प्रयागराज में जनवरी, 2025 में महाकुंभ होना है। इसके लिए आम लोगों से लेकर अखाड़ों तक की तैयारियां जोरों पर हैं। इस बीच निर्मोही अखाड़े की किन्नर महामंडलेश्वर स्वामी हिमांगी सखी ने किन्नर समाज के लिए अलग अर्धनारीश्वर धाम बनाने का ऐलान किया है। यह किन्नर अखाड़े से अलग होगा। हिमांगी सखी ने वंचित किन्नर संतों को मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर पद का अभिषेक कराने का भी ऐलान किया है। ऐसे में, एक बार फिर किन्नर अखाड़ों और संतों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। किन्नर समाज के इतिहास से लेकर उनका अखाड़ा बनने तक की पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- कब हुई किन्नर अखाड़े की शुरुआत?
साल 2015 में एक्टिविस्ट और किन्नरों की लीडर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने किन्नर अखाड़े की स्थापना की। उन्होंने अपने साथियों के साथ किन्नर समाज को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इसे शुरू किया। किन्नर अखाड़ा बनाने के पीछे वो तर्क देती हैं, किन्नरों को समाज में सम्मान दिलाने के लिए इसकी शुरुआत की। एक इंटरव्यू में वो कहती हैं, कानून बन जाने के बाद भी जब तक समाज न स्वीकार करे, तब तक जीत अधूरी है। धर्म उसे समाज से जोड़ने का जरिया है। वो कहती हैं कि धर्म के जरिए सीधे लोगों से जुड़ा जा सकता है, जो एक्टिविजम से नहीं हो पाएगा। LGBTQ समुदाय के एक्टिविस्ट सिर्फ आपस के अपने समूहों से जुड़े होते हैं। यह एक इको चैंबर जैसा है। पहली बार किन्नर अखाड़ा कब कुंभ में शामिल हुआ?
किन्नर अखाड़ा सबसे पहले 2016 में उज्जैन कुंभ में शामिल हुआ था। उसके बाद 2019 में प्रयागराज के कुंभ मेले में शामिल हुआ। तब इस अखाड़े के टेंट में लोगों की भारी भीड़ उमड़ी थी। अखाड़ों के इतिहास में यह पहली बार था, जब किन्नर समूह का एक अलग अखाड़ा बना था। किन्नर अखाड़ा, जूना अखाड़ा के साथ ही जुड़ा है। कुंभ 2019 में किन्नर अखाड़े ने देवत्व यात्रा यानी पेशवाई निकाली थी। इसमें अखाड़े की महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अलावा पीठाधीश्वर प्रभारी उज्जैन की पवित्रा माई, उत्तर भारत की महामंडलेश्वर भवानी मां और महामंडलेश्वर डॉ. राज राजेश्वरी भी पहुंची थीं। किन्नर अखाड़े को आज भी अलग अखाड़े की मान्यता नहीं
किन्नर अखाड़ा शुरू हुए 9 साल बीत गए हैं। वो प्रयागराज से लेकर उज्जैन तक के धार्मिक आयोजनों में शामिल हो चुका है। इसके बावजूद अखाड़ों को मान्यता देने वाली संस्था ‘अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद’ की तरफ से किन्नर अखाड़े को आज तक मान्यता नहीं मिली है। जब इस अखाड़े की शुरुआत की गई, तब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसका विरोध किया था। ऐसे में, आधिकारिक रूप से 2019 के प्रयागराज के कुंभ में किन्नर अखाड़े के पास शामिल होने की इजाजत नहीं थी। तब किन्नर अखाड़े ने यह कहते हुए महाकुंभ में शिरकत की कि वे उप देवता हैं। इसलिए उन्हें किसी मान्यता की जरूरत नहीं। यही वजह है, आज भी यह अखाड़ा जूना अखाड़े के तहत आता है। इसे अलग अखाड़े की मान्यता नहीं दी गई है। अब जानिए भारत में किन्नरों का इतिहास- रामायण में राम के सच्चे भक्त के रूप में किन्नर समूह का जिक्र
