे और कोई चुनाव का अनुभव नहीं है। भूपेंद्र लाठर सूरजेवाला गुट से संबंध रखते है और नया चेहरा है। इनकी टिकट कटने के ये कारण माने जा रहे हैं। इंद्री में भीमसेन मेहता और नवज्योत कश्यप को झटका वहीं, इंद्री राकेश कंबोज के साथ नवजोत कश्यप और भीम सेन मेहता प्रबल दावेदारों में से एक थे। नवजोत कश्यप का टिकट इसलिए कटा क्योंकि पिछले चुनाव में राकेश कंबोज जो आजाद प्रत्याशी से उससे बहुत ज्यादा वोटो से हारी थी। वहीं भीमसेन मेहता पंजाबी समाज से आते इस सीट पर कश्यप व कांबोज समुदाय का दबाबा मना जाता है। जातीय समीकरणों को देखते हुए भीमसेन मेहता की टिकट कटने का मुख्य कारण माना जा रहा है।