2021 के बाद मानव-वन्यजीव संघर्ष में देखी गई कमी, जन जागरूकता कार्यक्रम से आंकड़ों में आई गिरावट

2021 के बाद मानव-वन्यजीव संघर्ष में देखी गई कमी, जन जागरूकता कार्यक्रम से आंकड़ों में आई गिरावट

<p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand News:</strong> उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी देखी गई है. राज्यभर में 2021 से 2024 के बीच इस संघर्ष से जुड़े मामलों में गिरावट दर्ज की गई है. वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के संयुक्त प्रयासों, जन जागरूकता कार्यक्रमों और बेहतर वन्यजीव प्रबंधन नीतियों के चलते इस समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण पाया गया है. सरकार के इन प्रयासों के चलते उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में गिरावट आई है, जो राज्य के वन्यजीव प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सकारात्मक संकेत है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>2021 में उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों में तेजी देखी गई थी. तेंदुआ, भालू और जंगली हाथियों द्वारा हमलों के कारण कई लोगों की जान गई और फसलों का भी नुकसान हुआ. हालांकि, 2022 और 2023 में वन्यजीव विभाग द्वारा किए गए प्रयासों से इन घटनाओं में कमी आई. 2024 तक आते-आते यह कमी और भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>500 से अधिक मामले अभी तक दर्ज</strong><br />राज्यभर के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में मानव-वन्यजीव संघर्ष के 500 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2024 में यह संख्या घटकर लगभग 300 के आसपास आ गई है. विशेष रूप से, तेंदुओं और हाथियों के हमलों में भी कमी देखी गई है. राज्य सरकार और वन विभाग द्वारा वन्यजीवों के रहने के क्षेत्रों में सुधार करने और लोगों को सुरक्षित रखने के लिए किए गए उपायों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>गिरावट का मुख्य कारण&nbsp;</strong><br />इस गिरावट का मुख्य कारण वन्यजीव प्रबंधन के तहत वन्य क्षेत्रों में भोजन और पानी की बेहतर व्यवस्था करना है, जिससे जंगली जानवरों का मानव बस्तियों की ओर आना कम हुआ है. साथ ही, संवेदनशील क्षेत्रों में बिजली की बाड़ और कैमरा ट्रैप जैसी सुरक्षा प्रणालियाँ लगाई गई हैं, जिससे जानवरों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा रही है. वन विभाग ने मानव और वन्यजीव के बीच दूरी बनाए रखने के लिए कई जागरूकता अभियान भी चलाए हैं, जिसमें स्थानीय निवासियों को जानवरों से बचने के उपाय और सुरक्षित रहने के तरीकों के बारे में जानकारी दी गई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें: <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/bhadohi-sp-district-president-pradeep-yadav-big-statement-said-mla-zahid-beg-son-can-do-police-encounter-ann-2785217″>Bhadohi News: सपा जिलाध्यक्ष प्रदीप यादव का बड़ा बयान, कहा- ‘MLA जाहिद बेग के बेटे का एनकाउंटर न कर दे पुलिस'</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand News:</strong> उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी देखी गई है. राज्यभर में 2021 से 2024 के बीच इस संघर्ष से जुड़े मामलों में गिरावट दर्ज की गई है. वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के संयुक्त प्रयासों, जन जागरूकता कार्यक्रमों और बेहतर वन्यजीव प्रबंधन नीतियों के चलते इस समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण पाया गया है. सरकार के इन प्रयासों के चलते उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में गिरावट आई है, जो राज्य के वन्यजीव प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सकारात्मक संकेत है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>2021 में उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों में तेजी देखी गई थी. तेंदुआ, भालू और जंगली हाथियों द्वारा हमलों के कारण कई लोगों की जान गई और फसलों का भी नुकसान हुआ. हालांकि, 2022 और 2023 में वन्यजीव विभाग द्वारा किए गए प्रयासों से इन घटनाओं में कमी आई. 2024 तक आते-आते यह कमी और भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>500 से अधिक मामले अभी तक दर्ज</strong><br />राज्यभर के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में मानव-वन्यजीव संघर्ष के 500 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2024 में यह संख्या घटकर लगभग 300 के आसपास आ गई है. विशेष रूप से, तेंदुओं और हाथियों के हमलों में भी कमी देखी गई है. राज्य सरकार और वन विभाग द्वारा वन्यजीवों के रहने के क्षेत्रों में सुधार करने और लोगों को सुरक्षित रखने के लिए किए गए उपायों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>गिरावट का मुख्य कारण&nbsp;</strong><br />इस गिरावट का मुख्य कारण वन्यजीव प्रबंधन के तहत वन्य क्षेत्रों में भोजन और पानी की बेहतर व्यवस्था करना है, जिससे जंगली जानवरों का मानव बस्तियों की ओर आना कम हुआ है. साथ ही, संवेदनशील क्षेत्रों में बिजली की बाड़ और कैमरा ट्रैप जैसी सुरक्षा प्रणालियाँ लगाई गई हैं, जिससे जानवरों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा रही है. वन विभाग ने मानव और वन्यजीव के बीच दूरी बनाए रखने के लिए कई जागरूकता अभियान भी चलाए हैं, जिसमें स्थानीय निवासियों को जानवरों से बचने के उपाय और सुरक्षित रहने के तरीकों के बारे में जानकारी दी गई है.</p>
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