किन्नर समूह की प्राचीनता को वेद से लेकर रामायण काल तक ले जाया जाता है। यानी आज से करीब 3 हजार साल पहले रामायण में इन्हें लेकर एक प्रसंग का जिक्र आता है। इसके मुताबिक जब भगवान राम अयोध्या से वनवास के लिए जा रहे थे, तब पूरा राज्य उनके पीछे-पीछे चलने लगा। लोग उनके पीछे-पीछे राज्य से निकलकर जंगलों तक पहुंच गए। तब भगवान राम रुके और मुड़कर कहा कि सभी स्त्री-पुरुष आंसू पोंछें और अपने-अपने घर जाएं। अपने भगवान के आग्रह पर लोग अपने घरों को वापस चले गए। लेकिन, इस बीच कुछ लोगों का समूह वहीं रुका रहा। वो जंगल के किनारों पर खड़े रहे। वापस नहीं गए, क्योंकि न तो पुरुष थे न ही स्त्री। वो भगवान राम के 14 साल के वनवास के लौटने तक वहीं जंगलों में रहे। श्रीराम की वापसी के साथ ही उनकी भी राज्य में वापसी हुई। रामायण के इसी प्रसंग के आधार पर कहा जाता है कि ये किन्नर थे। महाभारत में भी किन्नरों का जिक्र मिलता है। इसमें उन्हें अर्ध-मानव और अर्ध-अश्व कहा गया। इससे भी पहले वेदों में तीन तरह व्यक्तियों का जिक्र मिलता है। यह प्रकार उनकी प्रकृति के आधार पर निर्धारित की गई है। कामसूत्र में भी किन्नरों का जिक्र मिलता है। मुगलकाल में किन्नर हरम की रखवाली से लेकर सेना में शामिल होते
मुगलकाल में किन्नर समूह का पहले की तुलना में विस्तृत रूप से जिक्र मिलता है। मुगलकाल के कई लेखकों ने इनकी कहानियों को अपनी रचना में जगह दी। तभी ‘हिजड़ा’ शब्द चलन में आया। यह उर्दू भाषा का शब्द है। मुगल दरबारों में हरम की देख-रेख और रखवाली के काम का पूरा जिम्मा किन्नर समूह के पास होता था। यह दिल्ली सल्तनत के समय से ही चला आ रहा था। उसी को मुगलों ने भी अपनाया। इसके अलावा भी सेना से लेकर दरबार में नृत्य-संगीत तक का जिम्मा संभालते थे। इसमें भी अकबर के समय में किन्नर समूह का सबसे ज्यादा जिक्र मिलता है। एक डच मर्चेंट फ्रांसिस्को पेल्सर्ट पहली बार मुगल दरबार में अपने अनुभव का जिक्र करते हुए बताया कि 17वीं सदी में जब वो वहां पहुंचा तो ये उसके लिए ये आश्चर्यजनक था कि थर्ड जेंडर को इतना सम्मान और शक्ति मिली थी। समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा- 377 अंग्रेजों की देन थी
साल 2018 सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाले कानून धारा- 377 को खत्म कर दिया। लेकिन, इसकी शुरुआत जाती है साल 1864 में। अंग्रेजों ने तब समलैंगिकता को अपराध बताने वाले ब्रिटेन के बुगेरी एक्ट 1533 को भारत में भी लागू कर दिया था। ऐसे में, किन्नरों को सिर्फ उनके किन्नर होने के आधार पर अपराधी माना जाने लगा। भारत में अंग्रेजी हुकूमत उन्हें गंदगी, बीमारी, संक्रमण फैलाने वाले कहने लगी। उनसे छुआछूत किया जाने लगा। भारत में ब्रिटिश अधिकारी उन्हें सामाजिक नैतिकता का दुश्मन मानने लगे। उनसे ब्रिटिश हुकूमत को खतरा तक बता दिया। —————— ये भी पढ़ें… महाकुंभ में अब ‘शाही’ नहीं, ‘राजसी स्नान’ होगा, प्रयागराज में 8 अखाड़ों का फैसला; कहा- स्नान करने वाले भी आधार कार्ड लेकर आएं प्रयागराज में महाकुंभ स्नान इस बार बहुत खास होगा। 8 अखाड़ों के संतों ने मिलकर स्नान को सुरक्षित बनाने के लिए अहम फैसले किए। सबसे बड़ा फैसला हुआ कि महाकुंभ में शाही स्नान नहीं होंगे। इन्हें अब राजसी स्नान कहा जाएगा। महाकुंभ में शामिल होने वाले संतों को भी ID कार्ड दिए जाएंगे। जो लोग कुंभ में स्नान करने देश-विदेश से पहुंचते हैं, उन्हें भी आधार कार्ड लेकर आना होगा। पढ़ें पूरी खबर प्रयागराज में जनवरी, 2025 में महाकुंभ होना है। इसके लिए आम लोगों से लेकर अखाड़ों तक की तैयारियां जोरों पर हैं। इस बीच निर्मोही अखाड़े की किन्नर महामंडलेश्वर स्वामी हिमांगी सखी ने किन्नर समाज के लिए अलग अर्धनारीश्वर धाम बनाने का ऐलान किया है। यह किन्नर अखाड़े से अलग होगा। हिमांगी सखी ने वंचित किन्नर संतों को मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर पद का अभिषेक कराने का भी ऐलान किया है। ऐसे में, एक बार फिर किन्नर अखाड़ों और संतों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। किन्नर समाज के इतिहास से लेकर उनका अखाड़ा बनने तक की पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- कब हुई किन्नर अखाड़े की शुरुआत?
साल 2015 में एक्टिविस्ट और किन्नरों की लीडर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने किन्नर अखाड़े की स्थापना की। उन्होंने अपने साथियों के साथ किन्नर समाज को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इसे शुरू किया। किन्नर अखाड़ा बनाने के पीछे वो तर्क देती हैं, किन्नरों को समाज में सम्मान दिलाने के लिए इसकी शुरुआत की। एक इंटरव्यू में वो कहती हैं, कानून बन जाने के बाद भी जब तक समाज न स्वीकार करे, तब तक जीत अधूरी है। धर्म उसे समाज से जोड़ने का जरिया है। वो कहती हैं कि धर्म के जरिए सीधे लोगों से जुड़ा जा सकता है, जो एक्टिविजम से नहीं हो पाएगा। LGBTQ समुदाय के एक्टिविस्ट सिर्फ आपस के अपने समूहों से जुड़े होते हैं। यह एक इको चैंबर जैसा है। पहली बार किन्नर अखाड़ा कब कुंभ में शामिल हुआ?
किन्नर अखाड़ा सबसे पहले 2016 में उज्जैन कुंभ में शामिल हुआ था। उसके बाद 2019 में प्रयागराज के कुंभ मेले में शामिल हुआ। तब इस अखाड़े के टेंट में लोगों की भारी भीड़ उमड़ी थी। अखाड़ों के इतिहास में यह पहली बार था, जब किन्नर समूह का एक अलग अखाड़ा बना था। किन्नर अखाड़ा, जूना अखाड़ा के साथ ही जुड़ा है। कुंभ 2019 में किन्नर अखाड़े ने देवत्व यात्रा यानी पेशवाई निकाली थी। इसमें अखाड़े की महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अलावा पीठाधीश्वर प्रभारी उज्जैन की पवित्रा माई, उत्तर भारत की महामंडलेश्वर भवानी मां और महामंडलेश्वर डॉ. राज राजेश्वरी भी पहुंची थीं। किन्नर अखाड़े को आज भी अलग अखाड़े की मान्यता नहीं
किन्नर अखाड़ा शुरू हुए 9 साल बीत गए हैं। वो प्रयागराज से लेकर उज्जैन तक के धार्मिक आयोजनों में शामिल हो चुका है। इसके बावजूद अखाड़ों को मान्यता देने वाली संस्था ‘अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद’ की तरफ से किन्नर अखाड़े को आज तक मान्यता नहीं मिली है। जब इस अखाड़े की शुरुआत की गई, तब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसका विरोध किया था। ऐसे में, आधिकारिक रूप से 2019 के प्रयागराज के कुंभ में किन्नर अखाड़े के पास शामिल होने की इजाजत नहीं थी। तब किन्नर अखाड़े ने यह कहते हुए महाकुंभ में शिरकत की कि वे उप देवता हैं। इसलिए उन्हें किसी मान्यता की जरूरत नहीं। यही वजह है, आज भी यह अखाड़ा जूना अखाड़े के तहत आता है। इसे अलग अखाड़े की मान्यता नहीं दी गई है। अब जानिए भारत में किन्नरों का इतिहास- रामायण में राम के सच्चे भक्त के रूप में किन्नर समूह का जिक्र
किन्नर समूह की प्राचीनता को वेद से लेकर रामायण काल तक ले जाया जाता है। यानी आज से करीब 3 हजार साल पहले रामायण में इन्हें लेकर एक प्रसंग का जिक्र आता है। इसके मुताबिक जब भगवान राम अयोध्या से वनवास के लिए जा रहे थे, तब पूरा राज्य उनके पीछे-पीछे चलने लगा। लोग उनके पीछे-पीछे राज्य से निकलकर जंगलों तक पहुंच गए। तब भगवान राम रुके और मुड़कर कहा कि सभी स्त्री-पुरुष आंसू पोंछें और अपने-अपने घर जाएं। अपने भगवान के आग्रह पर लोग अपने घरों को वापस चले गए। लेकिन, इस बीच कुछ लोगों का समूह वहीं रुका रहा। वो जंगल के किनारों पर खड़े रहे। वापस नहीं गए, क्योंकि न तो पुरुष थे न ही स्त्री। वो भगवान राम के 14 साल के वनवास के लौटने तक वहीं जंगलों में रहे। श्रीराम की वापसी के साथ ही उनकी भी राज्य में वापसी हुई। रामायण के इसी प्रसंग के आधार पर कहा जाता है कि ये किन्नर थे। महाभारत में भी किन्नरों का जिक्र मिलता है। इसमें उन्हें अर्ध-मानव और अर्ध-अश्व कहा गया। इससे भी पहले वेदों में तीन तरह व्यक्तियों का जिक्र मिलता है। यह प्रकार उनकी प्रकृति के आधार पर निर्धारित की गई है। कामसूत्र में भी किन्नरों का जिक्र मिलता है। मुगलकाल में किन्नर हरम की रखवाली से लेकर सेना में शामिल होते
मुगलकाल में किन्नर समूह का पहले की तुलना में विस्तृत रूप से जिक्र मिलता है। मुगलकाल के कई लेखकों ने इनकी कहानियों को अपनी रचना में जगह दी। तभी ‘हिजड़ा’ शब्द चलन में आया। यह उर्दू भाषा का शब्द है। मुगल दरबारों में हरम की देख-रेख और रखवाली के काम का पूरा जिम्मा किन्नर समूह के पास होता था। यह दिल्ली सल्तनत के समय से ही चला आ रहा था। उसी को मुगलों ने भी अपनाया। इसके अलावा भी सेना से लेकर दरबार में नृत्य-संगीत तक का जिम्मा संभालते थे। इसमें भी अकबर के समय में किन्नर समूह का सबसे ज्यादा जिक्र मिलता है। एक डच मर्चेंट फ्रांसिस्को पेल्सर्ट पहली बार मुगल दरबार में अपने अनुभव का जिक्र करते हुए बताया कि 17वीं सदी में जब वो वहां पहुंचा तो ये उसके लिए ये आश्चर्यजनक था कि थर्ड जेंडर को इतना सम्मान और शक्ति मिली थी। समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा- 377 अंग्रेजों की देन थी
साल 2018 सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाले कानून धारा- 377 को खत्म कर दिया। लेकिन, इसकी शुरुआत जाती है साल 1864 में। अंग्रेजों ने तब समलैंगिकता को अपराध बताने वाले ब्रिटेन के बुगेरी एक्ट 1533 को भारत में भी लागू कर दिया था। ऐसे में, किन्नरों को सिर्फ उनके किन्नर होने के आधार पर अपराधी माना जाने लगा। भारत में अंग्रेजी हुकूमत उन्हें गंदगी, बीमारी, संक्रमण फैलाने वाले कहने लगी। उनसे छुआछूत किया जाने लगा। भारत में ब्रिटिश अधिकारी उन्हें सामाजिक नैतिकता का दुश्मन मानने लगे। उनसे ब्रिटिश हुकूमत को खतरा तक बता दिया। —————— ये भी पढ़ें… महाकुंभ में अब ‘शाही’ नहीं, ‘राजसी स्नान’ होगा, प्रयागराज में 8 अखाड़ों का फैसला; कहा- स्नान करने वाले भी आधार कार्ड लेकर आएं प्रयागराज में महाकुंभ स्नान इस बार बहुत खास होगा। 8 अखाड़ों के संतों ने मिलकर स्नान को सुरक्षित बनाने के लिए अहम फैसले किए। सबसे बड़ा फैसला हुआ कि महाकुंभ में शाही स्नान नहीं होंगे। इन्हें अब राजसी स्नान कहा जाएगा। महाकुंभ में शामिल होने वाले संतों को भी ID कार्ड दिए जाएंगे। जो लोग कुंभ में स्नान करने देश-विदेश से पहुंचते हैं, उन्हें भी आधार कार्ड लेकर आना होगा। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर